प्रगति और रूढ़ियाँ
पथप्रदर्शक,ज्ञानवर्धक,यंत्र छोटा सा मगर ,
दूर बैठे प्रियजनों से मिलाता ,सन्देश देता
छोटे से गागर में जैसे कोई सागर सा भरा हो ,
इसी कारण आज मोबाइल बना ,सबका चहेता
उँगलियों से अब कलम का पकड़ना कम हो रहा,
मोबाईल स्क्रीन पर सब उंगलियां है फेरते
सुबह उठ के 'फेस 'अपना चाहे देखे या नहीं,
सबसे पहले मोबाईल पर ,'फेस बुक'है देखते
प्रगति हमने बहुत कर ली ,हो रहे है आधुनिक,
चन्द्रमा ,मंगल ग्रहों पर रखा हमने हाथ है
रूढ़िवादी सोच लेकिन और पुरानी भ्रांतियां ,
आज भी चिपकी हुई, रहती हमारे साथ है
'रेड लाईट 'पर भले ही ,हम रुकें या ना रुकें,
बिल्ली रास्ता काट देती,झट से रुक जाते है हम
कोई भी शुभ कार्य हो या जा रहे हो हम कहीं,
छींक जो देता है कोई ,तो सहम जाते कदम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पथप्रदर्शक,ज्ञानवर्धक,यंत्र छोटा सा मगर ,
दूर बैठे प्रियजनों से मिलाता ,सन्देश देता
छोटे से गागर में जैसे कोई सागर सा भरा हो ,
इसी कारण आज मोबाइल बना ,सबका चहेता
उँगलियों से अब कलम का पकड़ना कम हो रहा,
मोबाईल स्क्रीन पर सब उंगलियां है फेरते
सुबह उठ के 'फेस 'अपना चाहे देखे या नहीं,
सबसे पहले मोबाईल पर ,'फेस बुक'है देखते
प्रगति हमने बहुत कर ली ,हो रहे है आधुनिक,
चन्द्रमा ,मंगल ग्रहों पर रखा हमने हाथ है
रूढ़िवादी सोच लेकिन और पुरानी भ्रांतियां ,
आज भी चिपकी हुई, रहती हमारे साथ है
'रेड लाईट 'पर भले ही ,हम रुकें या ना रुकें,
बिल्ली रास्ता काट देती,झट से रुक जाते है हम
कोई भी शुभ कार्य हो या जा रहे हो हम कहीं,
छींक जो देता है कोई ,तो सहम जाते कदम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'