घोटू के छंद
एक कथा-एक व्यथा
१
एक नट रोज रोज ,खेल जब दिखाता तो,
बेटी थी जवान जिसे रस्सी पे चलाता था
अगर गिरी तो तेरी ,गधे से कर दूंगा शादी ,
बार बार बिटिया को ,डर ये दिखाता था
कभी तो गिरेगी बेटी,शादी होगी उसके संग,
नट का गधा बेचारा ,आस ये लगाता था
बस इसी लालच में ही,थोड़ा सा ही भूसा खाकर ,
दिन भर ,ढेर सारा ,बोझा वो उठाता था
२
नट के ही खेल जैसा ,आज का है राज काज ,
सूखा भूसा खाते ,कब पेट भर के खायेंगे
सहे मंहगाई बोझ,नट के गधे से रोज,
आस हम लगा के बैठे ,अच्छे दिन आयेंगे
नट की बेटी की तरह ,गिरेगी ये 'गवर्नमेंट '
खुशियों से होगी शादी ,हम मुस्कायेंगे
बड़े ही गधे थे हम , खाते अब है ये कसम ,
नट के झांसे में नहीं ,और अब आयेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक कथा-एक व्यथा
१
एक नट रोज रोज ,खेल जब दिखाता तो,
बेटी थी जवान जिसे रस्सी पे चलाता था
अगर गिरी तो तेरी ,गधे से कर दूंगा शादी ,
बार बार बिटिया को ,डर ये दिखाता था
कभी तो गिरेगी बेटी,शादी होगी उसके संग,
नट का गधा बेचारा ,आस ये लगाता था
बस इसी लालच में ही,थोड़ा सा ही भूसा खाकर ,
दिन भर ,ढेर सारा ,बोझा वो उठाता था
२
नट के ही खेल जैसा ,आज का है राज काज ,
सूखा भूसा खाते ,कब पेट भर के खायेंगे
सहे मंहगाई बोझ,नट के गधे से रोज,
आस हम लगा के बैठे ,अच्छे दिन आयेंगे
नट की बेटी की तरह ,गिरेगी ये 'गवर्नमेंट '
खुशियों से होगी शादी ,हम मुस्कायेंगे
बड़े ही गधे थे हम , खाते अब है ये कसम ,
नट के झांसे में नहीं ,और अब आयेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'