बूढों का हो कैसा बसंत?
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पीला रंग सरसों फूल गयी
मधु देना अब ऋतू भूल गयी
सब इच्छाएं प्रतिकूल गयी
यौवन का जैसे हुआ अंत
बूढों का हो कैसा बसंत
गलबाहें क्या हो,झुकी कमर
चल चितवन, धुंधली हुई नज़र
क्या रस विलास अब गयी उमर
लग गया सभी पर प्रतिबन्ध
बूढों का हो कैसा बसंत
था चहक रहा जो भरा नीड़
संग छोड़ गए सब,बसी पीड़
धुंधली यादें,मन है अधीर
है सभी समस्यायें दुरंत
बूढों का हो कैसा बसंत
मन यौवन सा मदहोश नहीं
बिजली भर दे वो जोश नहीं
संयम है पर संतोष नहीं
मन है मलंग,तन हुआ संत
बूढों का हो कैसा बसंत
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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पीला रंग सरसों फूल गयी
मधु देना अब ऋतू भूल गयी
सब इच्छाएं प्रतिकूल गयी
यौवन का जैसे हुआ अंत
बूढों का हो कैसा बसंत
गलबाहें क्या हो,झुकी कमर
चल चितवन, धुंधली हुई नज़र
क्या रस विलास अब गयी उमर
लग गया सभी पर प्रतिबन्ध
बूढों का हो कैसा बसंत
था चहक रहा जो भरा नीड़
संग छोड़ गए सब,बसी पीड़
धुंधली यादें,मन है अधीर
है सभी समस्यायें दुरंत
बूढों का हो कैसा बसंत
मन यौवन सा मदहोश नहीं
बिजली भर दे वो जोश नहीं
संयम है पर संतोष नहीं
मन है मलंग,तन हुआ संत
बूढों का हो कैसा बसंत
मदन मोहन बाहेती'घोटू'