रह रह कर आता याद मुझे,
वह बीता वक्त जवानी का,
कितना प्यारा और मजेदार,
वह यौवन वाला दौर ही था
मैं बाइक पर राइड करता ,
तुम कमर पकड़ चिपकी रहती
टूटी सड़कों पर ड्राइव का
वह आनंद भी कुछ और ही था
ऐसे में भी जब कभी कभी
पड़ती बारिश की बौछारें,
पानी से जाते भीग भीग,
सब कपड़े मेरे तुम्हारे
तब सड़क किनारे रुक करके
एक झुग्गी वाली होटल में
चुस्की ले गरम चाय पीना ,
करता आनंद विभोर ही था
कितना प्यारा और मजेदार
वह यौवन वाला दौर ही था
छुट्टी के दिन तुम काम में व्यस्त
घरभर को व्यवस्थित करती थी
मैं प्याज पकोड़े तल अपने
हाथों से तुम्हें खिलाता था
तुम गरम पकोड़े खाती थी
और आधा मुझे खिलाती थी
तो संग पकोड़ो के अधरों
का स्वाद मुझे मिल जाता था
संध्या को निकला करते थे
हम तो तफ़री करने इधर उधर
सड़कों पर ठेले वालों से
खा लेते थे कुछ चटर-पटर
वह भेल पुरी ,पानी पुरी
और स्वाद भरी चटपटी चाट
वो गरम जलेबी बलखाती ,
गाजर हलवा चितचोर ही था
कितना प्यारा और मजेदार
वो यौवन वाला दौर ही था
हम पिक्चर जाया करते थे
और खाया करते पॉपकॉर्न,
जब भी कुछ मौका मिल जाता
कुछ छेड़ाखानी करते थे
और चांदनी रातों में छत पर
तुम चांद निहारा करती थी
मैं तुम्हें निहारा करता था
थोड़ी मनमानी करते थे
सर्दी में मज़ा धूप का ले
करते थे वक्त गुजारा हम
बेफिक्री से और खुशी-खुशी
करते थे मस्ती मारा हम
वह दिन भी कितने प्यारे थे
राते कितनी रंगीली थी
तेरी संगत की रंगत में
मन मांगा करता मोर ही था
कितना प्यारा और मजेदार
वह यौवन वाला दौर ही था
मदन मोहन बाहेती घोटू