क्या कभी आपने सोचा था
क्या कभी आपने सोचा था ,कि ऐसे दिन भी आएंगे
जब हम थक कर सोनेवाले ,सोते सोते थक जाएंगे
हफ्ते भर करते काम तभी सन्डे की छुट्टी पाते थे
करते आराम ,बाल बच्चों संग ,अपना समय बिताते थे
था प्यार उमड़ता पत्नी का ,खाना मिलता था स्पेशल
था वक़्त गुजरता मस्ती में ,दिन में भी सो लेते जी भर
मिट जाती थी सारी थकान ,हम मन में हरषा करते थे
बस इसीलिये हम सन्डे की ,छुट्टी को तरसा करते थे
और फिर ऐसे भी दिन आये ,जब कहर करोना का टूटा
मिल गयी छुट्टियां इक्कीस दिन ,पर चैन हमारा था लूटा
सब बंद बाज़ार होटलें दफ्तर ,आना जाना बंद हुआ
नौकर चाकर , ,कामवालियां ,आने पर प्रतिबंध हुआ
अब घर का सब झाड़ू पोंछा ,और साफ़ सफाई गले पड़ी
तुम स्वयं पका ,बरतन मांजो ,होगयी मुश्किलें रोज खड़ी
सब्जी काटो ,आटा गूँधो ,और रोटी गोल बेलना फिर
थोड़े दिन तो एडजस्ट किया ,पर मुश्किल हुआ झेलना फिर
सब प्यार लुटाते जब एक दिन छुट्टी मिलती थी हफ्ते में
अब झगड़ा होता रोज रोज ,बढ़ती जाती तू तू ,मैं मैं
हर संडे अब फन डे न रहा अब पहले जैसी मौज नहीं
फरमाइश पत्नी और बच्चों की ,पूरी हो सकती रोज नहीं
है कभी कभी का मज़ा और ,है कभी कभी ही सुखदायक
इतने दिन तक तो निभा लिया ,हमने जैसे तैसे अबतक
है हमे कोरोना से लड़ना ,हर मुश्किल सर पर ले लेंगे
इक्कीस दिन तो है झेल लिया ,अब चालीस दिन भी झेलेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
क्या कभी आपने सोचा था ,कि ऐसे दिन भी आएंगे
जब हम थक कर सोनेवाले ,सोते सोते थक जाएंगे
हफ्ते भर करते काम तभी सन्डे की छुट्टी पाते थे
करते आराम ,बाल बच्चों संग ,अपना समय बिताते थे
था प्यार उमड़ता पत्नी का ,खाना मिलता था स्पेशल
था वक़्त गुजरता मस्ती में ,दिन में भी सो लेते जी भर
मिट जाती थी सारी थकान ,हम मन में हरषा करते थे
बस इसीलिये हम सन्डे की ,छुट्टी को तरसा करते थे
और फिर ऐसे भी दिन आये ,जब कहर करोना का टूटा
मिल गयी छुट्टियां इक्कीस दिन ,पर चैन हमारा था लूटा
सब बंद बाज़ार होटलें दफ्तर ,आना जाना बंद हुआ
नौकर चाकर , ,कामवालियां ,आने पर प्रतिबंध हुआ
अब घर का सब झाड़ू पोंछा ,और साफ़ सफाई गले पड़ी
तुम स्वयं पका ,बरतन मांजो ,होगयी मुश्किलें रोज खड़ी
सब्जी काटो ,आटा गूँधो ,और रोटी गोल बेलना फिर
थोड़े दिन तो एडजस्ट किया ,पर मुश्किल हुआ झेलना फिर
सब प्यार लुटाते जब एक दिन छुट्टी मिलती थी हफ्ते में
अब झगड़ा होता रोज रोज ,बढ़ती जाती तू तू ,मैं मैं
हर संडे अब फन डे न रहा अब पहले जैसी मौज नहीं
फरमाइश पत्नी और बच्चों की ,पूरी हो सकती रोज नहीं
है कभी कभी का मज़ा और ,है कभी कभी ही सुखदायक
इतने दिन तक तो निभा लिया ,हमने जैसे तैसे अबतक
है हमे कोरोना से लड़ना ,हर मुश्किल सर पर ले लेंगे
इक्कीस दिन तो है झेल लिया ,अब चालीस दिन भी झेलेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '