कोरोना ने क्या सिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
चालीस दिन तक,डर के मारे,घर के अंदर ही टिका दिया
पहले हफ्ते में कम से कम ,एक दिन तो होटल जाते थे
वह खाना मिर्च मसालों का ,चटकारे ले ले खाते थे
भरते होटल का मोटा बिल ,चाहे अजीर्ण ही हो जाता
लॉक डाउन में सब बंद हुए ,अब छूटा होटल से नाता
पर जब खाये रोज गरम ,फुल्के पत्नी के हाथ बने
और दाल हींग तड़के वाली ,सब्जी चटनी भी साथ बने
फिर प्यार भरा वो मनुहार ,सच खाने में रस आया है
है पेट ठीक ,खाने में भी ,अब हमने हाथ बटाया है
कैसे बनते खिचड़ी ,पुलाव ,और कैसे दलिया,सिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
ये सच है संग संग रहने से ,आपस में प्यार पनपता है
कुछ तू तू मैं मैं भी होती ,पर रिश्ता गहरा बनता है ,
झाड़ू पोंछा ,डस्टिंग ,बर्तन ,हर घर की है आवश्यकता
किसने सोचा बिन महरी कामवालियों के घर चल सकता
लेकिन जब मुश्किल आती है ,एक जुट हो जाते घरवाले
आपस में काम बाँट कर के ,चुटकी में निपटाते सारे
यह दौर कठिन था शुरु शुरु तकलीफ पड़ी सबको सहना
लेकिन अब हमने सीख लिया ,किस तरह आत्मनिर्भर रहना
मेहरी की किचकिच बंद हुई ,आइना उसको दिखा दिया
कोरोना तुम्हारी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
ना बेमतलब का खर्चा करना ,ना व्यर्थ घूमना मालों में
सबसे कम खर्च हुआ इन दिन ,पिछले कितने ही सालों में
हम सीख गए झाड़ू पोंछा ,बरतन सफाई ,कपडे धोना
थोड़े ही दिन में चमक गया ,है अब घर का कोना कोना
अब शुद्ध हवा में सांस ,आसमां नीला ,दिखते है तारे
है मिलना जुलना बंद ,फोन पर हालचाल मिलते सारे
दारू गुटखा तम्बाखु की,आदत से भी मुक्ति पायी
कोरोना से भी बचे रहे ,जीवन में नियमितता आयी
कर्तव्यपरायण पतियों में ,है नाम हमारा लिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
मेहमान नवाजी बंद हुई ,उन पर खर्चों की बचत हुई
गाड़ी ,स्कूटर बंद पड़े , ना पेट्रोल की खपत हुई
ना गरम समोसे मिलते है और गरम जलेबी भी अलभ्य
अब हाथ धो रहे बार बार ,रहते स्वस्थ और अधिक सभ्य
चुप रहते मुख पर मास्क बाँध ,छुट्टी अब सारे लफड़ो की
दफ्तर ना जाते ,जरूरत ना ,अब प्रेस किये सब कपड़ो की
दिन यूं ही गुजारा करते है ,हम कुर्ते और पाजामे में
या बरमूडा ,टी शर्ट, निकर,खर्चा न प्रेस करवाने में
मितव्ययी हो गए हम इतने ,खर्चा आधा कर दिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
चालीस दिन तक,डर के मारे,घर के अंदर ही टिका दिया
पहले हफ्ते में कम से कम ,एक दिन तो होटल जाते थे
वह खाना मिर्च मसालों का ,चटकारे ले ले खाते थे
भरते होटल का मोटा बिल ,चाहे अजीर्ण ही हो जाता
लॉक डाउन में सब बंद हुए ,अब छूटा होटल से नाता
पर जब खाये रोज गरम ,फुल्के पत्नी के हाथ बने
और दाल हींग तड़के वाली ,सब्जी चटनी भी साथ बने
फिर प्यार भरा वो मनुहार ,सच खाने में रस आया है
है पेट ठीक ,खाने में भी ,अब हमने हाथ बटाया है
कैसे बनते खिचड़ी ,पुलाव ,और कैसे दलिया,सिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
ये सच है संग संग रहने से ,आपस में प्यार पनपता है
कुछ तू तू मैं मैं भी होती ,पर रिश्ता गहरा बनता है ,
झाड़ू पोंछा ,डस्टिंग ,बर्तन ,हर घर की है आवश्यकता
किसने सोचा बिन महरी कामवालियों के घर चल सकता
लेकिन जब मुश्किल आती है ,एक जुट हो जाते घरवाले
आपस में काम बाँट कर के ,चुटकी में निपटाते सारे
यह दौर कठिन था शुरु शुरु तकलीफ पड़ी सबको सहना
लेकिन अब हमने सीख लिया ,किस तरह आत्मनिर्भर रहना
मेहरी की किचकिच बंद हुई ,आइना उसको दिखा दिया
कोरोना तुम्हारी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
ना बेमतलब का खर्चा करना ,ना व्यर्थ घूमना मालों में
सबसे कम खर्च हुआ इन दिन ,पिछले कितने ही सालों में
हम सीख गए झाड़ू पोंछा ,बरतन सफाई ,कपडे धोना
थोड़े ही दिन में चमक गया ,है अब घर का कोना कोना
अब शुद्ध हवा में सांस ,आसमां नीला ,दिखते है तारे
है मिलना जुलना बंद ,फोन पर हालचाल मिलते सारे
दारू गुटखा तम्बाखु की,आदत से भी मुक्ति पायी
कोरोना से भी बचे रहे ,जीवन में नियमितता आयी
कर्तव्यपरायण पतियों में ,है नाम हमारा लिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
मेहमान नवाजी बंद हुई ,उन पर खर्चों की बचत हुई
गाड़ी ,स्कूटर बंद पड़े , ना पेट्रोल की खपत हुई
ना गरम समोसे मिलते है और गरम जलेबी भी अलभ्य
अब हाथ धो रहे बार बार ,रहते स्वस्थ और अधिक सभ्य
चुप रहते मुख पर मास्क बाँध ,छुट्टी अब सारे लफड़ो की
दफ्तर ना जाते ,जरूरत ना ,अब प्रेस किये सब कपड़ो की
दिन यूं ही गुजारा करते है ,हम कुर्ते और पाजामे में
या बरमूडा ,टी शर्ट, निकर,खर्चा न प्रेस करवाने में
मितव्ययी हो गए हम इतने ,खर्चा आधा कर दिखा दिया
कोरोना तेरी दहशत ने ,हमको है क्या क्या सिखा दिया
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '