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Sunday, April 29, 2012
लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम
(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )
एक दिन लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी
और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी
बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,
रह रहे हो अपने ससुराल में
कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,
साला साली है किस हाल में
प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले
मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले
तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट
बाकी बचे चार बहने और भाई आठ
तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है
और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है
'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है
और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है
तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है
और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है
दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी
यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी
हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना
पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना
जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत
और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत
और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे
उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे
'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है
और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है
बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी
तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी
और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना
तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना
और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल
तो वहां,सत्ता और विपक्ष,
एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'
अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर
और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर
और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी
पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी
और चाइना वालों का भरोसा नहीं,
वीसा देंगे या ना देंगे
फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे
तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना
फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Saturday, April 28, 2012
तेरे हाथों में
ये तेरा हाथ जिस दिन से,है आया मेरे हाथों में
जुलम मुझ पर ,शुरू से ही,है ढाया तेरे हाथों ने
तुम्हारे थे बड़े लम्बे,नुकीले ,तेज से नाख़ून,
दबाया हाथ तो नाखून,चुभाया तेरे हाथों ने
इशारों पर तुम्हारी उंगुलियों के ,रहा मै चलता,
बहुत ही नाच है मुझको, नचाया तेरे हाथों ने
हुई शादी तो अग्नि के,लगाए सात थे फेरे,
तभी से मुझको चक्कर में,फंसाया तेरे हाथों ने
कभी सहलाया है मुझको,नरम से तेरे हाथों ने,
निकाला अपना मतलब फिर,भगाया तेरे हाथों ने
शरारत हमने तुमने बहुत की है,मिल के हाथों से,
कभी सोते हुए मुझको जगाया तेरे हाथों ने
रह गया चाटता ही उंगुलियां मै अपने हाथों की,
पका जब प्रेम से खाना ,खिलाया तेरे हाथों ने
मै रोया जब,तो पोंछे थे,तेरे ही हाथ ने आंसू,
ख़ुशी में भी ,गले से था,लगाया तेरे हाथों ने
सफ़र जीवन का हँसते हंसते,कट गया यूं ही,
कि संग संग साथ जीवन भर,निभाया तेरे हाथों ने
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
खूब बूढों डोकरो होजे-आशीर्वाद या श्राप
पौराणिक कथाओं में पढ़ा था,
जब कोई बड़ा या महात्मा,
छोटे को आशीर्वाद देता था
तो "चिरंजीव भव"या "आयुष्मान भव "
या "जीवही शरदम शतः " कहता था
और मै जब अपनी दादी को धोक देता था
तो "खूब बूढों डोकरो होजे "की आशीष लेता था
और आज जब मेरे केश
सब हो गए है सफ़ेद
दांत चबा नहीं पा रहे है
घुटने डगमगा रहें है
बदन पर झुर्रियां छागयी है
काया में कमजोरी आ गयी है
क्षुधा हो गयी मंद है
मिठाई पर प्रतिबन्ध है
सांस फूल जाती है चलने में जरा
मतलब कि मै हो गया हूँ बूढा डोकरा
फलित हो गया है बढों का आशीर्वाद
पर कई बार मन में उठता है विवाद
एकल परिवार के इस युग में,
जब बदल गयी है जीवन कि सारी मान्यताएं
और ज्यादा लम्बी उमर पाना,
देता है कितनी यातनाएं
एक तो जर्जर तन
और उस पर टूटा हुआ मन
तो कौन चाहेगा,लम्बा हो जीवन
ज्यादा लम्बी उमर ,लगती है अभिशाप
और ये पुराने आशीर्वाद,
आज के युग में बन गए हैं श्राप
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, April 26, 2012
मन उड़न छू हो गया है
देख तुमको आज पहली बार कुछ यूं हो गया है
मन उड़न छू हो गया है
नीड़ में इतने दिनों तक,पड़ा था गुमसुम अकेला
बहुत व्याकुल हो रहा था, उड़न को वो पंख फैला
किन्तु अब तक उसे निज गंतव्य का था ना ठिकाना
देख तुमको बावरा सा, हो गया था वो दीवाना
फडफडा कर पंख भागा,रुका ना ,रोका घनेरा
और फुनगी पर तुम्हारे,ह्रदय की करके बसेरा
चहचहाने लग गया है,गजब जादू हो गया है
मन उड़न छू हो गया है
रहा है मिज़ाज इसका,शुरू से ही आशिकाना
देख कर खिलती कली को,मचलता आशिक दीवाना
कभी तितली की तरह से,डोलता था ये चमन में
गुनगुनाता भ्रमर जैसा,आस रस की लिए मन में
चाहता स्वच्छंद उड़ना,था पतंग सा आसमां में
पर अभी तक डोर उसकी,पकड़ कर थी,रखी थामे
उम्र के तूफ़ान में अब, मेरा काबू खो गया है
मन उड़न छू हो गया है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Wednesday, April 25, 2012
मजबूरी
(घोटू के छक्के)
१
पत्नी से कहने लगे,घोटू कवि कर जोड़
आप हमी को डांटती,हैं क्यों सबको छोड़
हैं क्यों सबको छोड़,पलट कर पत्नी बोली
मै क्या करूं, तेज,तीखी है मेरी बोली
नौकर चाकर वाले घर में बड़ी हुई हूँ
बड़े नाज और नखरों से मै पली हुई हूँ
२
पत्नी जी कहने लगी,जा घोटू कवि पास
बतलाओ फिर निकालूँ,मन की कहाँ भड़ास
मन की कहाँ भड़ास,अगर डाटूं नौकर को
दो घंटे में छोड़,भाग जाएगा घर को
सुनू एक की चार,ननद से जो कुछ बोलूँ
तुम्ही बताओ ,बैठे ठाले,झगडा क्यों लूं
३
सास ससुर है सयाने,करते मुझसे प्यार
उनसे मै तीखा नहीं,कर सकती व्यवहार
करसकती व्यवहार,मम्मी बच्चों की होकर
अपने नन्हे मासूमों को डांटू क्यों कर
एक तुम्ही तो बचते हो जो सहते सबको
तुम्ही बताओ,तुम्हे छोड़ कर ,डाटूं किसको ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हो गयी माँ डोकरी है
प्यार का सागर लबालब,अनुभव से वो भरी है
हो गयी माँ डोकरी है
नौ दशक निज जिंदगी के,कर लिए है पार उनने
सभी अपनों और परायों ,पर लुटाया प्यार उनने
सात थे हम बहन भाई,रखा माँ ने ख्याल सबका
रोजमर्रा जिंदगी के ,काम सब और ध्यान घर का
कभी दादी की बिमारी,पिताजी की व्यस्तायें
सभी कुछ माँ ने संभाला,बिना मुंह पर शिकन लाये
और जब त्योंहार आते,तीज,सावन के सिंझारे
सभी को मेहंदी लगाती,बनाती पकवान सारे
दिवाली पर काम करती,जोश दुगुना ,तन भरे वो
सफाई,घर की पुताई,मांडती थी,मांडने वो
और हम सब बहन भाई,पढाई में व्यस्त रहते
मगर सब का ख्याल रखती,भले थक कर पस्त रहते
गयी निज ससुराल बहने,भाइयों की नौकरी है
साथ बाबूजी नहीं है, हो गयी माँ डोकरी है
भूख भी कम हो गयी है,बिमारी है,क्षीण तन है
चाहती सब काम करना,मगर आ जाती थकन है
और जब त्योंहार आते,उन्हें आता जोश भर है
सभी रीती रिवाजों पर ,आज भी पूरा दखल है
ये करो, ऐसे करो मत,हमारी है रीत ऐसी
पारिवारिक रिवाजों को ,निभाने की प्रीत ऐसी
फोन करके,बहू बेटी को आशीषें बांटती है
कभी गीता भागवत सुन ,वक़्त अपना काटती है
भले ही धुंधलाई आँखें, मगर यादों से भरी है
हो गयी माँ डोकरी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Tuesday, April 24, 2012
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आगर में थी खिली
एक नन्ही सी कली
मनोरमा था नाम
करती घर के काम
रखती चीज सहेज
पढने में थी तेज
अभिनय,वाद विवाद
सबमे थी उस्ताद
शीतल,शांत स्वभाव
सबके प्रति लगाव
मन में लगन,उमंग
बढ़ी समय के संग
लगा सोलहवां साल
माँ को आया ख्याल
मिले सही जो साथ
करदें पीले हाथ
किस्मत का था लेखा
गोपाल जी ने देखा
तो झट से कर 'हाँ' दी
फिर जल्द हो गयी शादी
लगन बहुत पढने की
और इच्छा थी बढ़ने की
अपनी जिद पर अड़ी
वो एम .ए. तक पढ़ी
और कम ना थे पिया
उनने सी.ए. किया
फिर विकसा गुलदस्ता
हुए अतुल और ममता
पाकर के ये निधियां
उनकी बढ़ी गतिविधियाँ
सामजिक कार्यों में
रूचि ले ली दोनों ने
एसा बाधा लगाव
उनने लड़ा चुनाव
बन लायन के गवर्नर
प्रेसिडेंट ऑफ़ चेंबर
लगे प्रसिद्धि पाने
और इधर मनोरमा ने
माहेश्वरी सभा के
सेकेट्री पद पाके
पाया अपना लक्ष्य
बन कर के अध्यक्ष्य
फिर वो आगे आयी
नारी चेतना जगायी
है ये बात गर्व की
इनके मिलन पर्व की
स्वर्ण जयंती आयी
इनको बहुत बधाई
यही कामना मन में
सुख बरसे जीवन में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Monday, April 23, 2012
छोटे बाल
(घोटू के छक्के)
१
तेल बचे,साबुन बचे,कंघी का नहीं काम
गीला सर झट पोंछ लो,सर्दी नहीं जुकाम
सर्दी नहीं जुकाम,जुंवें,फूसी,सब भागे
जल्दी सर न झुकाना पड़े,नाई के आगे
कह घोटू कविराय,बाल छोटे करवाये
खुला रहे सर,बात समझ में सब कुछ आये
२
हल्का हल्का सर लगे,कम हो सर पर भार
ना संवार ना सजावट,समय न हो बेकार
समय न हो बेकार,लगे मस्तक भी चोडा
नोच सके ना बाल,अगर झगडा हो थोडा
'घोटू' ने बालों को छोटा करवा डाला
झिझके मुंडा मुंडाया देख मूंडने वाला
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, April 21, 2012
मिलन संगीत
होठों से निकल साँसे ,जब,
बांसुरी के अंतर्मन से गुजरती है,
और तन के छिद्रों पर,
उंगलियाँ संचालन करती है
तो मुरली की मधुर तान गूंजने लगती है
तबले और ढोलक की,
कसी हुई चमड़ी पर,
हाथ और उंगलियाँ,
थाप जब देतें है,
तो फिर' तक धिन धिन' की,
स्वरलहरी निकलती है
सितार के कसे हुए तारों को,
जब उंगुलियां हलके से,
स्पर्श कर ,छेड़ती है,
तो सितार के मधुर स्वर,झंकृत हो जाते है
पीतल के मंजीरे,
जब आपस में दोनों ,मिल कर टकराते है
खनक खनक जाते है
मिलन की बेला में,
गरम गरम साँसे,
उद्वेलित होकर के,
रोम रोम में तन के,
मधुर तान भरती है
स्वर्णिम तन की त्वचा पर,
हाथ और उंगलियाँ,जब जब थिरकती है
मन के तार तार,
जब पाकर प्यार,
उँगलियों की छुवन से,झंकृत हो जाते है
मिलन के उन्माद में,
मंजीरे की तरह,
जब तन से तन टकराते है
ये साज सब के सब,
एक साथ मिल कर जब,
लगते है बजने तो,
जीवन में मिलन का मधुर संगीत,
गुंजायमान हो जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बृहन्नला-सत्ता
उर्वशी सी जनता ने,
अर्जुन सी सत्ता से ,
बोला मै पीड़ित हूँ,
सुख को लालायित हूँ
अर्जुन ने गठबंधन,
की मजबूरी कह कर
इनकार जब कर दिया
तो उर्वशी ने श्राप दिया
आने वाले दो साल
नपुंसक सा होगा हाल
गठबंधन से डर कर,
बृहन्नला बन कर,
2014 तक कुछ ना कर पाओगे
बस नाचते रह जाओगे
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
Thursday, April 19, 2012
द्रौपदी
पत्नी जी,दिन भर,घर के काम काज करती
एक रात ,बोली,डरती डरती
मै सोचती हूँ जब तब
एक पति में ही जब हो जाती ऐसी हालत
पांच पति के बीच द्रौपदी एक बिचारी
होगी किस आफत की मारी
जाने क्या क्या सहती होगी
कितनी मुश्किल रहती होगी
एक पति का 'इगो'झेलना कितना मुश्किल,
पांच पति का 'इगो ' झेलती रहती होगी
उसके बारे में जितना भी सोचा जाए
सचमुच बड़ी दया है आये
उसकी जगह आज की कोई,
जागृत नारी,यदि जो होती
ऐसे में चुप नहीं बैठती
पांच मिनिट में पाँचों को तलाक दे देती
या फिर आत्मघात कर लेती
किन्तु द्रौपदी हाय बिचारी
कितनी ज्यादा सहनशील थी,
पांच पुरुष के बीच बंटी एक अबला नारी
सच बतलाना,
क्या तुमको नहीं चुभती है ये बात
कि द्रौपदी के साथ
उसकी सास का ये व्यवहार
नहीं था अत्याचार?
सुन पत्नी कि बात,जरा सा हम मुस्काये
बोले अगर दुसरे ढंग से सोचा जाए
दया द्रौपदी से भी ज्यादा,
हमें पांडवों पर आती है,जो बेचारे
शादीशुदा सभी कहलाते,फिर भी रहते,
एक बरस में साड़े नौ महीने तक क्वांरे
वो कितना दुःख सहते होंगे
रातों जगते रहते होंगे
तारे चाहे गिने ना गिने,
दिन गिनते ही रहते होंगे
कब आएगी अपनी बारी
जब कि द्रौपदी बने हमारी
और उनकी बारी आने पर ढाई महीने,
ढाई महीने क्यों,दो महीने और तेरह दिन,
मिनिटों में कट जाते होंगे
पंख लगा उड़ जाते होंगे
और एक दिन सुबह,
द्वार खटकाता होगा कोई पांडव ,
भैया अब है मेरी बारी
आज द्रौपदी हुई हमारी
और शुरू होता होगा फिर,वही सिलसिला,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार का
और द्रौपदी चालू करती,
एक दूसरे पांडव के संग,
वही सिलसिला नए प्यार का
तुम्ही बताओ
पत्नी जब महीने भर मैके रह कर आती,
तो उसके वापस आने पर,
पति कितना प्रमुदित होता है
उसके नाज़ और नखरे सहता
लल्लू चप्पू करता रहता
तो उस पांडव पति की सोचो,
जिसकी पत्नी,उसको मिलती,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार में
पागल सा हो जाता होगा
उस पर बलि बलि जाता होगा
जब तक उसका प्यार जरा सा बासी होता,
तब तक एक दूसरे पांडव ,
का नंबर आ जाता होगा
निश्चित ही ये पांच पांच पतियों का चक्कर,
स्वयं द्रोपदी को भी लगता होगा सुख कर,
वर्ना वह भी त्रिया चरित्र दिखला सकती थी
आपस में पांडव को लड़ा भिड़ा सकती थी
यदि उसको ये नहीं सुहाता,
तो वह रख सकती थी केवल,
अर्जुन से ही अपना नाता
लेकिन उसने,हर पांडव का साथ निभाया
जब भी जिसका नंबर आया
पति प्यार में रह कर डूबी
निज पतियों से कभी न ऊबी
उसका जीवन रहा प्यार से सदा लबालब
जब कि विरह वेदना में तडफा हर पांडव
तुम्ही सोचो,
तुम्हारी पत्नी तुम्हारे ही घर में हो,
पर महीनो तक तुम उसको छू भी ना पाओ
इस हालत में,
क्या गुजरा करती होगी पांडव के दिल पर,
तुम्ही बताओ?
पात्र दया का कौन?
एक बरस में ,
साड़े साड़े नौ नौ महीने,
विरह वेदना सहने वाले 'पूअर'पांडव
या फिर हर ढाई महीने में,
नए प्यार से भरा लबालब,
पति का प्यार पगाती पत्नी,
सबल द्रौपदी!
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Wednesday, April 18, 2012
भगवान जी!आप भी कमाल करते हो
भगवान जी!आप भी कमाल करते हो
नए नए ढंग से,धमाल करते हो
जब रूटीन के काम काज से थक जाते हो
तो नए नए रूप में,अवतार लेकर आते हो
अलग अलग अनुभव,लेने का है शौक
इसीलिए छोड़ कर के देवलोक
कभी मछली के रूप में अवतार लेते हो
तो कभी कछुवे के रूप में,अपनी पीठ पर,
मंदराचल पर्वत का भार लेते हो
समंदर में रहते हो और समंदर की बेटी से ब्याह किया है
इसीलिए पहले जलचर बनकर,
मच्छ और कच्छ रूप में अवतार लिया है
अगली बार सोचा होगा,चलो कुछ चेंज हो जाए
तो फिर थलचर,वाराह के रूप में अवतार लेकर आये
फिर थोडा अलग थ्रिल करने का मूड आया
तो आधा नर और आधा जानवर,
याने नरसिंह का रूप बनाया
फिर कुछ डिफरंट करने का किया मन
तो बस,बन गए वामन
अपने इस शार्ट फार्म में बली को छकाया
और विराट रूप धर,तीन पग में ही,
तीनो लोकों को नाप ,सबको चौंकाया
ये सब तो शार्ट टर्म वाले अवतार थे
जिनमे किये कुछ चमत्कार थे
पर इसमें आपको शायद ज्यादा मज़ा नहीं आया
तो फिर आपने ,लाँग टर्म वेकेशन का प्लान बनाया
और राम के रूप में अवतार लिया
और एक नोर्मल मानव की तरह,
फुल टर्म जीवन जिया
रावण को संहारा
पर अधिकतर जीवन ,अकेले ही,
बीबी से दूर ,गुजारा
तो अगले अवतार में,
इसका कंपनसेशन भी किया
और कृष्ण के रूप में प्रकटे और,
सोलह हजार एक सौ आठ रानियों से ब्याह किया
और वैवाहिक जीवन का भरपूर सुख लिया
सच भगवान जी,आप बड़े ही एडवेंचरस हो
और सबके संकट मोचक हो
देवताओं पर जब भी प्रॉब्लम आती है
उनको बस,आपकी ही याद आती है
कभी मोहिनी रूप धर ,देवताओं को अमृत बाँट ,
उनका उद्धार करते हो
कभी सुन्दर नारी का रूप धर,
भस्मासुर का संहार करते हो
उनकी सब प्रोब्लेम्स को आप सोल्व करते हो
भगवान जी!तुस्सी ग्रेट हो,कमाल करते हो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भैयाजी! स्माईल!!
गाँव गाँव घूमे हम,किये बहुत वादे
क्लीन स्वीप करने के लेकर इरादे
जनता को तरक्की का, सपना दिखलाया
गरीबों के झोंपड़े में,खाना भी खाया
पर लगता समझदार,हो गयी है जनता
जबानी जमा खर्च से काम नहीं बनता
गोवा भी गया और पंजाब हारे,
यू, पी . में 'हाथ' कुचल ,निकल गयी 'साईकिल'
और टी वी वाले कहते है "भैयाजी! स्माईल!
दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स भी करवाये
कितने ही बड़े बड़े ,फ्लायओवर बनवाये
मेट्रो भी लाये और नयी बसें आयी
क्या करें थोड़ी जो बढ़ गयी मंहगाई
हम तो बस रह गए 'हाथ' ही हिलाते
और एम.सी.डी.भी गयी,'कमल'के खाते
लगता है 'अन्ना 'ने,जगा दिया इनको,
दिल्ली की जनता ने ,तोड़ दिया है दिल
और टी.वी.वाले कहते है"भैयाजी! स्माईल!!
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Monday, April 16, 2012
सपने आपके-मुसीबत बच्चों की
कितनी ही आकांक्षाएं ,आपके बचपन में थी
जो कि पूरी हो न पायी,कामनाये मन में थी
चाहते है आप,बच्चा आपका पूरी करे
आपके सपने अधूरों में वो नवजीवन भरे
डांस,गाना,क्रिकेट ,जुडो,सभी में परफेक्ट हो
सभी फील्डों में सफलता,एक बस ऑब्जेक्ट हो
बाप चाहे,बने वो,आइ आइ टी इंजीनियर
चाहती माँ, जाय वो बन,कोई ऊंचा डाक्टर
जाए फारेन ,डालरों में,कमाई पैसा करे
नाम उनका करे रोशन,काम कुछ एसा करे
छोटे से बच्चे से इतनी अपेक्षाए मत करो
उसके नाजुक कन्धों पर तुम,बोझ मत इतना धरो
करो कोशिश जानने की,उसके मन की चाह क्या
किस तरफ है लगन उसकी,ढूंढता वो राह क्या
अपने सपने उस पे मत थोंपो वो कुम्हला जाएगा
मज़े बचपन के भला वो किस तरह पा पायेगा
मत करो स्पून फीडिंग,पीने दो तुम खुद उसे
अपना जीवन ,अपने ढंग से,जीने दो तुम खुद उसे
फ्रेंड उसके ,फिलासफर और गाईड तुम बनो
उसे प्रोत्साहित करो,मत राह का रोड़ा बनो
क्योकि उसको ,जिंदगी की दौड़ में बढ़ना है खुद
और अपनी सब लड़ाई ,को उसे लड़ना है खुद
आपके सपनों में बच्चा ,इस कदर पिस जाएगा
ना इधर का रहेगा ना उधर का रह पायेगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Sunday, April 15, 2012
आप आये जिंदगी में
इस चमन में अब बहारें,इस कदर छाने लगी है
चांदनी भी अब यहाँ पर,उतर,इतराने लगी है
आप आये ,जिंदगी में,फूल इतने खिल गए है,
खुशबुए हर तरफ से ही,प्यार की आने लगी है
कल तलक ग़मगीन सी थी,बड़ी ही बेचैन,बेकल,
जिंदगी,पुलकित प्रफुल्लित,आज मुस्काने लगी है
घुट रही थी मन ही मन में,सिसकती,चुपचाप थी,
बुलबुलें फिर से चमन में,गीत अब गाने लगी है
थे अधूरे आप भी और हम भी थे पूरे नहीं,
मिलन जब अपना हुआ तो पूर्णता आने लगी है
शीत की सिहरन गयी और तपन गर्मी की मिटी,
अब तो बारह मास ही,ऋतू बसंती छाने लगी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
देश विदेश
गए थे तुम जिन दिनों नियागरा
उन दिनों हम घुमते थे आगरा
भ्रमण पर थे जिन दिनों तुम चीन में,
हमने भी कोचीन का था रुख करा
तुम गए जब टोकियो जापान में,
उन दिनों हम टोंक राजस्थान में
घूमते थे हम मसूरी पहाड़ पर,
जिन दिनों थे आप सूरीनाम में
आप रियो में थे तो रीवां में हम,
हम मनाली में थे तुम थे मनीला
केन्या में सफारी तुमने किया,
कान्हा में टाइगर हमको मिला
तुमने आबूधाबी में शोपिंग करी,
हमने आबू जी में जा ,दर्शन किया
उन दिनों हम लोग थे इन्दोर में,
जिन दिनों तुम गये इंडोनेशिया
आप थे दुबाई हम मुम्बाई में,
आप सिंगापूर, हम सिंगरूर में
हम भ्रमण करते रहे निज देश में,
और तुम घूमे विदेशी टूर में
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
Friday, April 13, 2012
गुलाब गाथा
कंटकों से भरी टहनी है ये दुनिया,
और जीवन फूल एक गुलाब का है
diरंग सुन्दर,बदन खुशबू से भरा है,
दिया तोहफा ,खुदा ने,नायाब सा है
डाल पर यदि रहोगे यूं ही अकड़ कर,
पंखुडियां बन,बिखर जाओगे धरा पर
अगर जीवन को सफल है जो बनाना,
जियो जीवन तुम किसी के काम आकर
महक जायेगी तुम्हारी जिंदगानी,
किसी का महकाओ जीवन मुस्करा कर
कोई प्रेमी प्रेम से अभिभूत होगा ,
प्रेमिका के केश में तुमको सजा कर
गए गुंथ जो यदि किसी वरमाल में तुम,
बनोगे बंधन किसी के नेह का तुम
अगर बिखरोगे मिलन की सेज पर तुम,
पाओगे स्पर्श पागल देह का तुम
कभी अपने भाग्य पर इठलाओगे तुम,
बन सजावट किसी के गुलदान की तुम
या कि सज सकते हो गुलदस्ते में कोई,
दास्ताँ बन कर किसी पहचान कि तुम
नियति में यदि तुम्हारे जो ये लिखा है,
सुगंधी कोई बदन रस चूंस लेगा
कोई तुम को शर्करा मीठी खिला के,
धूप में रख कर बना गुलकंद देगा
धन्य जीवन तुम्हारा हो जाएगा यदि,
देव चरणों में हुआ अर्पण तुम्हारा
है क्षणिक जीवन सभी का जिस तरह से,
जाएगा कुम्हला कभी भी तन तुम्हारा
कभी केशव पर चढोगे ,कभी शव पर,
कभी वैभव में कभी श्रृगार में तुम
जिंदगी के रंग सारे देख लोगे,
जीत जाओगे कभी गुंथ हार में तुम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तुमने जो सहला दिया है
तुमने जो सहला दिया है
मन मेरा बहला दिया है
जरा से ही इशारे में,
बहुत कुछ कहला दिया है
तुम्हारी प्यारी छुवन ने
लगा दी है आग तन में
एक नशा सा छागया है
और मन पगला गया है
जब तुम्हारी सांस महके
जब तुम्हारे होंठ दहके
तुम्हारी कातिल अदायें
तरंगें मन में जगायें
कामनाएं बलवती है
सांस की दूनी गति है
घुमड़ कर घन छा गए है
ह्रदय को तडफा गए है
तुम्हे अब क्या बताएं हम
बड़ा ही बेचैन है मन
अगर बारिश आएगी ना
प्यास ये बुझ पायेगी ना
तुम्हारी इन शोखियों ने,
ह्रदय को दहला दिया है
तुमने जो सहला दिया है
मन मेरा बहला दिया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, April 12, 2012
बाल रंग कर के बूढा आया है
देखो कैसा जूनून छाया है
बाल रंग कर के बूढा आया है
पहन ली जींस,बड़ी टाईट है
और टी शर्ट भी बड़ी फिट है
खूब परफ्यूम तन पे है छिड़का
बड़ा रंगीन है मिजाज़ इसका
गोल्ड का फेशियल कराया है
देखो कैसा जूनून छाया है
बहुत गुल खिलाये जवानी में
लगाई आग ठन्डे पानी में
आजकल बहुत कसमसाता है
स्वर्ण की भस्म रोज़ खाता है
देख कर हुस्न छटपटाया है
देखो कैसा जूनून छाया है
भले ही बूढा हो गया बन्दर
जोश अब भी है जिस्म के अन्दर
हरकतें मनचलों सी करता है
गुलाटी के लिए मचलता है
बासी कढ़ी में उबाल आया है
देखो कैसा जूनून छाया है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
भावनाए मेरी भी समझा करो तुम
मै समझता हूँ तुम्हारी भावनाएं,
भावनाएं मेरी भी समझा करो तुम
चाहती हो तुम कि मै तुमको सराहूं
तुम्हारे सौन्दर्य में, मै डूब जाऊं
तुम्हारी तारीफ़ हरदम रहूँ करता,
प्रेम में रत,मै तुम्हारे गीत गाऊँ
मै समझता हूँ तुम्हारी कामनाएं,
कामनाएं मेरी भी समझ करो तुम
कर दिया है,जब सभी कुछ तुम्हे अर्पण
प्यार क्यों प्रतिकार में मांगे समर्पण
एक दूजे के बने हम परिपूरक,
एक दूजे कि प्रतिच्छवी ,बने दर्पण
मै महकता हूँ तुम्हारी सुगंधी से,
गंध से मेरी कभी महका करो तुम
मै उमड़ता भाव हूँ,तुम हो कविता
और शीतल चन्द्रमा तुम,मै सविता
कलकलाती बह रही ,आतुर मिलन को,
प्यार का मै हूँ समंदर,तुम सरिता
जिस तरह मै चहकता हूँ तुम्हे लख कर,
देख मुझको भी कभी चहका करो तुम
मै समझता हूँ तुम्हारी भावनाए,
भावनाएं मेरी भी समझा करो तुम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Wednesday, April 11, 2012
रखो ख्याल तुम बुजुर्गों का
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उठालो फायदा जी भर के तुम बुजुर्गों का
ये तो हैं,एक समन्दर भरा ,तजुर्बों का
प्रेम से जब भी उसमे डुबकियाँ लगाओगे
थोड़े गहरे से ही ,मोती को ढूंढ लाओगे
मिला है साया बुजुर्गों का बड़ी किस्मत से
खजाना भरलो उनकी दुआओं की दौलत से
बड़ी तकदीर से ही साथ मिलता है इनका
इनका साया ओ सर पे साथ मिलता है इनका
ये खुशनसीबी है कि तुमको मिला है मौका
करो सन्मान,रखो ख्याल तुम बुजुर्गों का
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बूढी सत्ता
हमारे देश की है लाचारी
बूढ़े है अधिकतर सत्ताधारी
बड़ी कमजोर इनकी सेहत है
एनीमिक,खून की जरूरत है
इसलिए एसा बजट है बनता
प्रेम से खून चुसाए जनता
स्वर्ण पर टैक्स ये लगाते है
आजकल स्वर्ण भस्म खाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
किसी से प्यार करो तो जानो
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नशा कितना किसी की चाहत में,
किसी से प्यार करो तो जानो
मज़ा क्या रूठने, मनाने में,
कभी मनुहार करो तो जानो
तुम्हारी 'ना' से टूट जाता दिल,
कभी इनकार करो तो जानो
कैसे पत्थर भी पिघल जातें है,
कभी इसरार करो,तो जानो
अहमियत वादों की क्या होती है,
कभी इकरार करो तो जानो
रास्ता दिल का कितना टेढ़ा है,
निगाहें चार करो तो जानो
तुम्हे जो चाहता है उस दिल को,
कभी गुलजार करो तो जानो
दिया है दिल तो जां भी दे देंगे,
कभी एतबार करो,तो जानो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
खाते पीते नेता
देश के प्रेम की बातें हमें सिखाते है
छेदते है उसी थाली को,जहाँ खाते है
ये जो नेताजी,सीधे सादे से दिखाते है
बड़े खाऊ है,खूब रिश्वतें ये खाते है
है बिकाऊ,बड़े मंहगे में बिकाते है
हमने पूछा कि आप इतना पैसा खाते है
फिर भी क्यों आप सदा भूखे ही दिखाते है
छुपा के ये कमाई,कहाँ पर रखाते है
हमारी बात सुन,नेताजी मुस्कराते है
अजी हमारे स्विस कि बेंकों में खाते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Monday, April 9, 2012
अहमियत-बीबी की
सुबह उठ कर पत्नी को पुकारते है,सुनो चाय लाओ
थोड़ी देर बाद फिर आवाज़,सुनो नाश्ता बनाओ
क्या बात है ,आज अभी तक अखबार नहीं आया है
जरा देखो तो ,किसी ने दरवाजा खटखटाया है
अरे आज बाथरूम में ,साबुन नहीं है क्या
और देखो तो,कितना गीला पड़ा है तौलिया
अरे ,ये शर्ट का बटन टूटा है, जरा लगा दो
और मेरे मौजे कहाँ है,जरा ढूंढ के ला दो
लंच के डब्बे में बनाये है ना,आलू के परांठे
दो ज्यादा रख देना,मिस जूली को है भाते
देखो अलमारी पर कितनी धुल जमी पड़ी है
लगता है कई दिनों से डस्टिंग नहीं की है
गमले में पौधे सूख रहे है,क्या पानी नहीं डालती हो
दिन भर करती ही क्या हो बस गप्पे मारती हो
शाम को डोसा खाने का मूड है,बना देना
बच्चों की परीक्षाये आ रही है,पढ़ा देना
सुबह से शाम तक कर फरमाईशें नचाते है
चैन से सोने भी नहीं देते,सताते है
दिनभर में बीबीयाँ कितना काम करती है
ये तब मालूम पड़ता है जब वो बीमार पड़ती है
एक दिन में घर अस्त व्यस्त हो जाता है
रोज का सारा रूटीन ही ध्वस्त हो जाता है
आटे दाल का सब भाव पता पड़ जाता
बीबी की अहमियत क्या है ,ये पता चल जाता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कारण -गरमी का
कारण -गरमी का
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चार छुट्टियाँ मिलाती,मर्दों को महीने में
औरतें अधिकतर ही ,छुट्टियाँ मनाती है
तारे भी कई बार ,तड़ी मार देतें है,
अमावास को चंदा की भी छुट्टी आती है
चार माह बरसते है ,बरस भर में बदल कुल,
और हवा अक्सर ही ,छुट्टी कर जाती है
काम बिना छुट्टी कर,सूरज जब मन ही मन,
जलता है ,तो किरणों में ,फिर गरमी आती है
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
Saturday, April 7, 2012
थकान-करे बेकाम
एक भाभीजी थी काफी उदास
उनकी शिकायत थी,कि जब उनके पति,
जब घर आते है,
दिन भर ऑफिस में काम करने के बाद
तो शाम को किसी भी काम के नहीं रह जाते है
न बाज़ार से सब्जी लाते है
न होटल में खिलाते है
बस थके हारे,खर्राटे भरते हुए सो जाते है
अब उन्हें ये कौन बताये,
वो ओफिस मे क्या क्या गुल खिलाते है
और शाम तक होती क्यों,ऐसी हालत है
क्योंकि उनकी सेक्रेटरी के पति को भो,
अपनी पत्नी से ,ये ही शिकायत है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जस्य नारी पूज्यन्ते----
कहते है, भारत में,
छप्पन करोड़ देवता पूजे जाते है
जिधर देखो उधर ,
देवता ही देवता नज़र आते है
इसका कारण है,
नारी की पूजा होती है सदा
और संस्कृत का श्लोक है,
'जस्य नारी पूज्यन्ते,रमन्ति तत्र देवता'
यहाँ नारी को देवी कहा जाता है
और नारी का देवी रूप
,देवताओं को सुहाता है
हमारे देश में नारी का कितना आदर है,
इसी बात से जाना जा सकता है
कि सभी अवतारों को,
साल में एक दिन,
जैसे राम को रामनवमी को,
कृष्ण को,जन्माष्ठमी को,
पूजा जाता है
पर देवी को वर्ष में दो बार,
और वो भी नो नो दिनों के लिए,
नवरात्र में पूजा जाता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Friday, April 6, 2012
क्या क्या खिलाती है?
न पूछो आप हमसे औरतें क्या क्या खिलाती है
ये खुद गुल है,मगर फिर भी,हजारों गुल खिलाती है
हसीं हैं,चाँद सा चेहरा,ये मेक अप कर खिलाती है
अदा से जब ये चलती है,कमर को बल खिलाती है
ख़ुशी में,प्यार में,जब झूम के ये खिलखिलाती है
चमक आँखों में आ जाती,हमारे दिल खिलाती है
करो शादी अगर तो सात ये फेरे खिलाती है
किसी वीरान घर को भी ,चमन सा ये खिलाती है
पका कर दो वख्त ,ये मर्द को ,खाना खिलाती है
जो बच्चे तंग करते,उनको ,रोज़ाना खिलाती है
कभी गुस्सा खिलाती है,कभी धमकी खिलाती है
जरा सी बात ना मानो,तो बेलन की खिलाती है
कभी होली खिलाती है,कभी गोली खिलाती है
ये कडवे डोज़ भी हमको,बनी भोली खिलाती है
जरा से प्यार के खातिर,कई चक्कर खिलाती है
कभी जूते खिलाती है,कभी चप्पल खिलाती है
हवा ये अच्छे अच्छों को,हवालात की खिलाती है
खुदा! ये खेलती है हमसे या हमको खिलाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
hanumaan jayanti par-जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
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हमारी स्वतंत्र भारत माता को,
सीता की तरह,
भ्रष्ट राजनीतिज्ञ रावणों ने,
कैद कर रखा रखा है,
हे हनुमान!
उनकी सोने की लंका को जलाओ,
और सीता को छुड़ाओ
मंहगाई सुरसा की तरह,
अपना मुंह फाड़ती ही जा रही है,
गरीब जनता,बत्तीस रूपये प्रति दिन में,
कैसे लघु रूप धारण कर,बाहर निकले,
हे हनुमान!इतना बतलादो
आम जनता,राम की सेना सी,
समुद्र के इस पार खड़ी है,
और दूसरी ओर,
सत्ताधारियों की सोने की लंका है ,
इस दूरी को पाटने के लिए,
एक सेतु का निर्माण जरूरी है,
पर एक दुसरे पर पत्थर फेंके जा रहे है,
हे हनुमान!राम का नाम लिखवा कर,
इन पत्थरों को तैरा दो
देश की व्यवस्थाएं
राम और लक्ष्मण जैसी,
भ्रष्टाचार के नागपाश में बंधी है,
हे बजरंगबली! अपने अन्ना जैसे,
गरुड़ मित्र को बुलवा कर,
नागपाश कटवा दो
गरीबी और भुखमरी के ,
ब्रह्मास्त्र की मार ने,
आम आदमी को,
लक्ष्मण जैसा मूर्छित कर रखा है,
हे पवन पुत्र!
स्वीजरलेंड में जमा,संजीवनी बूंटी लाओ ,
और सबको पुनर्जीवन दिलवा दो
सत्तारूढ़ दशानन का अहंकार,
दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है,
हे अन्जनिनंदन!
अब समय आ गया है,
रावन का दहन करा दो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, April 5, 2012
जान-पहचान
किसी भी बहुमंजिला ईमारत में,
लिफ्ट ही है एक ऐसा स्थान
जहां बढाई जा सकती है जान पहचान
बस जरूरी है आपकी एक मुस्कान
लिफ्ट में आते जाते
कुछ लोग है मिल जाते
उन्हें देख कर मुस्कराइए
उन्होंने कौनसी मंजिल का बटन दबाया है,
पता लगाइए
कोई मोहतरमा ,अगर बच्चेवाली है,
तो बच्चे पर प्यार दर्शाइए
किसी के साथ कुत्ता हो तो कुत्ते को दुलराइये
जान पहचान को इस तरह बढ़ाना है
कि दूसरी तीसरी मुलाक़ात में,
फ्लेट नंबर और नाम का पता लगाना है
लोगों के स्वभाव का,उनके रिस्पोंस से पता लग जाएगा
कोई खडूस होगा,तो मुंह बनाएगा
और मिलनसार होगा,तो अगली बार ,
आपको देख कर खुद पहले मुस्कराएगा
याद रखिये,जान पहचान बढ़ाने की,
जितनी जरूरत आपको है,उनको भी है,
दो तीन मुलाकातों में ,
आप लिफ्ट में ही,दोस्ती की आहट सुन सकते है
और अपना पसंदीदा पडोसी दोस्त चुन सकते है
कभी उनको चाय पर बुलाइए
कभी उनके घर मिलने जाइये
और इस तरह,धीरे धीरे जान पहचान बढाइये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Re: आज तुम ना नहीं करना
आज तुम ना नहीं करना
जायेगा दिल टूट वरना
तुम सजी अभिसारिका सी,दे रही मुझको निमंत्रण
देख कर ये रूप मोहक, नहीं अब मन पर नियंत्रण
खोल घूंघट पट खड़ी हो,सजी अमृतघट सवांरे
जाल डोरों का गुलाबी ,नयन में पसरा तुम्हारे
आज आकुल और व्याकुल, बावरा है मन मिलन को
हो रहा है तन तरंगित,चैन ना बेचैन मन को
प्यार की उमड़ी नदी में,आ गया सैलाब सा है
आज दावानल धधकता,जल रहा तन आग सा है
आज सागर से मिलन को,सरिता बेकल हुई है
तोड़ सब तटबंध देगी, कामना पागल हुई है
और आदत है तुम्हारी,चाह कर भी, ना करोगी
बांह में जब बाँध लूँगा,समर्पण सम्पूर्ण दोगी
चाहता मै भी पिघलना,चाहती तुम भी पिघलना
टूट मर्यादा न जाये, बड़ा मुश्किल है संभलना
व्यर्थ में जाने न दूंगा,तुम्हारा सजना ,संवारना
केश सज्जा का तुम्हारी ,आज तो तय है बिखरना
आज तुम ना नहीं करना
जायेगा दिल टूट वरना
मदन मोहन बहेती'घोटू'
Wednesday, April 4, 2012
आम -आदमी
बचपन हो या जवानी,
कच्चे आम की तरह होती है,
चटपटी,खट्टी मीठी,
चटकारे ले ले कर खालो
चटनी,अचार,मुरब्बा या पना,
जो चाहो,बना लो
पर जब अनुभवों की ऊष्मा से,
उनमे पकाव आता है
तो निराली सी स्वर्णिम आभा से,
उनका रूप महक जाता है
और वो बन जाते है आम,
स्वादिष्ट, सुगन्धित,रस भरे,
जिनकी हर घूँट में मिठास होता है
खाओ या चूंसो,
संतुष्टि का आभास होता है
जीवन के इस अंतिम चरण में भी,
गजब का स्वाद होता है
रस तो रस,गुठलियों का भी दाम होता है
हर आम आदमी का जीवन,
आम होता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'