जलवे -फैशन के
१
चूनर दुपट्टा भई ,दिखती है कहीं कहीं,
जोवन को ढकती नहीं ,काँधे पर लटकती है
घूंघट भी घट घट के,लुप्त हुआ मस्तक से ,
लजीली जो नज़रें थी, इत उत भटकती है
घाघरा घना घना ,अब मिनी स्कर्ट बना ,
खुली खुली टांगो से ,शरम हया घटती है
कुर्ती और ब्लाउज अब ,बांह हीन सब के सब ,
फैशन की कैंची से ,सब चीजें कटती है
२
पीठ के प्रदर्शन का,चला ऐसा फैशन है ,
खुली पीठ ,लज्जा के बन्धन को तोडा है
सिमटा सा सकुचाया ,गला भला ब्लाउज का,
फैशन के चक्कर में,हुआ बहुत चौड़ा है
चोली की पट्टी अब ,खुले आम दिखती सब ,
झुकने पर दिखलाता ,यौवन भी थोड़ा है
सत्तर प्रतिशत जल तन में ,उतना ही खुला बदन
फैशन के जलवों ने , कहीं का न छोड़ा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
१
चूनर दुपट्टा भई ,दिखती है कहीं कहीं,
जोवन को ढकती नहीं ,काँधे पर लटकती है
घूंघट भी घट घट के,लुप्त हुआ मस्तक से ,
लजीली जो नज़रें थी, इत उत भटकती है
घाघरा घना घना ,अब मिनी स्कर्ट बना ,
खुली खुली टांगो से ,शरम हया घटती है
कुर्ती और ब्लाउज अब ,बांह हीन सब के सब ,
फैशन की कैंची से ,सब चीजें कटती है
२
पीठ के प्रदर्शन का,चला ऐसा फैशन है ,
खुली पीठ ,लज्जा के बन्धन को तोडा है
सिमटा सा सकुचाया ,गला भला ब्लाउज का,
फैशन के चक्कर में,हुआ बहुत चौड़ा है
चोली की पट्टी अब ,खुले आम दिखती सब ,
झुकने पर दिखलाता ,यौवन भी थोड़ा है
सत्तर प्रतिशत जल तन में ,उतना ही खुला बदन
फैशन के जलवों ने , कहीं का न छोड़ा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'