Saturday, October 29, 2022

    बदलते हालात

दो महीने की बिमारी ने,
हुलिया मेरा ऐसा बदला
कल तक था मैं मोटा ताजा,
आज हो गया दुबला पतला

एसी पीछे पड़ी बिमारी
कमजोरी से त्रस्त होगए
पहनू लगते झबले जैसे,
ढीले सारे वस्त्र हो गए 
 झूर्री झुर्री बदन हो गया 
 जो था चिकना भरा सुहाना 
 गायब सारी भूख होगई 
 हुआ अरुचिकर ,कुछ भी खाना 
 दिन भर खाओ दवा की गोली 
 जी रहता है मचला मचला 
 कल तक था मैं मोटा ताजा 
 आज होगा दुबला पतला 
 
लेकिन मैंने हार न मानी,
हालातों से रहा जूझता
मन में श्रद्धा और लगन ले, 
ईश्वर को मैं रहा पूजता 
अगर दिये हैं उसने दुख तो 
वो ही फिर सुख बरसाएगा 
मेरी जीवन की शैली को 
फिर से पटरी पर लाएगा 
दृष्टिकोण आशात्मक रखकर 
मैंने अपना मानस बदला 
कल तक था मैं मोटा ताजा 
आज हो गया दुबला पतला 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
     मतलबी यार 
     
  सदा बदलते रहते वो रुख, उल्टे बहते है
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं 

रहते थे हरदम हाजिर जो जान लुटा ने को 
वक्त नहीं उनको मिलता अब शक्ल दिखाने को 
थे तुम्हारे स्वामी भक्त , जब से बदली पाली 
नहीं झिझकते,तुमको देते ,जी भर कर गाली 
और बुराइयां सबके आगे करते रहते हैं 
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं

 ना तो इनका कोई धरम है ना ईमान बाकी 
 चिंता है निज स्वार्थ सिद्धि की और सुख सुविधा की 
 जहां खाने को मिले जलेबी, रबड़ी के लच्छे उनकी सेवा को आतुर ये भक्त बने सच्चे 
 वहां मिले अपमान भीअगर हंसकर सहते हैं
  मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Friday, October 28, 2022

 अग्नि पूजन 
 
दीपावली ,दशहरा ,होली,
 है ये उत्सव प्रमुख हमारे 
 बड़े चाव उत्साह लगन से 
 इन्हें मनाते हैं हम सारे 
 दीपावली को दीप जलाते 
 हरेक दशहरा, जलता रावण 
 दहन होलिका का होली में 
 हर त्यौहार अग्नि का पूजन
 हवन यज्ञ ,अग्नि का वंदन,
 करो आरती ,जलती बाती 
 फेरे सात लिए अग्नि के 
जन्मों की जोड़ी बन जाती 
पका अन्न,अग्नि से खाते ,
जो देता जीवन भर पोषण 
और अंत में इस काया का 
अग्नि में संपूर्ण समर्पण 
मानव जीवन के पल पल में 
सुख हो, दुख हो,उत्सव ,खुशियां,
 अग्नि संचालित करती है 
 जीवन की सारी गतिविधियां

मदन मोहन बाहेती घोटू

Tuesday, October 25, 2022

  प्रतिबंधित जीवन 
 
मुझको मेरी बीमारी ने ,कैसे दिन दिखलाए
ये मत खाओ,वो मत खाओ ,सौ प्रतिबंध लगाये 
 जितना ज्यादा प्रतिबंध है , उतना मन ललचाए 
कितने महीने बीत गए हैं ,चाट चटपटी खाए गरम-गरम आलू टिक्की की, खुशबू सौंधी प्यारी 
भाजी और पाव खाने को तरसे जीभ हमारी 
फूले हुए गोलगप्पे भर खट्टा मीठा पानी 
ठंडे ठंडे दही के भल्ले, पापड़ी चाट सुहानी
प्यारी भेलपुरी बंबइया,बड़ा पाव की जोड़ी 
भूल न पाए भटूरे छोले, जिह्वा बड़ी निगोड़ी 
चीनी चाऊमीन के लच्छे और मूंग के चीले 
गरम समोसे और कचोरी ,बर्गर बड़े रसीले 
कितने दिन हो गए चखे ना मिष्ठानों को भूले 
गरम जलेबी ,गाजर हलवा ,रसमलाई रसगुल्ले 
कब फिर से यह स्वाद चखेंगे,तरसे जीभ हमारी 
हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू मेरी सब बीमारी 
हटे सभी प्रतिबंध ठीक से खुल कर जी भर खाऊं
सवा किलो बूंदी के लड्डू का प्रसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू
  

Sunday, October 9, 2022

मास्क चढ़ा है  

असली चेहरा नजर न आता 
हर चेहरे पर मास्क के चढ़ा है 
मुंह से राम बोलने वाला ,
छुरी बगल के लिए खड़ा है 

ऊपर जो तारीफ कर रहा 
पीछे से देता है गाली 
कहता है वह सत्यवान है,
 पर करता करतूतें काली 
 खुद को दूध धुला बतला कर ,
महान बताने लिए अड़ा है 
असली चेहरा नजर आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है 
 
तुम्हारा शुभचिंतक बन कर 
 करे तुम्हारी ऐसी तैसी 
 मुश्किल अब पहचान हो गई 
 कौन है बैरी, कौन हितेषी 
 बहुत दोगले इन लोगों से,
 हमको खतरा बहुत बड़ा है
 असली चेहरा नज़र न आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

होते लोग बहुत शातिर कुछ,
पर दिखते हैं सीधे सादे
औरों का नुक्सान न देखे,
स्वार्थ सिर्फ अपना ही साधे
ऐसे मतलब के मारों से,
किसका पाला नहीं पड़ा है
असली चेहरा नज़र न आता ,
हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
 
 

Friday, October 7, 2022

मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

मेरे कितने दोस्त बन गए 
मेरे दुश्मन, इसके कारण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन 

कहने को तो एक मांस का ,
टुकड़ा है यह बिन हड्डी का 
पर जब यह बोला करती है 
बहुत बोलती है यह तीखा 
जब चलती ,कैची सी चलती
 रहता खुद पर नहीं नियंत्रण
 मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 बत्तीस दातों बीच दबी यह,
 रहती है फिर भी स्वतंत्र है 
 मानव की वाणी ,स्वाद का ,
 यही चलाती मूल तंत्र है 
 मधुर गान या कड़वी बातें,
  इस पर नहीं किसी का बंधन
  मेरी जिव्हा मेरी बैरन

बड़ी स्वाद की मारी है यह,
 लगता कभी चाट का चस्का 
 और मधुर मिष्ठान देखकर,
  ललचाया करता मन इसका
  मुंह में पानी भर लाती है,
  टपके लार,देख कर व्यंजन
   मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 यह बेचारी स्वाद की मारी,
 करती है षठरस आस्वादन 
 ठंडी कुल्फी ,गरम जलेबी 
 सभी मोहते हैं इसका मन
एक जगह रह,बंध खूंटे से 
विचरण करती रहती हर क्षण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

 कभी फिसल जाती गलती से ,
 कर देती है गुड़ का गोबर 
 कभी मोह लेती है मन को,
  मीठे मीठे बोल, बोल कर
  देती गाली, कभी बात कर 
  चिकनी चुपड़ी, मलती मक्खन
   मेरी जिव्हा,मेरी बैरन

मदन मोहन बाहेती घोटू
प्रतिबंधित खानपान 

मुझको मेरी बीमारी ने
 कैसे दिन दिखलाए
 ये मत खाओ ,वो मत खाओ ,
 सब प्रतिबंध लगाए
 जितना ज्यादा रिस्ट्रिक्शन है ,
 उतना मन ललचाए 
 कितने महीने बीत गए हैं ,
 चाट चटपटी खाए 
 गरम गरम आलू टिक्की की,
  खुशबू सौंधी प्यारी 
  भाजी और पाव खाने को ,
  तरसे जीभ हमारी 
  फूले हुए गोलगप्पे भर ,
  खट्टा मीठा पानी 
  ठंडे ठंडे दही के भल्ले 
  पापड़ी चाट सुहानी 
  प्यारी भेलपुरी बंबइया 
  बड़ा पाव की जोड़ी 
  भूल न पाए भटूरे छोले 
  जिव्हा बड़ी चटोरी 
  चीनी चाऊमीन के लच्छे ,
  और मूंग के चीले 
  गरम समोसे और कचोरी ,
  बर्गर बड़े रसीले 
  कितने दिन हो गए चखे ना 
  मिष्ठानो को भूले 
  गरम जलेबी, गाजर हलवा,
   रसमलाई, रसगुल्ले 
   कब से फिर वे स्वाद चखेंगे,
   तरसे जीभ हमारी 
   हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू 
   मेरी सभी बीमारी
   हटे सभी प्रतिबंध ठीक से 
   खुल कर ,जी भर खाऊं 
   सवा किलो बूंदी के लड्डू का,
    मैं परसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, October 6, 2022

रावण दहन 

एक कागज का पुतला बनकर,
 खड़ा हुआ था वह बेचारा 
 तुमने उसमें आग लगा दी 
 और कहते हो रावण मारा 
 घूमे बच्चों के संग मेला ,
 खा ली थोड़ी चाट पकौड़ी 
 थोड़ा झूल लिए झूले पर ,
 यूं ही तफरी कर ली थोड़ी 
 घर में कुछ पकवान बनाकर 
 या होटल जा करते भोजन 
 ऐसे ही कितने वर्षों से 
 मना रहे हैं दशहरा हम 
 पर वास्तव में इसीलिए क्या 
 यह त्योहार मनाया जाता 
  पाप हारता ,पुण्य जीतता ,
  विजयादशमी पर्व कहाता
  हो विद्वान कोई कितना भी,
  वेद शास्त्रों का हो ज्ञाता
  पर यदि होती दुष्ट प्रवृत्ति ,
  अहंकार,वो मारा जाता 
रावण पुतला है बुराई का ,
और प्रतीक है अहंकार का 
काम क्रोध और लोभ मोह का 
मद और मत्सर, सब विकार का 
 इनका दहन करोगे तब ही
 होगा सही दहन रावण का 
 सच्चा तभी दशहरा होगा ,
 राम जगाओ ,अपने मन का 
 जब सच्चाई और अच्छाई 
 अंत बुराई का कर देगी 
 तभी विजेता कहलाओगे 
 विजयादशमी तभी बनेगी 
 तब ही तो सच्चे अर्थों में ,
 रावण को जाएगा मारा 
  कागज पुतला दहन कर रहे
  और कहते हो रावण मारा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, October 3, 2022

नेता उचाव

अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
 पर जल्दी बिकने वाला हूं
 टीवी की हर चैनल पर अब,
 मैं जल्दी दिखने वाला हूं
  
अधकचरी विधानसभा का, 
चुना गया मैं एक विधायक 
लड़ा चुनाव स्वतंत्र ,जीतकर 
आज बन गया हूं मैं लायक 
 मिली जुली सरकार बने तो,
 होगी अहम भूमिका मेरी 
 पक्ष-विपक्ष कर रहे दोनों 
 इसी लिए हैं हेरा फेरी 
 मुझे पता ,अपने पाले में 
 चाह रहे हैं दोनो लाना
 मूल्यवान में हुआ अकिंचन,
 दोनों डाल रहे हैं दाना
 तोल मोल चल रहा अभी है 
  मूल्यांकन करना है बाकी 
  नहीं  बिकूंगा जब तक मेरी 
  कीमत सही न जाए आंकी
  मेरा एक वोट कर सकता, 
  है सत्ता में परिवर्तन भी 
  मुझको कई करोड़ चाहिए,
  और मंत्री की पोजीशन भी 
  मैं रिसोर्ट में एश कर रहा ,
   मुझको दिखता सब नाटक है 
   सत्ता के गलियारों में हैं ,
   रोज हो रही उठापटक है 
   मेरा भाव लगाने वाले ,
   कब देते मनचाहा ऑफर
   मेरे इधर उधर होने से ,
   बदल जाएगा सारा मंजर
   धोखा अगर दिया कोई ने,
    तो मैं ना टिकने वाला हूं
    अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
    पर जल्दी बिकने वाला हूं
     टीवी की हर चैनल पर अब
      मैं जल्दी दिखने वाला हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नेता और रिश्वत 

मैंने पूछा एक नेता से 
लोग तुम्हें है भ्रष्ट बताते 
बिन रिश्वत कुछ काम न करते 
सदा तिजोरी अपनी भरते
 नेता बोले बात गलत है
 यह मुझ पर झूठी तोहमत है 
 प्रगति पथ हो देश अग्रसर 
 यही ख्याल बस मन में रख कर 
 करता बड़े-बड़े जब सौदे
  करना पड़ते कुछ समझौते 
  काम देश प्रगति का करता 
  सेवा शुल्क ले लिया करता 
  इतना तो मेरा हक बनता 
  पर रिश्वत कहती है जनता 
  फिर थोड़ा हंस ,बोले नेता
   मैं रिश्वत ना ,प्रतिशत लेता 
   सच कहता हूं ईश्वर साक्षी 
   लिया अगर जो एक रुपया भी 
   जो कुछ लिया, लिया डॉलर में 
   एक रुपया ना आया घर में 
   जो भी मिलता है ठेकों में 
   सभी जमा है स्विस बैंकों में 
   हर सौदे में जो भी पाता 
   उसे चुनाव के लिए बचाता 
   पैसा जनता का, जनता में 
   बंट जाता है वोट जुटाने 
   और तुम कहते यह रिश्वत है 
   सोच तुम्हारी बहुत गलत है

मदन मोहन बाहेती घोटू

 तुम मुझको अच्छे लगते हो 
 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो 
जो बाहर है, वो ही अंदर ,
मन के तुम सच्चे लगते हो 

रखते नहीं बैर कोई से ,
नहीं किसी के प्रति जलन है 
करता मन के भाव प्रदर्शित ,
शीशे जैसा निर्मल मन है 
मुंह में राम बगल में छुरी ,
जैसी बुरी नहीं है आदत 
तुम्हारे व्यवहार वचन में,
 टपका करती सदा शराफत 
 सीधे सादे, भोले भाले ,
 निश्चल से बच्चे लगते हो 
 तुम जो भी हो जैसे भी हो 
 पर मुझको अच्छे लगते हो 
 
ना है कपट ,नहीं है लालच ,
और किसी से द्वेष नहीं है 
सदा मुस्कुराते रहते हो ,
मन में कोई क्लेश नहीं है 
ना ऊधो से कुछ लेना है ,
ना माधव को ,है कुछ देना 
रहते हो संतुष्ट हमेशा 
खाकर अपना चना चबेना 
बहुत सुखी हो, दुनियादारी 
में थोड़े कच्चे लगते हो 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

 उचटी उचटी नींद आती है,
 बिखरे बिखरे सपने आते 
 पहले से आधी खुराक भी ,
 खाना मुश्किल से खा पाते 
 डगमग डगमग चाल हो गई,
 झुर्री झुर्री बदन हो गया 
 ढीले ढीले हुए वस्त्र सब,
  इतना कम है वजन हो गया 
  थोड़ी देर घूम लेने से ,
  सांस फूलने लग जाती है 
  मन करता है सुस्ताने को 
  तन में सुस्ती सी जाती है 
  सूखी रोटी फीकी सब्जी ,
  ये ही अब आहार हमारा 
  जिनके कभी सहारा थे हम
  वह देते हैं हमें सहारा 
  चुस्ती फुर्ती सब गायब है,
 आलस ने है डेरा डाला 
 मन में कुछ उत्साह न बाकी,
  हाल हुआ है बुरा हमारा 
  फिर भी हंसते मुस्कुराते हैं ,
  और समय हम रहे काट हैं 
  बस ये ही थोड़ी मुश्किल है ,
  बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

मदन मोहन बाहेती घोटू