Monday, December 20, 2021

मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 

मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं

जब सत्ता ने दामन त्यागा
तब मेरा लड़कीपन जागा 
प्रोढ़ा हुई पचास बरस की ,
तब लड़की वाला हक मांगा 
सूखी नदी, मगर वर्षा में ,
फिर से कभी उमड़ सकती हूं 
मैं लड़की हूं,लड़की सकती हूं

 जब शासन था, लूटा जी भर
 अब निर्बल, तो याद आया बल 
 नौ सौ चूहे मार बिलैया 
 ने थामा धर्मों का आंचल 
 जनता में भ्रम फैलाने को ,
 कितने किस्से गढ़ सकती हूं
 मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं

 मेरा भाई युवा नेता है 
 अल्प बुद्धि , इक्कावन का है 
 बूढ़ी मां है सपन संजोये,
 फिर से पाने को सत्ता है 
 जल गई रस्सी, पर न गया बल,
 अब भी बहुत जकड़ रखती हूं
 मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं 
 
हुई  खोखली, वंशवाद जड़ 
पर जनता भोली है,पागल 
सेवक असंतुष्ट पुराने 
चमचे नाव खे रहे केवल 
बोल बोलती बड़े-बड़े में ,
अभी बहुत पकड़ रखती हूं 
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 

मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
सबसे आगे बढ़ सकती हूं 

मेरा अगर ध्येय निश्चय है 
तो फिर मेरी सदा विजय है 
मैं उन्नति के उच्च लक्ष्य पर ,
अपने बल पर चढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं

सही राह है ,सोच सही है 
और लगन की कमी नहीं है 
मैं नारी हूं ,शक्ति स्वरूपा ,
निज भविष्य खुद गढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं 

शिक्षा ही मेरा जेवर है 
मेरे लिए खुल अवसर है
राहों की सारी बाधाएं , 
तोड़ में आगे बढ़ सकती हूं 
 मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 
 
है संघर्ष भरा यह जीवन 
तप कर अधिक निखरता कुंदन 
मुझ में बल है, बहुत प्रबल मैं,
शीर्ष पदों पर चढ़ सकती हूं 
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 
सबसे आगे बढ़ सकती हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू

Sunday, December 12, 2021

Thursday, December 2, 2021

हमारी जिंदगी

 हमारी जिंदगी भी इस तरह के मोड़ लेती है 
 किसी अनजान के संग दिल के रिश्ते जोड़ लेती है
 
 कभी राहों की बाधाएं और रोड़ों पर अटक जाती 
 कभी अनजान रस्तों पर, रुक जाती, भटक जाती 
 कभी दुर्गम कठिन पथ पर ,सहज से दौड़ लेती है हमारी जिंदगी भी किस तरह के मोड़ लेती है 
 
कभी सुख में, खुशियों की, फुहारों से भिगो देती 
परेशां होती ,आंखों में ,भरे आंसू ,वो रो देती 
कभी मुश्किल दुखों की बाढ़ से झिंझोड़ देती है 
हमारी जिंदगी भी किस तरह के मोड़ लेती है 

मोह माया के फेरे में उम्र यूं ही गुजर जाती 
कभी थोड़ी संवर जाती ,कभी थोड़ी बिखर जाती 
बहुत सी खट्टी मीठी यादें पर वह छोड़ देती है 
हमारी जिंदगी भी इस तरह के मोड़ लेती है 

बड़ी मुश्किल पहेली यह कठिन है बूझना इसका 
मगर उलझा ही रहता है ,दीवाना हर जना इसका 
जिएं लंबा यही चाहत मौत से होड़ लेती है 
हमारी जिंदगी में किस तरह के मोड़ लेती है

मदन मोहन बाहेती घोटू

Saturday, November 27, 2021

बुढ़ापा ऐसा आया रे

लगा है जीवन देने त्रास
रहा ना कोई भी उल्लास
मन मुरझाया,तन अलसाया, 
गया आत्मविश्वास 
सांस सांस ने हो उदास ,
अहसास दिलाया रे
वक्त यह कैसा आया रे 
बुढ़ापा तन पर छाया रे 

बदलते ढंग, मोह हैभंग 
समय संग,जीवन है बेरंग 
व्याधियां रोज कर रही तंग 
बची ना कोई तरंग ,उमंग 
रही न तन की तनी पतंग ,
उमर संग ढलती काया रे 
वक्त यह कैसा आया रे 
बुढ़ापा तन पर छाया रे 

बड़ा ही आया वक्त कठोर 
श्वास की डोर हुई कमजोर 
सूर्य ढलता पश्चिम की ओर 
नजर आता है अंतिम छोर
तन का पौर पौर अब तो 
लगता कुम्हलाया रे 
वक्त यह कैसा आया रे 
बुढ़ापा तन पर छाया रे

ना है विलास ना भोग
 पड़ गए पीछे कितने रोग 
 साथ समय के साथी छूटे 
 लगे बदलने  लोग
अपनों के बेगानेपन ने 
बहुत सताया रे
वक्त ये कैसा आया रे
बुढापा हम पर छाया रे


 हमारे मन में यही मलाल
 रहे ना पहले से सुर ताल
 हुई सेहत की पतली दाल 
 नहीं रख पाते अपना ख्याल 
 बदली चाल ढाल में  अब ना 
 जोश बकाया रे
 वक्त ये कैसा आया रे
 बुढापा हम पर छाया रे


 रहा ना जोश,बची ना आब
 बहुत सूने सूने है ख्वाब 
 अकेले बैठे हम चुपचाप 
 बस यही करते रहे हिसाब 
 पूरे जीवन में क्या खोया 
 और क्या पाया रे 
 वक्त ये कैसा आया रे 
 बुढ़ापा हम पर छाया रे

मदन मोहन बाहेती घोटू

Saturday, November 20, 2021

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Friday, November 19, 2021

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Sunday, November 14, 2021

जिंदगी जगमग दिवाली हो गई 

तूने घूंघट हटाया चंदा उगा,धूप भी अब बन गई है चांदनी 
तेरे अधुरो का मधुर स्पर्श पा, शब्द हर एक बन गया है रागिनी 
जब से तेरे कपोलों को छू लिया, हाथ में खुशबू गुलाबी सन गई
हुईं हलचल दिल मचलने लग गया, भावनाएं कविताएं बन गई 
छू कर तेरी रेशमी सी हथेली, हरी मेहंदी, लाल रंग में रच  गई 
देख मुझको मुस्कुरा दी तू जरा ,सपनों की बारात मेरी सज गई 
तेरी नज़दीकियों के एहसास से, मेरी सब सांसे सुहागन हो गई 
फूल मन के चमन में खिलने लगे ,बावरी यह उम्र दुल्हन हो गई 
ऐसे बिखरे फूल हरसिंगार के ,हवाएं मादक निराली हो गई
आशाओं के दीप रोशन हो गए, जिंदगी जगमग दिवाली हो गई

मदन मोहन बाहेती घोटू
कितना बहुत होता है 

संतोष जब अपनी परिधि को तोड़ता है 
तो वह कुछ और पाने के लिए दौड़ता है 
जब भी चाह और अभिलाषाएं बलवती होती है 
तभी नए अन्वेषण और प्रगति होती है 
इस और की चाह ने हमें बहुत कुछ दिया है 
आदमी को चांद तक पहुंचा दिया है 
अभी जितना है अगर उतना ही होता 
तो विज्ञान इतना आगे नहीं बढ़ा होता 
और की चाह जीवन में गति भरती है 
और की कामना, कर्म को प्रेरित करती है 
इसलिए आदमी को चाहिए कुछ और 
यह मत पूछो कितना बहुत होता है ,
क्योंकि और का नहीं है कोई छोर 
कल मेरे पास बाइसिकल थी 
मुझे लगा इतना काफी नहीं है 
मैंने और की कामना की 
स्कूटर आइ, फिर मारुति फिर बीएमडब्ल्यू 
और फरारी की चाह है 
यही प्रगति की राह है

मदन मोहन बाहेती घोटू
आज ठीक से नींद ना आई

आज ठीक से नींद ना आई, रहा यूं ही में सोता जगता रहे मुझे सपने आ ठगते,मैं सपनों के पीछे भगता 

नींद रही उचटी उचटी सी ,बिखरे बिखरे सपने आए खट्टी मीठी यादें लेकर, कुछ बेगाने अपने आए 
कभी प्रसन्न रहा मैं हंसता ,कभी क्रोध से रहा सुलगता रात ठीक से नींद ना आई, रहा रात भर सोता जगता

जाने कहां कहां से आई ,कितनी बातें नई पुरानी 
दाल माखनी सी यादें थी ,पकी खयालों की बिरयानी सपनों ने मिलकर दावत दी ,सब पकवान रहा मैं छकता राज ठीक से नींद ना आई,रहा रात भर सोता जगता

मदन मोहन बाहेती घोटू

Sunday, November 7, 2021

Re:

Wah tauji :D

Ekdum zaikedar poem hai 

On Sun, Nov 7, 2021, 12:13 PM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
आयुष का इंदौरी प्यार 

नाश्ते में प्यार के पोहे जलेबी,
 सेव मिक्चर जीरावन नींबू मिलाके 
 लंच में उल्फत के घी में तरमतर जो ,
 वो मुलायम बाफले खाता दबाके 
 साथ में मीठा तेरी बातों के जैसा,
 चूरमा है केसरी मन को लुभाता 
 शाम को मैं मोहब्बत से भरी पेटिस,
  नर्म भुट्टो का सुहाना किस मैं पाता 
  बहुत दिन के बाद ये पकवान पाए 
  प्यारा का मौसम त्योंहारी हो गया है 
  चाह छप्पन भोग की पूरी हुई है,
  आजकल यह मन इंदौरी हो गया है

घोटू
आयुष का इंदौरी प्यार 

नाश्ते में प्यार के पोहे जलेबी,
 सेव मिक्चर जीरावन नींबू मिलाके 
 लंच में उल्फत के घी में तरमतर जो ,
 वो मुलायम बाफले खाता दबाके 
 साथ में मीठा तेरी बातों के जैसा,
 चूरमा है केसरी मन को लुभाता 
 शाम को मैं मोहब्बत से भरी पेटिस,
  नर्म भुट्टो का सुहाना किस मैं पाता 
  बहुत दिन के बाद ये पकवान पाए 
  प्यारा का मौसम त्योंहारी हो गया है 
  चाह छप्पन भोग की पूरी हुई है,
  आजकल यह मन इंदौरी हो गया है

घोटू

Saturday, October 30, 2021

नटखट

सब कहते जब मैं बच्चा था ,मैं शैतान बड़ा नटखट था
कभी चैन से नहीं बैठता, करता रहता उलट पलट था
सभी चीज कर जाता था चट
मैं था नटखट, नटखट नटखट
बढ़ा हुआ पत्नी  कहने पर नाचा करता बनकर नट मैं
नहीं चैन पलभर भी पाया,फंसा गृहस्थी की खटपट में  
काम सभी करता था झटपट
मैं था नटखट ,नटखट नटखट
अब बूढ़ा हूं ,मेरे अस्थिपंजर के ढीले हैं सब नट 
लेटा रहता पड़ा खाट पर, मुझसे ना होती है खटपट
 हर एक उम्र में झंझट झंझट 
 रहा उमरभर,नटखट नटखट

मदन मोहन बाहेती घोटू
आलू 

आलू आलू आलू मसाले वाले आलू 
आलू बिन ना भावे, मैं कैसे खाना खा लूं 

आलू है बेटे धरती के 
आलू शालिग्राम सरीखे
 गोलमोल है प्यारे प्यारे 
 इन्हें प्यार करते हैं सारे 
 घुंघट जैसे पतले छिलके
अंदर गौर वर्ण तन झलके
बसे हुए जन जन जीवन में 
मौजूद है हर एक भोजन में 
गरम परांठा, आलू वाला 
संग बेड़मी, स्वाद निराला 
आलू भरा मसाला डोसा 
आलू बिन ना बने समोसा 
बड़ा पाव ,आलू के दम पर 
पावभाजी में आलू जी भर
आलू युक्त बटाटा पोहा 
खाने वाले का मन मोहा 
बड़े ठाठ से रहते आलू 
हरेक चाट में रहते आलू 
गरम करारी ,आलू टिक्की 
दही सोंठ संग लागे निक्की
गोलगप्पों में भर लो आलू 
फ्राय तवे पर करलो आलू
आलू टिक्की वाला बर्गर 
आलू है पेटिस के अंदर 
आलू का कटलेट निराला
फ्रेंच फ्राय में आलू आला
भुने हुऐआलू सबसे बढ़
 स्वाद लगे,आलू के पापड़ 
बीकानेरी आलू भुजिया 
मन भाता,आलू का हलवा 
हर मौसम में मिलते आलू 
हर सब्जी संग खिलते आलू 
मटर साथ रस्से के आलू 
दही डाल लो,खट्टे आलू 
मेथी आलू ,सूखी सब्जी 
आलू पालक, हर लेता जी 
बैंगन के संग ,आलू बैंगन 
आलू गोभी खा हरसे मन 
सूखे आलू, जीरा आलू 
आलू दम,कश्मीरा आलू 
चख कर देखो, आलू अचारी
आलू सब पर पड़ते भारी
आलू सबसे मिलकर राजी
स्वाद भरी है,पूरी भाजी
चिप्स बना कर , खाओ जी भर
बहुत स्वाद,आलू के वेफर
राज हर तरफ है आलू का
बिन आलू के भोजन सूखा
जित देखो आलू ही आलू
आलू खा ,भोजन सुख पालूं
आलू की कचौड़ी,पकोड़े बना लूं 
आलू आलू आलू, मसाले वाले आलू

मदन मोहन बाहेती घोटू

Thursday, October 21, 2021

मेरी बुजुर्गियत

मेरी बुजुर्गियत
बन गई है मेरी खसूसियत
और परवान चढ़ने लगी है ,
मेरी शख्सियत 
हिमाच्छादित शिखरों की तरह मेरे सफेद बाल 
उम्र के इस सर्द मौसम में ,लगते हैं बेमिसाल 
पतझड़ से पीले पड़े पत्तों की तरह ,
मेरे शरीर की आभा स्वर्णिम नजर आती है 
आंखें मोतियों को समेटे ,मोतियाबिंद दिखाती है 
नम्रता मेरे तन मन में इस तरह घुस गई है 
कि मेरी कमर ही थोड़ी झुक गई है 
मधुमेह का असर इस कदर चढ गया है 
कि मेरी वाणी का मिठास बढ़ गया है 
अब मैं पहाड़ी नदी सा उछलकूद नहीं करता हूं
मैदानी नदी सा शांत बहता हूं
मेरा सोच भी नदी के पाट की तरह,
विशाल होकर ,बढ़ गया है
मुझ पर अनुभव का मुलम्मा चढ़ गया है
अब मैं शांत हो गया हूं
संभ्रांत हो गया हूं
कल तक था सामान्य
अब हो गया हूं गणमान्य
बढ़ गई है मेरी काबलियत
मेरी बुजुर्गियत
निखार रही है मेरी शक्सियत
मुझमें फिर से आने लगी है,
वो बचपन वाली मासूमियत

मदन मोहन बाहेती घोटू

Wednesday, October 20, 2021

नया दौर 

उम्र का कैसा गणित है 
भावनाएं भ्रमित हैं 
शांत रहता था कभी जो,
 बड़ा विचलित हुआ चित है
 पुष्प विकसित था कभी, मुरझा रहा है 
 जिंदगी का दौर ऐसा आ रहा है 
 
ना रही अब वह लगन है 
हो गया कुछ शुष्क मन है 
लुनाई गायब हुई है,
शुष्क सा सारा बदन है 
जोश और उत्साह बाकी ना रहा है
 जिंदगी का दौर एसा आ रहा है 
 
जवानी जो थी दिवानी
 बन गई बीती कहानी 
 एक लंगडी भिन्न जैसी,
  हो गई है जिंदगानी 
 प्रखर सा था सूर्य, अब ढल सा रहा है 
 जिंदगी का दौर एसा आ रहा है

मदन मोहन बाहेती घोटू
मुझे डायबिटीज है

 मैं ,जलेबी सा टेढ़ा मेढ़ा,
  गुलाब जामुन सा रंगीला 
  गजक की तरह खस्ता,
  चिक्की की तरह चटकीला 
  
  बर्फी की तरह सादा ,
  पेड़े की तरह घोटा हुआ
   रबड़ी की तरह लच्छेदार 
   कढ़ाई दूध की तरह ओटा हुआ 
   
   मोतीचूर सा सहकारी ,
   रसगुल्ले सा मुलायम 
   बालूशाही सा शाही,
    हलवे सा नरम गरम 
    
    मीठी मीठी बातें हैं,
     मीठी सी मुस्कान है 
     मेरा यह मन तो ,
     हलवाई की दुकान है 
     
     पर मेरे मन में एक टीस है
      कि मुझे डायबिटीज है

मदन मोहन बाहेती घोटू
हम हैं अस्सी ,मीठी लस्सी

 हम तो भुट्टे ,सिके हुए हैं 
 तेरे प्यार में बिके हुए हैं 
 तू टॉनिक सी ताकत देती,
  बस दवाई पर टिके हुए हैं 
  मन की पीड़ा किस संग बांटे 
  साठे थे जब ,हम थे पाठे
 उम्र भले ही अब है अस्सी
  हम अब भी है मीठी लस्सी 
  
हाथ पाव सब ही ढीले हैं 
पर तबीयत के रंगीले हैं 
खट्टे मीठे कितने अनुभव ,
कुछ सुख के, कुछ दर्दीले हैं 
देखी रौनक और सन्नाटे 
साठे थे जब , हम थे पाठे 
उम्र भले ही अब है अस्सी
हम अब भी है मीठी लस्सी

ढलने को अब आया है दिन 
आभा किंतु शाम की स्वर्णिम 
रह रह हमें याद आते हैं ,
गुजरे वो हसीन पल अनगिन
बाकी दिन अब हंसकर काटे
 साठे थे जब, हम थे पाठे
 उम्र भले ही अब है अस्सी
 हम अब भी है मीठी लस्सी 

मदन मोहन बाहेती घोटू
चालिस पार ,ढलती बहार

लगा उड़ने तन से , जवानी का पालिश 
उमर भी है चालिस,कमर भी है चालिस

 कनक की छड़ी सी कमर आज कमरा 
 रहा पहले जैसा ,नहीं नाज नखरा 
 गए दिन मियां फाख्ता मारते थे 
 बचाकर नजर जब सभी ताड़ते थे 
 नहीं मिलने की कोई करता गुजारिश 
 उमर भी है चालिस, कमरभीहै चालिस
 
बेडौल सा तन,हुआ ढोल जैसा 
बुढ़ापे का आने लगा है अंदेशा 
हंसी की खनक भी बची है नहीं अब 
वो रौनक वो रुदबा, हुआ सारा गायब 
मोहब्बत की घटने लगी अब है ख्वाइश 
उमर भी है चालिस, कमर भी है चालिस

हनुमान चालीसा पढ़ना पढ़ाना 
और राम में मन अपना रमाना 
चेहरे की रौनक खिसकने लगी है 
जाती जवानी सिसकने लगी है 
गए चोंचले सब ,झप्पी नहीं किस 
उमर भी यह चालिस, कमरभी है चालिस

न मौसम बसंती ,न मौंजे न मस्ती
जुटो काम में और संभालो गृहस्थी
नहीं अब बदन में बची वो लुनाई 
सफेदी भी बालों में पड़ती दिखाई 
जलवे जवानी के हैं टाय टाय फिस
 उमर भी है चालिस, कमर भी है चालिस

मदन मोहन बाहेती घोटू

Tuesday, October 19, 2021



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Tuesday, October 5, 2021

नेता मेरे देश के 

मेरे देश में नेताओं की इतनी सारी किस्मे है 
रत्ती भर भी देशभक्ति पर ना उसमें ना इसमें है 
ये सब के सब जहरीले हैं और तरबतर विष में है 
गिने चुने हैं देशभक्ति का थोड़ा जज्बा जिसमें है 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे 
मस्जिद में अल्ला कहते है और मंदिर में राम हैं 
इनका कोई धरम नहीं है, ना कोई ईमान है 
ये मन के अंदर काले हैं बस उजला परिधान हैं 
इन पर नहीं भरोसा करना ये तो नमक हराम है 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे
अरे देश को गिरवी रख दें, ये लालच में अंधे हैं 
लूट खसोट, रिश्वतें लेना ,इनके गोरखधंधे हैं 
इनका मन भी साफ नहीं है और इरादे गंदे हैं 
जहां रहे दम ,वही रहे हम, ये तो बस ऐसे बंदे हैं 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बचकर रहना रे 
नहीं वतन के रक्षक है ,ये वतन लूटने वाले हैं 
तुम्हें सफेदी पोते दिखते पर यह कौवे काले हैं 
खुद ही की सेवा करने का भाव हृदय में पाले हैं 
इतने सालों इनकी करतूतें हम देखे भाले हैं 
मेरा है यह कहना रे 
इनसे बचकर रहना रे
एक बार जो राजनीति में जैसे तैसे सेट हुए 
रिश्वत और दलाली खाकर ,इनके मोटे पेट हुए 
कल गरीब थे, कुर्सी पाई, अब ये धन्ना सेठ हुए
बाइसिकल पर चलने वालों के अब अपने जेट हुए 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 नहीं भरोसे काबिल है ये बातें कोरी करते हैं 
 वोट मांगने तुम्हें मनाने हाथाजोड़ी करते हैं 
 कट्टर से कट्टर दुश्मन से भी गठजोड़ी करते है
 कैसे भी सत्ता हथियालें, भागादोड़ी करते हैं 
 मेरा है यह कहना रे
 इनसे बचकर रहना रे 
 आते नजर चुनाव दिनों में ये मेंढक बरसाती है 
 नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को जाती है 
 इनकी जाति धर्म की चाले लोगों को भड़काती है
 ये मतलब के यार हैं केवल,नहीं किसी के साथी हैं 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 मुफ्त मुफ्त की खैरातें दे ये तुमको ललचाएंगे 
 साम दाम और दंड भेद से ,अपना चक्र चलाएंगे 
 कैसे भी दंद फंद करेंगे ,वोट आपका पाएंगे 
 और जो कुर्सी पाएंगे तो भूल तुम्हें यह जाएंगे 
 मेरा है यह कहना रे
 इनसे बचकर रहना रे
 जाए भाड़ में देश तरक्की,पहले अपनी करते हैं
 जनता भूखी रहे पेट ये पहले अपना भरते हैं 
 छुपी बगल में छुरी भले ही मुख से राम सुमरते हैं 
 सत्ता पाकर बने निरंकुश नहीं किसी से डरते हैं 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 रंगे हुए सियार है ये सब इनसे बचकर रहना रे 
 इनकी मीठी मीठी बातें ,वादों में मत बहना रे 
 बाकी समझदार तो सब है हमको इतना कहना रे 
 पांच साल तक वरना मुश्किल तुम्हें पड़ेगी सहना रे
  इसीलिए यह कहना रे
  इन से बच कर रहना रे
 जब भी आएगा चुनाव
 तुम वोट समझ कर देना रे

मदन मोहन बाहेती घोटू

Monday, October 4, 2021

उड़ परिंदे उड़

उड़ परिंदे उड़ 
रोज होने वाली जीवन की
गतिविधियों से जुड़
उड़ परिंदे उड़ 

देख है कितना दिन चढ़ा
सोच रहा क्या पड़ा पड़ा 
 पंख तू अपने फड़फड़ा 
 कदम लक्ष्य की और बढ़ा
  अपना आलस झाड़ कर 
  दाना पानी जुगाड़ कर 
  जीने को ये करना पड़ता 
 और पेट है भरना पड़ता 
  कोई मदद को ना आएगा 
  तू भूखा ही मर जाएगा 
  इसलिए ऊंची उड़ान भर,
  तू पीछे मत मुड़
  उड़ परिंदे उड़

मदन मोहन बाहेती घोटू

Sunday, October 3, 2021

तुम इज्जत करो बुजुर्गों की

कुछ खाने से परहेज नहीं ,कुछ पीने से परहेज नहीं उल्टी-सीधी हरकत करने से भी है कोई गुरेज नहीं करती परहेज बुजुर्गों से, क्यों नई उमर की नई फसल 
जबकि मालूम उन्हें उनकी भी ये ही हालत होनी कल

आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गो की

जो सोचे सदा तुम्हारा हित, हैं खेरख्वाह सोते जगते
जिनके कारण तुम काबिल हो, वो नाकाबिल तुमको लगते 
उनके विचार संकीर्ण नहीं उनकी भी सोच आधुनिक है 
वो है भंडार अनुभव का,और प्यार भरा सर्वाधिक है दिल उनका अब भी है जवान, मत देखो बूढ़ी हुई शकल 
करती परहेज बुजुर्गों से क्यों नई उमर की नई फसल

आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
 
 यह सच है कि उनमें तुमने अंतर आया एक पीढ़ी का 
पर ऊंचा तुम्हें उठाने उनने, काम किया है सीढ़ी का 
 वह संरक्षक है, शिक्षक है ,वह पूजनीय सन्मान करो 
उनके आशीर्वादो से तुम, निज जीवन का उत्थान करो 
तुम खुश किस्मत हो कि उनका साया है तुम्हारे सर पर 
करती परहेज बुजुर्गों से ,क्यों नई उमर की नई फसल

आवश्यक बहुत हिफाजत है संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की

मदन मोहन बाहेती घोटू
 क्या होगा
 
जब डॉक्टर ही बिमार पड़े तो फिर मरीज का क्या होगा जब पत्नीजी दिन रात लड़े तो पति गरीब का क्या होगा

 जब मुंह के दांत ही आपस में, हरदम टकराते रहते हैं, तो दो जबड़ों के बीच फंसी, मासूम जीभ का क्या होगा 
 
हमने उनपे दिल लुटा दिया और उनसे मोहब्बत कर बैठे  पर उनने ठुकरा दिया हमेअब इस नाचीज़ का क्या होगा

 वह दूर दूर बैठे, घंटों , जब आंख मटक्का करते हैं किस्मत ने मिला दिया जो तो,मंजर करीब का क्या होगा
 
अरमानों से पाला जिनको, कर रहे तिरस्कृत वह बच्चे बूढ़े होते मां बाप दुखी, उनकी तकलीफ का क्या होगा

कहते हाथों की लकीरों में, किस्मत लिखता ऊपरवाला मेहनत से घिसें लकीरे तो, उनके नसीब का क्या होगा

 महंगाई से तो ना लड़ते,लड़ते कुर्सी खातिर नेता ,
होगा कैसे उन्नत यह देश , इसके भविष्य का क्या होगा

मदन मोहन बाहेती घोटू

Thursday, September 30, 2021

लकीरे 

चित्रकार के हाथों जब लकीरे उकरती है 
तो कैनवास पर जागृत हो जाती है एक सूरत 
किसी नक्शे की लकीरे,जब दीवारें बन कर उगती है 
तो खड़ी हो जाती है एक इमारत 
लकीरों की ज्यामिति के बल पर ही ,
इंसान चांद तक पहुंच पाता है 
पगडंडी सी लकीरे ,जब प्रगति करती है
 तो राजमार्ग बन जाता है 
 नारी की मांग में सिंदूर की लकीर 
 उसके सुहागन होने की निशानी है 
 परंपरा की लकीरों पर चलकर ही,
 हमें अपनी संस्कृति बचानी है 
 महाजनों के पदचिन्हों की लकीरें 
 हमारी प्रगति के लिए पथ प्रदर्शक है 
 नारी के तन की वक्ररेखाएं 
 उसे बनाती बहुत आकर्षक है 
 परेशानी में आदमी के माथे पर 
 चिंता की लकीरें खिंच जाती है 
 हमारे सलोने चेहरे पर झुर्रियों की लकीरें 
 बढ़ती हुई उम्र का अहसास कराती है 
 हमारी हथेली में लकीरों में 
 भगवान ने लिख कर भेजी हमारी तकदीर है 
 आप माने ना माने मगर यह सच है 
 कि हर बंदा लकीर का फकीर है

मदन मोहन बाहेती घोटू

Wednesday, September 29, 2021

गुब्बारे 

भैया हम गुब्बारे हैं 
भरी हवा है, फूल रहे हम मगर गर्व के मारे हैं 
भैया हम गुब्बारे हैं 
अभी जवानी है, तनाव है,चमक दमक चेहरे पर है 
उड़े उड़े हम फिरते, जैसे लगे हुए हम पर, पर हैं 
बच्चे हम संग खेल रहे ,हम बच्चों का मन बहलाते
शुभअवसर पर, साज सजावट में हम सबके मनभाते  संग हवा के उड़ते रहते, हम निरीह बेचारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं
दिखने की ढब्बू है लेकिन हम तन के कमजोर बड़े 
जाते फूट,अगर छोटा सा कांटा भी जो हमें गढ़े
यूं भी धीरे-धीरे हवा निकल जाती, मुरझाते हम
क्षणभंगुर है जीवन फिर भी रहते हैं मुस्काते हम 
प्राणदायिनी हवा ,हवा में बसते प्राण हमारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू
मेरी दादी 

आज अचानक याद आ गई मुझको मेरी दादी की 
नेह भरी, प्यारी, मुस्काती,  निश्चल सीधी-सादी की 
गोरा चिट्टा गोल बहुत था, जब हंसती मुस्कुराती थी 
तो हाथों से मुंह ढक अपने, टूटे दांत छुपाती थी 
दादाजी थे स्वर्ग सिधारे ,जब बाबूजी नन्हे थे 
पालपोस कर बड़ा किया,दुख कितने झेले उनने थे 
वात्सल्य की मूरत थी वो, सब के प्रति था प्यार भरा बच्चों खातिर,सबसे भिड़ती,डर था मन में नहीं जरा
हर मुश्किल से टक्कर लेती, उनमें इतनी हिम्मत थी
 संघर्षों से खेली थी वह ,बड़ी जुझारू, जीवट थी 
मुझे सुला अपनी गोदी में, मेरा सर सहलाती थी 
किस्से और कहानी कहती,अक्सर मुझे सुलाती थी 
मैं शैतानी करता कोई ,अगर शिकायत आती थी 
तो बाबूजी की पिटाई से, दादी मुझे बचाती थी 
नन्हें हाथों से दादी की, पीठ खुजाया करता मैं 
तो बदले में दादी से ,एक पैसा पाया करता मैं 
पांव दुखा करते दादी के, उन्हें गूंधता में चढ़कर 
दो पांवों के दो पैसे ,दादी से लेता मैं लड़ कर
सब पर स्नेह लुटानेवाली ,सबके मन को भाती की
आज अचानक याद आगई ,मुझको मेरी दादी की 

मदन मोहन बाहेती घोटू

Sunday, September 26, 2021

क्यों

 जिसमें होती अक्ल जरा कम ,
 उसे कम अक्ल कहते हैं सब,
  तो क्यों मंद अक्ल वाले को 
  कहते अकलमंद और ज्ञानी 
  
  कलम रखो वह कलमदान है,
   फूल रखो वह फूल दान है ,
   पास फटकने ना दे मच्छर 
   क्यों कहलाती मच्छरदानी 
   
   जिसका चेहरा भाव शून्य हो 
   लगती हो पत्थर की मूरत 
   आती जिसको कभी हंसी ना,
    मगर हसीना वह कहलाती 
    
    जोर नहीं कमजोर ठीक है, 
    होती जिसमें कोई कमी ना ,
    मगर कमीना कहलाता है
    बात समझ में यह ना आती

घोटू
प्रतिबंधित जीवन 

प्रतिबंधों के परिवेश में ,जीवन जीना बहुत कठिन है 
बात बात में ,मजबूरी  के ,आंसूं पीना  बहुत कठिन है 

रोज रोज पत्नीजी हमको ,देती रहती  सीख नयी है
इतना ज्यादा ,कंट्रोल भी ,पति पर रखना ठीक नहीं है 
आसपास सुंदरता बिखरी ,अगर झांक लूं ,क्या बिगड़ेगा 
नज़र मिलाऊँ ,नहीं किसी से ,मगर ताक लूं ,क्या बिगड़ेगा 
पकती बिरयानी पड़ोस में ,खा न सकूं ,खुशबू तो ले लूं 
सुन सकता क्या नहीं कमेंट्री ,खुद क्रिकेट मैच ना खेलूं 
चमक रहा ,चंदा पूनम का ,कर दूँ उसकी अगर प्रशंसा 
क्या इससे जाहिर होता है ,बिगड़ गयी है मेरी मंशा
खिले पुष्प ,खुशबू भी ना लूं ,बोलो ये कैसे मुमकिन है 
प्रतिबंधों के परिवेश में ,घुट घुट जीना बहुत कठिन है 

शायद तुमको डर तुम्हारे ,चंगुल से मैं निकल जाऊँगा 
यदि ज्यादा कंट्रोल ना रखा  ,मैं हाथों से फिसल जाऊँगा 
मुझे पता ,इस बढ़ी उमर में ,एक तुम्ही पालोगी मुझको 
कोई नहीं जरा पूछेगा ,तुम्ही  घास डालोगी मुझको
खुले खेत में जा चरने की ,अगर इजाजत भी दे दोगी 
मुझमे हिम्मत ना चरने की ,कई रोग का ,मैं हूँ रोगी
तरह तरह के पकवानो की ,महक भले ही ललचायेगी 
मुझे पता ,मेरी थाली में ,घर की रोटी दाल आएगी
मांग रहा आजादी पंछी ,बंद पींजरे से  लेकिन है   
प्रतिबंधों के परिवेश में ,घुट घुट जीना बहुत कठिन है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ;
घर 

केवल ईंट और गारे का, ढांचा ना घर होता है 
घर वो जिसमें घर वालों में प्रेम परस्पर होता है 

वह घर असली घर जिसमें सब मिलजुल कर साथ रहे 
जहां प्रेम और सद्भावों की, गंगा जमुना सदा रहे

घर वो जिसमें मेल जोल हो ,भाईचारा भरा रहे 
जिसमें हरदम चहल-पहल हो, जो खुशियों से हरा रहे

सुख की हो बरसात जहां पर ,समृद्धि के फूल खिले 
जहां अतिथि का स्वागत हो, बांह  पसारे सभी मिले

 सहनशीलता लोगों में हो, साथ निभाना सब जाने
करें सलाह ,मार्गदर्शन ले ,बात बड़ों की सब माने

 घर वह जिसमें देव विराजे, भक्ति भाव हो पूजन हो जहां बुजुर्गों की सेवा हो ,आदर हो और वंदन हो 
 
 जहां पिरंडे की पूजा हो, अग्नि जहां जिमाते हो 
 गौ माता को अर्पित पहली रोटी यहां पकाते हो 
 
 राम लखन जैसे भाई हो, बहू रहे सीता जैसी 
 सास बहू को बेटी  माने, सब में प्रीत रहे ऐसी 
 
 अच्छे संस्कार से शिक्षित ,हर बच्चे का बचपन हो 
 इर्षा बैर ना हो आपस में, सब में बस अपनापन हो
 
 ननंद भोजाई ,देरानी और जेठानी में प्यार रहे 
 दादी बच्चों को बैठा कर, नई कहानी रोज कहे 
 
 वह घर,घर संतोष जहां पर नहीं कोई स्पर्धा हो 
 एक दूसरे की इज्जत, घर का हर प्राणी करता हो 
 
 हो हर रात दिवाली जैसी ,सब दिन हो उल्लास भरे   वह घर,घर ना स्वर्ग तुल्य है , वहां देवता वास करें

मदन मोहन बाहेती घोटू

Monday, September 20, 2021

अहम ब्रह्म

करो व्यवस्थित अपना जीवन 
रखो सुरक्षित अपना तन मन 
रहो सभी के तुम अपने बन
तभी पाओगे तुम अपनापन 

जियो जीवन सीधा-सादा
तभी मिलेगी खुशियां ज्यादा 
स्वच्छ संतुलित खाना पीना 
तब ही स्वस्थ जिंदगी जीना 

मुंह में राम बगल छुरी है 
ऐसी आदत बड़ी बुरी है 
अपनी कमियां सभी सुधारो 
छुपे हुए रावण को मारो 

अगर न निर्मल, मन जमुना जल 
छुपा कालिया नाग कहीं पर 
उसका मर्दन करो कृष्ण बन
तभी सफल होगा यह जीवन 

मोह माया का हिरण्यकश्यप 
तम्हें सताता रहता जब तब 
सहन मत करो, मारो उसको
बन नरसिंह, संहारो उसको

रूप विराट नहीं दिखलाओ 
तुम वामन स्वरूप बन जाओ 
भू, पाताल और नभ सर्वस
तीन पगों में नापोगे बस 

जीवन के समुद्र मंथन में 
रखो आस रत्नों की मन में 
किंतु हलाहल भी मिलता है 
शंकर बन पीना पड़ता है 

होते तुम निराश यूं क्यूं हो 
प्रभु तुममें ,तुम स्वयं प्रभु हो
चलते जाओ, नहीं थको तुम 
जीतोगे, विश्वास रखो तुम 

मन में हो जो अटल इरादा
 राह न रोक सकेगी बाधा 
 रखो हौसला, लक्ष्य पाओगे 
 तुम मंजिल पर पहुंच जाओगे

मदन मोहन बाहेती घोटू

Saturday, September 18, 2021

आलोचना 

आजकल हर जना 
जरूरत से ज्यादा होशियार है बना 
अपने गिरेबान में झांकना नहीं ,
करता है औरों की आलोचना 
सोच नकारात्मक है 
दृष्टिकोण भ्रामक है 
जो सिर्फ औरों की कमियां ही दिखाता है 
उसे आधा भरा हुआ नहीं ,
बाकी जो खाली है वह आधा गिलास नजर आता है लोगों की अच्छाइयां नहीं दिखती 
उनकी बुराइयां ही खोजता है 
कोकिला की तरह आम्र तरु पर नहीं,
 कौवे की तरह सीधा नीम तक ही पहुंचता है 
 किसी की गलतियां ढूंढना बड़ा आसान है 
 गलतियां तो करता ही रहता है इंसान है 
 अरे इंसान क्या कई बार ,
 भगवान से भी गलती हो जाती है 
 किसी किसी के हाथ में ,
 पांच के बदले छह उंगलियां पाई जाती है 
 गलतियां उसी से होती है जो कुछ करता है 
 निठल्ले का जीवन तो व्यर्थ ही गुजरता है 
 कभी अपने अंदर  झांकोगे,
 तो अपनी भी कई कमियां देख पाओगे 
 पहले उन्हें सुधारोगे,
  तब दूसरों पर उंगली उठाओगे  
  आत्मविवेचन सबसे बड़ा उपचार है
  जो बदल देता आदमी का व्यवहार है 
  ऐसा करके तुम अपनी जिंदगी संवार सकोगे 
  खुद सुधरोगे , तभी औरों को सुधार सकोगे 
  इसलिए सिर्फ गलतियों को मत तलाश करो 
  कोई गलती नजर आए ,
  तो उसे सुधारने का प्रयास करो 
  इससे तुम्हारी गरिमा बढ़ेगी 
  तुम्हारी छवि और भी निखरेगी
  अपने जीवन को सार्थक करिए 
 आलोचक नहीं, सुधारक बानिये

मदन मोहन बाहेती घोटू

Friday, September 17, 2021

बदलते मौसम 

तू जो ना संग, लगती सर्दी,
 बढ़ जाती है तन में ठिठुरन
तू पास आती, बढ़ती ऊष्मा ,
होता गर्मी वाला मौसम 
तू मिल जाती ,फूल महकते,
 खिलता मौसम, बासंती बन  
 मिलन हमारा बारिश जैसा, 
 प्यार बरसता रिमझिम रिमझिम 
 कभी गर्म तू सूरज जैसी, 
 कभी चांदनी सी शीतल है 
 जब भी साथ तेरा मिलता है ,
 मौसम जाते बदल बदल है

मदन मोहन बाहेती घोटू

Thursday, September 16, 2021

जियो आत्मा सम्मान से

जब तक जीवन है तुम जियो शान से 
समझौता मत करो  आत्मसम्मान से 

अगर आत्मविश्वास हृदय में खास है 
धीरज की पूंजी, जो तुम्हारे पास है 
रखो हौसला ,लड़ लोगे तूफान से 
समझौता मत करो आत्म सम्मान से 

औरों में क्या कमियां है यह मत ताको
पहले अपने गिरेबान में तुम  झांको
उन्हें सुधारो , जियोगे आसान से 
समझौता मत करो आत्मसम्मान से 

लोग कहेंगे क्या, इस पर तुम ध्यान न दो 
बकवासों पर दुनिया की तुम कान न दो 
सुनो ,निकालो उसे दूसरे कान से 
समझौता मत करो आत्मसम्मान से 

आसपास की हर हरकत पर नजर रखो 
चौकन्ने से रहो ,सभी की खबर रखो 
क्या होता है ,रहो नहीं अनजान से 
समझौता मत करो आत्मसम्मान से 

नहीं किसी से बैर कोई भी मन में हो 
मिलनसारिता, प्रेम भाव जीवन में हो 
करो मदद कमजोरों की, जी जान से 
समझौता मत करो आत्मसम्मान से 

सार हीन संसार ,करो सत्कर्म सदा 
परोपकार को मानो अपना धर्म सदा 
नाम तुम्हारा होगा अच्छे काम से 
समझौता मत करो आत्मसम्मान से

मदन मोहन बाहेती घोटू

Thursday, September 9, 2021

जीवन शैली 

यदि खुद पर विश्वास करोगे 
नहीं किसी से आस करोगे 
जीत लिया जो तुमने भय है 
तो तुम्हारी सदा विजय है 

रहो सभी के तुम अपने बन 
वही करो, जो कहता है मन 
ख्याल रखोगे जो तुम सबका 
तुम जीतोगे ,यह है पक्का 
नहीं सफलता में संशय है 
तो तुम्हारी सदा विजय है

अगर लड़ोगे हिम्मत के संग 
बनो जुझारू, जीतोगे जंग 
सकारात्मक ,सोच रखोगे 
तो तुम आगे बहुत बढ़ोगे 
जब जागोगे ,तभी सुबह है 
तो तुम्हारी सदा विजय है

मदन मोहन बाहेती घोटू
मेरी चाहत  

नहीं चाहिए हीरा मोती, नहीं चाहिए बंगला कोठी 
बस अपना कर सकूं गुजारा, चाहूं नहीं कमाई खोटी जब तक जीयूं स्वस्थ रहूं मैं,मुझको अच्छी सेहत देना 
सबके साथ रहूं हिलमिल कर,प्रभु प्यार की दौलत देना

 तूने जब जीवन ये दिया है ,तो सुख दुख भी बांटे होंगे 
कभी फूल बरसाए होंगे ,कभी चुभाये कांटे होंगे 
 सब विपदायें झेल सकूं मैं,मुझको इतनी हिम्मत देना 
सबके साथ रहूं हिलमिल कर, प्रभु प्यार की दौलत देना
 
 ऐसा मेरा हृदय बनाना ,भरा हुआ जो संवेदन से  दुखियारों के काम आ सकूं,मैं तन से मन से और धन से
 श्रद्धा रखूं ,बुजुर्गों के प्रति, मेरे मन में इज़्जत देना 
सबके साथ रहूं हिलमिल कर, प्रभु प्यार की दौलत देना

 रहे नम्रता भरा आचरण और घमंड भी जरा नहीं हो 
 मेरे हाथों कभी किसी का, भूले से भी, बुरा नहीं हो 
 मन में भक्ति, तन में शक्ति और सब के प्रति चाहत देना 
सब के साथ रहूं हिलमिल कर ,प्रभु प्यार की दौलत देना

मदन मोहन बाहेती घोटू
सफेदी का चमत्कार 

सफेदी की चमकार
 बार-बार 
 लगातार 
 जी हां ,हम सबको है सफेदी से प्यार 
 सफेद चूने से पोत कर रखते हैं घर की दरो दीवार 
रोज ब्रश करते हैं रखने को दांतों की सफेदी बकरार
 मेहनत करके,टैक्स भर के ,
सफेद कमाई की जाती है 
 वर्षों के अनुभव के बाद सर पर सफेदी आती है 
 सफेद रंग में चीनी का मिठास है 
 सफेद रंग में नमक का स्वाद है 
 सफेद रंग में वाष्प की गरमाई है 
 सफेद रंग में बर्फ़ की ठंडाई है 
 सफेद रंग में दूध की पौष्टिकता है 
 सफेद रंग में रुई की कोमलता है 
 सफेद रंग झरनो की तरह निर्मल है 
 सफेद रंग हिमालय की तरह सुदृढ़ है
 सफेद रंग शांति का द्योतक है 
 सफेद रंग में धूप की चमक है
सफेद कबूतर उड़ा के शांति का संदेश दिया जाता है 
तो क्यों कुछ लोगों का खून सफ़ेद पड़ जाता है
तो क्यों कुछ सफेदपोश नेता काली कमाई करते हैं 
सफेद दाढ़ी वाले कुछ बाबाओं की काली करतूतें है 
तो क्यों लोग सफेद बगुला भगत बने शिकार करते हैं 
तो क्यों कुछ लोग सफेद झूठ बोलने से नहीं डरते हैं
कई लोग जो खुद को बतलाते दूध के धुले हैं 
वे सब सफेद रंग को बदनाम करने में तुले हैं 

मदन मोहन बाहेती घोटू

Sunday, September 5, 2021

गुरु गुड़, चेला शक्कर 

गुरुजी तो रह गए लघु जी, चेले गुरु घंटाल हो गए 
गुरु जी अब भी फटे हाल है, चेले मालामाल हो गए

 गुरुजी रहे सिखाते अ आ इ ई क ख ,एबीसीडी 
 वह अब भी नीचे है ,चेले चढ़े तरक्की की हर सीढ़ी खड़ा बेंच पर किया गुरु ने, वो है अब कुर्सी पर बैठे 
 वह अब ऐंठे ऐंठे रहते ,कान गुरु ने जिनके ऐंठे
 जिनको गुरुजी ने पीटा था,जमकर पैसे पीट रहे हैं बहुत बड़े वह ढीठ आजकल ,बचपन से जो ढीठ रहे हैं 
गुरु थे मुर्गा जिन्हें बनाते, वह मुर्गा हलाल हो गए 
 गुरु जी अब भी फटे हाल हैं,चेले मालामाल हो गए 
 
गुरुजी की गई मास्टरी,चेले मास्टर बहुत बड़े हैं 
जिन्हें क्लास से बाहर करते,दफ्तर बाहर आज खड़े हैं
लंगडी भिन्न सिखाई जिनको, भिन्न हुई उनकी बोली है 
गुरुजी गुड़ की डली रह गए, चेले शक्कर की बोरी है 
जिनको बारह खड़ी सिखाई, उनके आज हुए पौबारा 
कोई नेता कोई अफसर ,कोई बड़ी फैक्ट्री वाला 
दो दूनी चार भुलाया उनने, दो के कई हजार हो गए 
गुरुजी तो अब भी फटेहाल हैं,चेले मालामाल हो गए

मदन मोहन बाहेती घोटू
 शिक्षक दिवस पर धन्यवाद ज्ञापन
 
 है धन्यवाद टीचर ,तुमने मुझे पढ़ाया 
 पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया 
 
करता था काम चोरी ,आदत मेरी सुधारी 
गालों पर चपत मारी ,हाथों पर बेंत मारी 
देकर के सजा अक्सर ,मुर्गा मुझे बनाया 
पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया

मुझे डाटते थे अक्सर, कहते थे मैं गधा हूं 
उपकार आपका ये, मै मानता सदा हूं
मेरा गधत्व जागा ,जो अब है काम आया 
पग पग पर सीख देकर ,जीना मुझे सिखाया 

कक्षा में बेंच ऊपर ,करके खड़ा सजा दी 
उपहास सहते रहना, आदत मेरी बना दी 
निर्लज्ज हंसते रहना, चिकना घड़ा बनाया 
पग पग पर सीख देकर, जीना मुझे सिखाया

साहब की बात मानूं, बीबी की बात मानूं
बच्चों की बात मानूं,मैं सब की बात मानूं
ऑबिडिएंट इतना ,तुमने मुझे बनाया 
पग पग पे हाथ सीख देकर, जीना मुझे सिखाया

 ट्रेनिंग ये आपकी अब, मेरे काम आ रही है 
 डाट और डपट का कोई ,होता असर नहीं है 
 मैं ढीठ बना सहता,जाता हूं जब सताया 
 पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया
 है धन्यवाद टीचर, तुमने मुझे पढ़ाया

मदन मोहन बाहेती घोटू
 

Thursday, September 2, 2021

चुहुलबाजियां

चिढ़ा चिढ़ा कर तुम्हें सताना, मेरे मन को बहुत सुहाता 
यूं ही चुहुलबाजियों में बस,अपना वक्त गुजर है जाता 

 हम दोनों ही बूढ़े प्राणी ,इस घर में रह रहे इकल्ले कामकाज कुछ ना करना है,बैठे रहते यूं ही निठल्ले 
 कब तक बैठे देखें टीवी ,बिन मतलब की गप्पें मारे 
 सचमुच,बड़ा कठिन होता है, कैसे अपना वक्त गुजारें
 इसीलिए हम तू तू,मैं मैं, करते मजा बहुत हैआता 
 यूं ही चुहुलबाजियों में बस,अपना वक्त गुजर है जाता
  
 कई बार तू तू मैं मैं जब ,झगड़े में परिवर्तित होती 
 बात बिगड़ती,मैं इस करवट और तू है उस करवट सोती 
तेरा रूठना,मेरा मनाना, यह भी होता है एक शगल है 
 यूं ही मान मनौव्वल में बस,जाता अपना वक्त निकल है 
हिलमिल फिर हम एक हो जाते,तू हंसती मैंभीमुस्कुराता 
 यूं ही चुहुलबाजियों में बस ,अपना वक्त गुजर है जाता
 
इसी तरह मेरी तुम्हारी, आपस में चलती है झकझक 
जबतक हम तुम संगसंग है तबतक इस घर में है रौनक
तुम कितनी ही रूठ जाओ पर भाग्य हमारा कभी न रुठे 
अपनी जोड़ी रहे सलामत ,साथ हमारा कभी न छूटे ईश्वर रखे बनाकर हरदम ,सात जन्म का अपना नाता 
यूं ही चुहुलबाजियों में बस, अपना वक्त गुजर है जाता

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, August 29, 2021

मुहावरों का चिड़ियाघर 

यह मुहावरों का चिड़ियाघर ,जानवरों से जुड़ा हुआ है 
उनकी आदत और स्वभाव केअनुभव से ये भरा हुआ है 
जिसकी लाठी भैंस उसीकी,यह होता देखा है अक्सर 
ज्ञान बांटते फिरते जिनको, काला अक्षर भैंस बराबर 
अकल बड़ी या भैंस याकि जो भैंस के आगे बीन बजाए 
रहे हाथ मलता बेचारा ,चली भैंस पानी में जाए 
नौ सौ चूहे मार के कोई, बिल्ली जैसा हज को जाता
 कोई से गलती होती तो ,वह भीगी बिल्ली बन जाता 
मेरी बिल्ली मुझसे ही जब म्याऊं करती ,बात बिगड़ती  
बिल्ली गले कौन बांधेगा, घंटी सारी दुनिया डरती 
हो जो अपनी गली, शेर फिर कुत्ता भी बन जाया करता 
धोबी का कुत्ता बेचारा , न तो घाट ना घर का रहता 
जो कुत्ते भोंका करते हैं अक्सर नहीं काटते हैं वो
दुम मालिक आगे हिलती है उनके पैर चाटते हैं वो 
कर लो कोशिश लाख पूंछ ना,उनकी सीधी है हो पाती 
और गीदड़ की भभकी ,लोगों को अक्सर है बहुत डराती 
समय कभी जब पड़ता बांका,लोग गधे को काका कहते 
और गधे के सींग की तरह मौके पर है गायब रहते 
दिन भर खटता रहे आदमी ,काम गधे की तरह कर रहा गधा धूल में कभी लोटता, कभी रेंकता घास चर रहा आता ऊंट पहाड़ के नीचे ,तो अपनी औकात जानता 
ऊंट कौन करवट बैठेगा ,यह कोई भी नहीं जानता नेताओं को कुछ भी दे दो, होता ऊंट मुंह में जीरा 
ऊंची गर्दन ,पूंछ है छोटी, रेगिस्तानी जहाज रंगीला 
घोड़ा अगर घास से यारी ,कर लेगा तो क्या खाएगा 
घोड़े बेच कोई सोएगा, तो सोता ही रह जाएगा 
हाथी चलता ही रहता है कुत्ते सदा भोंकते रहते 
दांत हाथी के, खाने के कुछ ,और दिखाने के कुछ रहते 
घुड़की सदा दिखाएं बंदर ,स्वाद अदरक का जान न पाए 
भूले नहीं गुलाटी मारना, बूढ़ा कितना भी हो जाए 
खैर मनाएगी बकरे की अम्मा बोलो तुम ही कब तक 
काटी ना जाती है मुर्गी ,सोने का अंडा दे जब तक 
शेर न कभी घास खाता है, चाहे भूखा ही मर जाए 
हैं खट्टे अंगूर लोमड़ी,यदि उन तक वह पहुंच न पाए 
बगुला भगत मारता मछली, कौवा चाल हंस की चलता
 मोर नाचता है जंगल में, कोई न देखे ,मन को खलता 
कांव-कांव कौवे की ,कोई के आने की सूचक  होती कोयल अंबिया, काग निबौली, और हंस है चुगता मोती
रंगा हुआ सियार साथियों के, संग करता हुआ हुआ है 
यह मुहावरों का चिड़ियाघर  ,जानवरों  से जुड़ा हुआ है

मदन मोहन बाहेती घोटू

Saturday, August 28, 2021

संतानों से 

जिनने अपना पूरा जीवन, तुम पर जी भर प्यार लुटाया भूले भटके, मात-पिता से प्यार कर लिया करो कभी तो

 मर जाने के बाद याद तुम करो ना करो फर्क नहीं पड़ता जबतक जिंदा है उनको तुम याद करलिया करो कभीतो
 
 कैसे हैं किस हाल में है वह जीवित है या गुजर गए हैं
उनकी मौजूदा हालत का ख्याल कर लियाकरो कभी तो
 मरने बाद श्राद्ध पंडित को खिलवाना या मत खिलवाना,
अभी तो नहीं भूखे यह पड़ताल कर लिया करो कभी तो

 उनमे गैरत है, न तुम्हारे आगे हाथ पसारेंगे वो 
लेकिन उनकी जरूरतों का ख्याल कर लिया करो कभी तो 
नहीं चाहिए उनको कुछ भी ,बस दो मीठे बोल ,बोल दो उनके प्रति श्रद्धा दिखला सन्मान कर लिया करो कभी तो 
अरे आज है कल ना रहेंगे कितने दिन जीना है उनको बूढ़े हैं ,उनकी थोड़ी संभाल कर लिया करो कभी तो 

तुम जैसे भी हो मरते दम तक वो तुम्हें दुआएं देंगे 
तुमभी उनके संग अच्छा व्यवहार कर लिया करो कभी तो

मदन मोहन बाहेती घोटू

Friday, August 27, 2021


मुहावरों की महिमा 

ये मुहावरे, बड़े बावरे, इनका खेल समझ ना आता 
किंतु रोजमर्रा के जीवन ,से है इनका गहरा नाता 
अगर दाल में कुछ काला है तो वह साफ नजर आता है 
थोड़ी सी असावधानी से ,गुड़ का गोबर बन जाता है 
हींग लगे ना लगे फिटकरी, फिर भी रंग आता है चोखा 
लेकिन टेढ़ी खीर हमेशा, हमको दे जाती है धोखा 
कोई छीछालेदर करता ,कोई रायता फैलाता है 
बात न कुछ होती राई का लेकिन पर्वत बन जाता है 
कई बार हम पहाड़ खोदते, चूहा मगर निकल आता है 
चूहे को चिन्दी मिल जाती, तो बजाज वो बन जाता है 
नहीं बाप ने मारा मेंढक, बेटा तीरंदाज बन गया
कल खेला करता रुपयों से,वह ठन ठन गोपाल बन गया 
कोई आंख में धूल झोंकता, कोई खिचड़ी अलग पकाता 
और अकल के मारा  कोई, भैंस के आगे बीन बजाता 
 किस्मतवाले कुछ अंधों के हाथ बटेर जब लग जातीहै 
अंधा अगर रेवड़ी बाटे ,अपनों को ही मिल पाती है
कुछ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते, लठ्ठ धूल में मारे 
कोई अपने पांव कुल्हाड़ी मारे अपना काम बिगाड़े 
कोई उंगली पकड़ पकड़ कर पहुंचे तलक पहुंच जाते हैं 
कोई छेद उसी में करते ,जिस थाली में वो खाते हैं 
अगर ओखली में सिर डाला, मूसल से फिर डरा जाता 
कई बार कंगाली में भी ,आटा है गीला हो जाता
कहीं छलकती अधजल गगरी कहीं भरे गागर में सागर 
कोई चिकना घड़ा, डूबता कोई पानी में चुल्लू भर 
कोई टस से मस ना होता ,कोई झक्क मारता रहता
कोई ढोल की पोल छुपाता, तिल का ताड़ बनाता रहता  
दाल किसी की ना गलती है, कोई है थाली का बैंगन 
और किसी की पांचो उंगली ,घी में ही रहती है हरदम 
कोई नाकों चने चबाता, कोई होता नौ दो ग्यारह 
पापड़ कई बेलने पड़ते, तब ही  होती है पौबारह
कोई मक्खी मारा करता, कोई भीगी बिल्ली रहता 
कोई धोबी के कुत्ते सा ,घर का नहीं घाट का रहता 
नौ मन तेल न राधा नाचे,नाच न जाने , टेढ़ा आंगन
कल तक जिसकी तूती बजती,चुप है जबसे बदला मौसम
और नक्कारखाने में तूती की आवाज न सुन पाते हम
हरदम रहे मस्त मौला जो ,भादौ हरा न सूखे सावन 
बरसो रखो भोगली में पर,सीधी ना हो पूंछ श्वान की
अक्सर दांत गिने ना जाते,बछिया हो जो अगर दान की 
छोटी-छोटी बात भले पर,गागर में सागर भर आता 
ये मुहावरे बड़े बावरे ,इनका खेल समझ ना आता

मदन मोहन बाहेती घोटू

मुहावरों की महिमा 

ये मुहावरे, बड़े बावरे, इनका खेल समझ ना आता 
किंतु रोजमर्रा के जीवन ,से है इनका गहरा नाता 
अगर दाल में कुछ काला है तो वह साफ नजर आता है 
थोड़ी सी असावधानी से ,गुड़ का गोबर बन जाता है 
हींग लगे ना लगे फिटकरी, फिर भी रंग आता है चोखा 
लेकिन टेढ़ी खीर हमेशा, हमको दे जाती है धोखा 
कोई छीछालेदर करता ,कोई रायता फैलाता है 
बात न कुछ होती राई का लेकिन पर्वत बन जाता है 
कई बार हम पहाड़ खोदते, चूहा मगर निकल आता है 
चूहे को चिन्दी मिल जाती, तो बजाज वो बन जाता है 
नहीं बाप ने मारा मेंढक, बेटा तीरंदाज बन गया
कल खेला करता रुपयों से,वह ठन ठन गोपाल बन गया 
कोई आंख में धूल झोंकता, कोई खिचड़ी अलग पकाता 
और अकल के मारा  कोई, भैंस के आगे बीन बजाता 
 किस्मतवाले कुछ अंधों के हाथ बटेर जब लग जातीहै 
अंधा अगर रेवड़ी बाटे ,अपनों को ही मिल पाती है
कुछ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते, लठ्ठ धूल में मारे 
कोई अपने पांव कुल्हाड़ी मारे अपना काम बिगाड़े 
कोई उंगली पकड़ पकड़ कर पहुंचे तलक पहुंच जाते हैं 
कोई छेद उसी में करते ,जिस थाली में वो खाते हैं 
अगर ओखली में सिर डाला, मूसल से फिर डरा जाता 
कई बार कंगाली में भी ,आटा है गीला हो जाता
कहीं छलकती अधजल गगरी कहीं भरे गागर में सागर 
कोई चिकना घड़ा, डूबता कोई पानी में चुल्लू भर 
कोई टस से मस ना होता ,कोई झक्क मारता रहता
कोई ढोल की पोल छुपाता, तिल का ताड़ बनाता रहता  
दाल किसी की ना गलती है, कोई है थाली का बैंगन 
और किसी की पांचो उंगली ,घी में ही रहती है हरदम 
कोई नाकों चने चबाता, कोई होता नौ दो ग्यारह 
पापड़ कई बेलने पड़ते, तब ही  होती है पौबारह
कोई मक्खी मारा करता, कोई भीगी बिल्ली रहता 
कोई धोबी के कुत्ते सा ,घर का नहीं घाट का रहता 
नौ मन तेल न राधा नाचे,नाच न जाने , टेढ़ा आंगन
हरदम रहे मस्त मौला जो ,भादौ हरा न सूखे सावन बरसो रखो भोगली में पर,सीधी ना हो पूंछ श्वान की
अक्सर दांत गिने ना जाते,बछिया हो जो अगर दान की छोटी-छोटी बात भले पर,गागर में सागर भर आता 
ये मुहावरे बड़े बावरे ,इनका खेल समझ ना आता

मदन मोहन बाहेती घोटू

Thursday, August 26, 2021

तू मेरी तकदीर बन गई 

मैं सीधा सा भोला भाला 
पर तूने घायल कर डाला 
गई चीर जो मेरे दिल को ,
नजर तेरी शमशीर बन गई 

मैं स्वच्छंद विचरता रहता 
अपने मनमाफिक था बहता
 तूने प्यार जाल में बांधा,
 जुल्फ तेरी जंजीर बन गई 
 
मैं रेतीला राजस्थानी 
मिला प्यार का तेरे पानी 
तन मन में हरियाली छाई 
मेरी छवि कश्मीर बन गई 

मैं एक पत्ता हरा भरा था
 तूने छुआ रंग निखरा था 
 मेहंदी हाथ रचाई तूने,
 लाल मेरी तस्वीर बन गई 
 
मैं चावल का अदना दाना
 पाया तेरा साथ सुहाना 
 तूने अपने साथ उबाला,
 स्वाद भरी फिर खीर बन गई
 
 हाथों में किस्मत की रेखा 
 लेकिन जब से तुझको देखा 
 तू और तेरी वर्क रेखाएं 
 ही मेरी तकदीर बन गई

मदन मोहन बाहेती घोटू

Wednesday, August 25, 2021

मिलन पर्व

 रूप तुम्हारा मन को भाया, 
 तुमने भी कुछ हाथ बढ़ाया
  बंधा हमारा गठबंधन और ,
  मिलन पर्व हैअब जब आ 
  सांसो से सांसे टकराई
 और प्रीत परवान चढ़ गई 
 यारां, मेरी नींद उड़ गई 
 
 तुमने जब एक अंगड़ाई ली, 
 फैला बांह ,बदन को तोड़ा 
 देखा उस सुंदर छवि को तो,
  सोया मन जग गया निगोड़ा
 फिर जो तेरे अलसाये से ,
 तन की मादक खुशबू महकी 
 मेरे तन मन और बदन में, 
 एक चिंगारी जैसी दहकी
 पहले वरमाला, बांहों की,
 माला फिर थी गले पड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई 

 मैंने जब तुमको सहलाया ,
 प्यार तुम्हारा भी उमड़ाया 
 बात बड़ी आगे, अधरों ने ,
 जब अधरों का अमृत पाया 
 हम तुम दोनों एक हो गए, 
 बंध बाहों के गठबंधन में 
 सारा प्यार उमड़ कर आया 
 और सुख सरसाया जीवन में 
 मैं न रहा मैं, तुम न रही तुम, 
 ऐसी हमने प्रीत जुड़ गई 
 यारां, मेरी नींद उड़ गई

मदन मोहन बाहेती घोटू

Tuesday, August 24, 2021

शाश्वत सच 

मैं चौराहे पर खड़ा हुआ 
क्योंकि मुश्किल में पड़ा हुआ 
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं,
 यह प्रश्न सामने खड़ा हुआ 
 एक तरफ जवानी के जलवे
  जिनमें मैं डूबा था अब तक 
  एक तरफ बुढ़ापा बुला रहा
   देता है बार-बार दस्तक
   मैं किधर जाऊं, क्या निर्णय लूं
   मन में उलझन, शंशोपज है
  आएगा बुढ़ापा निश्चित है 
  क्योंकि ये ही शाश्वत सच है 
  कोई चिर युवा नहीं रहता 
  यह सत्य हृदय को खलता है 
  दिन भर जो सूरज रहे प्रखर,
  वह भी संध्या को ढलता है 
  रुक पाता नहीं क्षरण तन का,
   मन किंतु बावरा ना माने 
   इसलिए लगा हूं बार-बार 
   मैं अपने मन को समझाने
    तू छोड़ मोह माया सारी 
    अब आया समय विरक्ती का 
    जी भर यौवन में की मस्ती,
     अब वक्त प्रभु की भक्ति का 
     एक वो ही पार लगाएंगे,
     तेरा बेड़ा भवसागर में 
     तू भूल के सांसारिक बंधन 
     अब बांधले बंधन ईश्वर से

   मदन मोहन बाहेती घोटू
मिलन पर्व

 रूप तुम्हारा मन को भाया, तुमने भी कुछ हाथ बढ़ाया 
बंधा हमारा गठबंधन और मिलन पर्व हैअब जब आया 
सांसो से सांसे टकराई और प्रीत परवान चढ़ गई 
 यारां, मेरी नींद उड़ गई 
 तुमने जब एक अंगड़ाई ली, फैला बांह ,बदन को तोड़ा 
देखा उस सुंदर छवि को तो सोया मन जग गया निगोड़ा
 फिर जो तेरे अलसाये से ,तन की मादक खुशबू महकी
 मेरे तन मन और बदन में, एक चिंगारी जैसी दहकी
और फिर मुझे सताने तुमने करवट बदली और मुड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई 
 मैंने जब तुमको सहलाया ,प्यार तुम्हारा भी उमड़ाया 
बात बड़ी आगे अधरों ने ,जब अधरों का अमृत पाया 
हम तुम दोनों एक हो गए, बंध बाहों के गठबंधन में सारा प्यार उमड़ कर आया और सुख सरसाया जीवन में 
 मैं न रहा मैं, तुम न रही तुम, ऐसी हमने प्रीत जुड़ गई 
 यारां, मेरी नींद उड़ गई

मदन मोहन बाहेती घोटू

Saturday, August 21, 2021

बहन से
(राखी के अवसर पर विशेष )

एक डाल के  फल हम बहना
संग संग सीखा,सुखदुख सहना

एक साथ थे ,जब कच्चे थे
मौज मनाते  ,सब बच्चे  थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
एक दूजे पर ,प्यार लूटना ,
याद आता वो मिलजुल रहना
एक डाली के  फल हम बहना

ना कोई  चिन्ता , जिम्मेदारी
बचपन की  सब  बातें न्यारी
कितनी सुखकर,कितनी प्यारी
तितली सा उन्मुक्त उछलना ,
शीतल मंद पवन सा बहना
एक डाल के फल हम बहना

पके समय संग ,टूटे,बिछड़े
पाया स्वाद ,मधुर हो निखरे  
अलग अलग होकर सब बिखरे
हमने अपना काम संभाला ,
और तुम बनी ,किसी का गहना
एक डाल  के फल हम बहना

एक डोर बांधे जो माँ थी
दूजी डोर बांधती राखी
प्रेम का बंधन ,अब भी बाकी
मिलकर,सुख दुःख बांटा करना  ,
दिल की अपने , बातें कहना
एक डाल के फल हम बहना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Friday, August 20, 2021

 जाओ चाय बना कर लाओ 
 
बूढ़े बुढ़िया, मियां बीबी, बैठ बुढ़ापे में क्या करते 
तनहाई में गप्प मारते ,अपना वक्त गुजारा करते 
दुनिया भर की, इधर उधर की, बहुत ढेर सारी है बातें 
कई बार जागृत हो जाती, पिछली धुंधली धुंधली यादें
 मुझे देखने आए थे तुम ,पत्नी जी ने पूछा हंसकर 
ऐसा मुझ में क्या देखा था, जो तुम रीझ गए थे मुझ पर 
क्या वह मेरी रूप माधुरी थी या था वो खिलता चेहरा 
या मेरी मासूम निगाहें, जिन पर पड़ा लाज का पहरा 
या फिर मेरा खिलता यौवन,या मतवाली मुस्कुराहट थी 
चोरी-चोरी तुम्हें देखना या फिर मेरी घबराहट थी
कुछ तो था जो तुम सकुचाए,रहे देखते मुझे एकटक
बढ़ी हुई थी मेरी धड़कन, धड़क रहा मेरा दिल धक धक 
न तो बात की ना कुछ पूछा ना कुछ बोले नही कुछ कहा 
यूं ही फुसफुसा,मां कानों में, तुमने झट से कर दी थी हां 
मैं बोला सच कहती हो तुम,मै था बिल्कुल भोला भाला 
पहली बार किसी लड़की को पास देखकर था मतवाला
 यूं कॉलेज में ,यार दोस्त संग  हम लड़की छेड़ा करते थे 
लेकिन बात बिगड़ ना जाए ,हम घबराते और डरते थे 
पहली बार तुम्हें देखा था जीवन साथी चुनने खातिर 
 तुम सुंदर थी भोली भाली रूप तुम्हारा था ही कातिल 
तुम्हें देख कर परख रहा था ,पत्नी बनी लगोगी कैसी 
फिर तुम्हारी शर्माहट और सकुचाहटभी थी कुछ ऐसी 
तुम जो ट्रे में लिए चाय के ,प्याले आई थी घबराते 
 हाथों के कंपन के कारण, चाय भरे प्याले टकराते उनकी टनटन का वह मधु स्वर मेरे मन को रिझा गयाथा 
 दिया चाय का प्याला जिसमें अक्स तुम्हारा समा गया था
 यह प्यारा अंदाज तुम्हारा, लूट ले गया मेरा मन था पहली चुस्की नहीं चाय की,वह मेरा पहला चुंबन था फिर आगे क्या हुआ पता है तुमको और मालूम मुझे है
 पति पत्नी बन जीवन काटा,मस्ती की और लिऐ मजे हैं 
अपनी पहली मुलाकात को, एक बार फिर से दोहराओ
 वक्त हो गया, तलब लगी है जाओ चाय बना कर लाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू

Tuesday, August 17, 2021

शांति का अस्त्र  मोबाइल

याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
 बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में 
 पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम, तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
 
 दूर-दूर हम बैठे रहते ,
नहीं किसी से कुछ भी कहते 
अपने अपने मोबाइल से ,
हम दोनों ही चिपके रहते 
फुर्सत नहीं हमें की देखें 
एक दूजे को उठाकर नजरें 
अपनी अपनी ही दुनिया में ,
खोए रहते हम बेखबरे 
आपस में हम बात करें क्या
,कोई टॉपिक नजर ना आता 
 मेरा वक्त गुजर जाता है, 
वक्त तुम्हारा भी कट जाता 
 बात शुरू यदि कोई होती, 
तू तू मैं मैं बढ़ जाती है 
 मेरे हरेक काम में तुमको ,
कोई कमी नजर आती है 
इसीलिए शांति से जीने 
का पाया यह रस्ता सुंदर 
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,
मोबाइल से खेलो दिनभर 
यह तुम्हारी सुन लेता है ,
दो आदेश ,काम करता है 
उंगली से तुम इसे नचाती ,
चुप रहता, तुम से डरता है 
मैं ये सब ना कर सकता था
 इस कारण होता था झगड़ा 
हम तुम बहुत सुखी है जब से,
 हाथों में मोबाइल पकड़ा 
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,
टोका टाकी  मिट जाती है 
नोकझोंक सब बंद हो जाती,
 घर में शांति पसर जातीहै  
मौन भावना पर हो जाती,
रह जाती है दिल की दिल में 
तुम खुश अपने मोबाइल में, 
मैं कुछ अपने मोबाइल में

मदन मोहन बाहेती घोटू
शांति का अस्त्र  मोबाइल

याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
 बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में 
 पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम, 
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
 
 दूर-दूर हम बैठे रहते ,नहीं किसी से कुछ भी कहते अपने अपने मोबाइल से ,हम दोनों ही चिपके रहते फुर्सत नहीं हमें की देखें एक दूजे को उठाकर नजरें अपनी अपनी ही दुनिया में ,खोए रहते हम बेखबरे आपस में हम बात करें क्या,कोई टॉपिक नजर ना आता 
 मेरा वक्त गुजर जाता है, वक्त तुम्हारा भी कट जाता 
 बात शुरू यदि कोई होती, तू तू मैं मैं बढ़ जाती है 
 मेरे हरेक काम में तुमको ,कोई कमी नजर आती है इसीलिए शांति से जीने का पाया यह रस्ता सुंदर 
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,मोबाइल से खेलो दिनभर 
यह तुम्हारी सुन लेता है ,दो आदेश काम करता है 
उंगली से तुम इसे नचाती ,चुप रहता, तुम से डरता है 
मैं ये सब ना कर सकता था इस कारण होता था झगड़ा 
हम तुम बहुत सुखी है जब से, हाथों में मोबाइल पकड़ा 
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,टोका टाकी  मिट जाती है 
नोकझोंक सब बंद हो जातीघरमेंशांतिपसरजातीहै  मौन भावना पर हो जाती,रह जाती है दिल की दिल में 
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं कुछ अपने मोबाइल में

मदन मोहन बाहेती घोटू

Monday, August 16, 2021

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Saturday, August 14, 2021

किस्मत 

जिस दिन और जहां पर भी है होता जब भी जन्म हमारा 
उसी समय तय हो जाता है, पूरा जीवन चक्र हमारा 
उस पल की ही ,ग्रह स्थिति से, जन्मकुंडली अपनी बनती
चाल ग्रहों की ही जीवन के, पल पल का संचालन करती उसी समय अनुसार हमारा, भाग्य लिखा जाता है सारा जन्म स्थल भूगोल बनाता, कद काठी, रंग गोरा काला भाग्य लिखा रहता मुट्ठी में ,रेखाओं में अंकित होता 
 कब तक जीना, कैसे जीना, कब मरना, सब निश्चित होता 
 पूर्व जन्म के संचित कर्मों का जो भी है लेखा-जोखा इस जीवन में हमें भोगना ,पड़ता है फल उन कर्मों का केवल अच्छे कर्म हमारे ,भाग्य बदलने में सक्षम है इसीलिए सत्कर्म करो तुम ,जब तक बाकी तुम में दम है कामयाबी का ये ही नुस्खा,काम करो जी जान लगन से अपना भाग्य स्वयं लिख लोगे, यदि चाहोगे सच्चे मन से

मदन मोहन बाहेती घोटू
किस्मत वाला पति 

आप प्यार करते हैं जिनसे, उनसे ही कुछ कहते हैं 
बच्चों को मां-बाप इसलिये,कभी डांटते रहते हैं 
ताकि चले वे सही राह पर, गलत राह पर ना भटके
 प्यार भरी यह डाट निराली, होती है सबसे हटके 
जिन्हें समझते हो तुम अपना, ओर जिनसे है प्यार तुम्हे कभी कभी फटकार लगाने, का उन पर अधिकार तुम्हें स्कूल में मास्टर जी डांटे, पाठ याद करवाने को 
 डांट बॉस की दफ्तर में है, ड्यूटी सही निभाने को 
 डांट नहीं यह तो जादू का डंडा, बोले सर चढ़कर 
 जीवन में अनुशासन लाता ,हमें बनाता है बेहतर 
 प्यार प्रदर्शित अपना करने का यह ढंग निराला है 
 जिसे डाटती पत्नी वह पति ,सचमुच किस्मत वाला है 

मदन मोहन बाहेती घोटू

 फेंकू

तुम भी फेंकू,मैं भी फेंकू

रूप तुम्हारा, प्यारा सुंदर और नयना हिरनी से चंचल 
एक नज़र जिसपर भी फेंको,कर देती हो उसको घायल
 एक मीठी मुस्कान फेंक दो , बड़ी आस से तुम को देखूं
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू 

ऊंची ऊंची फेंका करता, मैं तुम्हारे  प्यार का मारा 
कैसे भी मैं तुम्हें पटा लूं और जीत लूं दिल तुम्हारा 
प्रणय निवेदन करूं ,तुम्हारे आगे अपने घुटने टेंकू
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू

हम दिल की फेंकाफेंकी में,उलझे कुछ ना कर पाए पर 
फेंकू नेता, ऊंचे ऊंचे ,वादे फेंक ,जमे कुर्सी पर 
भाषण और आश्वासन फेंके ताकि वोट उन्हीं को दे दूं
तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू

हम सब बातों के फेंकू पर ,असली फेंकू निकला नीरज 
भाला फेंक,स्वर्ण ले आया और लहराया भारत का ध्वज 
स्वर्ण पदक टोक्यो में जीता ,बड़े गर्व से  उसको देखूं
 तुम भी फेंकू, मैं भी फेंकू

मदन मोहन बाहेती घोटू

Thursday, August 12, 2021

ऐसा साज मुझे दे दो तुम

 जब भी दिल के तार छिड़े तो ,
 निकले मधुर रागिनी मोहक ,
 जो अंतर तक को छू जाए 
 ऐसा साज  मुझे दे दो तुम 
 बीती खट्टी मीठी यादों,
 के सब पन्ने बिखरे बिखरे 
 उन्हें समेट, सजा फिर से,
 जिल्दसाज ऐसा दे दो तुम  
  
भटक रहे बादल से मन को, घनीभूत कर जो बरसा दे सूखे अपनेपन की खेती ,को नवजीवन दे, सरसा दे शुष्क पड़ी जो मन की सरिता, बह निकले ,उसमें कल कल हो 
है सुनसान पड़ी यह बस्ती, दिल की, इसमें कुछ हलचल हो
 इस दुनिया में बहुत त्रसित हूं
 परेशान हूं, रोग ग्रसित हूं,
  मेरे मुरझाए चेहरे पर 
  खुशियां आज मुझे दे दो तुम 
  जो अंतरतर तो छू जाए ,
  ऐसा साज मुझे दे दो तुम 
  
एक जमाना था जब हम भी, फूलों से महका करते थे उड़ते थे उन्मुक्त गगन में, पंछी से चहका करते थे 
सूरज जैसा प्रखर रूप था , धूप पहुंचती आंगन आंगन सावन सूखे, हरे न भादौ, मतवाला था हर एक मौसम फिर से फूल खिले बासंती 
फिर आए जीवन में मस्ती 
खुशी भरे जीवन जीने का,
 वो अंदाज मुझे दे दो तुम 
 जो अंतरतर को छू जाए ,
 ऐसा साज मुझे दे दो तुम

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैंने जीना सीख लिया है 

यह बीमारी वह बीमारी 
रोज-रोज की मारामारी 
यह मत खाओ, वह मत खाओ 
मुंह पर अपने मास्क लगाओ 
गोली ,कैप्सूल ,इंजेक्शन 
खाओ दवाएं, फीका भोजन
 हर एक चीज पर थी पाबंदी
 पाचन शक्ति पड़ गई मंदी
 मेरी हालत बुरी हो गई 
 चेहरे की मुस्कान खो गई 
 मुझे प्यार से समझा तुमने,
 मेरे मन को ठीक किया है 
 मैंने जीना सीख लिया है 
   
तुमने बोला ,सोच सुधारो 
यू मत अपने मन को मारो 
मनमाफिक, सब खाओ पियो 
लेकिन घुट घुट कर मत जियो 
तन अनुसार ,ढाल लो तुम मन 
आवश्यक पर कुछ अनुशासन
 मज़ा सभी चीजों का लो पर 
 रखो नियंत्रण तुम अपने पर
 मौज मस्तियां खूब मनाओ 
 मित्रों के संग नाचो गाओ 
 नई फुर्ती और नए जोश ने ,
 कर मुझ को निर्भीक दिया है 
 मैंने जीना सीख लिया है 
  
जिस दिन से यह शिक्षा पाई 
नव जीवन शैली अपनाई 
बीमारी सारी गायब है 
चेहरे पर आई रौनक है 
फुर्तीला हो गया चुस्त हूं
लगता है मैं तंदुरुस्त हूं 
मेरी सोच सकारात्मक है
और जीने की बढ़ी ललक है 
बाकी जितनी बची उमर है 
अब जीना सुख से ,हंसकर है 
मेरे मन के वाद्य यंत्र ने ,
सीख गया संगीत लिया है 
मैंने जीना सीख लिया है

मदन मोहन बाहेती घोटू

Tuesday, August 10, 2021

शब्दों का फंडा 

उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया  
जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया 
पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं 
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं 
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
 सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते 
असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते 
हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे 
चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे 
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं 
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं 
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का 
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका 
कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे 
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे 
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है 
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती 
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती  ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है 
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू

शब्दों का फंडा 

उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया  जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं 
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं 
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
 सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे 
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं 
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं 
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का 
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे 
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे 
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है 
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती 
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती  ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है 
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
कलदार रुपैया

याद जमाना आता कल का ,होता था कलदार रुपैया कितना नीचे आज गिर गया, देखो मेरे यार रुपैया

एक तोला चांदी का सिक्का,एक रुपैया तब होता था चलता तो खनखन करता,यह सबका ही मन मोहता था 
जब यह आता था हाथों में, सब के चेहरे खिल जाते थे कभी टूटता ,तो तांबे के चौंसठ पैसे मिल जाते थे 
इसके हाथों में आने से ,आया करते सोलह आने 
इतनी ज्यादा क्रयशक्ति थी, हम सब थे इसके दीवाने इसके छोटे भाई बहन थे,, एक अधन्ना,एक इकन्नी
 एक दुअन्नी,एक चवन्नी,अच्छी लगती मगर अठन्नी लेकिन इसने धीरे-धीरे अवनति का है दामन थामा 
लुप्त हो गए भाई बहन सब,बचा सिर्फ हैअब आठआना इतना ज्यादा सिकुड़ गया है,ना चलता ना होती खनखन अबतो जाने कहां उड़गया हल्का फुल्का कागज का बन इतना ज्यादा टूट गया वह, बदले सौ में ,चौंसठ पैसे 
कोई सिक्का नजर आता, इसके दिन बिगड़े हैं ऐसे 
दो हजार के नोटों में भी अब इसका अवतार हो गया नेताओं ने भरी तिजोरी, इसका बंटाधार हो गया 
 बेचारा अवमूल्यन मारा ,है कितना लाचार रुपैया
 याद जमाना आता कल का, होता था कलदार रुपैया

मदन मोहन बाहेती घोटू