Saturday, July 30, 2011

कल रात मैंने एक सपना देखा

कल रात मैंने एक सपना देखा
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कल रात मैंने एक सपना देखा,
मै रेगिस्तान में भाग रहा हूँ
और भागते भागते भटक गया हूँ
फिर थक कर गिर पड़ा हूँ
मेरे हाथ कट कर,
मेरे शरीर से छिटक कर,
दूर हो गए है
मेरे होंठ,प्यास से सूखने लगे है
और मेरी आँखों पर पट्टी बंधी है
कुछ हाथ,मदद के लिए ,मेरी तरफ,
बढ़ने की कोशिश कर रहे है,
पर पहुँच नहीं पा रहे है
तभी आसमान से एक परी उतरती है
वह मुझे  सहलाती है,
शीतल जल पिलाती है
और मेरी आँखों की पट्टी खोलती है
मैंने देखा,एक जादू सा हो गया है
मेरे हाथ मेरे शरीर से फिर जा जुड़े है
मदद करने वाले हाथों ने,
मेरे करीब आकर,मुझे उठाया है,
और मरुस्थल में अचानक,
हरियाली छा गयी है ,
और फूल खिलने लगे है
क्या था ये सपना?
मेरी आँखें खुली तो मैंने देखा,
रेगिस्तान में मेरा भटकना,
कोरी मृग तृष्णा थी ,
वो परी मेरी पत्नी थी
 वो हाथ, मेरे बच्चे थे
,मेरे माँ बाप,भाई बहन और मित्रों के हाथ,
मेरी मदद को बढ़ना चाह रहे थे
पर मेरी आँखों पर,
अहम् और अहंकार की पट्टी बंधी थी,
जिसके खुलते ही,
सब फिर से मिल गए
और रेगिस्तान में फूलखिल गए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

बचपन की बातें, जब याद आती है बड़ा तडफाती है

बचपन की बातें,
जब याद आती है
बड़ा तडफाती  है
बरषा के बहते पानी में ,
कागज की नावों के ,
पीछे दोड़ने वाला, मै,
अब कागज के नोटों के ,
पीछे दोड़ता रहता हूँ
शाम ढले,छत पर बैठ,
नीड़ में लौटते हुए पंछियों को गिनना,
और बाद में उगते हुए तारों की गिनती करना ,
जिसका नित्य कर्म होता था,
अब नोट गिनने में इतना व्यस्त हो गया है,
कि उसके पास,
प्रकृति के इस अद्भुत नज़ारे को ,
देखने का समय ही नहीं है
माँ का आँचल पकड़,
चाँद खिलौना पाने कि जिद करनेवाला,
अब खुद व्यापार कि दुनिया में,
सूरज,चाँद बन कर चमकने को आतुर है
ठुमुक ठुमुक कर ,धीरे धीरे चलना सीख कर,
जीवन कि दौड़ में,
सबसे आगे निकलने कि होड़ में,
अधीर रहता है
माँ से जिद करके,
माखन मिश्री खाने वाला,
अब न तो माखन  खा सकता है न मिश्री,
क्योंकि,क्लोरोसट्राल  और शुगर,
दोनों ही बड़े हुए है,
क्यों छाया है मुझमे ये पागलपन?
क्या ये ही है जीवन?
कहाँ खो गया वो प्यारा बचपन ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'