Saturday, September 6, 2025

मैं बूढ़ा नहीं हूं 

काम की हूं चीज मैं कूड़ा नहीं हूं 
बूढ़ा दिखता हूं मगर बूढ़ा नहीं हूं 

कोई मेरे दिल के अंदर झांक देखें 
मेरे मन की भावना को आंक देखें
पाएगा वह एक कलेजा जलता जलता जवानी का जूस है जिसमें उबलता 
वीक थोड़ी बैटरी पर हो गई है 
चेहरे की चमक थोड़ी खो गई है परिस्थितियों हो गई प्रतिकूल सी है 
मगर खुशबू अब भी कायम फूल सी है उमर बढ़ती ने मुझे ऐसा ठगा है 
फूल सा ये बदन मुरझाने लगा है 
मगर चेहरा मेरा अब भी मुस्कुराता 
अब भी हंसता हूं खुशी के गीत गाता देख करके हुस्न मन अब भी उछलता 
अभी भी कायम पहले जेसी ही चंचलता कड़कते व्यवहार में आई नमी है 
बस जरा सी कहीं, कुछ आई कमी है 
 तन बदन पर आ गई कुछ सलवटें है
 उड़ न पाते अधिक,क्योंकि पर कटे हैं जवानी का जोश थोड़ा हो गया कम
मगर जज्बा पुराना अब भी है कायम
 ढोल में है पोल फिर भी बज रहा है 
रंगीला मिज़ाज फिर भी सज रहा है 
ठीक से नव पीढ़ी संग जुड़ा नहीं हूं 
बूढ़ा दिखता हूं मगर बूढ़ा नहीं हूं 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नाश्ता 

आओ डियर करें नाश्ता 
मैं खाऊंगा पूरी कचोरी ,
और तुम पिज़्ज़ा और पास्ता 
आओ डियर करें नाश्ता 

मुझे दही संग अच्छे लगते 
गरम पराठे आलू वाले 
गरम टोस्ट पर लगा के मक्खन 
साथ जाम के तू भी खा ले 
मुझे बेड़मी आलू भाते 
और साथ में गरम समोसा 
तुझे चाहिए इडली सांभर 
आलू भरा मसाला डोसा 
भले हमारे दिल मिलते हो 
खान-पान का अलग रास्ता 
आओ डियर करें नाश्ता 

तुझे विदेशी चीज भाती
देसी स्वाद मेरा मन मोहे 
मुझे चाहिए गरम जलेबी 
और साथ इंदौरी पोहे 
पोहे में नींबू निचोड़कर 
साथ सेव के जो खाएगी
तो फिर चाऊमीन चोप्सी 
स्प्रिंग रोल भूल जाएगी 
खाले छोले और भटूरे 
बड़ा चटपटा मज़ा स्वाद का 
आओ डियर करें रास्ता 

गरम-गरम गुलाब जामुने
या फिर मूंग दाल का हलवा 
थोड़ा तू भी चख ,देखेगी 
देसी ब्रेकफास्ट का जलवा 
भूलेगी एस-प्रेसो कॉफी 
दही की लस्सी जो पी लेगी 
तो फिर इटली चाइनीज का 
स्वाद विदेशी सब भूलेगी 
मेरे देसी ब्रेकफास्ट का 
हर एक आइटम बड़ा खास था 
आओ डियर करें नाश्ता

मदन मोहन बाहेती घोटू 
पत्नी का मैके जाना 

मेरी पत्नी गई है मैके 
है हाल मेरे कुछ ऐसे 
सुख बोलूं या दुख बोलूं 
जो मुझे गई वो मुझको देके 

सुख उसे इसलिए कहता
मैं आजादी से रहता 
मैं अपने मन का मौजी
मन चाहे वैसा रहता

ना रोक ना टोका टाकी 
और ना अनुशासन बाकी 
स्वछंद गगन में उड़ता 
मै बंद पिंजरे का पांखी 

 बस एक-दो दिन या राती 
 आजादी मन को भाती 
फिर हर पल हर क्षण रह रह,
 पत्नी की याद सताती 

हो जाती शुरू मुसीबत 
खाने पीने की दिक्कत 
खुद खाओ खुद ही पकाओ 
बर्तन मांजो की आफत 

एकाकी मान ना लगता 
मैं रात रात भर जगता 
करवट बदलो तो बिस्तर 
खाली-खाली सा लगता 

बेगम जो नहीं तो गम है 
तन्हाई का आलम है 
बीवी को कहीं ना भेजो 
अब खा ली मैंने कसम है

मदन मोहन बाहेती घोटू