नींद
बिन बुलाये चली आती,नींद ऐसी मेहमां
किन्तु ये होती नहीं है,हर किसी पे मेहरबां
नरम बिस्तर रेशमी,आना नहीं,ना आयेगी
भरी बस या ट्रेन में भी,आना है,आ जायेगी
जब किसी से प्यार होता,और दिल जाता है जुड़
बड़े लम्बे पंख फैला,नींद फिर जाती है उड़
देखने जिसकी झलक को,तरसते है ये नयन
उन्हें आँखों में बसाती,नींद ला सुन्दर सपन
बहुत जब बेचैन होता,मन किसी की याद में
नींद भी आती नहीं है,उस विरह की रात में
और मिलन की रात में भी,नींद उड़ जाती कहीं
हो मिलन दो प्रेमियों का,बीच में आती नहीं
उठ रहा हो ज्वार दिल में,और प्रीतम संग है
प्रीत के उन मधु क्षणों में,नहीं करती तंग है
ये थकन की प्रेमिका है,बंद होते ही पलक
एक मुग्धा नायिका सी,चली आती बेझिझक
है बडी बहुमूल्य निद्रा,स्वर्ण के भण्डार से
आती है तो कहते सोना आ गया है प्यार से
गरीबों की दोस्त,खुशकिस्मत बहुत होते है वो
चैन सोने की नहीं ,पर चैन से सोते है वो
अमीरों से मगर इसका बैर है दिन रैन का
पास में सोना बहुत पर नहीं सोना चैन का
नींद है चाहत सभी की,दोस्त के मानिंद है
नींद क्या है,क्या बताएं,नींद तो बस नींद है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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Wednesday, June 20, 2012
सज,संवर मत जाओ छत पर
सज,संवर मत जाओ छत पर
इस तरह तुम सज संवर कर,नहीं जाया करो छत पर
मुग्ध ना हो जाए चंदा , देख कर ये रूप सुन्दर
है बड़ा आशिक तबियत,दिखा कर सोलह कलायें
लगे ना कोशिश करने , किस तरह् तुमको रिझाये
और ये सारे सितारे, टिमटिमा ना आँख मारे
छेड़खानी लगे करने ,पवन छूकर अंग सारे
है बहुत बदमाश ये तम,पा तुम्हे छत पर अकेला
लाभ अनुचित ना उठाले ,और करदे कुछ झमेला
देख कर कुंतल तुम्हारे,कुढ़े ना दल बादलों के
लाख गुलाबी लब,भ्रमर, गुंजन करें ना पागलों से
समंदर मारे उंछालें ,रात पूनम की समझ कर
इसलिए जाओ न छत पर,रात में तुम सज संवर कर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इस तरह तुम सज संवर कर,नहीं जाया करो छत पर
मुग्ध ना हो जाए चंदा , देख कर ये रूप सुन्दर
है बड़ा आशिक तबियत,दिखा कर सोलह कलायें
लगे ना कोशिश करने , किस तरह् तुमको रिझाये
और ये सारे सितारे, टिमटिमा ना आँख मारे
छेड़खानी लगे करने ,पवन छूकर अंग सारे
है बहुत बदमाश ये तम,पा तुम्हे छत पर अकेला
लाभ अनुचित ना उठाले ,और करदे कुछ झमेला
देख कर कुंतल तुम्हारे,कुढ़े ना दल बादलों के
लाख गुलाबी लब,भ्रमर, गुंजन करें ना पागलों से
समंदर मारे उंछालें ,रात पूनम की समझ कर
इसलिए जाओ न छत पर,रात में तुम सज संवर कर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कल के लिये
कल के लिये
आस है कल अगर फल की ,आज पौधे रोंपने है
विरासत के वजीफे,नव पीढ़ियों को सौंपने है
मार कर के कुंडली ,कब तलक बैठे तुम रहोगे
सभी सत्ता ,सम्पदा,सुख को समेटे तुम रहोगे
थक गये हो,पक गये हो,हो गये बेहाल से तुम
टपक सकते हो कभी भी,टूट करके डाल से तुम
छोड़ दो ये सभी बंधन, मोह, माया में भटकना
एक दिन तस्वीर बन,दीवार पर तुमको लटकना
वानप्रस्थी इस उमर में,भूल जाओ कामनायें
प्यार सब जी भर लुटा दो,बाँट दो सदभावनाएँ
याद रख्खे पीढियां,कुछ काम एसा कर दिखाओ
कमाई कर ली बहुत , अब नाम तुम अपना कमाओ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आस है कल अगर फल की ,आज पौधे रोंपने है
विरासत के वजीफे,नव पीढ़ियों को सौंपने है
मार कर के कुंडली ,कब तलक बैठे तुम रहोगे
सभी सत्ता ,सम्पदा,सुख को समेटे तुम रहोगे
थक गये हो,पक गये हो,हो गये बेहाल से तुम
टपक सकते हो कभी भी,टूट करके डाल से तुम
छोड़ दो ये सभी बंधन, मोह, माया में भटकना
एक दिन तस्वीर बन,दीवार पर तुमको लटकना
वानप्रस्थी इस उमर में,भूल जाओ कामनायें
प्यार सब जी भर लुटा दो,बाँट दो सदभावनाएँ
याद रख्खे पीढियां,कुछ काम एसा कर दिखाओ
कमाई कर ली बहुत , अब नाम तुम अपना कमाओ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'