Wednesday, July 27, 2011

आज गिरी फिर बिजली

आज गिरी फिर बिजली
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जुल्फों को फैला कर,
तुम थोडा मुस्काई
आज घिरी  फिर बदली
आज गिरी  फिर बिजली
भीगे से से बालों को ,
तुमने जब झटकाया
पानी की बूंदों से,
सावन सा बरसाया
हुई ऋतू  फिर पगली
आज गिरी फिर बिजली
गीली हो चिपक गयी,
गौरी के तन चोली
गालों पर बिखर गयी,
शर्मीली  रांगोली
पिया रंग ,फिर रंग ली
आज गिरी फिर बिजली
देख संवारता तुमको,
आइना हर्षाया
ताज़ा सा खिला रूप,
लख कर मन मुस्काया
मिलन आस फिर जग ली
आज गिरी फिर बिजली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुम, तुम हो

तुम, तुम हो
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गर्मी में शीतलता,
सर्दी में ऊष्मा
बारिश में भीगापन,
बासंती सुषमा
हर ऋतू में मनभाती
मुस्काती,मनभाती
मस्ती की धुन हो
तुम ,तुम हो
ग्रीष्म में शिमला की,
वादियों सी शीतल
बरफ की चुस्की की तरह,
रसभरी,मनहर
शीतल जल की घूँट की तरह,
तृप्ति प्रदायिनी
चांदनी में बिछी सफ़ेद चादरों सी,
सुहावनी
आम के फलों की तरह,
मीठी और रसीली तुम  हो
तुम,तुम हो
सर्दी में जयपुर की गुदगुदी,
रजाई सी सुहाती
सूरज की गुनगुनी ,
धूप सी मनभाती
मक्की की रोटी और सरसों के ,
साग जैसी स्वाद में
गरम अंगीठी की तरह तपाती,
ठिठुराती रात में,
रस की खीर,गरम जलेबी,
या रसीला गुलाबजामुन हो
तुम,तुम हो
वर्षा की ऋतू में सावन की,
बरसती फुहार
जुल्फों की बदली से,
आँखों की बिजली की चमकार
आँख मिचोली खेलती हुई,
सूरज की किरण
या गरम चाय के साथ,
पकोड़ी गरम गरम
दूर दूर तक फैली हरियाली,
भीगा हुआ मौसम हो
तुम, तुम हो
बासंती ऋतू की,
मस्त  मस्त बहार
प्यार भरी, होली के,
रंगों की बौछार
फूलों की क्यारियों की,
गमक  और महक
कोयल की कुहू कुहू,
पंछियों की चहक
वृक्षों के नवल पात सी कोमल,
पलाश सा,रंगीला फागुन हो
तुम ,तुम हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'