(बाल कविता)
श्रम से डरता एक किसान
करता संतों का सन्मान
धरम करम में था विश्वास
गया एक साधू के पास
साधू बाबा का ध्यान
सेवा करने लगा किसान
साधू बोले आँखे खोल
क्या है इच्छा बच्चा बोल
बोला कृषक ,धन्य जय साधो
एक पारस पत्थर दिलवादो
खेत खोद जा बच्चा अपना
पूरा होगा तेरा सपना
साधू बाबा का वरदान
लगा खोदने खेत किसान
उसने हांके हल और बख्खर
मिला नहीं पर पारस पत्थर
उसने बोया उपजा नाज
आ बोले साधू महाराज
श्रम का पारस पत्थर होना
मिटटी भी बन जाती सोना