Thursday, May 5, 2011

उपदेश

    उपदेश
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पत्नीजी थी डाटती,पतिजी थे भयभीत
अस्थि चर्म मम देह मह,तामे इसी प्रीत
तामे इसी प्रीत ,काम में हो जो इतनी
तो फिर कम हो जाए ,मुसीबत मेरी कितनी
साडी तक भी नहीं समेटना तुमको आती
रोज बनाते ,बेल न पाते ,गोल चपाती

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

प्रेम रस

प्रेम रस
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भले कंटीली तीखी अंखिया
भले रसीली मीठी बतियाँ
गोरा आनन  चाँद सरीखा
सुन्दर नाक नक्श सब तीखा
भले अंग अंग हो मदमाया
बदन छरहरा ,कंचन काया
नाज़ुक,कमसिन,यौवन पूरा
पर सारा सौन्दर्य अधूरा
भरे न पिया ,प्रेमरस गागर
तब तक न हो रूप उजागर

मदन मोहन बहेती घोटू'

चाह

    चाह
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प्रियतम!
मै नहीं चाहती,
चाय की पत्ती की तरह,
तुम संग ,घुलूं,मिलूँ,
और तुम मेरा सारा रस लेकर
मुझे ,शेष स्वादहीन पत्तियों की तरह
फ़ेंक दो
मै तो,
इंस्टंट कोफी की तरह
तुम में घुल मिल कर,
एक रस हो कर जीना चाहती हूँ
इसीलिए ,चाय नहीं ,
कोफी पीना  चाहती हूँ

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

सौन्दर्यानुभूति

 सौन्दर्यानुभूति
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मुझे ,
सूरज से ज्यादा,
मोहित करते हैं,
सूरज को ढकने वाले बादल
जिन में से छन छन कर,
आलोकित होती है,
सूरज की स्वर्णिम आभाHide all
और उससे भी ज्यादा,
आल्हादित करती है
सुन्दर ,सुडोल ,शोढ्सी के,
सुगठित तन पर
अल्पदर्शी वस्त्रों से झांकती हुई  कंचुकी
और कंचुकी की कगारों को तोडती हुई
यौवन की मधुरिम आभा

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

अर्थ का अनर्थ

   अर्थ का अनर्थ
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मैंने जब उनसे पूछा ,जीने की राह बतादो,
वो गए सीडियों तक और ,जीने की रह बता दी
वो लगे बैठ कर सीने,कुछ कपडे नए ,पुराने,
जब मैंने उनको सीने से लगने की चाह  बता दी
मै बोला आग लगी है, तुम दिल की आग बुझा दो
,वो गए दौड़ ले आये,दो चार बाल्टी पानी
देकर सुराही वो बोले,जी चाहे उतना पी लो,
मैंने जब उनको अपनी ,पीने की चाह  बता दी

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

नायिका भेद

नायिका भेद
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सुबह हुआ हो गयी काम में व्यस्त नायिका
नौकर,महरी, बीमारी से त्रस्त नायिका
बढती महंगाई ,खर्चे से   ग्रस्त नायिका
मन से ,तन से ,दोनों से ,अस्वस्थ नायिका
अच्छे दिन की आशा से ,आश्वस्त नायिका
शाम ढले तक हो जाती है पस्त   नायिका
मिला पति का प्यार हो गयी मस्त नायिका
रोज इसी ढर्रे की है अभ्यस्त  नायिका

मदन मोहन बहेती 'घोटू'