कल रात मैंने एक सपना देखा
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कल रात मैंने एक सपना देखा,
मै रेगिस्तान में भाग रहा हूँ
और भागते भागते भटक गया हूँ
फिर थक कर गिर पड़ा हूँ
मेरे हाथ कट कर,
मेरे शरीर से छिटक कर,
दूर हो गए है
मेरे होंठ,प्यास से सूखने लगे है
और मेरी आँखों पर पट्टी बंधी है
कुछ हाथ,मदद के लिए ,मेरी तरफ,
बढ़ने की कोशिश कर रहे है,
पर पहुँच नहीं पा रहे है
तभी आसमान से एक परी उतरती है
वह मुझे सहलाती है,
शीतल जल पिलाती है
और मेरी आँखों की पट्टी खोलती है
मैंने देखा,एक जादू सा हो गया है
मेरे हाथ मेरे शरीर से फिर जा जुड़े है
मदद करने वाले हाथों ने,
मेरे करीब आकर,मुझे उठाया है,
और मरुस्थल में अचानक,
हरियाली छा गयी है ,
और फूल खिलने लगे है
क्या था ये सपना?
मेरी आँखें खुली तो मैंने देखा,
रेगिस्तान में मेरा भटकना,
कोरी मृग तृष्णा थी ,
वो परी मेरी पत्नी थी
वो हाथ, मेरे बच्चे थे
,मेरे माँ बाप,भाई बहन और मित्रों के हाथ,
मेरी मदद को बढ़ना चाह रहे थे
पर मेरी आँखों पर,
अहम् और अहंकार की पट्टी बंधी थी,
जिसके खुलते ही,
सब फिर से मिल गए
और रेगिस्तान में फूलखिल गए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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कल रात मैंने एक सपना देखा,
मै रेगिस्तान में भाग रहा हूँ
और भागते भागते भटक गया हूँ
फिर थक कर गिर पड़ा हूँ
मेरे हाथ कट कर,
मेरे शरीर से छिटक कर,
दूर हो गए है
मेरे होंठ,प्यास से सूखने लगे है
और मेरी आँखों पर पट्टी बंधी है
कुछ हाथ,मदद के लिए ,मेरी तरफ,
बढ़ने की कोशिश कर रहे है,
पर पहुँच नहीं पा रहे है
तभी आसमान से एक परी उतरती है
वह मुझे सहलाती है,
शीतल जल पिलाती है
और मेरी आँखों की पट्टी खोलती है
मैंने देखा,एक जादू सा हो गया है
मेरे हाथ मेरे शरीर से फिर जा जुड़े है
मदद करने वाले हाथों ने,
मेरे करीब आकर,मुझे उठाया है,
और मरुस्थल में अचानक,
हरियाली छा गयी है ,
और फूल खिलने लगे है
क्या था ये सपना?
मेरी आँखें खुली तो मैंने देखा,
रेगिस्तान में मेरा भटकना,
कोरी मृग तृष्णा थी ,
वो परी मेरी पत्नी थी
वो हाथ, मेरे बच्चे थे
,मेरे माँ बाप,भाई बहन और मित्रों के हाथ,
मेरी मदद को बढ़ना चाह रहे थे
पर मेरी आँखों पर,
अहम् और अहंकार की पट्टी बंधी थी,
जिसके खुलते ही,
सब फिर से मिल गए
और रेगिस्तान में फूलखिल गए
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'