डर
कोई को डर लगता कॉकरोच से है,,तो फिर कोई डरता है छिपकलियों से
कोई बादल गर्जन ,बिजली से डरता , तो कोई डरता अंधियारी गलियों से
कोई को ऊंचाई बहुत डराती है , तो कोई को डर लगता गहरे जल से
कोई पुलिस से डरे ,कोई बदमाशों से ,कोई बॉस से डरता ,कोई टीचर से
सबके अलग अलग ,अपने डर होते है,गाहे बगाहे हमे डराया है करते
बचपन में बच्चे डरते माँ बापों से , बच्चों से माँ बाप बुढ़ापे में डरते
लेकिन शाश्वत सत्य एक है दुनिया में,हर शौहर अपनी बीबी से डरता है
एक इशारे भर पर जिसकी ऊँगली के ,बेचारा जीवन भर नाचा करता है
बीबी से डरने की अपनी लज्जत है,वह खिसियाना स्वाद निराला होता है
घर में चलता राज हमेशा बीबी का ,पर कहने को वो घरवाला होता है
पत्नी पका खिलाये खाना कैसा भी ,डर के मारे तारीफ़ करनी पड़ती है
वर्ना रोटी के भी लाले पड़ जाते है,और सोफे पर सारी रात गुजरती है
डर के कारण ही क़ानून व्यवस्था है ,डर से दफ्तर में रहता अनुशासन है
पास फ़ैल के डर के कारण बच्चों का ,करने में पढ़ाई लगता थोड़ा मन है
ऊपरवाला देख रहा है हर हरकत ,इस डर से हम बुरे काम से डरते है
डर मृत्यु का मन में सदा बना रहता ,दान धर्म,सत्कर्म इसलिए करते है
यम के डर के कारण दुनिया कायम है,उच्श्रृंखलता पर लगी हुई पाबंदी है
वर्ना लोभ,मोह और माया में दुनिया ,कुछ न देखती और हो जाती अंधी है
मेरा यह स्पष्ट मानना है लेकिन,जो शासित है,वो रहता अनुशासित है
डर डर,सम्भले,चले ,नहीं डर ठोकर का ,डर कर रहने में ही तो सबका हित है
कोई कहता भय बिन प्रीत नहीं होती ,कोई को थप्पड़ ना,प्यार डराता है
बहुत घूम फिर,यही नतीजा निकला है ,वह डर ही है,जो संसार चलाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'