गजल -इश्क़ की आग
उनको भी बुढ़ापे में लगी ,आग इश्क़ की
गाने लगे है आजकल वो ,राग इश्क़ की
उनका मिज़ाज़ सख्त ,मुलायम है हो गया
बेसबरे लगाने को है ,छलांग इश्क़ की
ज्यों ज्यों करीब कब्र के दिन आरहे है पास
बढ़ती ही जा रही है उनकी ,मांग इश्क़ की
जिन्दा जिगर में हसरतें ,अब भी हजार है ,
रहते है धुत नशे में ,पी के भांग इश्क़ की
देखा जो उनका बावलापन ,'घोटू 'ने कहा ,
इस उम्र में क्यों खींचते हो टांग इश्क़ की
मदन मोहन बहती 'घोटू '
उनको भी बुढ़ापे में लगी ,आग इश्क़ की
गाने लगे है आजकल वो ,राग इश्क़ की
उनका मिज़ाज़ सख्त ,मुलायम है हो गया
बेसबरे लगाने को है ,छलांग इश्क़ की
ज्यों ज्यों करीब कब्र के दिन आरहे है पास
बढ़ती ही जा रही है उनकी ,मांग इश्क़ की
जिन्दा जिगर में हसरतें ,अब भी हजार है ,
रहते है धुत नशे में ,पी के भांग इश्क़ की
देखा जो उनका बावलापन ,'घोटू 'ने कहा ,
इस उम्र में क्यों खींचते हो टांग इश्क़ की
मदन मोहन बहती 'घोटू '