Negative SEO with Satisfaction Guaranteed
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Sunday, May 31, 2020
Saturday, May 30, 2020
पलायन गीत
(कोरोना काल में गावों को पलायन
करनेवाले मजदूरों की मानसिकता
दर्शाता हुआ एक गीत )
फैल रह्यो शहर में कोरोनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
बंद है बज़ार और कारखाने जब तक
रोजी नहीं रोटी नहीं ,भूखे पेट कब तक
जियेंगे हम बिना भोजनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
आई चीन देश से है ,बिमारी जबर है ये
ताला बंदी लम्बी ही ,खिचेंगी खबर है ये
कैसे होगा अपना गुजरवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
करेंगे क्या इतने दिन ,बैठ के बेकार यहाँ
बिमारी मारे न मारे ,भूख देगी मार यहाँ
अब तो उचट गया मनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
होय रहे खरचा है ,थोड़े जो बचे थे पैसे
रेल बंद ,बेस बंद ,ऐसे में जाएंगे कैसे
आओ चले निकल पैदलवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
गाँव में परिवार संग ,खुशियां अनोखी होगी
रूखीसूखी जैसी भी हो,खाने को दो रोटी होगी
अपनी माटी अपना अंगनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(कोरोना काल में गावों को पलायन
करनेवाले मजदूरों की मानसिकता
दर्शाता हुआ एक गीत )
फैल रह्यो शहर में कोरोनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
बंद है बज़ार और कारखाने जब तक
रोजी नहीं रोटी नहीं ,भूखे पेट कब तक
जियेंगे हम बिना भोजनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
आई चीन देश से है ,बिमारी जबर है ये
ताला बंदी लम्बी ही ,खिचेंगी खबर है ये
कैसे होगा अपना गुजरवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
करेंगे क्या इतने दिन ,बैठ के बेकार यहाँ
बिमारी मारे न मारे ,भूख देगी मार यहाँ
अब तो उचट गया मनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
होय रहे खरचा है ,थोड़े जो बचे थे पैसे
रेल बंद ,बेस बंद ,ऐसे में जाएंगे कैसे
आओ चले निकल पैदलवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
गाँव में परिवार संग ,खुशियां अनोखी होगी
रूखीसूखी जैसी भी हो,खाने को दो रोटी होगी
अपनी माटी अपना अंगनवा रे
गाँव चलो भइया फौरनवा रे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
Friday, May 29, 2020
जीवन का सफर
है तीन चरण का ये जीवन ,बचपन यौवन ,वृद्धावस्था
सुख दुःख पीड़ायें ,हंसी ख़ुशी ,कांटों, फूलों का गुलदस्ता
रहता है प्यार भरा बचपन ,कटता मस्ती से विहंस विहंस
यौवन आता फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक
माँ के आँचल की छाया में ,कटता बचपन ,किलकारी भर
घर में माँ बाप बहन भाई ,सब लाढ़ लड़ाते है जी भर
ना चिंता कोई ना ही फ़िकर ,मासूम शकल भोली भोली
एक हंसना और एक रोना बस ,आती है केवल दो बोली
हम जाते सबकी गोदी में ,खुश हो मुस्काते हुलस हुलस
यौवन आता फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक
फिर आये जवानी मतवाली, मन में नूतन उत्साह लिए
सुंदरता देख मचलता मन ,उसको पाने की चाह लिए
मिलता कोई जीवनसाथी ,बस जाती दिल की बस्ती है
दिन पंख लगा उड़ जाते है ,छाती जीवन में मस्ती है
जब भार गृहस्थी का पड़ता ,मोहमाया में जाते फंस फंस
यौवन आता फुर्र हो जाता और कटे बुढ़ापा टसक टसक
फिर आती उम्र बुढ़ापे की ,लगती है एक पहेली सी
चुभती है कभी शूल जैसी ,लगती है कभी सहेली सी
जो बीज बोये थे, फल देंगे ,करते रहते ये आशा हम
पर तिरस्कार जब मिलता है,बन जाते एक तमाशा हम
अपनों से प्यार नहीं मिलता ,और हम जाते है तरस तरस
यौवन आता फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
है तीन चरण का ये जीवन ,बचपन यौवन ,वृद्धावस्था
सुख दुःख पीड़ायें ,हंसी ख़ुशी ,कांटों, फूलों का गुलदस्ता
रहता है प्यार भरा बचपन ,कटता मस्ती से विहंस विहंस
यौवन आता फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक
माँ के आँचल की छाया में ,कटता बचपन ,किलकारी भर
घर में माँ बाप बहन भाई ,सब लाढ़ लड़ाते है जी भर
ना चिंता कोई ना ही फ़िकर ,मासूम शकल भोली भोली
एक हंसना और एक रोना बस ,आती है केवल दो बोली
हम जाते सबकी गोदी में ,खुश हो मुस्काते हुलस हुलस
यौवन आता फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक
फिर आये जवानी मतवाली, मन में नूतन उत्साह लिए
सुंदरता देख मचलता मन ,उसको पाने की चाह लिए
मिलता कोई जीवनसाथी ,बस जाती दिल की बस्ती है
दिन पंख लगा उड़ जाते है ,छाती जीवन में मस्ती है
जब भार गृहस्थी का पड़ता ,मोहमाया में जाते फंस फंस
यौवन आता फुर्र हो जाता और कटे बुढ़ापा टसक टसक
फिर आती उम्र बुढ़ापे की ,लगती है एक पहेली सी
चुभती है कभी शूल जैसी ,लगती है कभी सहेली सी
जो बीज बोये थे, फल देंगे ,करते रहते ये आशा हम
पर तिरस्कार जब मिलता है,बन जाते एक तमाशा हम
अपनों से प्यार नहीं मिलता ,और हम जाते है तरस तरस
यौवन आता फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
【SEAnews】 Review:The baptism of the Holy Spirit (Aramaic roots VI) - EN
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re: re: improve serps
Hi again
here is the service I was telling you about
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thanks and regards
Dong Passmore
Thu, 28 May 2020 18:14:33 -0600 tr, 19:37 baheti.mm.tara4
<baheti.mm.tara4@blogger.com> ra�e:
Ok, send me the link, I need the ranks to be fixed# urgantly.
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Dong Passmore
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Thursday, May 28, 2020
re: Additional Details
hi there
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thank you
Mike
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अम्मा बोली -प्रवासी के घर पहुँचने पर
आय गए बचुवा ,खुश हुआ मनवा ,चिंता बहुत मन माही थी
यूं चल के पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
गाँव हो या हो शहर ढाये सब पे कहर ,आई कोरोना बिमारी है
छूने छुलावन से ,पास पास आवन से ,फैल रही यह भारी है
सड़कों पे भटके ,जगह जगह अटके ,भीड़भाड़ की जब मनाही थी
यूं चल के पैदल ,तक़लीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
बंद हुए कामकाज ,सबके लिए था त्रास ,फैक्टरी ,बज़ारों में बंदी थी
नहीं ज्यादा घूमो फिरो ,घर पे आराम करो ,ये ही तो लगी पाबंदी थी
मदद करे था शासन ,सबको मिले था राशन ,वहीं रहते तो भलाई थी
यूं चल के पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
गाँव छोड़ शहर गए ,तब बड़ा खुश रहे ,काम करके ,खाते ,कमाते थे
करके बचत कुछ ऐसे ,भेजते थे हमें पैसे ,हम घर का खरच चलाते थे
आय गए तुम अब ,बढ़ा घर का खरच ,पास और नहीं कोई भी कमाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
होवे कोई जो बीमार ,गाँव में न अस्पताल ,भगते शहर है आज सभी
तुम बिमारी डर से ,भाग आये शहर से ,गाँव न जिसका इलाज अभी
होती शहर में बिमारी ,मिलती सुविधाएँ सारी ,डॉक्टर ,अस्पताल दवाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफे सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
सारे कामकाज,चालू फिर हुए आज ,पटरी पे लौट आया जीवन है
अभी लौट जाओ वहीँ ,देर पर दुरुस्त सही ,वहीँ पे कमाई के साधन है
करने गुजर बसर ,पेट पालना है गर ,शहर में ही दुनिया समाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
आय गए बचुवा ,खुश हुआ मनवा ,चिंता बहुत मन माही थी
यूं चल के पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
गाँव हो या हो शहर ढाये सब पे कहर ,आई कोरोना बिमारी है
छूने छुलावन से ,पास पास आवन से ,फैल रही यह भारी है
सड़कों पे भटके ,जगह जगह अटके ,भीड़भाड़ की जब मनाही थी
यूं चल के पैदल ,तक़लीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
बंद हुए कामकाज ,सबके लिए था त्रास ,फैक्टरी ,बज़ारों में बंदी थी
नहीं ज्यादा घूमो फिरो ,घर पे आराम करो ,ये ही तो लगी पाबंदी थी
मदद करे था शासन ,सबको मिले था राशन ,वहीं रहते तो भलाई थी
यूं चल के पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
गाँव छोड़ शहर गए ,तब बड़ा खुश रहे ,काम करके ,खाते ,कमाते थे
करके बचत कुछ ऐसे ,भेजते थे हमें पैसे ,हम घर का खरच चलाते थे
आय गए तुम अब ,बढ़ा घर का खरच ,पास और नहीं कोई भी कमाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
होवे कोई जो बीमार ,गाँव में न अस्पताल ,भगते शहर है आज सभी
तुम बिमारी डर से ,भाग आये शहर से ,गाँव न जिसका इलाज अभी
होती शहर में बिमारी ,मिलती सुविधाएँ सारी ,डॉक्टर ,अस्पताल दवाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफे सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
सारे कामकाज,चालू फिर हुए आज ,पटरी पे लौट आया जीवन है
अभी लौट जाओ वहीँ ,देर पर दुरुस्त सही ,वहीँ पे कमाई के साधन है
करने गुजर बसर ,पेट पालना है गर ,शहर में ही दुनिया समाई थी
यूं चलके पैदल ,तकलीफें सह कर ,आने की जल्दी भी नाही थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
उखड़ते स्वर
है ढीले तन के पड़े तार ,क्या साज़ सजाये साजिंदा
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,जब तकअब रहते है जिंदा
अब खनक स्वरों में बची नहीं ,सारेगामा ,ग़मगीन हुआ
लम्बे आलाप ले सकने का ,सब जोश एकदम क्षीण हुआ
अब हुई ढोलकी भी ढीली, तबले में भी ,दमखम न बचा
ऐसे में कभी जुगलबंदी का ले ना सकते ,तनिक मज़ा
लें तान ,टूटती सांस ,स्वयं ,होते है खुद पर शर्मिन्दा
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,अब जब तक भी है जिन्दा
ये दौर उमर का भूल गया ,तकतकधिनधिन तकतकधिनधिन
अब मालकोष का गया जोश ,और भीमपलासी ना मुमकिन
अब राग भैरवी से ही बस ; मन को बहलाना पड़ता है
टूटे दिल के अरमानो को ,बस यूं ही सहलाना पड़ता है
क्या पता तोड़ तन का पिंजरा ,कब उड़ जाए प्राण परिंदा
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,अब जब तक रहते है जिन्दा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
है ढीले तन के पड़े तार ,क्या साज़ सजाये साजिंदा
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,जब तकअब रहते है जिंदा
अब खनक स्वरों में बची नहीं ,सारेगामा ,ग़मगीन हुआ
लम्बे आलाप ले सकने का ,सब जोश एकदम क्षीण हुआ
अब हुई ढोलकी भी ढीली, तबले में भी ,दमखम न बचा
ऐसे में कभी जुगलबंदी का ले ना सकते ,तनिक मज़ा
लें तान ,टूटती सांस ,स्वयं ,होते है खुद पर शर्मिन्दा
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,अब जब तक भी है जिन्दा
ये दौर उमर का भूल गया ,तकतकधिनधिन तकतकधिनधिन
अब मालकोष का गया जोश ,और भीमपलासी ना मुमकिन
अब राग भैरवी से ही बस ; मन को बहलाना पड़ता है
टूटे दिल के अरमानो को ,बस यूं ही सहलाना पड़ता है
क्या पता तोड़ तन का पिंजरा ,कब उड़ जाए प्राण परिंदा
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,अब जब तक रहते है जिन्दा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
Tuesday, May 26, 2020
दिल की बात
१
नन्हा सा दिल हमारा,उस पर कितना भार
एक मिनिट में धड़कता ,है वह सत्तर बार
है वह सत्तर बार ,समाये रखता सपने
बसती कई तमन्नाये और सुख दुःख अपने
कह' घोटू 'कविराय , समय ऐसा भी आता
कोई दिलवर भी आकर दिल में बस जाता
२
होती सत्तर किलो की ,यह काया अभिराम
उसमे रहता दिल,वजन ,महज़ तीन सौ ग्राम
महज़ तीन सौ ग्राम ,लोड पड़ता है भारी
जब उसमे बस जाती कोई सुंदरी प्यारी
नाजुक ,दुबली पतली कन्या मन को भावे
ताकि दिल पर अधिक बोझ ना पड़ने पावे
घोटू
१
नन्हा सा दिल हमारा,उस पर कितना भार
एक मिनिट में धड़कता ,है वह सत्तर बार
है वह सत्तर बार ,समाये रखता सपने
बसती कई तमन्नाये और सुख दुःख अपने
कह' घोटू 'कविराय , समय ऐसा भी आता
कोई दिलवर भी आकर दिल में बस जाता
२
होती सत्तर किलो की ,यह काया अभिराम
उसमे रहता दिल,वजन ,महज़ तीन सौ ग्राम
महज़ तीन सौ ग्राम ,लोड पड़ता है भारी
जब उसमे बस जाती कोई सुंदरी प्यारी
नाजुक ,दुबली पतली कन्या मन को भावे
ताकि दिल पर अधिक बोझ ना पड़ने पावे
घोटू
Monday, May 25, 2020
जिंदगी -दो नजरिये
१
नजरिया -सुबह का
तीन कोने,एक बचपन,जवानी और बुढ़ापा,
तिकोनी है ,समोसे सी ,ये हमारी जिंदगी
चटपटा आलू मसाला ,भरा अंदर ,है गरम ,
अगर ताज़ी ,स्वाद लगती ,बड़ी प्यारी जिंदगी
संगिनी मिल जाय यदि जो,गरम मीठी जलेबी ,
टेढ़ी मेढ़ी पर रसीली ,हो करारी जिंदगी
स्वर्ग काआनंद सारा,तो समझ लो मिल गया,
चैन से कट जाती है ,मेरी तुम्हारी जिंदगी
२
नज़रिया -शाम का
जवानी में दिल हमारा ,कुल्फी जैसा हार्ड था ,
बुढ़ापे में हो गया वो ,सोफ्टी सा सॉफ्ट है
थे गरम मिजाज काफी ,उसूलों के सख्त थे ,
पर लचीला नजरिया अब कर लिया एडोप्ट है
हमेशा अपनी न हाँको ,दूसरों की भी सुनो ,
वक़्त के संग बदलना ही जिंदगी का आर्ट है
कल के घोटू,अब के घोटू में फरक ये आगया ,
पहले लल्लू गाँव का लगता था ,अब स्मार्ट है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
१
नजरिया -सुबह का
तीन कोने,एक बचपन,जवानी और बुढ़ापा,
तिकोनी है ,समोसे सी ,ये हमारी जिंदगी
चटपटा आलू मसाला ,भरा अंदर ,है गरम ,
अगर ताज़ी ,स्वाद लगती ,बड़ी प्यारी जिंदगी
संगिनी मिल जाय यदि जो,गरम मीठी जलेबी ,
टेढ़ी मेढ़ी पर रसीली ,हो करारी जिंदगी
स्वर्ग काआनंद सारा,तो समझ लो मिल गया,
चैन से कट जाती है ,मेरी तुम्हारी जिंदगी
२
नज़रिया -शाम का
जवानी में दिल हमारा ,कुल्फी जैसा हार्ड था ,
बुढ़ापे में हो गया वो ,सोफ्टी सा सॉफ्ट है
थे गरम मिजाज काफी ,उसूलों के सख्त थे ,
पर लचीला नजरिया अब कर लिया एडोप्ट है
हमेशा अपनी न हाँको ,दूसरों की भी सुनो ,
वक़्त के संग बदलना ही जिंदगी का आर्ट है
कल के घोटू,अब के घोटू में फरक ये आगया ,
पहले लल्लू गाँव का लगता था ,अब स्मार्ट है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पत्तल उठाते रह गये
सपन मन में मिलन के सब कुलबुलाते रह गये
साथ आनेवाले थे वो ,आते आते रह गये
हमारी मख्खन डली को ,एक कौवा ले गया ,
और हम अफ़सोस में ,दिल को जलाते रह गये
कोई मंदिर में घुसा ,परशाद सारा ले गया ,
और हम भक्ति भरे ,घंटी बजाते रह गये
पेंच डाला कोई ने और हमारी काटी पतंग ,
बचाने को मांजा हम ,गिररी घुमाते रह गये
हमने रखवाली करी थी फसल की जी जान से
काट ली कोई ने ,हम भूसा उठाते रह गये
मेहमां बन,लोग आये ,जीम कर सब,घर गये,
और भूखे पेट हम ,पत्तल उठाते रह गये
घोटू
सपन मन में मिलन के सब कुलबुलाते रह गये
साथ आनेवाले थे वो ,आते आते रह गये
हमारी मख्खन डली को ,एक कौवा ले गया ,
और हम अफ़सोस में ,दिल को जलाते रह गये
कोई मंदिर में घुसा ,परशाद सारा ले गया ,
और हम भक्ति भरे ,घंटी बजाते रह गये
पेंच डाला कोई ने और हमारी काटी पतंग ,
बचाने को मांजा हम ,गिररी घुमाते रह गये
हमने रखवाली करी थी फसल की जी जान से
काट ली कोई ने ,हम भूसा उठाते रह गये
मेहमां बन,लोग आये ,जीम कर सब,घर गये,
और भूखे पेट हम ,पत्तल उठाते रह गये
घोटू
Sunday, May 24, 2020
बस चला यूं ही किये
याद में तेरी हम दिल को ,बस जला ,यूं ही किये
दाल अपनी गल न पायी ,बस गला यूं ही किये
लोग चखते रहे सब ,हमको मिला ना एक भी ,
प्यार से ,प्यारे पकोड़े ,हम तलां यूं ही किये
पता था कि मंजिले मक़सूद पाना है कठिन ,
प्रेम की टेढ़ी डगर पर ,हम चलां यूं ही किये
जानते अच्छी तरह से ,तुम पराया माल हो ,
मिल ही जाओ भाग्य से ,मन को छलां यूं ही किये
हमने शबरी की तरह चख ,मीठे फल तुमको दिये ,
जूंठे फल क्यों दिये हमको तुम गिला यूं ही किये
चाहते थे आम मीठे , करेले की बेल पर ,
हो गये मायूस ,हाथों को मला यूं ही किये
घोटू
याद में तेरी हम दिल को ,बस जला ,यूं ही किये
दाल अपनी गल न पायी ,बस गला यूं ही किये
लोग चखते रहे सब ,हमको मिला ना एक भी ,
प्यार से ,प्यारे पकोड़े ,हम तलां यूं ही किये
पता था कि मंजिले मक़सूद पाना है कठिन ,
प्रेम की टेढ़ी डगर पर ,हम चलां यूं ही किये
जानते अच्छी तरह से ,तुम पराया माल हो ,
मिल ही जाओ भाग्य से ,मन को छलां यूं ही किये
हमने शबरी की तरह चख ,मीठे फल तुमको दिये ,
जूंठे फल क्यों दिये हमको तुम गिला यूं ही किये
चाहते थे आम मीठे , करेले की बेल पर ,
हो गये मायूस ,हाथों को मला यूं ही किये
घोटू
मुश्किल से ही होती है
उमड़े यौवन की रखवाली ,मुश्किल से ही होती है
झुकी हुई नज़रें मतवाली ,मुश्किल से ही होती है
जिसके मन में ,सदा अँधेरा ,मावस का पसरा रहता ,
उसमें खुशियों की दीवाली ,मुश्किल से ही होती है
जहाँ महकते फूल प्यार के ,और कलियाँ मुस्काती हो ,
बहुत सुरक्षित ,वो फुलवारी ,मुश्किल से ही होती है
फटे हाल पर बजा बांसुरी सदा चैन की ,खुश रहती ,
ऐसी सुखी ,शाही कंगाली ,मुश्किल से ही होती है
अच्छे साज औ' साजिंदे हो ,और सुरीले गायक हो ,
बजे न ताली ,तो कव्वाली ,मुश्किल से ही होती है
लाख लाद दो गहनों से और ,ढेरों साड़ी दिलवा दो,
लेकिन मेहरबान घरवाली ,मुश्किल से ही होती है
अच्छे दिन के इन्तजार में हमने बरसों बिता दिये
सुस्त सभी, 'घोटू ' खुशहाली ,मुश्किल से ही होती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
उमड़े यौवन की रखवाली ,मुश्किल से ही होती है
झुकी हुई नज़रें मतवाली ,मुश्किल से ही होती है
जिसके मन में ,सदा अँधेरा ,मावस का पसरा रहता ,
उसमें खुशियों की दीवाली ,मुश्किल से ही होती है
जहाँ महकते फूल प्यार के ,और कलियाँ मुस्काती हो ,
बहुत सुरक्षित ,वो फुलवारी ,मुश्किल से ही होती है
फटे हाल पर बजा बांसुरी सदा चैन की ,खुश रहती ,
ऐसी सुखी ,शाही कंगाली ,मुश्किल से ही होती है
अच्छे साज औ' साजिंदे हो ,और सुरीले गायक हो ,
बजे न ताली ,तो कव्वाली ,मुश्किल से ही होती है
लाख लाद दो गहनों से और ,ढेरों साड़ी दिलवा दो,
लेकिन मेहरबान घरवाली ,मुश्किल से ही होती है
अच्छे दिन के इन्तजार में हमने बरसों बिता दिये
सुस्त सभी, 'घोटू ' खुशहाली ,मुश्किल से ही होती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना की देन
क्या बतायें ,कोरोना ने ,हमको है क्या क्या दिया
मुंह पे पट्टी बाँध कर के ,बोलना सिखला दिया
अपनों से भी ,बना कर के ,रखो दो गज दूरियां ,
पाठ हमको मोहब्बत का, इस तरह उल्टा दिया
सैर अक्सर विदेशों की ,करते थे गर्मी में हम ,
लॉकडाउन करके घर के अंदर ही बिठला दिया
मेहरियों को घर में घुसने पर लगा प्रतिबंध जब ,
झाड़ू पोंछा ,रोटियां भी बेलना सिखला दिया
रामायण और महाभारत के पुराने सीरियल ,
दिखला त्रेता और द्वापर युग हमें पहुंचा दिया
साठ दिन,चौबीसों घंटे मियां बीबी संग रहे ,
किस तरह ,एक दूसरे को,झेलना सिखला दिया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
क्या बतायें ,कोरोना ने ,हमको है क्या क्या दिया
मुंह पे पट्टी बाँध कर के ,बोलना सिखला दिया
अपनों से भी ,बना कर के ,रखो दो गज दूरियां ,
पाठ हमको मोहब्बत का, इस तरह उल्टा दिया
सैर अक्सर विदेशों की ,करते थे गर्मी में हम ,
लॉकडाउन करके घर के अंदर ही बिठला दिया
मेहरियों को घर में घुसने पर लगा प्रतिबंध जब ,
झाड़ू पोंछा ,रोटियां भी बेलना सिखला दिया
रामायण और महाभारत के पुराने सीरियल ,
दिखला त्रेता और द्वापर युग हमें पहुंचा दिया
साठ दिन,चौबीसों घंटे मियां बीबी संग रहे ,
किस तरह ,एक दूसरे को,झेलना सिखला दिया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
वाइरस
१
मुक्तक
---------
मैं रसिक हृदय ,बचपन से ही ,शौक़ीन बहुत हूँ अमरस का
जब हुआ युवा ,तो नज़रों से ,करता था पान रूप रस का
लग गया प्रेम रस का चस्का ,पाया जब स्वाद अधर रस का
सारा रस प्रेम नदारद अब ,डर कोरोना के वाइरस का
२
सवैया
------
बचपन से अब तक ,आम चूसे छक छक ,
अमरस को स्वाद अब भी ,मेरे मन भाये है
जवानी में रूप रस को पान को लग्यो चस्को
रसवन्ती कन्यायें जब ,रूपरस लुटाये है
स्वाद अधर रस को चख ,प्रेमरस डूब गयो ,
रसिक हृदय ,रस प्रेमी ,'घोटू ' कहलाये है
एक रस एसो आयो ,सारे रस भुलवायो ,
कोरोना के वाइरस से ,सब ही घबराये है
गुणी पाठकों ,,
भाव वही ,शब्द वही पर अलग अलग छंदों में
लिखा है -एक मुक्तक है दूसरा सवैया है -
आपको कौनसा अच्छा लगा ,कृपया प्रतिक्रिया दें
धन्यवाद
आपका
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
१
मुक्तक
---------
मैं रसिक हृदय ,बचपन से ही ,शौक़ीन बहुत हूँ अमरस का
जब हुआ युवा ,तो नज़रों से ,करता था पान रूप रस का
लग गया प्रेम रस का चस्का ,पाया जब स्वाद अधर रस का
सारा रस प्रेम नदारद अब ,डर कोरोना के वाइरस का
२
सवैया
------
बचपन से अब तक ,आम चूसे छक छक ,
अमरस को स्वाद अब भी ,मेरे मन भाये है
जवानी में रूप रस को पान को लग्यो चस्को
रसवन्ती कन्यायें जब ,रूपरस लुटाये है
स्वाद अधर रस को चख ,प्रेमरस डूब गयो ,
रसिक हृदय ,रस प्रेमी ,'घोटू ' कहलाये है
एक रस एसो आयो ,सारे रस भुलवायो ,
कोरोना के वाइरस से ,सब ही घबराये है
गुणी पाठकों ,,
भाव वही ,शब्द वही पर अलग अलग छंदों में
लिखा है -एक मुक्तक है दूसरा सवैया है -
आपको कौनसा अच्छा लगा ,कृपया प्रतिक्रिया दें
धन्यवाद
आपका
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
Saturday, May 23, 2020
आम और जिंदगी -चार दोहे
१
मैंने चूँसा आम रस ,तुमने किया हलाल
तुमने टुकड़े खाये, मैं ,रस पी हुआ निहाल
२
अलग तरीके खान के ,फल है वो ही एक
तुम गूदा टुकड़े करो , देते गुठली फेंक
३
दबादबा,कर पिलपिला ,मैं पीयूँ रस घूँट
चूंस गुठलियां, ले रहा ,दूना आनंद लूट
४
ये जीवन है ,आम सा ,चूंसो ,मज़ा उठाव
यूं न काट,टुकड़े करो,कांटे,चुभा न खाव
घोटू
१
मैंने चूँसा आम रस ,तुमने किया हलाल
तुमने टुकड़े खाये, मैं ,रस पी हुआ निहाल
२
अलग तरीके खान के ,फल है वो ही एक
तुम गूदा टुकड़े करो , देते गुठली फेंक
३
दबादबा,कर पिलपिला ,मैं पीयूँ रस घूँट
चूंस गुठलियां, ले रहा ,दूना आनंद लूट
४
ये जीवन है ,आम सा ,चूंसो ,मज़ा उठाव
यूं न काट,टुकड़े करो,कांटे,चुभा न खाव
घोटू
Friday, May 22, 2020
हम प्यार जताना भूल गये
इस कोरोना के कारण तुम ,
हमको तरसाना भूल गये
हो गए तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये ,
जब दिन भर रहते जुदा जुदा
संध्या तक बढ़ती मिलन क्षुधा
अब इतने दिन लॉकडाउन में ,
हम पास पास ही रहे सदा
बच्चों से नज़र बचा करके ,
चुंबन को चुराना भूल गये
हो गये तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये
चाहे कितने ही रखो छुपा ,
तुम मास्क बाँध ,रस भरे अधर
सोफे पर चिपके बैठे हम ,
संग देखे टी वी गढ़ा नज़र
तिरछी नज़रों के तीर चला ,
तुम भी तड़फाना भूल गए
हो गए तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये
मीठे संग रह ,हलवाई की ,
मिट जाती है मीठे की तलब
ना लगती ज्यादा मिलन प्यास ,
चौबिस घंटे तुम पास हो जब
रह काम काज में व्यस्त सदा ,
तुम सजना सजाना भूल गये
हो गये तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये
दीवानापन था विवाह पूर्व ,
अपनापन शादी बाद हुआ
बन गया एक दिनचर्या सा ,
जब मिलन,सुलभ दिनरात हुआ
तुम भी शरमाना भूल गये ,
हमको ललचाना भूल गये
हो गए तृप्त है अब इतना ,
हम प्यार जताना भूल गये
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इस कोरोना के कारण तुम ,
हमको तरसाना भूल गये
हो गए तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये ,
जब दिन भर रहते जुदा जुदा
संध्या तक बढ़ती मिलन क्षुधा
अब इतने दिन लॉकडाउन में ,
हम पास पास ही रहे सदा
बच्चों से नज़र बचा करके ,
चुंबन को चुराना भूल गये
हो गये तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये
चाहे कितने ही रखो छुपा ,
तुम मास्क बाँध ,रस भरे अधर
सोफे पर चिपके बैठे हम ,
संग देखे टी वी गढ़ा नज़र
तिरछी नज़रों के तीर चला ,
तुम भी तड़फाना भूल गए
हो गए तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये
मीठे संग रह ,हलवाई की ,
मिट जाती है मीठे की तलब
ना लगती ज्यादा मिलन प्यास ,
चौबिस घंटे तुम पास हो जब
रह काम काज में व्यस्त सदा ,
तुम सजना सजाना भूल गये
हो गये तृप्त है अब इतने ,
हम प्यार जताना भूल गये
दीवानापन था विवाह पूर्व ,
अपनापन शादी बाद हुआ
बन गया एक दिनचर्या सा ,
जब मिलन,सुलभ दिनरात हुआ
तुम भी शरमाना भूल गये ,
हमको ललचाना भूल गये
हो गए तृप्त है अब इतना ,
हम प्यार जताना भूल गये
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
Thursday, May 21, 2020
【SEAnews:India Front Line Report】 May 20, 2020 (Wed) No. 3942
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