Monday, July 27, 2015

दो बद्दी वाली चप्पल

  दो बद्दी वाली चप्पल

यह दो बद्दी वाली चप्पल
सस्ती,टिकाऊ,नाजुक,मनहर
चाहे  बजार या  बाथरूम,
ये साथ निभाती है हरपल
चाहे नर हो चाहे नारी ,
सबको लगती प्यारी,सुन्दर
ना मन में कोई भेदभाव ,
सब की ही सेवा में तत्पर
सब को आजाती ,कोई भी,
पावों में डाला,देता चल
गन्दी होती तो धुल जाती,
और बहुत दिनों तक जाती चल
हम भी इसके गुण  अपनायें ,
और काम आएं सब के प्रतिपल
वो ही मृदु सेवाभाव  लिए,
सबकी  सेवा में रह तत्पर
गर्मी में पैर न जलने दें,
उनको ना  चुभने दें पत्थर
हम साथ निभाएं,काम आएं
यह जीवन होगा तभी सफल

घोटू

बुढ़ापे में नींद कहाँ है आती

  
 
कुछ तो बीबी खर्राटे भरती है , 
                     और कुछ बीते दिन की याद सताती 
यूं ही बदलते इधर उधर हम करवट,
                        बुढ़ापे  में  नींद  कहाँ  है   आती 
कभी पेट में गैस बना करती है ,
                         और कभी  सिर में होता भारीपन 
कंधे ,गरदन कभी दर्द करते है,
                          पैरों या पिंडली में होती तड़फन 
अंग अंग को दर्द  कचोटा करता ,
                          कभी  काटने लगता है सूनापन 
बार बार प्रेशर बनता  ब्लेडर में,
                          बाथरूम जाने को करता है मन 
कभी हाथ तो कभी  पैर दुखते है ,
                            एक अजीब सी तड़फन है तड़फ़ाती 
यूं ही बदलते  इधर उधर हम करवट,
                                बुढ़ापे   में  नींद  कहाँ  है  आती 
भूले  भटके यदि लग जाती झपकी,
                                तो फिर सपने आकर हमें सताते 
बार बार मन में घुटती रहती है,
                                कुछ अनजान ,अधूरी मन की बातें 
जब यादों के बादल घुमड़ा करते ,
                                आंसू   की  होने  लगती  बरसातें
मोह माया के बंधन को अब छोडो,
                                 यूं ही बस हम है खुद को समझाते 
ऐसी नींद उचटती है आँखों से ,
                                भोर तलक फिर नहीं लौट कर आती 
यूं ही बदलते इधर उधर हम करवट ,
                                 बुढ़ापे   में नींद   कहाँ है  आती 

मदन मोहन  बाहेती'घोटू' 
                                 

गोलगप्पे

     
एक बड़े माल के ,नामी रेस्तराँ में,
छह गोलगप्पे खाने के लिये 
हमने पूरे साठ  रूपये खर्च किये 
कूपन देकर ,इन्तजार करने के बाद 
एक प्लेट आयी हमारे हाथ 
जिसमे एक कटोरी में पुदीने का पानी डाला था 
दूसरी में छह गोलगप्पे ,
और उबले हुए आलू का मसाला था 
खुद ही गोलगप्पे में ,हमने जब छेद किये 
उसमे ही एक दो तो ,बेचारे टूट गये 
बाकी में भर कर आलू का मसाला 
धीरे धीरे चम्मच से ,पानी था डाला 
तब जाकर मुश्किल से गोलगप्पे खा पाये 
ऐसे में वो गली के ठेले वाले के ,
वो प्यारे गोलगप्पे याद आये 
वो ठेले वाला ,आपको प्रेम से बुलाता है 
दोना पकड़ाता है ,
फिर आपकी मर्जी के मुताबिक़ ,
आटे  के या सूजी के गोलगप्पे खिलाता है 
 छेद  वो ही करता है ,आलू भी भरता है 
 फिर आपके स्वादानुसार ,खट्टा मीठा पानी भर ,
एक एक गोलगप्पा ,दोने में धरता है 
जब तक आपके मुंह में ,
पहले गोलगप्पे का जायका घुलता है 
तब तक ही आपको ,दूसरा गोलगप्पा  मिलता है 
आखिर में दोना भर ,खट्टा मीठा पानी भी ,
मुफ्त  देता है 
उस पर छह गोलगप्पों के ,
सिर्फ दस रूपये लेता है 
माल में ,छह गुने पैसे भी खर्च करो 
फिर खुद ही चम्मच से ,गोलगप्पे में पानी भरो 
फिर बड़े अनुशासन में ,धीरे धीरे खाओ 
भले ही पानी,खट्टा या तीखा है 
अरे ये भी कोई चाट खाने का तरीका है 
चाट खाओ और चटखारे  ना लो,
ऐसे भी कोई चाट खाता है 
गोलगप्पे का असली मज़ा तो ,
ठेले पर खड़े होकर ,
चटखारे ले लेकर ,खाने में आता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मॉल कल्चर

          मॉल कल्चर

बड़े बड़े मालों के ,शोरूमों की शॉपिंग ,
                      प्लास्टिक की  थैली के भी पैसे लगते है
वही चीज सेल लगा ,दे आधे दामो में ,
                      तभी पता लगता है,वो कितना ठगते है
ब्रांड की चिप्पी से ,दाम बहुत बढ़ जाते ,
                      बिन चिप्पी के उनकी ,कीमत बस आधी है
गाँवों में वही चीज ,लाला  की गुमटी पर,
                       मोलभाव करने पर    सस्ती मिल जाती है
असल में मालों का ,अपना ही खर्चा है ,
                         सेल्स गर्ल,ऐ.सी. है, बिजली जलाते है
इन  सबकी कीमत भी,सौदे में जुड़ती है ,
                           इन सबका खर्चा भी ,हम ही चुकाते है
 पर जब भी होता है ,घर घर में पॉवरकट,
                            मज़ा लेने ऐ ,सी. का,लोग यहाँ जुटते है
समय काटने को हम,फिर शॉपिंग करते है,
                           मंहगी है चीजें पर ,ख़ुशी  ख़ुशी  लुटते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'