दुनिया -मिठाई की दूकान
दुनिया क्या है ,मै तो कह्ता,यह दूकान मिठाई की ,
ले कढाई ,तल रहा जलेबी, हलवाई ,ऊपरवाला
हर इंसान,जलेबी जैसा ,अलग अलग आकारों का,
जीवन रस की ,मधुर चासनी में ,डूबा है,मतवाला
गरम गरम ,रस भरी ,कुरकुरी,मन करता है खाने को ,
मगर रोकता 'डाईबिटिज'का डर ,कहता ,मत खा ,मत खा
कल जो होना है देखेंगे,मगर आज हम क्यों तरसें,
मन मसोस कर ,क्यों जीता है,जी भर इसका मज़ा उठा
जीवन रस से भरा हुआ है,राजभोग,रसगुल्ला है ,
बर्फी,कलाकंद सा मीठा ,या फिर फीनी घेवर सा
इसका कोई छोर नहीं है ,ये तो है लड्डू जैसा ,
खालो,वरना लुढ़क जाएगा ,ये प्रसाद है,इश्वर का
बूंदी बूंदी मिल कर जैसे,बनता लड्डू बूंदी का ,
वैसे ही बनता समाज है,हम सब बूंदी के दाने
रबड़ी ,मोह माया जैसी है ,लच्छेदार ,स्वाद वाली,
उंगली डूबा डूबा जो चाटे ,इसका स्वाद वही जाने
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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Thursday, March 21, 2013
मै बूढा हूँ
नाना रूप धरे है मैंने ,मामा था अब नाना हूँ
कभी द्वारकाधीश कृष्ण था,अब तो विप्र सुदामा हूँ
दादागिरी जवानी में की ,अब असली में दादा हूँ
घोड़े जैसा चला ढाई घर ,अब छोटा सा प्यादा हूँ
फेंका गया किसी कोने में ,मै तो करकट कूड़ा हूँ
बहुत अवांछित और उपेक्षित,मै बुजुर्ग हूँ,बूढा हूँ
जीवन भर के उपकारों का,यही मिला प्रतिफल मुझको
तुम भी शायद ,भोगोगे ये,बूढा होना कल तुमको
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नाना रूप धरे है मैंने ,मामा था अब नाना हूँ
कभी द्वारकाधीश कृष्ण था,अब तो विप्र सुदामा हूँ
दादागिरी जवानी में की ,अब असली में दादा हूँ
घोड़े जैसा चला ढाई घर ,अब छोटा सा प्यादा हूँ
फेंका गया किसी कोने में ,मै तो करकट कूड़ा हूँ
बहुत अवांछित और उपेक्षित,मै बुजुर्ग हूँ,बूढा हूँ
जीवन भर के उपकारों का,यही मिला प्रतिफल मुझको
तुम भी शायद ,भोगोगे ये,बूढा होना कल तुमको
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उम्र बुढापे की कमाल है
बचपन में मन होता निश्छल
हंसता एक पल,रोता एक पल
जब अबोध बालक मुस्काता
उस पर प्यार सभी को आता
फिर किशोर वय में भी अक्सर
बोझ पढाई का है मन पर
और जवानी है जब आती
जीवन में खुशिया छा जाती
कैसे खायें और कमायें
मन में रहती है चिंतायें
ऐसे ही कट जाता यौवन
बहुत तरंगित तन,चिंतित मन
करते हम प्रयास है जी भर
बस जाए संतानों के घर
हमें बुढ़ापा आते आते
सबके अपने घर बस जाते
घर में छा जाता सूनापन
खाली खाली लगता जीवन
तन पड़ने लगता है ढीला
हो जाता मन बहुत रंगीला
उम्र बुढ़ापे की जब आती
असली तभी जवानी छाती
मन चाहे करना धमाल है
उम्र बुढ़ापे की भी कमाल है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बचपन में मन होता निश्छल
हंसता एक पल,रोता एक पल
जब अबोध बालक मुस्काता
उस पर प्यार सभी को आता
फिर किशोर वय में भी अक्सर
बोझ पढाई का है मन पर
और जवानी है जब आती
जीवन में खुशिया छा जाती
कैसे खायें और कमायें
मन में रहती है चिंतायें
ऐसे ही कट जाता यौवन
बहुत तरंगित तन,चिंतित मन
करते हम प्रयास है जी भर
बस जाए संतानों के घर
हमें बुढ़ापा आते आते
सबके अपने घर बस जाते
घर में छा जाता सूनापन
खाली खाली लगता जीवन
तन पड़ने लगता है ढीला
हो जाता मन बहुत रंगीला
उम्र बुढ़ापे की जब आती
असली तभी जवानी छाती
मन चाहे करना धमाल है
उम्र बुढ़ापे की भी कमाल है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
काहे बखेड़ा करते है
काहे बखेड़ा करते है
मोह माया के चक्कर में हम,मन को मैला करते है
खुश भी होते,परेशान भी,मुश्किल झेला करते है
ऊपर चढ़ते है इठला कर,झटके से नीचे गिरते ,
खेल सांप का और सीडी का ,हरदम खेला करते है
कोई जरा बुराई करदे ,तो उतरा करता चेहरा ,
कोई जब तारीफ़ कर देता,खुश हो फैला करते है
सब से आगे बढ़ने की है जिद हममे इतनी रहती,
सभी परायों और अपनों को,पीछे ठेला करते है
बिना सही रस्ता पहचाने ,पतन गर्द में गिर जाते,
बिना अर्थ जीवन का जाने,व्यर्थ झमेला करते है
खाली हाथों आये थे और खाली हाथों जायेंगे,
कुछ भी साथ नहीं जाता पर तेरा मेरा करते है
'घोटू'जितना भी जीवन है,हंसी ख़ुशी जी भर जी लें ,
उठक पटक में उलझा खुद को,काहे बखेड़ा करते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मोह माया के चक्कर में हम,मन को मैला करते है
खुश भी होते,परेशान भी,मुश्किल झेला करते है
ऊपर चढ़ते है इठला कर,झटके से नीचे गिरते ,
खेल सांप का और सीडी का ,हरदम खेला करते है
कोई जरा बुराई करदे ,तो उतरा करता चेहरा ,
कोई जब तारीफ़ कर देता,खुश हो फैला करते है
सब से आगे बढ़ने की है जिद हममे इतनी रहती,
सभी परायों और अपनों को,पीछे ठेला करते है
बिना सही रस्ता पहचाने ,पतन गर्द में गिर जाते,
बिना अर्थ जीवन का जाने,व्यर्थ झमेला करते है
खाली हाथों आये थे और खाली हाथों जायेंगे,
कुछ भी साथ नहीं जाता पर तेरा मेरा करते है
'घोटू'जितना भी जीवन है,हंसी ख़ुशी जी भर जी लें ,
उठक पटक में उलझा खुद को,काहे बखेड़ा करते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अविरल जीवन
अविरल जीवन
जल से बादल,बादल से जल
मेरा जीवन चलता अविरल
सुख आते है,मन भाते है
संकट आते,टल जाते है
कभी गरजना भी पड़ता है
कभी कड़कना भी पड़ता है
कभी हवा में उड़ता चंचल
जल से बादल ,बादल से जल
कभी रुई सा उजला,छिछला
विचरण करता हूँ मै पगला
कभी प्रसव पीड़ा में काला
होता जल बरसाने वाला
घुमड़ घुमड़ छाता धरती पर
जल से बादल,बादल से जल
उष्मा से निज रूप बदलता
तप्त धरा को शीतल करता
उसे हरी चूनर पहराता
विकसा बीज,खेत लहराता
बहती नदिया,भरे सरोवर
जल से बादल,बादल से जल
मदन मोहन बाहेती'घोटू;
जल से बादल,बादल से जल
मेरा जीवन चलता अविरल
सुख आते है,मन भाते है
संकट आते,टल जाते है
कभी गरजना भी पड़ता है
कभी कड़कना भी पड़ता है
कभी हवा में उड़ता चंचल
जल से बादल ,बादल से जल
कभी रुई सा उजला,छिछला
विचरण करता हूँ मै पगला
कभी प्रसव पीड़ा में काला
होता जल बरसाने वाला
घुमड़ घुमड़ छाता धरती पर
जल से बादल,बादल से जल
उष्मा से निज रूप बदलता
तप्त धरा को शीतल करता
उसे हरी चूनर पहराता
विकसा बीज,खेत लहराता
बहती नदिया,भरे सरोवर
जल से बादल,बादल से जल
मदन मोहन बाहेती'घोटू;