नेताजी और कुर्सी
मैं बोला यह नेताजी से
कब तक चिपकोगे कुर्सी से
देखो अपनी बढ़ी उमर को
किसी और को भी अवसर दो
बात सुनी ,बोले नेताजी
इससे चिपक ,रहूँ मैं राजी
मुझे सुहाती इसकी संगत
चेहरे पर रहती है रंगत
इसके कारण ,सांझ सवेरे
चमचे मुझको रहते घेरे
ये छूटी ,सब मुंह फेरेंगे
मुझको बिलकुल भाव न देंगे
परम भक्त हूँ ,मैं कुर्सी का
इसी भावना से हूँ चिपका
इससे मुझको बहुत मोहब्बत
मुझे चिपकने की है आदत
बचपन चिपक रहा मैं माँ से
और जवानी ,मेहबूबा से
अब कुर्सी से रहता चिपका
ये ही माँ ,ये ही मेहबूबा
चिपक रहूंगा ,इससे तब तक
हो जाता तैयार न जब तक
मेरा बेटा ,वारिस बन कर
जो बैठेगा ,इस कुर्सी पर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं बोला यह नेताजी से
कब तक चिपकोगे कुर्सी से
देखो अपनी बढ़ी उमर को
किसी और को भी अवसर दो
बात सुनी ,बोले नेताजी
इससे चिपक ,रहूँ मैं राजी
मुझे सुहाती इसकी संगत
चेहरे पर रहती है रंगत
इसके कारण ,सांझ सवेरे
चमचे मुझको रहते घेरे
ये छूटी ,सब मुंह फेरेंगे
मुझको बिलकुल भाव न देंगे
परम भक्त हूँ ,मैं कुर्सी का
इसी भावना से हूँ चिपका
इससे मुझको बहुत मोहब्बत
मुझे चिपकने की है आदत
बचपन चिपक रहा मैं माँ से
और जवानी ,मेहबूबा से
अब कुर्सी से रहता चिपका
ये ही माँ ,ये ही मेहबूबा
चिपक रहूंगा ,इससे तब तक
हो जाता तैयार न जब तक
मेरा बेटा ,वारिस बन कर
जो बैठेगा ,इस कुर्सी पर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '