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Monday, March 5, 2012
परिवर्तन
जब जब मौसम बदला करता,सब में परिवर्तन आता है
लोग वही है,वो ही रिश्ते ,पर व्यवहार बदल जाता है
हवा वही है,सर्दी में जो,ठिठुराती थी सारे तन को
वो ही गर्मी में लू बन कर,जला रही सम्पूर्ण बदन को
वो ही धूप,भली लगती थी,जो सर्दी में बहुत सुहाती
गर्मी में वो ही चुभती है,जब अंग लगती,बदन जलाती
पानी वही जिसे छूने से,सर्दी में होती थी ठिठुरन
अब गर्मी में,उस पानी में,भीग तैरने को करता मन
अधिक ताप में भाप,बरफ बन जमता,होती अधिक शीत है
सूरत,सीरत,नाम बदलती,इस मौसम की यही रीत है
लोग वही पर पैसा पाकर,उनका नाम बदल जाता है
पहले था 'परस्या'फिर 'परसु','परसराम' फिर कहलाता है
होते है माँ बाप वही जो,बचपन में थे सबसे अच्छे
उन्हें बुढ़ापा जब आ जाता,तो ठुकरा देते है बच्चे
ऑंखें वही,अगर दुःख होता,जार जार आंसू ढलकाती
मगर ख़ुशी जब अतिशय होती,तो भी पानी से भर जाती
इसमें दोष नहीं कोई का,परिवर्तन नियम जीवन का
है ऋतू चक्र ,बदलता रहता,है अक्सर मिजाज़ मौसम का
चेहरा वही,कभी मुस्काता,तो अवसाद कभी छाता है
जब जब मौसम बदला करता ,सब में परिवर्तन आता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मूली के परांठे
मूली के परांठे
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फ़रवरी का ये महिना,फाग का मदमस्त मौसम
करवटें मौसम बदलता,सर्दियाँ ना हो रही कम
रात जागे देर तक थे,मुश्किलों से नींद आई
दुबक हम तुम सो रहे है,ओढ़ कर दुहरी रजाई
रात मूली के परांठे, खा लिए थे चार तुमने
बहुत हलचल मचाएगी,वायु तुम्हारे उदर में
यूं ही खर्राटे बहुत है,और मुश्किल लादना मत
मुंह ढके हम सो रहे है, रजाई में पादना मत
(बुरा ना मानो होली है)
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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फ़रवरी का ये महिना,फाग का मदमस्त मौसम
करवटें मौसम बदलता,सर्दियाँ ना हो रही कम
रात जागे देर तक थे,मुश्किलों से नींद आई
दुबक हम तुम सो रहे है,ओढ़ कर दुहरी रजाई
रात मूली के परांठे, खा लिए थे चार तुमने
बहुत हलचल मचाएगी,वायु तुम्हारे उदर में
यूं ही खर्राटे बहुत है,और मुश्किल लादना मत
मुंह ढके हम सो रहे है, रजाई में पादना मत
(बुरा ना मानो होली है)
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'