शब्दों का फंडा
उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया
जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया
पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते
असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते
हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे
चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका
कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है
मदन मोहन बाहेती घोटू