गिरावट
मंहगाई गिरती है,लोग खुश होते है
संसेक्स गिरता है कई लोग रोते है
पारा जब गिरता है,हवा सर्द होती है
पाला जब गिरता है ,फसल नष्ट होती है
सरकार गिरती है तो एसा होता है
कोई तो हँसता है तो कोई रोता है
आंसू जब गिरते है,आँखों से औरत की
शुरुवात होती है ,किसी महाभारत की
लहराते वो आते ,पल्लू गिराते है
बिजली सी गिरती जब वो मुस्कराते है
शालीनता गिरती है,वस्त्र घटा करते है
आदर्श गिरते जब वस्त्र हटा करते है
लालच और लिप्सा से ,मानव जब घिरता है
पतन के गड्डे में,अँधा हो गिरता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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Wednesday, December 5, 2012
पेन्सिल मै
पेन्सिल मै
प्रवृत्ति उपकार की है,भले सीसा भरा दिल में
पेन्सिल मै
मै कनक की छड़ी जैसी हूँ कटीली
किन्तु काया ,काष्ठ सी ,कोमल ,गठीली
छीलते जब मुझे ,चाकू या कटर से
एक काली नोक आती है निकल के
जो कि कोरे कागजों पर हर्फ़ लिखती
भावनाएं,पहन जामा, शब्द दिखती
प्रेम पत्रों में उभरता ,प्यार मेरा
नुकीलापन ही बना श्रृगार मेरा
मोतियों से शब्द लिखती,काम आती बहुत,छिल, मै
पेन्सिल मै
शब्द लिखना ,सभी को मैंने सिखाया
साक्षर कितने निरक्षर को बनाया
कविता बन,कल्पनाओं को संवारा
ज्ञान का सागर ,किताबों में उतारा
कलाकृतियाँ ,कई ,कागज़ पर बनायी
आपके हित,स्वयं की हस्ती मिटाई
बांटने को ज्ञान, मै , घिसती रही हूँ
छिली,छिलती रही पर लिखती रही हूँ
कर दिया उत्सर्ग जीवन,नहीं कोई कसक दिल में
पेन्सिल मै
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
प्रवृत्ति उपकार की है,भले सीसा भरा दिल में
पेन्सिल मै
मै कनक की छड़ी जैसी हूँ कटीली
किन्तु काया ,काष्ठ सी ,कोमल ,गठीली
छीलते जब मुझे ,चाकू या कटर से
एक काली नोक आती है निकल के
जो कि कोरे कागजों पर हर्फ़ लिखती
भावनाएं,पहन जामा, शब्द दिखती
प्रेम पत्रों में उभरता ,प्यार मेरा
नुकीलापन ही बना श्रृगार मेरा
मोतियों से शब्द लिखती,काम आती बहुत,छिल, मै
पेन्सिल मै
शब्द लिखना ,सभी को मैंने सिखाया
साक्षर कितने निरक्षर को बनाया
कविता बन,कल्पनाओं को संवारा
ज्ञान का सागर ,किताबों में उतारा
कलाकृतियाँ ,कई ,कागज़ पर बनायी
आपके हित,स्वयं की हस्ती मिटाई
बांटने को ज्ञान, मै , घिसती रही हूँ
छिली,छिलती रही पर लिखती रही हूँ
कर दिया उत्सर्ग जीवन,नहीं कोई कसक दिल में
पेन्सिल मै
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
भगवान और गूगल अर्थ
भगवान और गूगल अर्थ
'फेसबुक 'की तरह होता खुदा का दीदार है,
मंदिरों में हमें दिखता ,देव का दरबार है
बजा कर मंदिर में घंटी,फोन करते है उसे ,
बात सबके दिल की सुनता ,वो बड़ा दिलदार है
मन्त्र से और श्लोक से हम ,'ट्विट ' करते है उसे ,
आरती 'यू ट्यूब 'से करता सदा स्वीकार है
भले 'गूगल अर्थ'बोलो या कि तुम 'याहू'कहो,
'अर्थ'ये उसने रची है, उसी का संसार है
घोटू
'फेसबुक 'की तरह होता खुदा का दीदार है,
मंदिरों में हमें दिखता ,देव का दरबार है
बजा कर मंदिर में घंटी,फोन करते है उसे ,
बात सबके दिल की सुनता ,वो बड़ा दिलदार है
मन्त्र से और श्लोक से हम ,'ट्विट ' करते है उसे ,
आरती 'यू ट्यूब 'से करता सदा स्वीकार है
भले 'गूगल अर्थ'बोलो या कि तुम 'याहू'कहो,
'अर्थ'ये उसने रची है, उसी का संसार है
घोटू
परछाई
परछाई
सुबह हुई जब उगा सूरज ,मै निकला ,मैंने देखा ,
चली आ रही ,पीछे पीछे ,वो मेरी परछाईं थी
सांझ हुई और सूरज डूबा ,जब छाया अंधियारा तो,
मैंने पाया ,साथ छोड़ कर ,चली गयी परछाईं थी
रात पड़े ,जब हुई रौशनी ,सभी दिशा में बल्ब जले,
मैंने देखा ,एक नहीं,अब चार चार परछाईं थी
मै तो एक निमित्त मात्र था,सारा खेल रौशनी का,
जब तक जितनी रही रौशनी ,तब उतनी परछाईं थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सुबह हुई जब उगा सूरज ,मै निकला ,मैंने देखा ,
चली आ रही ,पीछे पीछे ,वो मेरी परछाईं थी
सांझ हुई और सूरज डूबा ,जब छाया अंधियारा तो,
मैंने पाया ,साथ छोड़ कर ,चली गयी परछाईं थी
रात पड़े ,जब हुई रौशनी ,सभी दिशा में बल्ब जले,
मैंने देखा ,एक नहीं,अब चार चार परछाईं थी
मै तो एक निमित्त मात्र था,सारा खेल रौशनी का,
जब तक जितनी रही रौशनी ,तब उतनी परछाईं थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'