आपकी परछाईयां
सुबह सुबह जब उगता है सूरज,
परछाईयाँ लम्बी होती है
उसी तरह ,जीवन का सूरज उगता है,
यानी की बचपन,
आप सभी को डेक कर मुस्काते है
किलकारियां भरते है
खुशियाँ लुटाने में,
कोई भेदभाव नहीं करते है
आपकी मुस्कान का दायरा,
सुबह की परछाईं की तरह,
बड़ा लम्बा होता है
और दोपहरी में,
याने जीवन के मध्यान्ह में,
आपकी परछाईं,आपके नीचे,
अपने में ही सिमट कर रह जाती है
वैसे ही आप जब,
अपने उत्कर्ष की चरमता पर होते है,
अहम से अभिभूत होकर,
स्वार्थ में लिपटे हुए,
सिर्फ अपने आप को ही देखते है
और दोपहर की परछांई की तरह,
अपने में ही सिमट कर रह जाते है
और शाम को,
जब सूरज ढलने को होता है,
आपकी परछांई,लम्बी होती जाती है,
वैसे ही जब जीवन की शाम आती है,
आपकी सोच बदल जाती है
आपकी भावनाओं का दायरा,
पुरानी यादों की तरह,
उमड़ते जज्बातों की तरह,
तन्हाई भरी रातों की तरह,
लम्बा होता ही जाता है
जब तक सूरज ना ढल जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
http://blogsmanch.blogspot.com/" target="_blank"> (ब्लॉगों का संकलक)" width="160" border="0" height="60" src="http://i1084.photobucket.com/albums/j413/mayankaircel/02.jpg" />
Thursday, September 27, 2012
अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो देख तू
अपने मन की कोई खिड़की खोल कर तो देख तू
अपने मन की कोई खिड़की,खोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे , बोल कर तो देख तू
मिटा दे मायूसियों को, मुदित होकर मुस्करा
खोल मन की ग्रंथियों को,हाथ तू आगे बढ़ा
सैकड़ों ही हाथ तुझसे ,लिपट कर मिल जायेंगे
और हजारों फूल जीवन में तेरे खिल जायेंगे
महकने जीवन लगेगा,खुशबुओं से प्यार की
जायेंगी मिल ,तुझे खुशियाँ,सभी इस संसार की
अपने जीवन में मधुरता,घोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे , बोल कर तो देख तू
धुप सूरज की सुहानी सी लगेगी ,कुनकुनी
तन बदन उष्मित करेगी,प्यार से होगी सनी
और रातों को चंदरमा,प्यार बस बरसायेगा
मधुर शीतल,चांदनी में,मन तेरा मुस्काएगा
मंद शीतल हवायें, सहलायेगी तेरा बदन
तुझे ये दुनिया लगेगी ,महकता सा एक चमन
घृणा ,कटुता,डाह ,इर्षा,मन के बाहर फेंक तू
प्यार के दो बोल मीठे ,बोल कर तो देख तू
क्यों सिमट कर,दुबक कर,बैठा हुआ तू खोह में
स्वयं को उलझा रखा है,व्यर्थ माया मोह में
कूपमंडूक,कुए से ,बहार निकल कर देख ले
लहलहाते सरोवर में ,भी उछल कर देख ले
किसी को अपना बना कर,डूब जा तू प्यार में
सभी कुछ तुझको सुहाना लगेगा संसार में
उलझनों के सामने मत,यूं ही घुटने टेक तू
प्यार के दो बोल मीठे, बोल कर तो देख तू
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अपने मन की कोई खिड़की,खोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे , बोल कर तो देख तू
मिटा दे मायूसियों को, मुदित होकर मुस्करा
खोल मन की ग्रंथियों को,हाथ तू आगे बढ़ा
सैकड़ों ही हाथ तुझसे ,लिपट कर मिल जायेंगे
और हजारों फूल जीवन में तेरे खिल जायेंगे
महकने जीवन लगेगा,खुशबुओं से प्यार की
जायेंगी मिल ,तुझे खुशियाँ,सभी इस संसार की
अपने जीवन में मधुरता,घोल कर तो देख तू
प्यार के दो बोल मीठे , बोल कर तो देख तू
धुप सूरज की सुहानी सी लगेगी ,कुनकुनी
तन बदन उष्मित करेगी,प्यार से होगी सनी
और रातों को चंदरमा,प्यार बस बरसायेगा
मधुर शीतल,चांदनी में,मन तेरा मुस्काएगा
मंद शीतल हवायें, सहलायेगी तेरा बदन
तुझे ये दुनिया लगेगी ,महकता सा एक चमन
घृणा ,कटुता,डाह ,इर्षा,मन के बाहर फेंक तू
प्यार के दो बोल मीठे ,बोल कर तो देख तू
क्यों सिमट कर,दुबक कर,बैठा हुआ तू खोह में
स्वयं को उलझा रखा है,व्यर्थ माया मोह में
कूपमंडूक,कुए से ,बहार निकल कर देख ले
लहलहाते सरोवर में ,भी उछल कर देख ले
किसी को अपना बना कर,डूब जा तू प्यार में
सभी कुछ तुझको सुहाना लगेगा संसार में
उलझनों के सामने मत,यूं ही घुटने टेक तू
प्यार के दो बोल मीठे, बोल कर तो देख तू
मदन मोहन बाहेती'घोटू'