Saturday, July 25, 2015

मैं तुम्हारा मीत रहूंगा

                मैं तुम्हारा मीत  रहूंगा

चाहे तुम मुझको अपना समझो ना समझो,
                पर जीवन भर ,मैं तुम्हारा मीत  रहूंगा
तुम बरबस ही अपने होठों से छू लगी ,
                मधुर मिलन का प्यारा प्यारा गीत रहूँगा
जिसकी सरगम दूर करेगी सारे गम को ,
               मैं मन मोहक,वही मधुर संगीत रहूँगा  
जिसकी कलकल में हरपल जीवन होता है,
               मै गंगा सा पावन  और पुनीत  रहूँगा
पहना तुमको हार गुलाबी वरमाला का ,
             मैं कैसे भी , ह्रदय तुम्हारा जीत रहूँगा
निज सुरभि से महका दूंगा तेरा जीवन ,
              सदा तुम्हारे दिल में बन कर प्रीत रहूँगा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हम कितने पागल है

         हम कितने पागल है

बुढ़ापे में अपने को परेशान करते हैं 
बीते हुए जमाने को  याद करते हैं 
संयम से संभल संभल ,रहते  हरपल हैं  
सचमुच  हम कितने पागल हैं 
अरे बीते जमाने में क्या था ,
दिन भर की खटपट
गृहस्थी का झंझट
कमाई के लिए भागदौड़
आगे बढ़ने की होड़
उस जमाने में हमने जो भी जीवन जिया
अपने लिए कब जिया
सदा दूसरों के लिए जिया
इसलिए वो ज़माना औरों का था ,
हमारा ज़माना आज है
आज हमें किसी की परवाह  नहीं ,
घर में अपना राज है
एक दूसरे को अर्पित
पूर्ण रूप से समर्पित
हमारा प्यार करने का निराला अंदाज है
न किसी की चिता ,न किसी का डर
मौज मस्ती में  डूबे हुए,बेखबर
एक दुसरे का है सहारा
आज ही तो है,ज़माना हमारा
प्यार में डूबे हुए ,रहते हर पल है
फिर भी बीते जमाने को याद करते है,
सचमुच ,हम कितने पागल है
जवानी भर,मेहनत कर ,जमा की हुई पूँजी
अपने पर खर्च करने में,दिखाते कंजूसी
ऐसी आदत पड़  गयी है,पैसा बचाने की
अरे ये ही तो उमर है ,
अपना कमाया पैसा ,अपने पर खर्च करके ,
मौज और मस्ती मनाने की
क्योंकि अपने पर कंजूसी कर के ,
तुम जो ये पैसा बचा रहे है जिनके लिए 
वो तुम्हारे,क्रियाकर्म के बाद ,
आपस में झगड़ेंगे ,इसी पैसे के लिए
 तुम जिनकी चिंता कर रहे हो  ,
उन्हें आज भी तुम्हारी परवाह नहीं ,
तो तुम क्यों उनकी परवाह करते हो
उनके भविष्य के लिए बचा कर ,
क्यों अपना आज तबाह करते हो
तुम्हे उनके लिए जो करना था ,कर दिया,
आज वो अपने पैरों पर खड़े है
अपनी अपनी गृहस्थी में मस्त है
उनके पास ,तुम्हारे लिए कोई समय नहीं ,
वो इतने व्यस्त है
तो अपनी बचत,अपने ऊपर खर्च करो ,
खूब मस्ती में जियो ,
उनकी चिता मत व्यर्थ करो
मरने के बाद ,स्वर्ग जाने के लालच में ,
यहाँ पर नरक मत झेलो
अरे स्वर्ग के मजे यहीं है ,
खुल कर खाओ,पियो और खेलो
ये  बुढ़ापे की उमर ही ,
एक ऐसी उमर होती है ,
जब आदमी अपने लिए जीता है
बिना रोकटोक के ,अपनी ही मर्जी का ,
खाता और पीता है
क्या पता फिर ये ख़ुशी के पल ,हो न हो
क्या पता,कल,हो न हो
आदमी दुनिया में उतने दिन ही जीता है
जितना अन्न जल है
फिर भी हम परेशान रहते है,
सचमुच,हम कितने पागल है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

नफरत की दीवारें

        नफरत की दीवारें

तुम भी इन्सां ,हम भी इन्सां ,हम  में कोई फर्क नहीं है 
अलग अलग रस्तों पर चलते,आपस में संपर्क नहीं है 
सब है हाड मांस के पुतले ,एक सरीखे ,सुन्दर प्यारे
कोई हिन्दू ,कोई मुसलमां ,खड़ी बीच में क्यों दीवारें
ध रम ,दीन ,ईमान हमेशा,  फैलाता  है  भाईचारा
तो क्यों नाम धरम का लेकर ,आपस में होता बंटवारा
ठेकेदार धरम के है कुछ, जो है ये नफरत फैलाते
भाई भाई आपस में लड़वा ,है अपनी दूकान चलाते

घोटू

सड़ी गर्मी

      सड़ी गर्मी

जेठ की तपती धूप -कँवारापन
शादी--बारिशों का मौसम
शादी के बाद बीबी का मइके जाना -
विरह की आग में तपना ,आंसू बहाना
जैसे बारिश के बाद की सड़ी गर्मी -
उमस और पसीना आना

घोटू

गुलाब जामुन और रसगुल्ला

गुलाब जामुन और रसगुल्ला

जब रहा उबलता गरम दूध,उसने निज तरल रूप खोया
अग्नि ने इतना तपा दिया ,वो आज बंध  गया,बन खोया
वह खोया जब गोली स्वरूप ,था तला गया देशी घी  में
सुन्दर गुलाब सी  हुई देह , फिर डूबा गरम चाशनी में
वह नरम,गुलाबी और सुन्दर था गरम गरम सबको भाया
सबने जी भर कर लिया स्वाद ,गुलाब जामुन वो कहलाया
था दूध वही पर जब फाड़ा ,तो  रेशा  रेशा  बिखर गया
जब छाना ,पानी अलग हुआ ,वो छेना बन कर निखर गया
जब बनी गोलियां छेने की ,चीनी के रस में जब उबला
इतना डूबा वह उस रस में ,एक नया रूप लेकर निकला
वह श्वेत ,रस भरा ,स्पोंजी,जब प्लेटों में  मुस्काता है
स्वादिष्ट बहुत,मन को भाता,वह रसगुल्ला कहलाता है
रसगुल्ला और गुलाबजामुन ,ये दोनों भाई भाई  है
है  बेटे एक ही माता के  ,पर  अलग   सूरतें पायी है
है एक गुलाबी ,एक श्वेत ,एक गरम ,एक ठंडा  अच्छा
दोनों ही बड़े रसीले है, दोनों का स्वाद  बड़ा अच्छा
एक नरम मुलायम टूट जाए ,एक निचुड़ जाए पर ना टूटे
हर दावत और पार्टी में , दोनों ही वाही वाही  लूटे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

धरम का चक्कर

         धरम का चक्कर 

हमेशा जली कटी सुनाने वाली बहू ने ,
अपनी जुबान में मिश्री घोली
और अपनी सास से बड़े प्रेम से बोली
अपने शहर में आ रहे है ,
एक नामी गिरामी संत
जो करेंगे सात दिन तक,
भागवत कथा और सत्संग 
 सुना है उनके सत्संग में ,
भक्तिरस की गंगा बहती है
इसीलिये लाखों लोगों की,
भीड़  उमड़ती रहती है
अम्माजी,आप भी पुण्य कमालो,
ऐसा मौका बार बार नहीं आएगा
ड्राइवर सुबह आपको छोड़ आएगा ,
और शाम को ले आएगा
बहू के मुख से ,ये मधुर वचन सुन ,
सासूजी  हरषाई
सोचा ,थोड़ी देर से ही सही,
बहू को सदबुद्धि तो आई
इसी बहाने हो जाएगी थोड़ी ईश्वर की भक्ती
और कुछ रोज मिलेगी ,
गृहकलह और किचकिच से मुक्ती
सास ने हामी भर दी ,
तो बहू की बांछें खिल गयी
वो भी बड़ी खुश थी ,
सात दिन की पूरी आजादी मिल गयी
न कोई रोकने वाला,न कोई टोकने वाला,
हफ्ते भर की मौज मस्ती और बहार
इसे कहते है ,एक तीर से करना दो शिकार
सास भी खुश,बहू भी खुश ,
हर घर में ऐसी ही राजनीती चलती है
अब तो आप समझ ही गए होंगे ,
आजकल सत्संगों में और तीर्थों में
,इतनी भीड़ क्यों  उमड़ती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

अब क्या करे भगवान ?

       अब क्या करे भगवान ?

सूरज तपा रहा था-बड़ी गर्मी थी
अब तो जल बरसा -भगवान से प्रार्थना की
बादल छाये -अच्छा लगा
ठंडी  हवा चली -अच्छा लगा
बारिश आयी -अच्छा लगा
दूसरे दिन भी बारिश आयी -अच्छा लगा
तीसरे दिन भी पानी बरसा-बोअर हो गए
चौथे दिन भी बारिश आयी -उकता  गए 
पांचवें दिन भी बारिश आयी -खीज आने लगी
छटवें दिन की बारिश से -परेशानी छाने लगी
सातवें दिन की बारिश पर -भगवान से प्रार्थना की
अब तो बहुत हो गया-रोक दे ये झड़ी
अजीब है -हम इंसान
वो नहीं देता -तो भी  परेशान
वो देता है-तो भी परेशान
अब क्या करे भगवान ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

करलें थोड़ा आराम प्रिये !

          करलें थोड़ा आराम प्रिये !

अब नहीं रहे दिन यौवन के ,उड़ते थे आसमान में जब
फिर काम काज में फंसे रहे ,फुर्सत मिल ही पाती थी कब
था बचा कोई रोमांच नहीं ,बन गया प्यार था नित्यकर्म
हम रहे निभाते पति पत्नी ,बन कर अपना ग्राहस्थ्य धर्म
दुनियादारी के चक्कर में ,हम रहे व्यस्त,कर भागदौड़
अब आया दौर उमर का ये,हम तुम दोनों हो गए प्रौढ़ 
आया ढलान पर है यौवन ,अब वो वाला उत्थान नहीं
ना कह सकता तुमको बुढ़िया,पर अब तुम रही जवान नहीं
 धीरे धीरे  हो रहा शांत  , वो यौवन  का तूफ़ान प्रिये
अब उमर ढल रही है अपनी ,करलें थोड़ा आराम प्रिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

इत्ती सी बात

           इत्ती सी बात

पंडित और मौलवी ने ,अपनी बसर चलाने
लोगों को कर दिये बस,सपने यूं ही दिखाने
दो दान तुम यहाँ पर,जन्नत तुम्हे मिलेगी
हूरें और अप्सराएं, खिदमत  वहां  करेगी
जन्नत की हक़ीक़त को ,कोई न जानता है
मरने के बाद क्या है,किसको भला पता है
सब खेल सोच का है,मानो जो तुम अगर ये
दुनिया बहिश्त है ये,देखो जो उस नज़र से
हर रोज ईद समझो,हर दिन दिवाली मानो
बरसेगी रोज खुशियां ,जन्नत यहीं ये जानो
इत्ती सी हक़ीक़त तुम,लेकिन जरूर समझो
घर ही लगेगा जन्नत,बीबी को हूर समझो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'