मेरा पहला पहला प्यार
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मेरे दिल के एक कोने में,नाम तुम्हारा बसा हुआ है
उम्र बालपन की थी मेरी,प्यार ,इश्क कुछ ज्ञान नहीं था
नारी और पुरुष के अंतर ,का भी ज्यादा भान नहीं था
पहली बार देख लड़की को,लगा की क्या होती है लड़की
मिलने और बातें करने की ,थी मन में जिज्ञासा भड़की
तुम्हे देख कर मेरे दिल में,कुछ कुछ पहली बार हुआ था
तुम्हारी भोली नज़रों ने,मेरा नाजुक ह्रदय छुआ था
तुमसे दो बातें करने को,मेरा मन मचला करता था
तुम्हारा हँसना,मुस्काना,इस दिल को पगला करता था
मेरे मन, मष्तिष्क,सभी में ,छवि तुम्हारी ही थी छाई
तुमसे मिलना ,बातें करना,होता था कितना सुखदायी
वो तुम्हारी चंचल आँखे,वो तुम्हारा प्यारा आनन्
एक गुदगुदी सी करता था ,कितना गदगद होता था मन
नयन तरसते थे दर्शन को ,मन में तुम बिन चैन नहीं था
वो बचपन का पागलपन था ,या फिर पहला प्यार वही था
फिर तुम चल दी अपने रस्ते,मै भी निकला अपने रस्ते
एक निरी भावुकता थी वो,भुला दिया बस हँसते हँसते
पर उर आँगन में अब भी पदचाप तुम्हारा छपा हुआ है
मेरे दिल के एक कोने में ,नाम तुम्हारा बसा हुआ है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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मेरे दिल के एक कोने में,नाम तुम्हारा बसा हुआ है
उम्र बालपन की थी मेरी,प्यार ,इश्क कुछ ज्ञान नहीं था
नारी और पुरुष के अंतर ,का भी ज्यादा भान नहीं था
पहली बार देख लड़की को,लगा की क्या होती है लड़की
मिलने और बातें करने की ,थी मन में जिज्ञासा भड़की
तुम्हे देख कर मेरे दिल में,कुछ कुछ पहली बार हुआ था
तुम्हारी भोली नज़रों ने,मेरा नाजुक ह्रदय छुआ था
तुमसे दो बातें करने को,मेरा मन मचला करता था
तुम्हारा हँसना,मुस्काना,इस दिल को पगला करता था
मेरे मन, मष्तिष्क,सभी में ,छवि तुम्हारी ही थी छाई
तुमसे मिलना ,बातें करना,होता था कितना सुखदायी
वो तुम्हारी चंचल आँखे,वो तुम्हारा प्यारा आनन्
एक गुदगुदी सी करता था ,कितना गदगद होता था मन
नयन तरसते थे दर्शन को ,मन में तुम बिन चैन नहीं था
वो बचपन का पागलपन था ,या फिर पहला प्यार वही था
फिर तुम चल दी अपने रस्ते,मै भी निकला अपने रस्ते
एक निरी भावुकता थी वो,भुला दिया बस हँसते हँसते
पर उर आँगन में अब भी पदचाप तुम्हारा छपा हुआ है
मेरे दिल के एक कोने में ,नाम तुम्हारा बसा हुआ है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'