रिश्ता चांद से
जिस चांद के प्रतिबिंब को ,
पानी की थाली में ,
बचपन में मैं
अपने कोमल हाथों से
हिलाया डुलाया करता था
जिस चांद को बड़े प्यार से
मैं चंदा मामा कह कर
बुलाया करता था
जिस चांद की लोरी
*चंदा मामा दूर के *
*पुए पकाए पूर के *
गा गा कर मां मुझे
दूध की घूंट पिलाती थी
जिस चांद को देखकर ,
चौथ का व्रत किये,
दिनभर की भूखी मेरी मां ,
खाना खाती थी
जिस चांद की तुलना
बेटे से *चांद सा बेटा* कह कर
और प्रेमिका से
* चांद सी महबूबा *कहकर की जाती है
जिस चांद का नाम लेकर
प्रथम मिलन की रात को
दुनिया* हनीमून *मनाती है
जिस तरह अपनी पत्नी के
कोमल कपोलों पर
मेरे थरथराते होठों ने
प्यार का पहला चुंबन था चिपकाया
आज मेरे देश के वैज्ञानिकों ने
उसी चांद पर
चंद्रयान है उतराया
यह हमारे देश के वैज्ञानिकों की
तकनीकी उत्कृष्टता का सबूत हो गया है
चांद से हमारा पुराना रिश्ता
और भी मजबूत हो गया है
मदन मोहन बाहेती घोटू