मैके में बीबी हो
और बंद टी वी हो ,
घर भर में चुप्पी हो,
मन नहीं लगता
सजी हुई थाली हो
पेट पर न खाली हो
तो कुछ भी खाने में
मन नहीं लगता
नयन मिले कोई संग
चढ़ता जब प्यार रंग,
तो कुछ भी करने में,
मन नहीं लगता
मन चाहे ,नींद आये
सपनो में वो आये
नींद मगर उड़ जाती ,
मन नहीं लगता
जवानी की सब बातें
बन जाती है यादें
क्या करें बुढ़ापे में,
मन नहीं लगता
साथ नहीं देता तन
भटकता ही रहता मन
अब तो इस जीवन में
मन नहीं लगता
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'