रिटायर होने पर
उस दिन जब हम होकर के तैयार
ऑफिस जाने वाले थे यार
बीबी को आवाज़ लगाई,
अभी तलक नहीं बना है खाना
हमको है ऑफिस जाना
तो बीबीजी बोली मुस्काकर
श्रीमानजी,अब आपको दिन भर,
रहना है घर पर
क्योंकि आप हो गए है रिटायर
सारा दिन घर पर ही काटना है
और मेरा दिमाग चाटना है
एसा ही होता है अक्सर
रिटायर होने पर
आदमी का जीना हो जाता है दुष्कर
दिन भर बैठ कर निठल्ला
आदमी पड़ जाता है इकल्ला
याद आते है वो दिन,
जब मिया फाख्ता मारा करते थे
अपने मातहतों पर,
ऑफिस में रोब झाडा करते थे
यस सर ,यस सर का टोनिक पीने की,
जब आदत पड़ जाती है
तो दिन भर बीबीजी के आदेश सुनते सुनते,
हालत बिगड़ जाती है
सुबह जल्दी उठ जाया करो
रोज घूमने जाया करो
डेयरी से दूध ले आया करो
घर के कामो में थोडा हाथ बंटाया करो
बीते दिन याद आते है जब,
हर जगह वी आई पी ट्रीटमेंट था मिलता
आजकल कोई पूछता ही नहीं,
यही मन को है खलता
पर क्या करें,
उम्र के आगे किसी का बस नहीं है चलता
वक़्त काटना हो गया दूभर है
हम हो गए रिटायर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
http://blogsmanch.blogspot.com/" target="_blank"> (ब्लॉगों का संकलक)" width="160" border="0" height="60" src="http://i1084.photobucket.com/albums/j413/mayankaircel/02.jpg" />
Sunday, September 30, 2012
नेता और शायर-कभी नहीं होते रिटायर
नेता और शायर-कभी नहीं होते रिटायर
एक नेताजी,जो है अस्सी के उस पार
आज कल चल रहे है थोड़े बीमार
पर जब कोई उदघाटन करने बुलाये
या टी.वी.पर किसी मुद्दे पर चर्चा करवाए
हरदम रहते है तैयार
सुबह मंगवाते है ढेर सारे अखबार
और उन्हें खंगालते जाते है
अपने बारे में कोई खबर न छपने पर,
उदास हो जाते है
ये ही उनकी बीमारी की जड़ है सारी
और उन्हें नींद ना आने की हो गयी है बीमारी
उनका बेटा
जो उनकी मेहरबानी से,
मिनिस्टर है बना बैठा
क्योंकि राजनीती,आजकल बन गयी है,
पुश्तैनी ठेका
उसने डाक्टर को बुलवाया
और अपने पिताजी को दिखलाया
डाक्टर ने काफी जांच पड़ताल के बाद
उनके बेटे को बताया उनकी बिमारी का इलाज
कि आप किसी टी.वी.चेनल में हर रात
बुक करवालो,एक पांच मिनिट का स्लाट
और एक टी.वी.प्रोग्राम बनवाओ
जैसे'नेताजी के बोल-अनुभवों का घोल'
और उसे रोज रात प्रसारित करवाओ
और नेताजी को भी दिखलाओ
जब टी.वी. पर नेताजी को रोज अपनी ,
शकल नज़र आ जायेगी
उन्हें रात को अच्छी नींद आएगी
इनकी बिमारी का ये ही इलाज है
आजकल नेताजी को खूब नींद आती है,
डाक्टर का ये नुस्खा,रहा कामयाब है
कहते है नेता और शायर
कभी नहीं होते रिटायर
एक बुजुर्ग से शायर,जब कभी,
किसी मुशायरे में बुलाये जाते है
तो गरारे करते है,बाल रंगवाते है
पुरानी शेरवानी पर ,प्रेस करवाते है
और फिर मुशायरे में अपनी ग़ज़ल सुनाते है
वाह वाह और इरशाद
का नशा,मुशायरे के बाद
आठ दस दिनों तक रहता है कायम
और इस बीच,दो तीन गज़लें,
ले लेती है जनम
ये सच शाश्वत है
जिसको पड़ जाती,तारीफ़ कि आदत है
बिना तारीफ़ से रह नहीं पाता है
और बुढ़ापे में बड़ा दुःख पाता है
नेताजी कि जुबान,तक़रीर के लिए तडफाती है
शायर को सपनो में भी,वाह वाह सुनाती है
बूढीयाओं को जवानी कि याद आती है
पुलिस वालों कि हथेली खुजलाती है
कुछ नहीं होने पर दिल टूटता है
ये नशा बड़ी मुश्किल से छूटता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक नेताजी,जो है अस्सी के उस पार
आज कल चल रहे है थोड़े बीमार
पर जब कोई उदघाटन करने बुलाये
या टी.वी.पर किसी मुद्दे पर चर्चा करवाए
हरदम रहते है तैयार
सुबह मंगवाते है ढेर सारे अखबार
और उन्हें खंगालते जाते है
अपने बारे में कोई खबर न छपने पर,
उदास हो जाते है
ये ही उनकी बीमारी की जड़ है सारी
और उन्हें नींद ना आने की हो गयी है बीमारी
उनका बेटा
जो उनकी मेहरबानी से,
मिनिस्टर है बना बैठा
क्योंकि राजनीती,आजकल बन गयी है,
पुश्तैनी ठेका
उसने डाक्टर को बुलवाया
और अपने पिताजी को दिखलाया
डाक्टर ने काफी जांच पड़ताल के बाद
उनके बेटे को बताया उनकी बिमारी का इलाज
कि आप किसी टी.वी.चेनल में हर रात
बुक करवालो,एक पांच मिनिट का स्लाट
और एक टी.वी.प्रोग्राम बनवाओ
जैसे'नेताजी के बोल-अनुभवों का घोल'
और उसे रोज रात प्रसारित करवाओ
और नेताजी को भी दिखलाओ
जब टी.वी. पर नेताजी को रोज अपनी ,
शकल नज़र आ जायेगी
उन्हें रात को अच्छी नींद आएगी
इनकी बिमारी का ये ही इलाज है
आजकल नेताजी को खूब नींद आती है,
डाक्टर का ये नुस्खा,रहा कामयाब है
कहते है नेता और शायर
कभी नहीं होते रिटायर
एक बुजुर्ग से शायर,जब कभी,
किसी मुशायरे में बुलाये जाते है
तो गरारे करते है,बाल रंगवाते है
पुरानी शेरवानी पर ,प्रेस करवाते है
और फिर मुशायरे में अपनी ग़ज़ल सुनाते है
वाह वाह और इरशाद
का नशा,मुशायरे के बाद
आठ दस दिनों तक रहता है कायम
और इस बीच,दो तीन गज़लें,
ले लेती है जनम
ये सच शाश्वत है
जिसको पड़ जाती,तारीफ़ कि आदत है
बिना तारीफ़ से रह नहीं पाता है
और बुढ़ापे में बड़ा दुःख पाता है
नेताजी कि जुबान,तक़रीर के लिए तडफाती है
शायर को सपनो में भी,वाह वाह सुनाती है
बूढीयाओं को जवानी कि याद आती है
पुलिस वालों कि हथेली खुजलाती है
कुछ नहीं होने पर दिल टूटता है
ये नशा बड़ी मुश्किल से छूटता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, September 29, 2012
याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ
याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ
तुम्हारा चेहरा ,मोहरा और ये आकर्षण
सुन्दर सजे धजे से कपडे या आभूषण
रौबीला व्यक्तित्व,शान शौकत तुम्हारी
धन ,साधन और ये दौलत सारी की सारी
ये गाडी ,ये बंगला और ये रूपया ,पैसा
रह जाएगा पड़ा यूं ही,वैसा का वैसा
साथ निभाने वाला कुछ भी नहीं पाओगे
खाली हाथ आये थे,खाली हाथ जाओगे
नहीं रख सकोगे तुम ये सब,संग संभाल कर
एक दिन बन तस्वीर ,जाओगे टंग दीवाल पर
तुमने क्या ये कभी शांति से बैठ विचारा
तुम क्या हो और कब तक है अस्तित्व तुम्हारा
झूंठी शान और शौकत पर मत इतराओ
याद रखे दुनिया, तुम एसा कुछ कर जाओ
मोह और माया के बंधन से आकर बाहर
अपनी कोई अमिट छाप छोडो धरती पर
तुम्हारी भलमनसाहत और काम तुम्हारा
मरने पर भी अमर रखेगी,नाम तुम्हारा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तुम्हारा चेहरा ,मोहरा और ये आकर्षण
सुन्दर सजे धजे से कपडे या आभूषण
रौबीला व्यक्तित्व,शान शौकत तुम्हारी
धन ,साधन और ये दौलत सारी की सारी
ये गाडी ,ये बंगला और ये रूपया ,पैसा
रह जाएगा पड़ा यूं ही,वैसा का वैसा
साथ निभाने वाला कुछ भी नहीं पाओगे
खाली हाथ आये थे,खाली हाथ जाओगे
नहीं रख सकोगे तुम ये सब,संग संभाल कर
एक दिन बन तस्वीर ,जाओगे टंग दीवाल पर
तुमने क्या ये कभी शांति से बैठ विचारा
तुम क्या हो और कब तक है अस्तित्व तुम्हारा
झूंठी शान और शौकत पर मत इतराओ
याद रखे दुनिया, तुम एसा कुछ कर जाओ
मोह और माया के बंधन से आकर बाहर
अपनी कोई अमिट छाप छोडो धरती पर
तुम्हारी भलमनसाहत और काम तुम्हारा
मरने पर भी अमर रखेगी,नाम तुम्हारा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Friday, September 28, 2012
कागा-बढ़भागा
कागा-बढ़भागा
कौवा ,एक बुद्धिमान प्राणी है
बात ये जानी मानी है
हम सबने उस कौवे की कथा तो है पढ़ी
जिसको लग रही थी प्यास बड़ी
उसे एक छत पर
एक मटकी आई नज़र
जिसकी तली में थोडा पानी था
पर कौवा तो ज्ञानी था
वो चुन चुन कर,लाया कंकर
और मटकी में डालता गया,
और जब पानी का स्तर
उसकी चोंच की पहुँच तक आया
उसने अपनी प्यास को बुझाया
प्राचीन ग्रंथो में भी,
काग के गुण गाये जाते है
काग जैसी चेष्ठा को,विद्यार्थी के,
पांच लक्षणों में से एक बताते है
कहते है कौवा एकाक्षी होता है
सबको एक नज़र से देखने वाला पक्षी होता है
कोयल ओर कागा,दोनों हमजाति है
फर्क केवल इतना है,
कौवा कांव कांव करता है
और कोयल कूहू कूहू गाती है
पर कौवा परोपकारी जीव है,
जाति धर्म निभाना जानता है
कोयल के अण्डों को अपना मान कर पालता है
कौवा प्रतीक है,हमारे पुरखों का
और ये चलन है कई बरसों का
कि जब हम श्राद्ध पक्ष मनाते है,
तो सबसे पहले कौवे को खाना खिलाते है
एक पुराना मुहावरा है,
'कौवा चला हंस कि चाल'
पर आजकल है उल्टा हाल,
हंस जैसे सफेदपोश नेता,
कौवे कि चाल चलते है
काजल कि कोठरी से भी,
बिना दाग निकलते है
कोयले कि दलाली में कमाया हुआ काला धन ,
स्विसबेंकों में जमा करते है
कौवे की कांव कांव,आजकल,
बड़ी पोपुलर दिखाई देती है
विधानसभा हो या संसद,
हड़ताल हो या बंद,
हर जगह बस कांव कांव ही सुनाई देती है
पुराने जमाने में,जब ,मोबाईल नहीं होता था,
विरहन नायिकाएं,बस कौवे के गुण गाती थी
अटरिया पर कौवे की कांव कांव,
उन्हें पियाजी का संदेशा सुनाती थी
और जब पिया के आने का सन्देश मिलता था,
उसकी चोंच को सोने से मढ़ाती थी
ये काग का ही सामर्थ्य था,
कि वो कृष्ण कन्हैया के हाथों से,
माखन रोटी छीन सकता था
सीता माता के चरणों में चोंच मार सकता था
वो काकभुशंडी कि तरह,भक्त और विद्वान् है
कौवा सचमुच महान है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कौवा ,एक बुद्धिमान प्राणी है
बात ये जानी मानी है
हम सबने उस कौवे की कथा तो है पढ़ी
जिसको लग रही थी प्यास बड़ी
उसे एक छत पर
एक मटकी आई नज़र
जिसकी तली में थोडा पानी था
पर कौवा तो ज्ञानी था
वो चुन चुन कर,लाया कंकर
और मटकी में डालता गया,
और जब पानी का स्तर
उसकी चोंच की पहुँच तक आया
उसने अपनी प्यास को बुझाया
प्राचीन ग्रंथो में भी,
काग के गुण गाये जाते है
काग जैसी चेष्ठा को,विद्यार्थी के,
पांच लक्षणों में से एक बताते है
कहते है कौवा एकाक्षी होता है
सबको एक नज़र से देखने वाला पक्षी होता है
कोयल ओर कागा,दोनों हमजाति है
फर्क केवल इतना है,
कौवा कांव कांव करता है
और कोयल कूहू कूहू गाती है
पर कौवा परोपकारी जीव है,
जाति धर्म निभाना जानता है
कोयल के अण्डों को अपना मान कर पालता है
कौवा प्रतीक है,हमारे पुरखों का
और ये चलन है कई बरसों का
कि जब हम श्राद्ध पक्ष मनाते है,
तो सबसे पहले कौवे को खाना खिलाते है
एक पुराना मुहावरा है,
'कौवा चला हंस कि चाल'
पर आजकल है उल्टा हाल,
हंस जैसे सफेदपोश नेता,
कौवे कि चाल चलते है
काजल कि कोठरी से भी,
बिना दाग निकलते है
कोयले कि दलाली में कमाया हुआ काला धन ,
स्विसबेंकों में जमा करते है
कौवे की कांव कांव,आजकल,
बड़ी पोपुलर दिखाई देती है
विधानसभा हो या संसद,
हड़ताल हो या बंद,
हर जगह बस कांव कांव ही सुनाई देती है
पुराने जमाने में,जब ,मोबाईल नहीं होता था,
विरहन नायिकाएं,बस कौवे के गुण गाती थी
अटरिया पर कौवे की कांव कांव,
उन्हें पियाजी का संदेशा सुनाती थी
और जब पिया के आने का सन्देश मिलता था,
उसकी चोंच को सोने से मढ़ाती थी
ये काग का ही सामर्थ्य था,
कि वो कृष्ण कन्हैया के हाथों से,
माखन रोटी छीन सकता था
सीता माता के चरणों में चोंच मार सकता था
वो काकभुशंडी कि तरह,भक्त और विद्वान् है
कौवा सचमुच महान है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, September 27, 2012
आपकी परछाईयां
आपकी परछाईयां
सुबह सुबह जब उगता है सूरज,
परछाईयाँ लम्बी होती है
उसी तरह ,जीवन का सूरज उगता है,
यानी की बचपन,
आप सभी को डेक कर मुस्काते है
किलकारियां भरते है
खुशियाँ लुटाने में,
कोई भेदभाव नहीं करते है
आपकी मुस्कान का दायरा,
सुबह की परछाईं की तरह,
बड़ा लम्बा होता है
और दोपहरी में,
याने जीवन के मध्यान्ह में,
आपकी परछाईं,आपके नीचे,
अपने में ही सिमट कर रह जाती है
वैसे ही आप जब,
अपने उत्कर्ष की चरमता पर होते है,
अहम से अभिभूत होकर,
स्वार्थ में लिपटे हुए,
सिर्फ अपने आप को ही देखते है
और दोपहर की परछांई की तरह,
अपने में ही सिमट कर रह जाते है
और शाम को,
जब सूरज ढलने को होता है,
आपकी परछांई,लम्बी होती जाती है,
वैसे ही जब जीवन की शाम आती है,
आपकी सोच बदल जाती है
आपकी भावनाओं का दायरा,
पुरानी यादों की तरह,
उमड़ते जज्बातों की तरह,
तन्हाई भरी रातों की तरह,
लम्बा होता ही जाता है
जब तक सूरज ना ढल जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुबह सुबह जब उगता है सूरज,
परछाईयाँ लम्बी होती है
उसी तरह ,जीवन का सूरज उगता है,
यानी की बचपन,
आप सभी को डेक कर मुस्काते है
किलकारियां भरते है
खुशियाँ लुटाने में,
कोई भेदभाव नहीं करते है
आपकी मुस्कान का दायरा,
सुबह की परछाईं की तरह,
बड़ा लम्बा होता है
और दोपहरी में,
याने जीवन के मध्यान्ह में,
आपकी परछाईं,आपके नीचे,
अपने में ही सिमट कर रह जाती है
वैसे ही आप जब,
अपने उत्कर्ष की चरमता पर होते है,
अहम से अभिभूत होकर,
स्वार्थ में लिपटे हुए,
सिर्फ अपने आप को ही देखते है
और दोपहर की परछांई की तरह,
अपने में ही सिमट कर रह जाते है
और शाम को,
जब सूरज ढलने को होता है,
आपकी परछांई,लम्बी होती जाती है,
वैसे ही जब जीवन की शाम आती है,
आपकी सोच बदल जाती है
आपकी भावनाओं का दायरा,
पुरानी यादों की तरह,
उमड़ते जज्बातों की तरह,
तन्हाई भरी रातों की तरह,
लम्बा होता ही जाता है
जब तक सूरज ना ढल जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो देख तू
अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो देख तू
अपने मन की कोई खिड़की,खोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे , बोल कर तो देख तू
मिटा दे मायूसियों को, मुदित होकर मुस्करा
खोल मन की ग्रंथियों को,हाथ तू आगे बढ़ा
सैकड़ों ही हाथ तुझसे ,लिपट कर मिल जायेंगे
और हजारों फूल जीवन में तेरे खिल जायेंगे
महकने जीवन लगेगा,खुशबुओं से प्यार की
जायेंगी मिल ,तुझे खुशियाँ,सभी इस संसार की
अपने जीवन में मधुरता,घोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे , बोल कर तो देख तू
धुप सूरज की सुहानी सी लगेगी ,कुनकुनी
तन बदन उष्मित करेगी,प्यार से होगी सनी
और रातों को चंदरमा,प्यार बस बरसायेगा
मधुर शीतल,चांदनी में,मन तेरा मुस्काएगा
मंद शीतल हवायें, सहलायेगी तेरा बदन
तुझे ये दुनिया लगेगी ,महकता सा एक चमन
घृणा ,कटुता,डाह ,इर्षा,मन के बाहर फेंक तू
प्यार के दो बोल मीठे ,बोल कर तो देख तू
क्यों सिमट कर,दुबक कर,बैठा हुआ तू खोह में
स्वयं को उलझा रखा है,व्यर्थ माया मोह में
कूपमंडूक,कुए से ,बहार निकल कर देख ले
लहलहाते सरोवर में ,भी उछल कर देख ले
किसी को अपना बना कर,डूब जा तू प्यार में
सभी कुछ तुझको सुहाना लगेगा संसार में
उलझनों के सामने मत,यूं ही घुटने टेक तू
प्यार के दो बोल मीठे, बोल कर तो देख तू
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अपने मन की कोई खिड़की,खोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे , बोल कर तो देख तू
मिटा दे मायूसियों को, मुदित होकर मुस्करा
खोल मन की ग्रंथियों को,हाथ तू आगे बढ़ा
सैकड़ों ही हाथ तुझसे ,लिपट कर मिल जायेंगे
और हजारों फूल जीवन में तेरे खिल जायेंगे
महकने जीवन लगेगा,खुशबुओं से प्यार की
जायेंगी मिल ,तुझे खुशियाँ,सभी इस संसार की
अपने जीवन में मधुरता,घोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे , बोल कर तो देख तू
धुप सूरज की सुहानी सी लगेगी ,कुनकुनी
तन बदन उष्मित करेगी,प्यार से होगी सनी
और रातों को चंदरमा,प्यार बस बरसायेगा
मधुर शीतल,चांदनी में,मन तेरा मुस्काएगा
मंद शीतल हवायें, सहलायेगी तेरा बदन
तुझे ये दुनिया लगेगी ,महकता सा एक चमन
घृणा ,कटुता,डाह ,इर्षा,मन के बाहर फेंक तू
प्यार के दो बोल मीठे ,बोल कर तो देख तू
क्यों सिमट कर,दुबक कर,बैठा हुआ तू खोह में
स्वयं को उलझा रखा है,व्यर्थ माया मोह में
कूपमंडूक,कुए से ,बहार निकल कर देख ले
लहलहाते सरोवर में ,भी उछल कर देख ले
किसी को अपना बना कर,डूब जा तू प्यार में
सभी कुछ तुझको सुहाना लगेगा संसार में
उलझनों के सामने मत,यूं ही घुटने टेक तू
प्यार के दो बोल मीठे, बोल कर तो देख तू
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Wednesday, September 26, 2012
दो इंची मुस्कान और फरमाईश गज भर
दो इंची मुस्कान और फरमाईश गज भर
सुबह सुबह यदि पत्नीजी,खुश हो मुस्काये
जरुरत से थोडा ज्यादा ही प्यार दिखाये
मनपसंद तुम्हारा ब्रेकफास्ट करवाये
सजी धजी सुन्दर सी ,मीठी बात बनाये
प्यारी प्यारी बातें कर ,खुश करती दिल है
तुम्हे पटाने की ये उनकी स्टाईल है
मस्ती मारेंगे हम,आज न जाओ दफ्तर
दो इंची मुस्कान और फरमाईश गज भर
हम खुश होते सोच ,सुबह इतनी मतवाली
क्या होगा आलम जब रात आएगी प्यारी
देख अदाएं,रूप सुहाना,जलवे, नखरा
हो जाता तैयार ,बली को खुद ये बकरा
ले जाती बाज़ार,दुकानों में भटका कर
शौपिंग करती ,हम घूमे,झोले लटका कर
भाग दौड़ में दिन भर की ,इतने थक जाते
घर आकर सो जाते ,और भरते खर्राटे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुबह सुबह यदि पत्नीजी,खुश हो मुस्काये
जरुरत से थोडा ज्यादा ही प्यार दिखाये
मनपसंद तुम्हारा ब्रेकफास्ट करवाये
सजी धजी सुन्दर सी ,मीठी बात बनाये
प्यारी प्यारी बातें कर ,खुश करती दिल है
तुम्हे पटाने की ये उनकी स्टाईल है
मस्ती मारेंगे हम,आज न जाओ दफ्तर
दो इंची मुस्कान और फरमाईश गज भर
हम खुश होते सोच ,सुबह इतनी मतवाली
क्या होगा आलम जब रात आएगी प्यारी
देख अदाएं,रूप सुहाना,जलवे, नखरा
हो जाता तैयार ,बली को खुद ये बकरा
ले जाती बाज़ार,दुकानों में भटका कर
शौपिंग करती ,हम घूमे,झोले लटका कर
भाग दौड़ में दिन भर की ,इतने थक जाते
घर आकर सो जाते ,और भरते खर्राटे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Tuesday, September 25, 2012
चोर तुम भी ,चोर हम भी ....
चोर तुम भी ,चोर हम भी ....
चोर तुम भी,चोर हम भी,सिर्फ इतना फर्क है,
कल तलक सत्ता में थे तुम,आज हम पावर में हैं
हम भी नंगे,तुम भी नंगे,रहते है हम्माम में,
दिखावे की दुश्मनी है,दोस्त हम सब घर में है
हम हो या तुम,नहीं कोई भी धुला है दूध का
पोल एक दूसरे की,हमको तुमको है पता
सेकतें हैं,अपनी अपनी ,राजनेतिक रोटियां
चलानी है ,तुमको भी और हमको भी अपनी दुकां
ये तुम्हारा ओपोजिशन ,बंद ये,हड़ताल ये,
कैसे सत्ता करें काबिज,बस इसी चक्कर में है
एक थैली के हैं चट्टे बट्टे,हम भी,आप भी,
नौ सौ चूहे मार कर के बिल्ली है हज को चली
कोयले की दलाली में, हाथ काले सभी के,
हमारी करतूत काली ,है ये जनता जानती
'जिधर दम है,उधर दम है,एसे भी कुछ लोग है,
जिनको दाना डाल कर के,आज हम पावर में है
चोर तुम भी ,चोर हम भी,सिर्फ इतना फर्क है,
कल तलक सत्ता में थे तुम,आज हम पावर में है
चोर तुम भी,चोर हम भी,सिर्फ इतना फर्क है,
कल तलक सत्ता में थे तुम,आज हम पावर में हैं
हम भी नंगे,तुम भी नंगे,रहते है हम्माम में,
दिखावे की दुश्मनी है,दोस्त हम सब घर में है
हम हो या तुम,नहीं कोई भी धुला है दूध का
पोल एक दूसरे की,हमको तुमको है पता
सेकतें हैं,अपनी अपनी ,राजनेतिक रोटियां
चलानी है ,तुमको भी और हमको भी अपनी दुकां
ये तुम्हारा ओपोजिशन ,बंद ये,हड़ताल ये,
कैसे सत्ता करें काबिज,बस इसी चक्कर में है
एक थैली के हैं चट्टे बट्टे,हम भी,आप भी,
नौ सौ चूहे मार कर के बिल्ली है हज को चली
कोयले की दलाली में, हाथ काले सभी के,
हमारी करतूत काली ,है ये जनता जानती
'जिधर दम है,उधर दम है,एसे भी कुछ लोग है,
जिनको दाना डाल कर के,आज हम पावर में है
चोर तुम भी ,चोर हम भी,सिर्फ इतना फर्क है,
कल तलक सत्ता में थे तुम,आज हम पावर में है
सचमुच हम कितने मूरख है
सचमुच हम कितने मूरख है
कोई कुछ भी कह दे,उसकी बातों में आ जाते झट है
सचमुच हम कितने मूरख है
भ्रष्टाचार विहीन व्यवस्था,और सुराज के सपने देखें
इस कलयुग में,त्रेता युग के,रामराज के सपने देखें
पग पग पर रिश्वतखोरी है,दिन दिन बढती है मंहगाई
लूटखसोट,कमीशन बाजी,सांसद करते हाथापाई
राजनीती को ,खुर्राटों ने,पुश्तेनी व्यापार बनाया
अर्थव्यवस्था को निचोड़ कर,घोटालों का जाल बिछाया
उनके झूंठे बहकावे में,फिर भी आ जाते जब तब है
सचमुच हम कितने मूरख है
कथा भागवत सुनते,मन में ,ये आशा ले,स्वर्ग जायेंगे
करते है गोदान ,पकड़कर पूंछ बेतरनी ,तर जायेंगे
मोटे मोटे टिकिट कटा कर,तीर्थ ,धाम के , करते दर्शन
ढोंगी,धर्माचार्य ,गुरु के,खुश होतें है,सुन कर प्रवचन
गंगा में डुबकियाँ लगाते,सोच यही,सब पाप धुलेंगे
रातजगा,व्रत कीर्तन करते,इस भ्रम में कि पुण्य मिलेंगे
दान पुण्य और मंत्रजाप से,कट जाते सारे संकट है
सचमुच हम कितने मूरख है
आज बीज बोकर खुश होते,अपने मन में ,आस लगा कर
वृक्ष घना होकर बिकसेगा, खाने को देगा मीठे फल
नहीं अपेक्षा करो किसी से,पायेगा दुःख ,ह्रदय तुम्हारा
करो किसी के खातिर यदि कुछ,समझो था कर्तव्य तुम्हारा
नेकी कर दरिया में डालो, सबसे अच्छी बात यही है
सिर्फ भावनाओं में बह कर के, करना दिल को दुखी नहीं है
प्रतिकार की ,आशा मन में,रखना संजो,व्यर्थ,नाहक है
सचमुच हम कितने मूरख है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई कुछ भी कह दे,उसकी बातों में आ जाते झट है
सचमुच हम कितने मूरख है
भ्रष्टाचार विहीन व्यवस्था,और सुराज के सपने देखें
इस कलयुग में,त्रेता युग के,रामराज के सपने देखें
पग पग पर रिश्वतखोरी है,दिन दिन बढती है मंहगाई
लूटखसोट,कमीशन बाजी,सांसद करते हाथापाई
राजनीती को ,खुर्राटों ने,पुश्तेनी व्यापार बनाया
अर्थव्यवस्था को निचोड़ कर,घोटालों का जाल बिछाया
उनके झूंठे बहकावे में,फिर भी आ जाते जब तब है
सचमुच हम कितने मूरख है
कथा भागवत सुनते,मन में ,ये आशा ले,स्वर्ग जायेंगे
करते है गोदान ,पकड़कर पूंछ बेतरनी ,तर जायेंगे
मोटे मोटे टिकिट कटा कर,तीर्थ ,धाम के , करते दर्शन
ढोंगी,धर्माचार्य ,गुरु के,खुश होतें है,सुन कर प्रवचन
गंगा में डुबकियाँ लगाते,सोच यही,सब पाप धुलेंगे
रातजगा,व्रत कीर्तन करते,इस भ्रम में कि पुण्य मिलेंगे
दान पुण्य और मंत्रजाप से,कट जाते सारे संकट है
सचमुच हम कितने मूरख है
आज बीज बोकर खुश होते,अपने मन में ,आस लगा कर
वृक्ष घना होकर बिकसेगा, खाने को देगा मीठे फल
नहीं अपेक्षा करो किसी से,पायेगा दुःख ,ह्रदय तुम्हारा
करो किसी के खातिर यदि कुछ,समझो था कर्तव्य तुम्हारा
नेकी कर दरिया में डालो, सबसे अच्छी बात यही है
सिर्फ भावनाओं में बह कर के, करना दिल को दुखी नहीं है
प्रतिकार की ,आशा मन में,रखना संजो,व्यर्थ,नाहक है
सचमुच हम कितने मूरख है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, September 22, 2012
लब-प्यार से लबालब
लब-प्यार से लबालब
चाँद जैसे सुहाने मुख पर सजे,
ये गुलाबी झिलमिलाते होंठ है
खिला करते हैं कमल के फूल से,
जब कभी ये खिलखिलाते होंठ है
ये मुलायम,मदभरे हैं,रस भरे,
लरजते हैं प्यार बरसाते कभी
दौड़ने लगती है साँसें तेजी से,
होंठ जब नजदीक आते है कभी
प्यार का पहला प्रदर्शन होंठ है,
रसीला मद भरा चुम्बन होंठ है
जब भी मिलते है किसी के होंठ से,
तोड़ देते सारे बंधन होंठ है
अधर पर धर कर अधर तो देखिये,
ये अधर तो प्यार का आधार है,
नहीं धीरज धर सकेंगे आप फिर,
बड़ी तीखी,मधुर इनकी धार है
मिलन की बेताबियाँ बढ़ जायेगी,
तन बदन में आग सी लग जायेगी
सांस की सरगम निकल कर जिगर से,
सब से पहले लबों से टकरायगी
उमरभर पियो मगर खाली न हो,
जाम हैं ये वो छलकते,मद भरे
लब नहीं ये युगल फल है प्यार से,
लबालब, और लहलहाते,रस भरे
मुस्कराते तो गिराते बिजलियाँ,
गोल हो सीटी बजाते होंठ है
और खुश हो दूर तक जब फैलते,
तो ठहाके भी लगाते होंठ है
सख्त से बत्तीस दांतों के लिए,
ये मुलायम दोनों ,पहरेदार हैं
हैं रसीले शहद जैसे ये कभी,
लब नहीं,ये प्यार का भण्डार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चाँद जैसे सुहाने मुख पर सजे,
ये गुलाबी झिलमिलाते होंठ है
खिला करते हैं कमल के फूल से,
जब कभी ये खिलखिलाते होंठ है
ये मुलायम,मदभरे हैं,रस भरे,
लरजते हैं प्यार बरसाते कभी
दौड़ने लगती है साँसें तेजी से,
होंठ जब नजदीक आते है कभी
प्यार का पहला प्रदर्शन होंठ है,
रसीला मद भरा चुम्बन होंठ है
जब भी मिलते है किसी के होंठ से,
तोड़ देते सारे बंधन होंठ है
अधर पर धर कर अधर तो देखिये,
ये अधर तो प्यार का आधार है,
नहीं धीरज धर सकेंगे आप फिर,
बड़ी तीखी,मधुर इनकी धार है
मिलन की बेताबियाँ बढ़ जायेगी,
तन बदन में आग सी लग जायेगी
सांस की सरगम निकल कर जिगर से,
सब से पहले लबों से टकरायगी
उमरभर पियो मगर खाली न हो,
जाम हैं ये वो छलकते,मद भरे
लब नहीं ये युगल फल है प्यार से,
लबालब, और लहलहाते,रस भरे
मुस्कराते तो गिराते बिजलियाँ,
गोल हो सीटी बजाते होंठ है
और खुश हो दूर तक जब फैलते,
तो ठहाके भी लगाते होंठ है
सख्त से बत्तीस दांतों के लिए,
ये मुलायम दोनों ,पहरेदार हैं
हैं रसीले शहद जैसे ये कभी,
लब नहीं,ये प्यार का भण्डार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Friday, September 21, 2012
साथ छोड़ कर भागी ममता.....
साथ छोड़ कर भागी ममता.....
साथ छोड़ कर भागी ममता,अब क्या होगा रे
नज़र आ रहा सूरज ढलता, अब क्या होगा रे
नहीं मुलायम,रहते कायम,अपने वादों पर
नज़र बड़ी आवश्यक रखना,गुप्त इरादों पर
उनका सपना,पी एम् पद का,अब क्या होगा रे
नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
माया महा ठगिनी हम जानी,आनी जानी है
कब इसका रुख बदल जाए, ये घाघ पुरानी है
यदि उसने जो पाला पलता,तब क्या होगा रे
नज़र आ रहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
अब तो करूणानिधि से ही करुणा की आशा है
सी बी आइ का दबाब भी अच्छा खासा है
साम दाम से काम न बनता,तब क्या होगा रे
नजर आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
सब चीजों के दाम बढ़ गए,जनता है अकुलायी
सुरसा जैसी मुख फैलाती,रोज रोज मंहगाई
साथ छोड़ देगी यदि जनता,तब क्या होगा रे
नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
साथ छोड़ कर भागी ममता,अब क्या होगा रे
नज़र आ रहा सूरज ढलता, अब क्या होगा रे
नहीं मुलायम,रहते कायम,अपने वादों पर
नज़र बड़ी आवश्यक रखना,गुप्त इरादों पर
उनका सपना,पी एम् पद का,अब क्या होगा रे
नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
माया महा ठगिनी हम जानी,आनी जानी है
कब इसका रुख बदल जाए, ये घाघ पुरानी है
यदि उसने जो पाला पलता,तब क्या होगा रे
नज़र आ रहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
अब तो करूणानिधि से ही करुणा की आशा है
सी बी आइ का दबाब भी अच्छा खासा है
साम दाम से काम न बनता,तब क्या होगा रे
नजर आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
सब चीजों के दाम बढ़ गए,जनता है अकुलायी
सुरसा जैसी मुख फैलाती,रोज रोज मंहगाई
साथ छोड़ देगी यदि जनता,तब क्या होगा रे
नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Wednesday, September 19, 2012
अंग्रेजी का भूत
अंग्रेजी का भूत
हमारी एक पड़ोसन,
एकदम देशी अंग्रेजन
वैसे तो फूहड़ लगती थी
पर अंग्रेजी शब्दों का उपयोग करने में,
अपनी शान समझती थी
हिंदी से परहेज था,
उनके घर का हर सदस्य,
पूरा अंग्रेज था
एक दिन हम उनके घर गये,
करने मुलाक़ात
हो रही थी इधर उधर की बात
इतने में ही उनका बच्चा बोला,
मम्मी,बाथरूम आ रहा है
हमने इधर उधर देखा और बोले,
हमें तो कहीं भी बाथरूम,
आता नज़र नहीं आरहा है
क्या आजकल मोबाईल बाथरूम भी आता है
जो ड्राइंग रूम में भी चला आता है
मेडम बोली,भाई साहब,
बच्चे को बाथरूम जाना है
हम बोले इसी सर्दी में,
क्या रात को नहाना है
वोबोली,नहीं,नहीं,बच्चे को सु सु आ रही है
बच्चा बोला,मम्मी ,आ नहीं रही,आ गयी है
मेडम ,गुस्से में लाल पीली थी
हमने देखा,बच्चे की चड्ढी गीली थी
एक दिन वो अपने पति के साथ,
हमारे घर आई
हमारी पत्नीजी ने गरम गरम पकोड़ी बनायी
उनके पतीजी ने फटाफट पांच छह पकोड़ी खाली
तभी बोली उनकी घरवाली
अरे आज तो आपका मंगल का फास्ट था
तो पति बोले,ओह' शिट 'मैंने तो खा ली
हमने बजायी ताली
और बोले भी साहेब,आपने 'शिट 'नहीं,
पकोड़ी है खाई
हमारी बात सुन वो सकपकाई
बोली भाई साहेब,'ओह शिट' इनका तकिया कलाम है
अंग्रेजी उपन्यासों में ये बड़ा आम है
एक दिन उनके पतीजी थे घर पर
हमारी पत्नी ने पूंछ लिया ,
क्या भाई साहेब की तबियत ठीक नहीं है,
जो वो नहीं गये है दफ्तर
पड़ोसन बोली वैसे तो तबियत ठीक है,
हो रहे हैं पर 'मोशन'
हमारी पत्नी ने कहा 'कानग्रेचुलेशन'
कब दे रही हो प्रमोशन की पार्टी
वो झल्लाई काहे की पार्टी
उन्हें सुबह से 'लूज मोशन 'हो रहे है,
वो पस्त है
पत्नी बोली सीधे सीधे बोलो ना,
लग गये दस्त है
इन कई वारदातों के बाद,
आजकल हमसे वो,
संभल कर जुबान खोलती है
जब भी बोलती है,हिंदी में बोलती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
हमारी एक पड़ोसन,
एकदम देशी अंग्रेजन
वैसे तो फूहड़ लगती थी
पर अंग्रेजी शब्दों का उपयोग करने में,
अपनी शान समझती थी
हिंदी से परहेज था,
उनके घर का हर सदस्य,
पूरा अंग्रेज था
एक दिन हम उनके घर गये,
करने मुलाक़ात
हो रही थी इधर उधर की बात
इतने में ही उनका बच्चा बोला,
मम्मी,बाथरूम आ रहा है
हमने इधर उधर देखा और बोले,
हमें तो कहीं भी बाथरूम,
आता नज़र नहीं आरहा है
क्या आजकल मोबाईल बाथरूम भी आता है
जो ड्राइंग रूम में भी चला आता है
मेडम बोली,भाई साहब,
बच्चे को बाथरूम जाना है
हम बोले इसी सर्दी में,
क्या रात को नहाना है
वोबोली,नहीं,नहीं,बच्चे को सु सु आ रही है
बच्चा बोला,मम्मी ,आ नहीं रही,आ गयी है
मेडम ,गुस्से में लाल पीली थी
हमने देखा,बच्चे की चड्ढी गीली थी
एक दिन वो अपने पति के साथ,
हमारे घर आई
हमारी पत्नीजी ने गरम गरम पकोड़ी बनायी
उनके पतीजी ने फटाफट पांच छह पकोड़ी खाली
तभी बोली उनकी घरवाली
अरे आज तो आपका मंगल का फास्ट था
तो पति बोले,ओह' शिट 'मैंने तो खा ली
हमने बजायी ताली
और बोले भी साहेब,आपने 'शिट 'नहीं,
पकोड़ी है खाई
हमारी बात सुन वो सकपकाई
बोली भाई साहेब,'ओह शिट' इनका तकिया कलाम है
अंग्रेजी उपन्यासों में ये बड़ा आम है
एक दिन उनके पतीजी थे घर पर
हमारी पत्नी ने पूंछ लिया ,
क्या भाई साहेब की तबियत ठीक नहीं है,
जो वो नहीं गये है दफ्तर
पड़ोसन बोली वैसे तो तबियत ठीक है,
हो रहे हैं पर 'मोशन'
हमारी पत्नी ने कहा 'कानग्रेचुलेशन'
कब दे रही हो प्रमोशन की पार्टी
वो झल्लाई काहे की पार्टी
उन्हें सुबह से 'लूज मोशन 'हो रहे है,
वो पस्त है
पत्नी बोली सीधे सीधे बोलो ना,
लग गये दस्त है
इन कई वारदातों के बाद,
आजकल हमसे वो,
संभल कर जुबान खोलती है
जब भी बोलती है,हिंदी में बोलती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
तुम भी भूखी,मै भी भूखा,आज तुमने व्रत रखा.....
तुम भी भूखी,मै भी भूखा,आज तुमने व्रत रखा.....
प्रश्न मेरे जहन में ,उठता ये कितनी बार है
आग क्यों दिल में लगाता,तुम्हारा दीदार है
जिसके कारण नाचता मै,इशारों पर तुम्हारे,
ये तुम्हारा हुस्न है या फिर तुम्हारा प्यार है
रसभरे गुलाबजामुन सी मधुर 'हाँ 'है तेरी,
और करारे पकोड़ों सा,चटपटा इनकार है
प्यार से नज़रें उठा कर,मुस्करा देती हो तुम,
महकने लगता ख़ुशी से,ये मेरा गुलजार है
तुम भी भूखे,हम भी भूखे,आज तुमने व्रत रखा,
प्यार जतलाने का ये भी अनोखा व्यवहार है
बेकरारी बढाती है ,ये तुम्हारी शोखियाँ,
और दिल को सुकूं देता, तुम्हारा इकरार है
नयी साड़ी मंगाई थी,सज संवरने के लिए,
और अब उस साड़ी में भी ,तुम्हे लगता भार है
आज हमने तय किया है,यूं नहीं पिघलेंगे हम,
देखते हैं आपके,जलवों में कितनी धार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रश्न मेरे जहन में ,उठता ये कितनी बार है
आग क्यों दिल में लगाता,तुम्हारा दीदार है
जिसके कारण नाचता मै,इशारों पर तुम्हारे,
ये तुम्हारा हुस्न है या फिर तुम्हारा प्यार है
रसभरे गुलाबजामुन सी मधुर 'हाँ 'है तेरी,
और करारे पकोड़ों सा,चटपटा इनकार है
प्यार से नज़रें उठा कर,मुस्करा देती हो तुम,
महकने लगता ख़ुशी से,ये मेरा गुलजार है
तुम भी भूखे,हम भी भूखे,आज तुमने व्रत रखा,
प्यार जतलाने का ये भी अनोखा व्यवहार है
बेकरारी बढाती है ,ये तुम्हारी शोखियाँ,
और दिल को सुकूं देता, तुम्हारा इकरार है
नयी साड़ी मंगाई थी,सज संवरने के लिए,
और अब उस साड़ी में भी ,तुम्हे लगता भार है
आज हमने तय किया है,यूं नहीं पिघलेंगे हम,
देखते हैं आपके,जलवों में कितनी धार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Tuesday, September 18, 2012
पशुवत जीवन
पशुवत जीवन
बचपन में,
हम खरगोश की तरह होते है
नन्हे,मासूम,कोमल,मुलायम,
मुस्कराते रहते है
किलकारियां भरते है
प्यार और दुलार की,
हरी हरी घास चरते है
किशोरावस्था में,
हिरन की तरह कुलांछे लगाते है
या बारहसिंघा की तरह,
अपने सींगों पर इतराते है
और जवानी में,
कभी दूध देती गाय की तरह रंभाते है
कभी कंगारू की तरह,
अपने बच्चों को सँभालते है
कभी शेर की तरह दहाड़ते है
कभी हाथी की तरह चिंघाड़ते है
और बुढ़ापे के रेगिस्थान में,
ऊँट की तरह,
प्यार के नखलिस्थान की तलाश करते है
लम्बी उम्र की तरह,
अपनी लम्बी गर्दन उचका उचका ,
कांटे भरी झाड़ियों में,
हरी हरी पत्तियां दूंढ ढूंढ,
अपना पेट भरते है
सदा गधों सा बोझा ढोतें है
हम उम्र भर,
पशुवत जीवन जी रहे होते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बचपन में,
हम खरगोश की तरह होते है
नन्हे,मासूम,कोमल,मुलायम,
मुस्कराते रहते है
किलकारियां भरते है
प्यार और दुलार की,
हरी हरी घास चरते है
किशोरावस्था में,
हिरन की तरह कुलांछे लगाते है
या बारहसिंघा की तरह,
अपने सींगों पर इतराते है
और जवानी में,
कभी दूध देती गाय की तरह रंभाते है
कभी कंगारू की तरह,
अपने बच्चों को सँभालते है
कभी शेर की तरह दहाड़ते है
कभी हाथी की तरह चिंघाड़ते है
और बुढ़ापे के रेगिस्थान में,
ऊँट की तरह,
प्यार के नखलिस्थान की तलाश करते है
लम्बी उम्र की तरह,
अपनी लम्बी गर्दन उचका उचका ,
कांटे भरी झाड़ियों में,
हरी हरी पत्तियां दूंढ ढूंढ,
अपना पेट भरते है
सदा गधों सा बोझा ढोतें है
हम उम्र भर,
पशुवत जीवन जी रहे होते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Monday, September 17, 2012
kbc6
प्रिय अमित जी,
kbc 6 के लिए एक छंद भेज रहा हूँ
' पंच कोटि है ज्ञान का,उच्च कोटि का खेल
कोटि कोटि मन लुभाता,इसमें सबका मेल
इसमें सबका मेल,कहीं देखा है अबतक
हॉट सीट पर बैठ ,ह्रदय को मिलती ठंडक
पंच कोटि का नहीं ,खेल ये कई कोटि का
बिग बी से दो बातें करना,कई कोटि का
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इंदिरापुरम,ग़ाज़ियाबाद
kbc 6 के लिए एक छंद भेज रहा हूँ
' पंच कोटि है ज्ञान का,उच्च कोटि का खेल
कोटि कोटि मन लुभाता,इसमें सबका मेल
इसमें सबका मेल,कहीं देखा है अबतक
हॉट सीट पर बैठ ,ह्रदय को मिलती ठंडक
पंच कोटि का नहीं ,खेल ये कई कोटि का
बिग बी से दो बातें करना,कई कोटि का
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इंदिरापुरम,ग़ाज़ियाबाद
समर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
करूं मै सुदर्शन, बनूँ मै सुदर्शन
सभी काम ,क्रोधा,
सभी रोग चिंता
सभी लोभ मोहा,
सभी द्वेष ,निंदा
गुरु के चरण में,सभी कुछ समर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
अपने ह्रदय से मै,
'मै' को निकालूँ
करूं प्रेम सबको,
मै अपना बनालूँ
करूं प्यार अपना,सभी को मै अर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
ह्रदय में सभी के,
खिले पुष्प सुख के
ख़ुशी ही ख़ुशी बस,
नज़र आये मुख पे
करूं पुष्प सारे,गुरु को मै अर्पण
समर्पण,समर्पण ,समर्पण,समर्पण
साँसों की सरगम से,
मन को हिला दूं
खुदी को मिटा कर,
खुदा से मिला दूं
करूं आत्मदर्शन,बनू मै सुदर्शन
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
करूं मै सुदर्शन, बनूँ मै सुदर्शन
सभी काम ,क्रोधा,
सभी रोग चिंता
सभी लोभ मोहा,
सभी द्वेष ,निंदा
गुरु के चरण में,सभी कुछ समर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
अपने ह्रदय से मै,
'मै' को निकालूँ
करूं प्रेम सबको,
मै अपना बनालूँ
करूं प्यार अपना,सभी को मै अर्पण
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
ह्रदय में सभी के,
खिले पुष्प सुख के
ख़ुशी ही ख़ुशी बस,
नज़र आये मुख पे
करूं पुष्प सारे,गुरु को मै अर्पण
समर्पण,समर्पण ,समर्पण,समर्पण
साँसों की सरगम से,
मन को हिला दूं
खुदी को मिटा कर,
खुदा से मिला दूं
करूं आत्मदर्शन,बनू मै सुदर्शन
समर्पण,समर्पण,समर्पण,समर्पण
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आओ हम तुम हँसे
आओ हम तुम हँसे
आओ हम तुम हंसें
मन में खुशियाँ बसे
जीवन की आपाधापी में,
रहे न यूं ही फंसे
खुश हो सबसे मिलें
दिल की कलियाँ खिले
नहीं किसी से बैर भाव,
मन में शिकवे गिले
बस यूं ही मुस्काके
लगते रहे ठहाके
धीरे धीरे बिसर जायेंगे,
सारे दुःख दुनिया के
खिल खिल ,कल कल बहें
लगा सदा कहकहे
तन मन दोनों की ही सेहत,
सदा सुहानी रहे
चेहरा हँसता लिये
सुखमय जीवन जियें
बहुत मिलेगी खुशियाँ,
यदि कुछ करो किसी के लिये
चार दिनों का जीवन
हो न किसी से अनबन
खुशियाँ बरसेगी,सरसेगी,
हँसते रहिये हरदम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आओ हम तुम हंसें
मन में खुशियाँ बसे
जीवन की आपाधापी में,
रहे न यूं ही फंसे
खुश हो सबसे मिलें
दिल की कलियाँ खिले
नहीं किसी से बैर भाव,
मन में शिकवे गिले
बस यूं ही मुस्काके
लगते रहे ठहाके
धीरे धीरे बिसर जायेंगे,
सारे दुःख दुनिया के
खिल खिल ,कल कल बहें
लगा सदा कहकहे
तन मन दोनों की ही सेहत,
सदा सुहानी रहे
चेहरा हँसता लिये
सुखमय जीवन जियें
बहुत मिलेगी खुशियाँ,
यदि कुछ करो किसी के लिये
चार दिनों का जीवन
हो न किसी से अनबन
खुशियाँ बरसेगी,सरसेगी,
हँसते रहिये हरदम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चार दिन की जिंदगी
चार दिन की जिंदगी
जन्म ले रोते हैं पहले,बाद में मुस्काते हैं,
और फिर किलकारियों से,हम लुटाते प्यार हैं
फिर पढाई,लिखाई और खेलना मस्ती भरा,
ये किशोरावस्था भी,होती गज़ब की यार है
प्यार,जलवा,नाज़,अदाएं,मौज,मस्ती रात दिन,
ये जवानी,चार दिन का ,मद भरा त्योंहार है
और फिर लाचार करता है बुढ़ापा सभी को,
कुछ नहीं उपचार इसका,जिंदगी दिन चार है
मदन मोहन बहेती'घोटू'
जन्म ले रोते हैं पहले,बाद में मुस्काते हैं,
और फिर किलकारियों से,हम लुटाते प्यार हैं
फिर पढाई,लिखाई और खेलना मस्ती भरा,
ये किशोरावस्था भी,होती गज़ब की यार है
प्यार,जलवा,नाज़,अदाएं,मौज,मस्ती रात दिन,
ये जवानी,चार दिन का ,मद भरा त्योंहार है
और फिर लाचार करता है बुढ़ापा सभी को,
कुछ नहीं उपचार इसका,जिंदगी दिन चार है
मदन मोहन बहेती'घोटू'
मंहगाई ने कमर तोड़ दी
मंहगाई ने कमर तोड़ दी
हे मनमोहन!कुछ तो सोचो,
तुमने है दिल तोडा
मंहगाई ने कमर तोड़ दी,
नहीं कहीं का छोड़ा
रोज रोज बढ़ते दामों का,
सबको लगता कोड़ा
घोटालों से लूट देश को,
एसा हमें झिंझोड़ा
अब खुदरा व्यापार विदेशी,
हाथों में है छोड़ा
डीजल ने दिल जला दिया है,
सभी चीज का तोडा
और सातवाँ गेस सिलेंडर,
महंगा हुआ निगोड़ा
लंगड़ा लंगड़ा दौड़ रहा,
सूरज का सातवां घोड़ा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हे मनमोहन!कुछ तो सोचो,
तुमने है दिल तोडा
मंहगाई ने कमर तोड़ दी,
नहीं कहीं का छोड़ा
रोज रोज बढ़ते दामों का,
सबको लगता कोड़ा
घोटालों से लूट देश को,
एसा हमें झिंझोड़ा
अब खुदरा व्यापार विदेशी,
हाथों में है छोड़ा
डीजल ने दिल जला दिया है,
सभी चीज का तोडा
और सातवाँ गेस सिलेंडर,
महंगा हुआ निगोड़ा
लंगड़ा लंगड़ा दौड़ रहा,
सूरज का सातवां घोड़ा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Sunday, September 16, 2012
जीवन झंझट
जीवन झंझट
थोडा सा आराम मिला है, मुझको जीवन की खट पट में
कुछ इकसठ में,कुछ बांसठ में,कुछ त्रेसठ में,कुछ चोंसठ में
चलता यह गाडी के नीचे,पाले गलत फहमियां सारी
मै था मूरख श्वान समझता ,मुझ से ही चलती है गाडी
जान हकीकत, मै पछताया,खटता रहा यूं ही फ़ोकट में
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खट पट में
मै था एक कूप मंडुप सा,कूए में सिमटी थी दुनिया
नहीं किसी से लेना देना ,,बस मै था और मेरी दुनिया
निकला बाहर तो ये जाना,सचमुच ही था ,कितना शठ मै
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खटपट में
उलझा रहा और की रट में,मं में प्यार भरी चाहत थी
आह मिली तो होकर आहत,राह ढूंढता था राहत की
यूं ही फंसा रखा था मैंने,खुदको बे मतलब,झंझट में
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खटपट में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
थोडा सा आराम मिला है, मुझको जीवन की खट पट में
कुछ इकसठ में,कुछ बांसठ में,कुछ त्रेसठ में,कुछ चोंसठ में
चलता यह गाडी के नीचे,पाले गलत फहमियां सारी
मै था मूरख श्वान समझता ,मुझ से ही चलती है गाडी
जान हकीकत, मै पछताया,खटता रहा यूं ही फ़ोकट में
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खट पट में
मै था एक कूप मंडुप सा,कूए में सिमटी थी दुनिया
नहीं किसी से लेना देना ,,बस मै था और मेरी दुनिया
निकला बाहर तो ये जाना,सचमुच ही था ,कितना शठ मै
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खटपट में
उलझा रहा और की रट में,मं में प्यार भरी चाहत थी
आह मिली तो होकर आहत,राह ढूंढता था राहत की
यूं ही फंसा रखा था मैंने,खुदको बे मतलब,झंझट में
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खटपट में
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Saturday, September 15, 2012
जीवन लेखा
जीवन लेखा
जीवन के इस दुर्गम पथ पर,पग पग पर भटकाव लिखा है
कहीं धूप का रूप तपाता, कहीं छाँव का ठावं लिखा है
तड़क भड़क है शहरों वाली,बचपन वाला गाँव लिखा है
गीत लिखे कोकिल के मीठे, कागा का भी काँव लिखा है
पासे फेंक खेलना जुआ ,हार जीत का दाव लिखा है
कहीं किसी से झगडा,टंटा ,कहीं प्रेम का भाव लिखा है
अच्छे बुरे कई लोगों से,जीवन भर टकराव लिखा है
प्रीत परायों ने पुरसी है,अपनों से अलगाव लिखा है
लिखी जवानी में उच्श्रन्खलता ,वृद्ध हुए ,ठहराव लिखा है
वाह रे ऊपरवाले तूने,जीवन भर उलझाव लिखा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जीवन के इस दुर्गम पथ पर,पग पग पर भटकाव लिखा है
कहीं धूप का रूप तपाता, कहीं छाँव का ठावं लिखा है
तड़क भड़क है शहरों वाली,बचपन वाला गाँव लिखा है
गीत लिखे कोकिल के मीठे, कागा का भी काँव लिखा है
पासे फेंक खेलना जुआ ,हार जीत का दाव लिखा है
कहीं किसी से झगडा,टंटा ,कहीं प्रेम का भाव लिखा है
अच्छे बुरे कई लोगों से,जीवन भर टकराव लिखा है
प्रीत परायों ने पुरसी है,अपनों से अलगाव लिखा है
लिखी जवानी में उच्श्रन्खलता ,वृद्ध हुए ,ठहराव लिखा है
वाह रे ऊपरवाले तूने,जीवन भर उलझाव लिखा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, September 13, 2012
मुहावरों में माहिर-नेताजी की तक़रीर
मुहावरों में माहिर-नेताजी की तक़रीर
दोस्तों,जो भौंकते है,वो नहीं है काटते,
हम है वो जो भोंकते भी, और काटे भी बहुत
लोग कहते ,गरजते बादल बरसते है नहीं,
हम गरजते भी बहुत है,और बरसते भी बहुत
तेल नौ मन हो न हो पर नचाते है राधिका,
कितना भी आँगन हो टेड़ा,हम नचाना जानते
सच है जब चलता है हाथी,तो है कुत्ते भौंकते,
हम वो हाथी,भौंकते कुत्तों जो चिंघाड़ते
राई का पर्वत बनाना,खेल बांयें हाथ का,
ऊँट ये जीरा न खाता,नोट की ये बोरियां
चोर के घर मोर की बातें सुनी है आपने,
चोर हम वो,मोर के घर जा कर करते चोरियां
चोर की दाढ़ी में तिनका ,आयेगा कैसे नज़र,
हम तो है वो चोर जो कि दाढ़ी रखते ही नहीं
गलत करके रख दिया है,हमने ये मुहावरा,
नाग जो फुंकारते है ,वो कभी डसते नहीं
घुसे काजल कोठरी में,बिना कालिख लगाये,
कायले कि दलाली में हाथ ना काले किये
लूट का सब माल हमने ,पास अपने ना रखा ,
सभी पैसे हमने स्विस के बेंक में भिजवा दिये
आधुनिक हैं,नहीं है,हम तो लकीरों के फ़कीर,
इसलिए छोड़ी फकीरी,अमीरी से हम जिये
आपने तो हमको दी थी,एक बस केवल लकीर,
बहुत सारे जीरो हमने उसके आगे भर दिये
कम्पूटर लीजिये,लेपटोप,टी वी लीजिये,
दो रुपय्ये किलो चांवल,फ्री बिजली लीजिये
आपसे बस ये हमारी,इतनी सी दरख्वास्त है,
चाहे कुछ भी लीजिये पर वोट हमको दीजिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दोस्तों,जो भौंकते है,वो नहीं है काटते,
हम है वो जो भोंकते भी, और काटे भी बहुत
लोग कहते ,गरजते बादल बरसते है नहीं,
हम गरजते भी बहुत है,और बरसते भी बहुत
तेल नौ मन हो न हो पर नचाते है राधिका,
कितना भी आँगन हो टेड़ा,हम नचाना जानते
सच है जब चलता है हाथी,तो है कुत्ते भौंकते,
हम वो हाथी,भौंकते कुत्तों जो चिंघाड़ते
राई का पर्वत बनाना,खेल बांयें हाथ का,
ऊँट ये जीरा न खाता,नोट की ये बोरियां
चोर के घर मोर की बातें सुनी है आपने,
चोर हम वो,मोर के घर जा कर करते चोरियां
चोर की दाढ़ी में तिनका ,आयेगा कैसे नज़र,
हम तो है वो चोर जो कि दाढ़ी रखते ही नहीं
गलत करके रख दिया है,हमने ये मुहावरा,
नाग जो फुंकारते है ,वो कभी डसते नहीं
घुसे काजल कोठरी में,बिना कालिख लगाये,
कायले कि दलाली में हाथ ना काले किये
लूट का सब माल हमने ,पास अपने ना रखा ,
सभी पैसे हमने स्विस के बेंक में भिजवा दिये
आधुनिक हैं,नहीं है,हम तो लकीरों के फ़कीर,
इसलिए छोड़ी फकीरी,अमीरी से हम जिये
आपने तो हमको दी थी,एक बस केवल लकीर,
बहुत सारे जीरो हमने उसके आगे भर दिये
कम्पूटर लीजिये,लेपटोप,टी वी लीजिये,
दो रुपय्ये किलो चांवल,फ्री बिजली लीजिये
आपसे बस ये हमारी,इतनी सी दरख्वास्त है,
चाहे कुछ भी लीजिये पर वोट हमको दीजिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इजहारे इश्क-बुढ़ापे में
इजहारे इश्क-बुढ़ापे में
दिल के कागज़ पर लिखा है,नाम केवल आपका
ध्यान मन में लगा रहता है हरेक पल आपका
क्या गजब का हुस्न है और क्या अदाएं आपकी,
घूमता आँखों में रहता, चेहरा चंचल आपका
हम को दीवाना दिया है कर तुम्हारी चाह ने ,
सोने के साँचें से आया , ये बदन ढल आपका
बन संवर के ,निकलती हो ,जब ठुमकती चाल से,
दिल करे दीदार करता रहूँ दिन भर आपका
श्वेत केशों पर न जाओ,उम्र में क्या रखा,
प्यार देखो,दिल जवां है,और पागल आपका
बात सुन वो हँसे,बोले आप है सठिया गये,
जंच रहा है ,नहीं हमको ,ये प्रपोजल आपका
फिर भी ये तारीफ़ सुन कर,हमको है अच्छा लगा,
तहे दिल से शुक्रिया है,डियर 'अंकल' आपका
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दिल के कागज़ पर लिखा है,नाम केवल आपका
ध्यान मन में लगा रहता है हरेक पल आपका
क्या गजब का हुस्न है और क्या अदाएं आपकी,
घूमता आँखों में रहता, चेहरा चंचल आपका
हम को दीवाना दिया है कर तुम्हारी चाह ने ,
सोने के साँचें से आया , ये बदन ढल आपका
बन संवर के ,निकलती हो ,जब ठुमकती चाल से,
दिल करे दीदार करता रहूँ दिन भर आपका
श्वेत केशों पर न जाओ,उम्र में क्या रखा,
प्यार देखो,दिल जवां है,और पागल आपका
बात सुन वो हँसे,बोले आप है सठिया गये,
जंच रहा है ,नहीं हमको ,ये प्रपोजल आपका
फिर भी ये तारीफ़ सुन कर,हमको है अच्छा लगा,
तहे दिल से शुक्रिया है,डियर 'अंकल' आपका
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Wednesday, September 12, 2012
परेशानी की वजह
परेशानी की वजह
तुम परेशां,हम परेशां,हर कोई है परेशां,
परेशानी किस वजह है,कभी सोचा आपने
बात है ऐसी कोई जो खटकती मन में सदा,
याद करिये किया था क्या कोई लोचा आपने
बहुत सी चिंतायें जो रहती लगी घुन की तरह,
गलतियां तो खुद करी,औरों को कोसा आपने
या की फिर बढ़ने को आगे,जिंदगी की दौड़ में,
क्या कभी तोडा था ,कोई का भरोसा आपने
हमने उनसे पूछा ये,तो उनने हम से ये कहा,
जो भी ,जैसा चल रहा है,चलने दो,खामखाँ,
परेशानी की वजह को ढूँढने की फ़िक्र में,
एक परेशानी बढ़ा कर, करें खुद को परेशां
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
तुम परेशां,हम परेशां,हर कोई है परेशां,
परेशानी किस वजह है,कभी सोचा आपने
बात है ऐसी कोई जो खटकती मन में सदा,
याद करिये किया था क्या कोई लोचा आपने
बहुत सी चिंतायें जो रहती लगी घुन की तरह,
गलतियां तो खुद करी,औरों को कोसा आपने
या की फिर बढ़ने को आगे,जिंदगी की दौड़ में,
क्या कभी तोडा था ,कोई का भरोसा आपने
हमने उनसे पूछा ये,तो उनने हम से ये कहा,
जो भी ,जैसा चल रहा है,चलने दो,खामखाँ,
परेशानी की वजह को ढूँढने की फ़िक्र में,
एक परेशानी बढ़ा कर, करें खुद को परेशां
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
चीपट-घिसे हुए साबुन की
चीपट-घिसे हुए साबुन की
घिसे हुए साबुन की चीपट,
न पकड़ में आती है,न काम में आती है
या तो यूं ही गल जाती है,
या व्यर्थ फेंकी जाती है
मगर उस घिसी हुई चीपट को,
अगर नए साबुन के साथ चिपका दो,
तो आखरी दम तक काम आती है
बुजुर्ग लोग भी,
घिसे हुए साबुन की चीपट की तरह है,
उम्र भर काम आते है
और बुढ़ापे में,चीपट से क्षीण हो जाते है
नयी पीढियां यदि नए साबुन की तरह,
उन्हें अपने साथ प्यार से चिपका ले,
तो उम्र भर काम आते है
वर्ना चिंताओं से गल जाते हैं,
या फेंक दिए जाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
घिसे हुए साबुन की चीपट,
न पकड़ में आती है,न काम में आती है
या तो यूं ही गल जाती है,
या व्यर्थ फेंकी जाती है
मगर उस घिसी हुई चीपट को,
अगर नए साबुन के साथ चिपका दो,
तो आखरी दम तक काम आती है
बुजुर्ग लोग भी,
घिसे हुए साबुन की चीपट की तरह है,
उम्र भर काम आते है
और बुढ़ापे में,चीपट से क्षीण हो जाते है
नयी पीढियां यदि नए साबुन की तरह,
उन्हें अपने साथ प्यार से चिपका ले,
तो उम्र भर काम आते है
वर्ना चिंताओं से गल जाते हैं,
या फेंक दिए जाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Tuesday, September 11, 2012
ये पर्वत हैं
ये पर्वत हैं
इन्हें न समझो तुम चट्टानें, इन्हें न समझो ये पत्थर है
ये सुन्दर है,ये मनहर है ,झरझर झरते ये निर्झर है
धरती माँ के स्तन मंडल,ये तो बरसाते अमृत है
ये पर्वत है
हरे भरे हैं,मौन खड़े है,विपुल सम्पदा के स्वामी है
तने हुए सर ऊंचा करके,निज गौरव के अभिमानी है
कहीं बर्फ से आच्छादित है,कहीं बरसती निर्मल धारा
कहीं अरण्य,कहीं भेषज है,सुन्दर हरित रूप है प्यारा
इनकी कोख भरी रत्नों से,कहीं स्वर्ण है,कहीं रजत है
ये पर्वत है
हिम किरीट से चमक रहे है,रजत शिखर आलोकित सुन्दर
सूरज की किरणे भी सबसे,पहले इन्हें चूमती आकर
कहीं देवियों के मंदिर है,कहीं वास करते है शंकर
ये उद्गम गंगा यमुना के,इनमे ही है मानसरोवर
ये सीमाओं के प्रहरी है,अटल,अजय है,दुर्गम पथ है
ये पर्वत है
मानव देव और दानव भी,काम सभी के आते है ये
अमृत मंथन को मेरु से,मथनी भी बन जाते है ये
नींव बने प्रगति ,विकास की,इनकी चट्टानों के पत्थर
किन्तु धधकता है लावा भी,ज्वालामुखी ,सीने के अन्दर
मानव ने कर दिया खोखला,बहुत दुखी है आहत है
ये पर्वत है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इन्हें न समझो तुम चट्टानें, इन्हें न समझो ये पत्थर है
ये सुन्दर है,ये मनहर है ,झरझर झरते ये निर्झर है
धरती माँ के स्तन मंडल,ये तो बरसाते अमृत है
ये पर्वत है
हरे भरे हैं,मौन खड़े है,विपुल सम्पदा के स्वामी है
तने हुए सर ऊंचा करके,निज गौरव के अभिमानी है
कहीं बर्फ से आच्छादित है,कहीं बरसती निर्मल धारा
कहीं अरण्य,कहीं भेषज है,सुन्दर हरित रूप है प्यारा
इनकी कोख भरी रत्नों से,कहीं स्वर्ण है,कहीं रजत है
ये पर्वत है
हिम किरीट से चमक रहे है,रजत शिखर आलोकित सुन्दर
सूरज की किरणे भी सबसे,पहले इन्हें चूमती आकर
कहीं देवियों के मंदिर है,कहीं वास करते है शंकर
ये उद्गम गंगा यमुना के,इनमे ही है मानसरोवर
ये सीमाओं के प्रहरी है,अटल,अजय है,दुर्गम पथ है
ये पर्वत है
मानव देव और दानव भी,काम सभी के आते है ये
अमृत मंथन को मेरु से,मथनी भी बन जाते है ये
नींव बने प्रगति ,विकास की,इनकी चट्टानों के पत्थर
किन्तु धधकता है लावा भी,ज्वालामुखी ,सीने के अन्दर
मानव ने कर दिया खोखला,बहुत दुखी है आहत है
ये पर्वत है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मगर माँ बस एक है
मगर माँ बस एक है
कई तारे टिमटिमाते,आसमां में रात भर,
मगर सूरज एक है और चंद्रमां बस एक है
कहने को तो दुनिया में कितने करोड़ों देवता,
मगर जो दुनिया चलाता,वो खुदा बस एक है
कई टुकड़ों में गयी बंट,देश कितने बन गए,
ये धरा पर एक ही है,आसमां भी एक है
कई रिश्ते है जहाँ में,भाभियाँ है चाचियाँ,
बहने है,भाई कई है ,मगर माँ बस एक है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कई तारे टिमटिमाते,आसमां में रात भर,
मगर सूरज एक है और चंद्रमां बस एक है
कहने को तो दुनिया में कितने करोड़ों देवता,
मगर जो दुनिया चलाता,वो खुदा बस एक है
कई टुकड़ों में गयी बंट,देश कितने बन गए,
ये धरा पर एक ही है,आसमां भी एक है
कई रिश्ते है जहाँ में,भाभियाँ है चाचियाँ,
बहने है,भाई कई है ,मगर माँ बस एक है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
रात दिन कुछ नहीं देखा,उम्र के सैलाब में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
रातदिन खटते रहे बस लक्ष्मी की चाह में
मुश्किलें थी,दिक्कतें थी,उन्नति की राह में
मगर हम पिसते रहे
एडियाँ घिसते रहे
सिर्फ दौलत और पैसा ही बसा था ख्वाब में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
पंडितों को जन्मपत्री दिखा किस्मत पूछते
आश्रम,दरगाह,मंदिर, हम सभी को पूजते
सभी से लुटते रहे
और हम जुटते रहे
कभी टोने टोटके में,कभी पूजा ,जाप में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
सुख नहीं कोई उठाया,मुफलिसों से हम जिये
बहुत कुछ हमने कमाया,मगर सब किसके लिये
उम्र के इस मोड़ पर
गए सब संग छोड़ कर
इस बुढ़ापे में सहारा,कोई भी ना साथ में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रात दिन कुछ नहीं देखा,उम्र के सैलाब में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
रातदिन खटते रहे बस लक्ष्मी की चाह में
मुश्किलें थी,दिक्कतें थी,उन्नति की राह में
मगर हम पिसते रहे
एडियाँ घिसते रहे
सिर्फ दौलत और पैसा ही बसा था ख्वाब में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
पंडितों को जन्मपत्री दिखा किस्मत पूछते
आश्रम,दरगाह,मंदिर, हम सभी को पूजते
सभी से लुटते रहे
और हम जुटते रहे
कभी टोने टोटके में,कभी पूजा ,जाप में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
सुख नहीं कोई उठाया,मुफलिसों से हम जिये
बहुत कुछ हमने कमाया,मगर सब किसके लिये
उम्र के इस मोड़ पर
गए सब संग छोड़ कर
इस बुढ़ापे में सहारा,कोई भी ना साथ में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Monday, September 10, 2012
पार्टी प्रवक्ता
पार्टी प्रवक्ता
जब भी हमारे विरोध में कोई मामला उठता है
सफाई देने के लिए हमारे पास हमारे प्रवक्ता है
एक है जो खुले आम उलटे आरोप उछालता है
एक है जो विरोधी की जन्म पत्री खंगालता है
एक है जो झूंठ बोलते समय खुदा से डरता है
इसलिए ऐसे बयान देते समय आँखें बंद करता है
हम विरोधियों का नहीं,ज्यादा संज्ञान लेते है
पानी जब सर से गुजरता है,तभी बयान देतें है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब भी हमारे विरोध में कोई मामला उठता है
सफाई देने के लिए हमारे पास हमारे प्रवक्ता है
एक है जो खुले आम उलटे आरोप उछालता है
एक है जो विरोधी की जन्म पत्री खंगालता है
एक है जो झूंठ बोलते समय खुदा से डरता है
इसलिए ऐसे बयान देते समय आँखें बंद करता है
हम विरोधियों का नहीं,ज्यादा संज्ञान लेते है
पानी जब सर से गुजरता है,तभी बयान देतें है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेरी माँ,दुनिया की सबसे अच्छी माँ है
मेरी माँ,दुनिया की सबसे अच्छी माँ है
धवल रजत से केश,स्वच्छ हैं,मन से उजले
यादों के सैलाब,वृद्ध आँखों में धुंधले
बार बार,हर बात,भूलती है दुहराती
खुश होती तो स्वर्ण दन्त,दिखला मुस्काती
ममता का सागर अथाह है जिसके मन में
देख लिए नब्बे बसंत ,जिसने जीवन में
नाती,पोते,बेटी और बेटों से मिल कर
अब भी फूल बिखर जाते,चेहरे पर खिल कर
कभी कभी गुमसुम बैठी ,कुछ सोचा करती
जीवन के किस कालखंड में पहुंचा करती
बाबूजी को याद किय करती है मन में
अक्सर भटका करती यादों के उपवन में
बूढी आँखों में ममता,वात्सल्य भरा है
मेरी माँ ,दुनिया की सबसे अच्छी माँ है
मादन मोहन बाहेती'घोटू'
धवल रजत से केश,स्वच्छ हैं,मन से उजले
यादों के सैलाब,वृद्ध आँखों में धुंधले
बार बार,हर बात,भूलती है दुहराती
खुश होती तो स्वर्ण दन्त,दिखला मुस्काती
ममता का सागर अथाह है जिसके मन में
देख लिए नब्बे बसंत ,जिसने जीवन में
नाती,पोते,बेटी और बेटों से मिल कर
अब भी फूल बिखर जाते,चेहरे पर खिल कर
कभी कभी गुमसुम बैठी ,कुछ सोचा करती
जीवन के किस कालखंड में पहुंचा करती
बाबूजी को याद किय करती है मन में
अक्सर भटका करती यादों के उपवन में
बूढी आँखों में ममता,वात्सल्य भरा है
मेरी माँ ,दुनिया की सबसे अच्छी माँ है
मादन मोहन बाहेती'घोटू'
Sunday, September 9, 2012
कौन बनेगा करोडपति
कौन बनेगा करोडपति
अमिताभ बच्चन टी.वी.पर एक खेला दिखलाते है
बारह तेरह प्रश्नों के उत्तर देनेवाले को करोडपति बनाते है
नेताजी के बेटे ने पकड़ ली ये जिद्दी
कि उसको भी खेलना है कौन बनेगा करोडपति
नेताजी बोले तू ये खेल नहीं खेल पायेगा
दूसरे तीसरे प्रश्न पर ही अटक जाएगा
और फालतू में मेरा नाम डूबायेगा
अरे करोडपति बनने के लिए जुगाडी होना जरूरी है
या किसी नेता से रिश्तेदारी होना जरूरी है
करोर्पति ही बनना है तो अपने नाम 2 G स्पेक्ट्रम करवाले
या कोल ब्लाक का आबंटन करवाले
बेटा तू के बी सी में जाने कि जिद छोड़
वहां ज्यादा से ज्यादा क्या मिलेगा-पांच करोड़
और अगर एक कोल ब्लोक भी तेरे नाम हो जाएगा
तू कितने ही करोड़ों का मालिक बन जाएगा
बेटा बोला पापा,केबीसी में तो पांच करोड़ मिलेंगे,
तेरह प्रश्नों के सही उत्तर के बाद
और ये मामला अगर केग रिपोर्ट में आगया ,
तो आपको संसद में देने पड़ेगें कई प्रश्नों के जबाब
नेताजी बोले,बेटा तू फालतू में डरता है
जबाब देने के लिए,पार्टी के प्रवक्ता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अमिताभ बच्चन टी.वी.पर एक खेला दिखलाते है
बारह तेरह प्रश्नों के उत्तर देनेवाले को करोडपति बनाते है
नेताजी के बेटे ने पकड़ ली ये जिद्दी
कि उसको भी खेलना है कौन बनेगा करोडपति
नेताजी बोले तू ये खेल नहीं खेल पायेगा
दूसरे तीसरे प्रश्न पर ही अटक जाएगा
और फालतू में मेरा नाम डूबायेगा
अरे करोडपति बनने के लिए जुगाडी होना जरूरी है
या किसी नेता से रिश्तेदारी होना जरूरी है
करोर्पति ही बनना है तो अपने नाम 2 G स्पेक्ट्रम करवाले
या कोल ब्लाक का आबंटन करवाले
बेटा तू के बी सी में जाने कि जिद छोड़
वहां ज्यादा से ज्यादा क्या मिलेगा-पांच करोड़
और अगर एक कोल ब्लोक भी तेरे नाम हो जाएगा
तू कितने ही करोड़ों का मालिक बन जाएगा
बेटा बोला पापा,केबीसी में तो पांच करोड़ मिलेंगे,
तेरह प्रश्नों के सही उत्तर के बाद
और ये मामला अगर केग रिपोर्ट में आगया ,
तो आपको संसद में देने पड़ेगें कई प्रश्नों के जबाब
नेताजी बोले,बेटा तू फालतू में डरता है
जबाब देने के लिए,पार्टी के प्रवक्ता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, September 8, 2012
दास्ताने -दोस्ती
दास्ताने -दोस्ती
१
नजर तिरछी डाल अपने हुस्न का जादू किया,
तीर इतने मारे उनने ,खाली हो तरकश गये
जाल तो था बिछाया,हमको फंसाने के लिए,
मगर कुछ एसा हुआ की जाल में खुद फंस गये
बस हमारी दोस्ती की ,दास्ताँ इतनी सी है,
उनने देखा,हमने देखा,दिल में कुछ कुछ सा हुआ,
उनने दिल में झाँकने की ,सिर्फ दी थी इजाजत,
हमने गर्दन और फिर धड,डाला ,दिल में बस गये
२
आग उल्फत की जो भड़की,बुझाये ना बुझ सकी,
वो भी बेबस हो गये और हम भी बेबस हो गये
लाख कोशिश की निकलने की मगर निकले नहीं,
दिल की सकड़ी गली में वो,टेढ़े हो कर फंस गये
सोचते है,बिना उनके,जिंदगी का ये सफ़र,
कैसे कटता,हमसफ़र बन,अगर वो मिलते नहीं,
शुक्रिया उनका करूं या शुक्र है अल्लाह का,
वो मिले,संग संग चले,सपने सभी सच हो गये
मदन मोहन बाहेती;घोटू'
१
नजर तिरछी डाल अपने हुस्न का जादू किया,
तीर इतने मारे उनने ,खाली हो तरकश गये
जाल तो था बिछाया,हमको फंसाने के लिए,
मगर कुछ एसा हुआ की जाल में खुद फंस गये
बस हमारी दोस्ती की ,दास्ताँ इतनी सी है,
उनने देखा,हमने देखा,दिल में कुछ कुछ सा हुआ,
उनने दिल में झाँकने की ,सिर्फ दी थी इजाजत,
हमने गर्दन और फिर धड,डाला ,दिल में बस गये
२
आग उल्फत की जो भड़की,बुझाये ना बुझ सकी,
वो भी बेबस हो गये और हम भी बेबस हो गये
लाख कोशिश की निकलने की मगर निकले नहीं,
दिल की सकड़ी गली में वो,टेढ़े हो कर फंस गये
सोचते है,बिना उनके,जिंदगी का ये सफ़र,
कैसे कटता,हमसफ़र बन,अगर वो मिलते नहीं,
शुक्रिया उनका करूं या शुक्र है अल्लाह का,
वो मिले,संग संग चले,सपने सभी सच हो गये
मदन मोहन बाहेती;घोटू'
बरसात का मौसम सुहाना
बरसात का मौसम सुहाना
आ गया,मन भा गया,बरसात का मौसम सुहाना
गेलरी में,बैठ कर के,पकोड़े ,गुलगुले खाना
सांवले से बादलों से बरसती रिमझिम फुहारें
हरीतिमा अपनी बिखेरे,नहाये से ,वृक्ष सारे
कर रहा आराम सूरज,आजकल है छुट्टियों पर
धूप तरसे मिलन को पर ,आ नहीं सकती धरा पर
सजी दुल्हन सी धरा पर,उसे बादल है छुपाये
बड़ा है मनचला चंदा, नजर उसकी पड़ न जाये
एक सौंधी सी महक,वातावरण में घुल गयी है
हो गयी है तृप्त धरती,प्रेमरस से धुल गयी है
वृक्ष पत्तों से लिपट कर,टपकती जल बूँद है यूं
याद में अपने पिया की ,बहाती विरहने आंसूं
पांख भीजे,पंछियों के,अब जरा कम है चहकना
झांकता सुन्दर बदन जब भीगती है श्वेत वसना
बड़ा ही मदमस्त मौसम,सभी को करता दीवाना
आ गया,मन भा गया,बरसात का मौसम सुहाना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आ गया,मन भा गया,बरसात का मौसम सुहाना
गेलरी में,बैठ कर के,पकोड़े ,गुलगुले खाना
सांवले से बादलों से बरसती रिमझिम फुहारें
हरीतिमा अपनी बिखेरे,नहाये से ,वृक्ष सारे
कर रहा आराम सूरज,आजकल है छुट्टियों पर
धूप तरसे मिलन को पर ,आ नहीं सकती धरा पर
सजी दुल्हन सी धरा पर,उसे बादल है छुपाये
बड़ा है मनचला चंदा, नजर उसकी पड़ न जाये
एक सौंधी सी महक,वातावरण में घुल गयी है
हो गयी है तृप्त धरती,प्रेमरस से धुल गयी है
वृक्ष पत्तों से लिपट कर,टपकती जल बूँद है यूं
याद में अपने पिया की ,बहाती विरहने आंसूं
पांख भीजे,पंछियों के,अब जरा कम है चहकना
झांकता सुन्दर बदन जब भीगती है श्वेत वसना
बड़ा ही मदमस्त मौसम,सभी को करता दीवाना
आ गया,मन भा गया,बरसात का मौसम सुहाना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चाखने की ये उमर है
चाखने की ये उमर है
देख कर बहला लिया मन,और बस करना सबर है
नहीं खाने की रही ,बस चाखने की ये उमर है
मज़े थे जितने उठाने,ले लिये सब जवानी में
अब तो उपसंहार ही बस,है बचा इस कहानी में
याद आती है पुरानी, गए वो दिन खेलने के
बड़े ही चुभने लगे ये दिन मुसीबत झेलने के
मचलता तो मन बहुत पर,तन नहीं अब साथ देता
त्रास,पीडायें हज़ारों, बुढ़ापा दिन रात देता
जब भी मौका मिले तो बस, ताकने की ये उमर है
नहीं खाने की रही बस चाखने की ये उमर है
तना तो अब भी तना है,पड़ गए पर पात पीले
दांत,आँखे,पाँव ,घुटने,पड़ गए सब अंग ढीले
क्या गुजरती है ह्रदय पर,आपको हम क्या बताएं
बुलाती है हमको अंकल कह के जब नवयौवनाएं
सामने पकवान है पर आप खा सकते नहीं है
मन मसोसे सब्र करना,बचा अब शायद यही है
हुस्न को बस ,कनखियों से,झाँकने की ये उमर है
नहीं खाने की रही बस चाखने की ये उमर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
देख कर बहला लिया मन,और बस करना सबर है
नहीं खाने की रही ,बस चाखने की ये उमर है
मज़े थे जितने उठाने,ले लिये सब जवानी में
अब तो उपसंहार ही बस,है बचा इस कहानी में
याद आती है पुरानी, गए वो दिन खेलने के
बड़े ही चुभने लगे ये दिन मुसीबत झेलने के
मचलता तो मन बहुत पर,तन नहीं अब साथ देता
त्रास,पीडायें हज़ारों, बुढ़ापा दिन रात देता
जब भी मौका मिले तो बस, ताकने की ये उमर है
नहीं खाने की रही बस चाखने की ये उमर है
तना तो अब भी तना है,पड़ गए पर पात पीले
दांत,आँखे,पाँव ,घुटने,पड़ गए सब अंग ढीले
क्या गुजरती है ह्रदय पर,आपको हम क्या बताएं
बुलाती है हमको अंकल कह के जब नवयौवनाएं
सामने पकवान है पर आप खा सकते नहीं है
मन मसोसे सब्र करना,बचा अब शायद यही है
हुस्न को बस ,कनखियों से,झाँकने की ये उमर है
नहीं खाने की रही बस चाखने की ये उमर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Friday, September 7, 2012
मन बिरहन का
मन बिरहन का
बरस बरस कर रीते मेघा,
उमर कट गयी बरस बरस कर
बरस बरस तक ,बहते बहते,
आंसू सूखे,बरस बरस कर
मन में लेकर,आस दरस की,
रह निहारी,कसक कसक कर
हमने साड़ी,उम्र गुजारी,
यूं ही अकेले, टसक टसक कर
गरज गरज ,छाये घन काले,
बहुत सताया ,घुमड़ घुमड़ कर
आई यादों की बरसातें,
आंसू निकले ,उमड़ उमड़ कर
नयन निगोड़े,आस न छोड़े,
रहे ताकते,डगर डगर पर
मेरे सपने,रहे न अपने,
टूट गए सब,बिखर बिखर कर
ना आना था,तुम ना आये,
रही अभागन,तरस तरस कर
बरस बरस कर,रीते मेघा,
उमर कट गयी,बरस बरस कर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बरस बरस कर रीते मेघा,
उमर कट गयी बरस बरस कर
बरस बरस तक ,बहते बहते,
आंसू सूखे,बरस बरस कर
मन में लेकर,आस दरस की,
रह निहारी,कसक कसक कर
हमने साड़ी,उम्र गुजारी,
यूं ही अकेले, टसक टसक कर
गरज गरज ,छाये घन काले,
बहुत सताया ,घुमड़ घुमड़ कर
आई यादों की बरसातें,
आंसू निकले ,उमड़ उमड़ कर
नयन निगोड़े,आस न छोड़े,
रहे ताकते,डगर डगर पर
मेरे सपने,रहे न अपने,
टूट गए सब,बिखर बिखर कर
ना आना था,तुम ना आये,
रही अभागन,तरस तरस कर
बरस बरस कर,रीते मेघा,
उमर कट गयी,बरस बरस कर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रकृति और मानव
प्रकृति और मानव
समंदर का खारा पानी,
प्रकृति के स्पर्श से,
सूरज की गर्मी पा,
बादल बन बरसता है
मीठा बन जाता है
सब को हर्षाता है
और वो ही शुद्ध जल,
पीता जब है मानव,
तो मानव का स्पर्श पा,
शुद्ध जल ,शुद्ध नहीं रह पाता
मल मूत्र बन कर के,
नालियों में बह जाता
प्रकृति के संपर्क से ,
बुरा भी बन जाता भला,
और मानव के संपर्क से,
भला भी जाता बिगड़ है
प्रकृति और मानव में,
ये ही तो अंतर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
समंदर का खारा पानी,
प्रकृति के स्पर्श से,
सूरज की गर्मी पा,
बादल बन बरसता है
मीठा बन जाता है
सब को हर्षाता है
और वो ही शुद्ध जल,
पीता जब है मानव,
तो मानव का स्पर्श पा,
शुद्ध जल ,शुद्ध नहीं रह पाता
मल मूत्र बन कर के,
नालियों में बह जाता
प्रकृति के संपर्क से ,
बुरा भी बन जाता भला,
और मानव के संपर्क से,
भला भी जाता बिगड़ है
प्रकृति और मानव में,
ये ही तो अंतर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, September 6, 2012
रुंगावन
रुंगावन
मै तो लेने गया था ,इस जग की जिम्मेदारियां ,
रुंगावन में बाँध दी संग,उसने कुछ खुशियाँ मुझे
कुछ ठहाके,कहकहे कुछ,और कुछ मुस्कान भी,
लगी फिर से अच्छी लगने, ये तेरी दुनिया मुझे
देता है सौदा खरा और नहीं डंडी मारता,
मुकद्दर से ही मिला है,तुझसा एक बनिया मुझे
कितने कांटे,कितने पत्थर और कितनी ठोकरें,
रोकने को राह ,रस्ते में मिला क्या क्या मुझे
यहाँ से लेकर वहां तक ,मुश्किलें ही मुश्किलें,
पार करना पडा था एक आग का दरिया मुझे
दूसरों के दोष मैंने देखना बंद करदिया,
नज़र खुद में ,लगी आने सैकड़ों ,कमियां मुझे
उसने रोशन राह करदी,सब अँधेरे मिट गए,
राह में मिल गयी बिखरी,हजारों खुशियाँ मुझे
लिखा था जो मुकद्दर में,उससे ज्यादा ही मिला,
उसकी मेहर हो गयी और मिल गया क्या क्या मुझे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मै तो लेने गया था ,इस जग की जिम्मेदारियां ,
रुंगावन में बाँध दी संग,उसने कुछ खुशियाँ मुझे
कुछ ठहाके,कहकहे कुछ,और कुछ मुस्कान भी,
लगी फिर से अच्छी लगने, ये तेरी दुनिया मुझे
देता है सौदा खरा और नहीं डंडी मारता,
मुकद्दर से ही मिला है,तुझसा एक बनिया मुझे
कितने कांटे,कितने पत्थर और कितनी ठोकरें,
रोकने को राह ,रस्ते में मिला क्या क्या मुझे
यहाँ से लेकर वहां तक ,मुश्किलें ही मुश्किलें,
पार करना पडा था एक आग का दरिया मुझे
दूसरों के दोष मैंने देखना बंद करदिया,
नज़र खुद में ,लगी आने सैकड़ों ,कमियां मुझे
उसने रोशन राह करदी,सब अँधेरे मिट गए,
राह में मिल गयी बिखरी,हजारों खुशियाँ मुझे
लिखा था जो मुकद्दर में,उससे ज्यादा ही मिला,
उसकी मेहर हो गयी और मिल गया क्या क्या मुझे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बाती और कपूर
बाती और कपूर
खुद को डूबा प्रेम के रस में,
तुम जलती हो बन कर बाती
जब तक स्नेह भरा दीपक में,
जी भर उजियाला फैलाती
और कपूर की डली बना मै,
जल कर करूं आरती ,अर्चन,
निज अस्तित्व मिटा देता मै,
मेरा होता पूर्ण समर्पण
तुम में ,मुझ में ,फर्क यही है,
तुमभी जलती,मै भी जलता
तुम रस पाकर फिर जल जाती,
और मै जल कर सिर्फ पिघलता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
खुद को डूबा प्रेम के रस में,
तुम जलती हो बन कर बाती
जब तक स्नेह भरा दीपक में,
जी भर उजियाला फैलाती
और कपूर की डली बना मै,
जल कर करूं आरती ,अर्चन,
निज अस्तित्व मिटा देता मै,
मेरा होता पूर्ण समर्पण
तुम में ,मुझ में ,फर्क यही है,
तुमभी जलती,मै भी जलता
तुम रस पाकर फिर जल जाती,
और मै जल कर सिर्फ पिघलता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Tuesday, September 4, 2012
चुनाव लड़ने की घोषणा
चुनाव लड़ने की घोषणा
भाइयों,दोस्तों और मेरे शुभ चिंतकों,
मै आपको अभी से सूचित कर रहा हूँ
कि मै आने वाला आम चुनाव लड़ रहो हूँ
सभी राजनेतिक पार्टियों से मेरा मोह भंग हो गया है
इनके झूंठे वादों,भ्रष्टाचार और मंहगाई से,
आम आदमी तंग हो गया है
इसलिए यदि आप साथ देंगे,
तो मै अकेले ही घोड़ी चढूँगा
और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडूंगा
ये सच है अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है
पर अकेला जूता दुष्टों के सर फोड़ सकता है
इसलिए मैंने अपना चुनाव चिन्ह रखा है'जूता'
क्योंकि सब काम कराने का इसीमे है बूता
ये आपको काँटों से बचाता है
ठोकरों से भी बचाता है
और सही सलामत मंजिल तक पहुंचाता है
ये आम आदमी का दोस्त है,
बड़ा मददगार है
और दुश्मनों से लड़ने के लिए,
सबसे सुगम हथियार है
सत्तारूढ़ पार्टी से जब भी कोई काम कराना होगा
तो जाहिर है,मुझको जूता ही चलाना होगा
क्योंकि क्लिंटन हो या चिदंबरम,
जब जूता चल जाता है
तो खानेवाला और चलानेवाला,
बड़ी पब्लिसिटी पाता है
और आपका मुद्दा जनता के सामने आ जाता है
मुझे विश्वास है,आपका सब काम ,
करवाउंगा मै जूते के बूते
क्योंकि मै जानता हूँ कि अगर मै,
आपकी उम्मीद पर खरा नहीं उतरा,
तो आप ही मुझे मारेंगे जूते
इसलिए कृपा करके अभी से नोट कीजिये
कि आने वाले चुनाव में जूते को ही बोट दीजिये
और दुआ कीजियेगा कि,
किसी भी पार्टी का बहुमत न आये
और कई दल मिलजुल कर सरकार बनाएं
और ऐसी सिचुवेशन में ,स्वतंत्र उम्मीदवार का,
महत्त्व तो आप जानते ही है
और आपके इस अदने से,जूतेवाले सेवक को,
तो आप पहचानते ही है
तोड़ जोड़ करके यदि बन गया मिनिस्टर
तो फिर आपकी सारी उम्मीद पर,
एकदम एसा खरा उतरूंगा
कि अपने चुनावक्षेत्र को,पोलिश कर,
एकदम जूते सा चमका दूंगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भाइयों,दोस्तों और मेरे शुभ चिंतकों,
मै आपको अभी से सूचित कर रहा हूँ
कि मै आने वाला आम चुनाव लड़ रहो हूँ
सभी राजनेतिक पार्टियों से मेरा मोह भंग हो गया है
इनके झूंठे वादों,भ्रष्टाचार और मंहगाई से,
आम आदमी तंग हो गया है
इसलिए यदि आप साथ देंगे,
तो मै अकेले ही घोड़ी चढूँगा
और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडूंगा
ये सच है अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है
पर अकेला जूता दुष्टों के सर फोड़ सकता है
इसलिए मैंने अपना चुनाव चिन्ह रखा है'जूता'
क्योंकि सब काम कराने का इसीमे है बूता
ये आपको काँटों से बचाता है
ठोकरों से भी बचाता है
और सही सलामत मंजिल तक पहुंचाता है
ये आम आदमी का दोस्त है,
बड़ा मददगार है
और दुश्मनों से लड़ने के लिए,
सबसे सुगम हथियार है
सत्तारूढ़ पार्टी से जब भी कोई काम कराना होगा
तो जाहिर है,मुझको जूता ही चलाना होगा
क्योंकि क्लिंटन हो या चिदंबरम,
जब जूता चल जाता है
तो खानेवाला और चलानेवाला,
बड़ी पब्लिसिटी पाता है
और आपका मुद्दा जनता के सामने आ जाता है
मुझे विश्वास है,आपका सब काम ,
करवाउंगा मै जूते के बूते
क्योंकि मै जानता हूँ कि अगर मै,
आपकी उम्मीद पर खरा नहीं उतरा,
तो आप ही मुझे मारेंगे जूते
इसलिए कृपा करके अभी से नोट कीजिये
कि आने वाले चुनाव में जूते को ही बोट दीजिये
और दुआ कीजियेगा कि,
किसी भी पार्टी का बहुमत न आये
और कई दल मिलजुल कर सरकार बनाएं
और ऐसी सिचुवेशन में ,स्वतंत्र उम्मीदवार का,
महत्त्व तो आप जानते ही है
और आपके इस अदने से,जूतेवाले सेवक को,
तो आप पहचानते ही है
तोड़ जोड़ करके यदि बन गया मिनिस्टर
तो फिर आपकी सारी उम्मीद पर,
एकदम एसा खरा उतरूंगा
कि अपने चुनावक्षेत्र को,पोलिश कर,
एकदम जूते सा चमका दूंगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Monday, September 3, 2012
पति को पटाने के तीन नुस्खे
पति को पटाने के तीन नुस्खे
१
अगर आप चाहती है कि आपके पति,
आपमें अरुचि ना रखें,
तो आप गरिष्ठ भोजन में अरुचि रखें
ताकि आपका बदन छरहरा रहे
और यौवन हरा भरा रहे
अपने शरीर को फैलने का मौका मत दो
और अपने पति को ,इधर उधर,
झाँकने का मौका मत दो
मतलब साफ़ है,यदि पति को पटाना है
तो आपको अपना वजन घटाना है
२
भजन,पूजन,कीर्तन,सब है आवश्यक
लेकिन ये अच्छे है,बस एक सीमा तक
धार्मिक बनो पर धर्म कि पराकाष्ठा मत करो
और देवताओं के चक्कर में ,अपने पति को मत बिसरो
क्योंकि पति भी होता है,एक रूप परमेश्वर का
उसकी सेवा में ही भला है घर भर का
भजन कीर्तन में इतना समय मत लगाओ
कि अपने पति को ही समय ना दे पाओ
यदि आपको अपने पति का प्यार पाना है
तो भगवान के साथ साथ,पति के गुण भी गाना है
३
हमेशा मायके के गुण मत गाओ
और ससुरालवालों को बुरा मत बतलाओ
क्योंकि अब तुम्हारा घर,मायका नहीं,ससुराल है
और ससुराल वालों से मिला कर रखनी ताल है
पर सास,ननद और रिश्तेदारों की सेवा के चक्कर में
कई बार परेशानी भी हो जाती है घर में
इस चक्कर में खुद को इतना मत उलझादो
कि अपने प्यारे पतिदेव को ही भुलादो
अगर आपको प्यार का रस चखना है
तो अपने पति का पूरा पूरा ख्याल रखना है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
१
अगर आप चाहती है कि आपके पति,
आपमें अरुचि ना रखें,
तो आप गरिष्ठ भोजन में अरुचि रखें
ताकि आपका बदन छरहरा रहे
और यौवन हरा भरा रहे
अपने शरीर को फैलने का मौका मत दो
और अपने पति को ,इधर उधर,
झाँकने का मौका मत दो
मतलब साफ़ है,यदि पति को पटाना है
तो आपको अपना वजन घटाना है
२
भजन,पूजन,कीर्तन,सब है आवश्यक
लेकिन ये अच्छे है,बस एक सीमा तक
धार्मिक बनो पर धर्म कि पराकाष्ठा मत करो
और देवताओं के चक्कर में ,अपने पति को मत बिसरो
क्योंकि पति भी होता है,एक रूप परमेश्वर का
उसकी सेवा में ही भला है घर भर का
भजन कीर्तन में इतना समय मत लगाओ
कि अपने पति को ही समय ना दे पाओ
यदि आपको अपने पति का प्यार पाना है
तो भगवान के साथ साथ,पति के गुण भी गाना है
३
हमेशा मायके के गुण मत गाओ
और ससुरालवालों को बुरा मत बतलाओ
क्योंकि अब तुम्हारा घर,मायका नहीं,ससुराल है
और ससुराल वालों से मिला कर रखनी ताल है
पर सास,ननद और रिश्तेदारों की सेवा के चक्कर में
कई बार परेशानी भी हो जाती है घर में
इस चक्कर में खुद को इतना मत उलझादो
कि अपने प्यारे पतिदेव को ही भुलादो
अगर आपको प्यार का रस चखना है
तो अपने पति का पूरा पूरा ख्याल रखना है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक छोटी सी प्रार्थना
एक छोटी सी प्रार्थना
हे कमलनयन!
किसी कमल नयनी,सुकोमल,
सुमुखी सुंदरी के नयनों से,
मेरे नयन मिलवा दो
हे गिरिधारी!
अपने वक्श्थल पर,
द्वि गिरी धारण किये हुए,
यौवन से लदी,
किसी षोडसी कन्या से,
मेरा मिलन करवादो
हे चतुर्भुज!
किसी कोमल,कमनीय,
कमलनाल सी भुजाओं वाली,
कामिनी के करपाश में बंध कर,
मै भी चतुर्भुज हो जाऊं,एसा वर दो
हे हिरण्यमयी लक्ष्मी के नाथ,
किसी स्वर्णिम आभावाली,
स्वर्ण सुंदरी की स्वर्णिम मुस्कराहटों से,
मेरा जीवन भी स्वर्णिम कर दो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हे कमलनयन!
किसी कमल नयनी,सुकोमल,
सुमुखी सुंदरी के नयनों से,
मेरे नयन मिलवा दो
हे गिरिधारी!
अपने वक्श्थल पर,
द्वि गिरी धारण किये हुए,
यौवन से लदी,
किसी षोडसी कन्या से,
मेरा मिलन करवादो
हे चतुर्भुज!
किसी कोमल,कमनीय,
कमलनाल सी भुजाओं वाली,
कामिनी के करपाश में बंध कर,
मै भी चतुर्भुज हो जाऊं,एसा वर दो
हे हिरण्यमयी लक्ष्मी के नाथ,
किसी स्वर्णिम आभावाली,
स्वर्ण सुंदरी की स्वर्णिम मुस्कराहटों से,
मेरा जीवन भी स्वर्णिम कर दो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Sunday, September 2, 2012
एंड्रोयिड फोन
एंड्रोयिड फोन
मेरे पति ने जब से एंड्रोयिड फोन लिया है,
बस उसीसे हरदम चिपके रहते है
और तो और ,मुझे भी,एंड्रोयिड की तरह,
यूजर फ्रेंडली कहते है
कहते है इसके लिए चाहिये वाय फाय
और तुम तो खुद ही हो हाय फाय
इसे चार्ज करने में लगता हाई टाइम
और हरदम प्यार से चार्ज रहती हो तुम
ये फेस बुक पर दोस्तों से मिला सकता है
या बच्चों को गेम खिला सकता है
और तुम बच्चों को गेम भी खिला सकती हो
और घर भर को खाना भी खिला सकती हो
घर के काम धाम के साथ,तुम्हे प्यार करना भी आता है
और ये तो सिर्फ मन बहलाता है
ये वक्त काटने के लिए ठीक है,
पर मुझे तुम्हारा साथ ही ज्यादा सुहाता है
मैंने बोला आजकल आप बहुत बातें बनाने लगे है
जब से टच स्कीन की आदत पड़ गयी है,
आप मुझे बड़े प्यार से सहलाने लगे है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेरे पति ने जब से एंड्रोयिड फोन लिया है,
बस उसीसे हरदम चिपके रहते है
और तो और ,मुझे भी,एंड्रोयिड की तरह,
यूजर फ्रेंडली कहते है
कहते है इसके लिए चाहिये वाय फाय
और तुम तो खुद ही हो हाय फाय
इसे चार्ज करने में लगता हाई टाइम
और हरदम प्यार से चार्ज रहती हो तुम
ये फेस बुक पर दोस्तों से मिला सकता है
या बच्चों को गेम खिला सकता है
और तुम बच्चों को गेम भी खिला सकती हो
और घर भर को खाना भी खिला सकती हो
घर के काम धाम के साथ,तुम्हे प्यार करना भी आता है
और ये तो सिर्फ मन बहलाता है
ये वक्त काटने के लिए ठीक है,
पर मुझे तुम्हारा साथ ही ज्यादा सुहाता है
मैंने बोला आजकल आप बहुत बातें बनाने लगे है
जब से टच स्कीन की आदत पड़ गयी है,
आप मुझे बड़े प्यार से सहलाने लगे है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ट्रेन की खिड़की से क्या क्या देखूं ?
ट्रेन की खिड़की से क्या क्या देखूं ?
ट्रेन की खिड़की से झांकता हुआ,
मै सोचता हूँ कि मै क्या क्या देखूं?
अखबार के सफ़ेद कागज़ पर,
काली श्याही से छपी,लूटमार कि,
या ख़बरें सियासी देखूं
या धरती के आँगन में ,
दूर दूर तक फैली हरियाली देखूं
उन रेल कि पटरियों को देखूं,
जिनकी दूरियां ,
आपस में कभी ना मिल पाती है
या उनपर चलती हुई रेलगाड़ियाँ देखूं,
जो दूरियां मिटाती हुई,बिछड़ों को मिलाती है
ऊपर फैले हुए निर्जीव तारों के जाल को देखूं,
जिनमे बहती विद्युत् धारा,
रेल को गतिमान करती है
या पटरियों के वे जोइंट देखूं,
जहाँ से रेल,दलबदलू नेताओं कि तरह,
पटरियां बदलती है
पटरियों के किनारे,सुबह सुबह,
शंका निवारण करते हुए,
झुग्गी झोंपड़ी वासियों की कतार देखूं
या उनके पीछे खड़ी हुई,
उनका उपहास उडाती ,
अट्टालिकाओं का अंबार देखूं
मै इसी शशोपज में था कि,
पासवाली रेल लाइन पर सामने से,
तेज गति से एक रेल आती है
और विपरीत दिशाओं में जाने के कारण,
विरोधाभास उत्पन्न करती हुई,
दूनी गति का आभास कराती है
इसी विरोधाभास को देख कर लगता है,
क्यों बढती जा रही,
अमीरी और गरीबी के बीच की दूरियां है
ये तो कभी ना मिल सकने वाली,
रेल की पटरियां है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ट्रेन की खिड़की से झांकता हुआ,
मै सोचता हूँ कि मै क्या क्या देखूं?
अखबार के सफ़ेद कागज़ पर,
काली श्याही से छपी,लूटमार कि,
या ख़बरें सियासी देखूं
या धरती के आँगन में ,
दूर दूर तक फैली हरियाली देखूं
उन रेल कि पटरियों को देखूं,
जिनकी दूरियां ,
आपस में कभी ना मिल पाती है
या उनपर चलती हुई रेलगाड़ियाँ देखूं,
जो दूरियां मिटाती हुई,बिछड़ों को मिलाती है
ऊपर फैले हुए निर्जीव तारों के जाल को देखूं,
जिनमे बहती विद्युत् धारा,
रेल को गतिमान करती है
या पटरियों के वे जोइंट देखूं,
जहाँ से रेल,दलबदलू नेताओं कि तरह,
पटरियां बदलती है
पटरियों के किनारे,सुबह सुबह,
शंका निवारण करते हुए,
झुग्गी झोंपड़ी वासियों की कतार देखूं
या उनके पीछे खड़ी हुई,
उनका उपहास उडाती ,
अट्टालिकाओं का अंबार देखूं
मै इसी शशोपज में था कि,
पासवाली रेल लाइन पर सामने से,
तेज गति से एक रेल आती है
और विपरीत दिशाओं में जाने के कारण,
विरोधाभास उत्पन्न करती हुई,
दूनी गति का आभास कराती है
इसी विरोधाभास को देख कर लगता है,
क्यों बढती जा रही,
अमीरी और गरीबी के बीच की दूरियां है
ये तो कभी ना मिल सकने वाली,
रेल की पटरियां है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रेलवे के सफ़र का बदलाव
रेलवे के सफ़र का बदलाव
रेलवे के सफ़र में बदलाव कितना आ गया है
याद है पहले सफ़र में,निकलते थे जब कभी हम
पेटी और होल्डाल बिस्तर,साथ रखते थे सभी हम
पानी का जग,एक दो दिन का जरूरी साथ खाना
और भारी भीड़ में भी ट्रेन में घुसना,घुसाना
हवा वाली,बंद वाली,कांच वाली खिड़कियाँ थी
और नीचे सीट पर पटिया लगा या लकड़ियाँ थी
निकलता स्टीम इंजिन से धकाधक धुवाँ काला
और मिटटी के सकोरों में भरा चाय का प्याला
ट्रेन रुकते,प्याऊ नल पर,यात्रियों की जोरा जोरी
वो गरम छोले भठूरे,पूरी सब्जी और कचोडी
पर समय के साथ बदली ,रेलगाड़ी की कहानी
तेज गति चलती दुरंतो,और शताब्दी,राजधानी
लगा रहता सभी सीटों पर नरम गद्दा ,मुलायम
बिस्तर,तकिया और कम्बल,एसी का खुशनुमा मौसम
सर्व होता सीटों पर ही ,नाश्ता और खाना पीना
ट्रेन बिजली से चले,काला धुंवा उठता कभी ना
तेज गति से नापती है,दूरियां थोड़े समय मे
सरसराती दौड़ती है,सभी ट्रेने,एक लय में
केबिनों में लगे परदे,साज सज्जा ,सब नया है
रेलवे के सफ़र में बदलाव कितना आ गया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रेलवे के सफ़र में बदलाव कितना आ गया है
याद है पहले सफ़र में,निकलते थे जब कभी हम
पेटी और होल्डाल बिस्तर,साथ रखते थे सभी हम
पानी का जग,एक दो दिन का जरूरी साथ खाना
और भारी भीड़ में भी ट्रेन में घुसना,घुसाना
हवा वाली,बंद वाली,कांच वाली खिड़कियाँ थी
और नीचे सीट पर पटिया लगा या लकड़ियाँ थी
निकलता स्टीम इंजिन से धकाधक धुवाँ काला
और मिटटी के सकोरों में भरा चाय का प्याला
ट्रेन रुकते,प्याऊ नल पर,यात्रियों की जोरा जोरी
वो गरम छोले भठूरे,पूरी सब्जी और कचोडी
पर समय के साथ बदली ,रेलगाड़ी की कहानी
तेज गति चलती दुरंतो,और शताब्दी,राजधानी
लगा रहता सभी सीटों पर नरम गद्दा ,मुलायम
बिस्तर,तकिया और कम्बल,एसी का खुशनुमा मौसम
सर्व होता सीटों पर ही ,नाश्ता और खाना पीना
ट्रेन बिजली से चले,काला धुंवा उठता कभी ना
तेज गति से नापती है,दूरियां थोड़े समय मे
सरसराती दौड़ती है,सभी ट्रेने,एक लय में
केबिनों में लगे परदे,साज सज्जा ,सब नया है
रेलवे के सफ़र में बदलाव कितना आ गया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'