ये बुड्डा मॉडर्न हो गया
उम्र का आखरी पड़ाव है करीब आया,
मज़ा भपूर मोडर्न होके मै उठाता हूँ
पहन कर जींस,कसी कसी हुई टी शर्टें,
दाल रोटी के बदले रोज पीज़ा खाता हूँ
अपने उजले सफ़ेद बालों को रंग कर काला,
मोड सी स्टाईल में ,उनको सजा देता हूँ
बड़े से काले से गोगल को पहन,मै खुलकर,
ताकने ,झाँकने का खूब मज़ा लेता हूँ
नमस्ते,रामराम या प्रणाम भूल गया,
'हाय 'और ' बाय' से अब बातचीत होती है
फाग का रंग नहीं ,अब तो 'वेलेनटाइन डे' पर ,
लाल गुलाब ही देकर के प्रीत होती है
वैसे तो थोड़ी समझ में मुझे कम आती है,
आजकल देखने लगा हूँ फिलम अंग्रेजी
उमर के साथ अगर हो रहा हूँ मै मॉडर्न,
लोग क्यों कहते हैं कि हो रहा हूँ मै क्रेजी
सवेरे जाता हूँ जिम,सायकिलिंग भी करता हूँ,
कभी स्टीम कभी सोना बाथ लेता हूँ
और स्विमिंग पूल जाता तैरने के लिए,
अपनी बुढिया को भी अपने साथ लेता हूँ
बड़ी कोशिश है कि फिट रहूँ,जवान रहूँ,
जाके मै पार्लर में फेशियल भी करता हूँ
आदमी सोचता है जैसा वैसा रहता है,
बस यही सोच कर ,ये सारे शगल करता हूँ
घर में मै,आजकल,न कुरता,पजामा ,लुंगी,
पहनता स्लीव लेस शर्ट और बरमूडा
सैर करता हूँ विदेशों कि,घूमता,फिरता,
तभी तो लगता टनाटन है तुमको ये बुड्डा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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Thursday, August 16, 2012
सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है
सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है
बेटियां,
यूं तो माइके में,नोर्मल सी ,
हंसी ख़ुशी रहती है,
पर गले मिल मिल कर रोती है,
जब ससुराल जाती है
राजनेतिक पार्टियाँ,
यूं तो दुनिया भर के टेक्स लगाती है,
पर चुनाव के पहले,
राहत का अम्बार लुटाती,
सुनहरे सपने दिखाती है
दीपक की लौ ,
यूं तो नोर्मल सी जलती रहती,
पर जब बुझने को होती,
बहुत चमक देती है,
फडफडाती है वैसे ही नींद सारी रात ,
यूं ही आती जाती रहती है ,
पर सुबह जब,
उठने का समय होता है
सवेरे नींद बड़ी जोर से ही आती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'