एक मधुमख्खी, एक है मख्खी
एक नस्ल की है दोनों पर,एक अनुशाषित,एक है झक्की
एक मधुमख्खी,एक है मख्खी
छोटी मख्खी में छोटापन,दिन भर भीं भीं करती फिरती
बहुत सताती,उड़ उड़ जाती,चाय भरे प्याले में गिरती
कभी गाल पर ,कभी नाक पर,बार बार बैठा करती है
मार भगाओ तो उड़ जाती,लेकिन चोट तुम्हे लगती है
परेशान सबको करती है,और फैलाती है बीमारी
ना है कोई ठौर ठिकाना,फिरती रहती मारी मारी
है शालीन मगर मधुमख्खी,छत्ते से उड़,जा फूलों पर
मधुकोष में संचय करती,रस की बूँदें लाती है भर
करे छेड़खानी जो कोई,तो उसके पीछे पड़ जाती
अपनी सारी बहनों के संग,उसे काटती,मज़ा चखाती
कितनी सुन्दर जीवन पध्दिती,सब मिलकर श्रम करती दिनभर
होता जब परिवार संगठित,तो मिठास से भरता है घर
लेकिन इनकी छोटी बहना,मख्खी है पूरी आवारा
कभी मिठाई,कभी गंदगी,इधर उधर मुंह करती मारा
कहने को दोनों बहने पर,दोनों में कितना है अंतर
एक चखाती मधुर मधु है,और एक बीमारी का घर
ये गुण सभी संगठन के है,महिमा अनुशाषित जीवन की
एक मधुमख्खी,एक है मख्खी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
एक नस्ल की है दोनों पर,एक अनुशाषित,एक है झक्की
एक मधुमख्खी,एक है मख्खी
छोटी मख्खी में छोटापन,दिन भर भीं भीं करती फिरती
बहुत सताती,उड़ उड़ जाती,चाय भरे प्याले में गिरती
कभी गाल पर ,कभी नाक पर,बार बार बैठा करती है
मार भगाओ तो उड़ जाती,लेकिन चोट तुम्हे लगती है
परेशान सबको करती है,और फैलाती है बीमारी
ना है कोई ठौर ठिकाना,फिरती रहती मारी मारी
है शालीन मगर मधुमख्खी,छत्ते से उड़,जा फूलों पर
मधुकोष में संचय करती,रस की बूँदें लाती है भर
करे छेड़खानी जो कोई,तो उसके पीछे पड़ जाती
अपनी सारी बहनों के संग,उसे काटती,मज़ा चखाती
कितनी सुन्दर जीवन पध्दिती,सब मिलकर श्रम करती दिनभर
होता जब परिवार संगठित,तो मिठास से भरता है घर
लेकिन इनकी छोटी बहना,मख्खी है पूरी आवारा
कभी मिठाई,कभी गंदगी,इधर उधर मुंह करती मारा
कहने को दोनों बहने पर,दोनों में कितना है अंतर
एक चखाती मधुर मधु है,और एक बीमारी का घर
ये गुण सभी संगठन के है,महिमा अनुशाषित जीवन की
एक मधुमख्खी,एक है मख्खी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'