Thursday, March 28, 2013

तलाश

            तलाश

मै तो दर दर भटक रहा था
गिरता पड़ता अटक रहा था
इधर झांकता,उधर  झांकता
सड़कों पर था धूल  फांकता 
गाँव गाँव द्वारे द्वारे   में
मंदिर  मस्जिद , गुरद्वारे में
फूलों में  ,कलियों,में ढूँढा
पगडण्डी,गलियों में ढूंढा
मित्रों में ,अपने प्यारों में
कितने ही रिश्तेदारों में
कुछ जानो में ,अनजानो में 
सभी वर्ण  के इंसानों में
भजन,कीर्तन के गानों में
युवा हो रही संतानों में
इस तलाश ने बहुत सताया
लेकिन फिर भी ढूंढ न पाया
नहीं कहीं भी ,लगा पता था
मै  'अपनापन 'ढूंढ रहा था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मज़ा होली का

       मज़ा होली का

सुघड  पड़ोसन ,कितनी सुन्दर ,आती जाती,मुस्काती है
भले तुम्हारे ,मन को भाती ,पर भाभीजी ,कहलाती है
लेकिन जब होली आती है ,मिट जाता ,मन का मलाल है
उनके कोमल से गालों पर ,जब हम मल सकते गुलाल है
एक साल में,एक बार ही ,मिट सकती ,मन की भड़ास है
होली का यह पर्व इसलिये ,मन को भाता ,बड़ा  ख़ास है
घोटू