Thursday, March 1, 2012

चिंतन

    चिंतन
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                1
मैल जब मन का धुलेगा,तभी मन का मेल होगा
खुलेंगे संकोच बंधन, तभी खुल कर  खेल होगा
जिंदगी की परीक्षा है, सभी को देनी पड़ेगी,
कभी कोई पास होगा,कभी कोई  फ़ैल होगा
                   २
कदम कितने ही रखोगे, देख कर या भाल कर
नाचना सबको पडेगा ,वक़्त की हर ताल पर
छूट पल में जाएगा जग,आएगा  जब बुलावा,
व्यर्थ क्यों होते परेशां, यूं ही चिंता  पाल कर
                      ३
जरा सी चिंदी मिली,चूहा नशे में चूर  है
खोल कर दूकान कपडे की बड़ा मगरूर है
जरा सी उपलब्धियों पर,इसे इठलाओ नहीं,
बहुत बढ़ना है तुम्हे और अभी दिल्ली दूर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

चुनाव के बाद

चुनाव   के बाद
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         १
मिनिस्टर थे,हार कर के इलेक्शन  ऐसा  लगा
गये वो दिन ,जब कि मियां मारते थे  फ़ाकता
अब समझ में आ रहा है,जिंदगी का फलसफा,
सेज फूलों की गयी और चुभे कांटे ,खामखाँ
            २
गोपियाँ थी,मस्तियाँ थी,और थे संग ग्वाल बाल
खूब मचता था बिराज में,कृष्ण का  होली धमाल
द्वारका के धीश जब से बन गये है  कृष्ण जी,
औपचारिता निभाने को लगा  लेते बस  गुलाल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'