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Wednesday, July 29, 2020
पति -परमेश्वर ?
पति है पति ,देवता मत कहो
सर पर चढ़ाते उसे मत रहो
वो अर्धांग है ,तुम हो अर्धांगिनी
जीवन में उसकी हो तुम संगिनी
वो माटी का पुतला ,तुम्हारी तरह
महत्ता नहीं दो ,उसे बे वजह
तुम्हारी तरह उसमे कमियां कई
कभी कोई सम्पूर्ण होता नहीं
करता है वो भी कई गलतियां
नहीं तुमसे बढ़ कर तुम्हारा पिया
फरक ये तुम औरत ,वो मर्द है
तुम्हारा सखा और हमदर्द है
मजबूत काठी है ताकत अधिक
तुम्हारी बनिस्बत है हिम्मत अधिक
ईश्वर ने कोमल बनाया तुम्हे
नहीं किन्तु निर्बल ,बनाया तुम्हे
किसी क्षेत्र में उससे कम तुम नहीं
अक्सर ही उससे तुम आगे रही
जगतजननी तुम ,बात ये खास है
ममता की पूँजी है ,विश्वास है
तुम्ही लक्ष्मी ,लाती सुख ,सम्पदा
विद्या की देवी हो, तुम शारदा
शक्ति स्वरूपा हो दुर्गा हो तुम
माता हो तुम ,अन्नपूर्णा हो तुम
लिये नम्रता का मगर आचरण
तुम्ही पूजती हो पति के चरण
दुआ मांगती वो सलामत रहे
जन्मो तलक उसकी संगत रहे
उसी के लिए ,मांग सिन्दूर है
माता पिता सब हुये दूर है
व्रत भूखी रह करती उसके लिए
तपस्या ,समर्पण ,उसीके लिए
बना कर रखा है उसे देवता
तुम्हे जबकि मतलब पे वो पूछता
तुम्हारे मुताबिक जिया क्या कभी
तुम्हारे लिए व्रत ,किया क्या कभी
तुम्हे उसकी जरूरत है जितनी रही
तुम्हारी जरूरत ,उसे कम नहीं
घरबार उसका चलाती हो तुम
पकाकर के खाना,खिलाती हो तुम
तुम्हारे ही कारण ,बना स्वर्ग घर
श्रेय हर ख़ुशी का ,तुम्हारे ही सर
तुम्ही श्रेष्ठ हो और सर्वोपरी
दिखने में सुन्दर ,लगती परी
वो ईश्वर नहीं बल्कि ईश्वर हो तुम
बराबर नहीं उससे बढ़ कर हो तुम
जिससे तुम्हारा ,जन्मभर का रिश्ता
वो इंसान ही है ,न कोई फरिश्ता
परमेश्वर उसे तुम बनाओ नहीं
उसे पूज कर ,सर चढ़ाओ नहीं
सुख दुःख का साथी बराबर का वो
नहीं रूप कोई है ईश्वर का वो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पति है पति ,देवता मत कहो
सर पर चढ़ाते उसे मत रहो
वो अर्धांग है ,तुम हो अर्धांगिनी
जीवन में उसकी हो तुम संगिनी
वो माटी का पुतला ,तुम्हारी तरह
महत्ता नहीं दो ,उसे बे वजह
तुम्हारी तरह उसमे कमियां कई
कभी कोई सम्पूर्ण होता नहीं
करता है वो भी कई गलतियां
नहीं तुमसे बढ़ कर तुम्हारा पिया
फरक ये तुम औरत ,वो मर्द है
तुम्हारा सखा और हमदर्द है
मजबूत काठी है ताकत अधिक
तुम्हारी बनिस्बत है हिम्मत अधिक
ईश्वर ने कोमल बनाया तुम्हे
नहीं किन्तु निर्बल ,बनाया तुम्हे
किसी क्षेत्र में उससे कम तुम नहीं
अक्सर ही उससे तुम आगे रही
जगतजननी तुम ,बात ये खास है
ममता की पूँजी है ,विश्वास है
तुम्ही लक्ष्मी ,लाती सुख ,सम्पदा
विद्या की देवी हो, तुम शारदा
शक्ति स्वरूपा हो दुर्गा हो तुम
माता हो तुम ,अन्नपूर्णा हो तुम
लिये नम्रता का मगर आचरण
तुम्ही पूजती हो पति के चरण
दुआ मांगती वो सलामत रहे
जन्मो तलक उसकी संगत रहे
उसी के लिए ,मांग सिन्दूर है
माता पिता सब हुये दूर है
व्रत भूखी रह करती उसके लिए
तपस्या ,समर्पण ,उसीके लिए
बना कर रखा है उसे देवता
तुम्हे जबकि मतलब पे वो पूछता
तुम्हारे मुताबिक जिया क्या कभी
तुम्हारे लिए व्रत ,किया क्या कभी
तुम्हे उसकी जरूरत है जितनी रही
तुम्हारी जरूरत ,उसे कम नहीं
घरबार उसका चलाती हो तुम
पकाकर के खाना,खिलाती हो तुम
तुम्हारे ही कारण ,बना स्वर्ग घर
श्रेय हर ख़ुशी का ,तुम्हारे ही सर
तुम्ही श्रेष्ठ हो और सर्वोपरी
दिखने में सुन्दर ,लगती परी
वो ईश्वर नहीं बल्कि ईश्वर हो तुम
बराबर नहीं उससे बढ़ कर हो तुम
जिससे तुम्हारा ,जन्मभर का रिश्ता
वो इंसान ही है ,न कोई फरिश्ता
परमेश्वर उसे तुम बनाओ नहीं
उसे पूज कर ,सर चढ़ाओ नहीं
सुख दुःख का साथी बराबर का वो
नहीं रूप कोई है ईश्वर का वो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '