आजकल तो रह गए हम छाछ है
जवानी के वो सुहाने दिन गए ,बुढ़ापे का हो गया आग़ाज़ है
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है
जवानी में थोड़ी भी ऊष्मा मिली ,खूं हमारा था उछालें मारता
दूध जैसे उफनने लगते थे हम,बड़ा ही मस्ती भरा संसार था
मलाई बन हसीं गालों पर लगे ,होते थे टॉनिक सुहागरात के
उन दिनों की बात ही कुछ और थी ,मुश्किलों से संभलते जज्बात थे
दिल किया खट्टा किसी ने फट गए ,किसी ने जावन जो डाला ,जम गए
खोया बन के खोया अपने रूप को ,मथा जो कोई ने मख्खन बन गए
अब पिघलते झट से आइसक्रीम से ,हमसे यौवन हो गया नाराज है
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम ,आजकल तो रह गए बस छाछ है
जवानी का सारा मख्खन खुट गया ,कुछ यहाँ कुछ वहां यूं ही बंट गया
लुफ्त तो सबने ही जी भर कर लिया ,खजाना सब लुट यूं ही झटपट गया
मलाई जो भी थी थोड़ी सी बची ,बुढ़ापे की बिल्ली ,आ चट कर गयी
स्निग्धता अब भी बची है प्यार की ,दूध की ताक़त भले ही घट गयी
अब तो खट्टी छाछ सी है जिंदगी ,मगर फिर भी ,स्वास्थवर्धक स्वाद है
तुम बनाओ कढ़ी चाहे रायता ,अब भी देती ,हृदय को आल्हाद है
सुरों में अब भी मधुरता है वही ,भले ही अब ये पुराना साज है
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '