तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
कुछ खाने से परहेज नहीं ,कुछ पीने से परहेज नहीं उल्टी-सीधी हरकत करने से भी है कोई गुरेज नहीं करती परहेज बुजुर्गों से, क्यों नई उमर की नई फसल
जबकि मालूम उन्हें उनकी भी ये ही हालत होनी कल
आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की
तुम इज्जत करो बुजुर्गो की
जो सोचे सदा तुम्हारा हित, हैं खेरख्वाह सोते जगते
जिनके कारण तुम काबिल हो, वो नाकाबिल तुमको लगते
उनके विचार संकीर्ण नहीं उनकी भी सोच आधुनिक है
वो है भंडार अनुभव का,और प्यार भरा सर्वाधिक है दिल उनका अब भी है जवान, मत देखो बूढ़ी हुई शकल
करती परहेज बुजुर्गों से क्यों नई उमर की नई फसल
आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
यह सच है कि उनमें तुमने अंतर आया एक पीढ़ी का
पर ऊंचा तुम्हें उठाने उनने, काम किया है सीढ़ी का
वह संरक्षक है, शिक्षक है ,वह पूजनीय सन्मान करो
उनके आशीर्वादो से तुम, निज जीवन का उत्थान करो
तुम खुश किस्मत हो कि उनका साया है तुम्हारे सर पर
करती परहेज बुजुर्गों से ,क्यों नई उमर की नई फसल
आवश्यक बहुत हिफाजत है संस्कृति के इन दुर्गों की
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
मदन मोहन बाहेती घोटू