थोथा चना -बाजे घना
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
बधें है ,दकियानूसी पुराने विचारों से ,
अभी तक ,कैद से उनकी ,निकल नहीं पाये
बिल्ली जो काटती रस्ता है तो ये रुक जाते ,
राहुकालम में ,कोई काम ,ये नहीं करते
छींक दे कोई तो इनके कदम सहम जाते ,
कोई भी अपशकुन से आज भी बहुत डरते
जिस दिशा में हो दिशाशूल ,नहीं जाते है,
मुताबिक़ वक़्त के बिलकुल भी नहीं ढल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
सोम को दूध चढ़ाते है शिव की मूरत पर,
शनि को तैल चढ़ाते है शनि देवा पर
श्राद्ध में पंडितों को प्रेम से खिलाते है ,
बूढ़े माँ बाप की करते नहीं सेवा पर
आदमी चलते चलते चाँद तलक पहुँच गया ,
ग्रहों के चक्र से पर ये नहीं निकल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
छू लिया ,बेटियों ने आसमां सफलता का ,
बेटे और बेटी में ये अब भी मानते अंतर
दिखाने के लिए बाहर है कुरता खादी का,
पहन के रख्खा है बनियान विदेशी अंदर
ऐसे उलझे हुए है ,रूढ़ियों ,रिवाजों में ,
दो कदम भी समय के संग नहीं चल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
बधें है ,दकियानूसी पुराने विचारों से ,
अभी तक ,कैद से उनकी ,निकल नहीं पाये
बिल्ली जो काटती रस्ता है तो ये रुक जाते ,
राहुकालम में ,कोई काम ,ये नहीं करते
छींक दे कोई तो इनके कदम सहम जाते ,
कोई भी अपशकुन से आज भी बहुत डरते
जिस दिशा में हो दिशाशूल ,नहीं जाते है,
मुताबिक़ वक़्त के बिलकुल भी नहीं ढल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
सोम को दूध चढ़ाते है शिव की मूरत पर,
शनि को तैल चढ़ाते है शनि देवा पर
श्राद्ध में पंडितों को प्रेम से खिलाते है ,
बूढ़े माँ बाप की करते नहीं सेवा पर
आदमी चलते चलते चाँद तलक पहुँच गया ,
ग्रहों के चक्र से पर ये नहीं निकल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
छू लिया ,बेटियों ने आसमां सफलता का ,
बेटे और बेटी में ये अब भी मानते अंतर
दिखाने के लिए बाहर है कुरता खादी का,
पहन के रख्खा है बनियान विदेशी अंदर
ऐसे उलझे हुए है ,रूढ़ियों ,रिवाजों में ,
दो कदम भी समय के संग नहीं चल पाये
बात करते है बदलने की सारी दुनिया को ,
जरा भी खुद को मगर ये बदल नहीं पाये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'