अब भी
अब भी तेरा रूप महकता जेसे चन्दन
अब भी तुझको छूकर तन में होती सिहरन
अब भी चाँद सरीखा लगता तेरा आनन्
अब भी तुझको देख मचल जाता मेरा मन
अब भी तेरे नयना उतने मतवाले है
अब भी तेरे होंठ भरे रस के प्याले है
अब भी तेरी बाते मोह लेती है मन को
अब भी तेरा साथ बड़ा देता धड़कन को
मुझे अप्सरा लगती अब भी, तू ही हूर है
वही रूप है,वही जवानी, वही नूर है
अब भी तेरी रूप अदाए ,उतनी मादक
वो ही नशा है,वो ही मज़ा है,तुझमे अब तक
तुझ पर अब तक हुआ उम्र का असर नहीं है
मेरी उम्र बाद गयी तो क्या ,नज़र वही है
अब भी मुझको रात रात भर तू तद्फाती
तेरे खर्राटो से मुझको नीद न आती