पते की बात
सम्बन्ध
आपस के सम्बन्ध हैं,जैसे 'कार्डियोग्राम '
ऊँचे नीचे यदि रहें ,तो समझो है जान
लाइन अगर सपाट है ,तो फिर लो ये मान
हुए सभी सम्बन्ध मृत ,रही न उनमे जान
घोटू
http://blogsmanch.blogspot.com/" target="_blank"> (ब्लॉगों का संकलक)" width="160" border="0" height="60" src="http://i1084.photobucket.com/albums/j413/mayankaircel/02.jpg" />
Friday, November 30, 2012
नजरिया
पते की बात
नजरिया
आंधी से बचने की करते ,कोशिशें हैं ,कई ,सारे
खिड़की करता बंद कोई,खींचता कोई दीवारें
'विंडमिल 'लगवा कर कोई ,उससे ऊर्जा पाता है
इंसानों की सोच सोच में,अंतर ये दिखलाता है
घोटू
नजरिया
आंधी से बचने की करते ,कोशिशें हैं ,कई ,सारे
खिड़की करता बंद कोई,खींचता कोई दीवारें
'विंडमिल 'लगवा कर कोई ,उससे ऊर्जा पाता है
इंसानों की सोच सोच में,अंतर ये दिखलाता है
घोटू
रिश्ते-नाते
पते की बात
रिश्ते-नाते
ऐसे होते है कुछ नाते
जैसे किसी घडी के कांटे
एक धुरी से बंध कर भी वो ,
बड़ी देर तक ,ना मिल पाते
जुड़े रहते जिंदगी भर
मगर मिलते सिर्फ पलभर
घोटू
रिश्ते-नाते
ऐसे होते है कुछ नाते
जैसे किसी घडी के कांटे
एक धुरी से बंध कर भी वो ,
बड़ी देर तक ,ना मिल पाते
जुड़े रहते जिंदगी भर
मगर मिलते सिर्फ पलभर
घोटू
व्यक्तित्व
पते की बात
व्यक्तित्व
एक व्यक्ति बन के जन्में ,काम कुछ एसा करो
याद तुम को सब रखें,व्यक्तित्व बन,एसा मरो
घोटू
व्यक्तित्व
एक व्यक्ति बन के जन्में ,काम कुछ एसा करो
याद तुम को सब रखें,व्यक्तित्व बन,एसा मरो
घोटू
विध्वंस और निर्माण
पते की बात
विध्वंस और निर्माण
बीज उगता तो नहीं,करता वो कुछ आवाज है
मगर गिरता पेड़ ,लगता ,गिरी कोई गाज है
शोरगुल विध्वंस करता ,शांति है निर्माण में
बस यही तो फर्क है ,विध्वंस और निर्माण में
घोटू
विध्वंस और निर्माण
बीज उगता तो नहीं,करता वो कुछ आवाज है
मगर गिरता पेड़ ,लगता ,गिरी कोई गाज है
शोरगुल विध्वंस करता ,शांति है निर्माण में
बस यही तो फर्क है ,विध्वंस और निर्माण में
घोटू
भरोसा
पते की बात
भरोसा
डाल टूटे,हिले ,बैठा ,पंछी ना घबराएगा
उसको अपने पंखों पर है भरोसा,उड़ जाएगा
घोटू
भरोसा
डाल टूटे,हिले ,बैठा ,पंछी ना घबराएगा
उसको अपने पंखों पर है भरोसा,उड़ जाएगा
घोटू
तरक्की
पते की बात
तरक्की
कोई भी हो उपकरण ,मधुमख्खियों सा ,
फूलों से ला शहद दे सकता नहीं
कोई भी हो यंत्र कोरी घांस खाकर ,
गाय जैसा दूध दे सकता नहीं
भले कितनी ही तरक्की कर रहा ,
आजकल ये दिनबदिन विज्ञान है
मगर अब तक किसी मुर्दा जिस्म में ,
डाल वो पाया न फिर से जान है
घोटू
तरक्की
कोई भी हो उपकरण ,मधुमख्खियों सा ,
फूलों से ला शहद दे सकता नहीं
कोई भी हो यंत्र कोरी घांस खाकर ,
गाय जैसा दूध दे सकता नहीं
भले कितनी ही तरक्की कर रहा ,
आजकल ये दिनबदिन विज्ञान है
मगर अब तक किसी मुर्दा जिस्म में ,
डाल वो पाया न फिर से जान है
घोटू
धीरज
पते की बात
धीरज
बारिश आई और आपने छतरी तानी
आप न भीगे ,रहे बरसता ,कितना पानी
तंग आपदाएं करती ,जीवन में आकर
धीरज की छतरी रखती है तुम्हे बचाकर
घोटू
धीरज
बारिश आई और आपने छतरी तानी
आप न भीगे ,रहे बरसता ,कितना पानी
तंग आपदाएं करती ,जीवन में आकर
धीरज की छतरी रखती है तुम्हे बचाकर
घोटू
जिव्हा
पते की बात
जिव्हा
नहीं होती कोई हड्डी जीभ में ,
पर हिल कितने ही दिल तोड़ दिया करती है
वही जीभ जब तलुवे से मिल कहती 'सोरी',
टूटे हुए दिलों को जोड़ दिया करती है
घोटू
जिव्हा
नहीं होती कोई हड्डी जीभ में ,
पर हिल कितने ही दिल तोड़ दिया करती है
वही जीभ जब तलुवे से मिल कहती 'सोरी',
टूटे हुए दिलों को जोड़ दिया करती है
घोटू
खुश रखो
पते की बात
खुश रखो
कम से कम दो आदमी को ,
करो कोशिश ,खुश रखो तुम
दूसरा कोई भी हो पर,
मगर उनमे एक हो तुम
घोटू
खुश रखो
कम से कम दो आदमी को ,
करो कोशिश ,खुश रखो तुम
दूसरा कोई भी हो पर,
मगर उनमे एक हो तुम
घोटू
पत्थर
पते की बात
पत्थर
जिंदगी में फूल थोड़े ही खिलेंगे
लोग अक्सर फेंकते पत्थर मिलेंगे
आप पर है ,किस तरस से काम लाओ
बनाओ दीवार या फिर पुल बनाओ
घोटू
शतरंज
पते की बात
शतरंज
अपने पद और ओहदे पर ,कभी इतराओ नहीं,
बिछी है सारी बिसातें,जिंदगी शतरंज है
कौन राजा,कौन प्यादा ,खेल जब होता ख़तम ,
सभी मोहरे ,एक ही डब्बे में होते बंद है
घोटू
शतरंज
अपने पद और ओहदे पर ,कभी इतराओ नहीं,
बिछी है सारी बिसातें,जिंदगी शतरंज है
कौन राजा,कौन प्यादा ,खेल जब होता ख़तम ,
सभी मोहरे ,एक ही डब्बे में होते बंद है
घोटू
माँ की महत्ता
पते की बात
माँ की महत्ता
भीग कर बारिश में लौटा,एक दिन मै रात में
भाई बोला 'छाता क्यों ना ,ले गये साथ में '
बहन बोली'रूकती जब बरसात तुम आते तभी '
पिता बोले 'पड़ोगे बीमार ,सुधरोगे तभी '
तभी मेरे सर को पोंछा ,माँ ने लाकर तौलिया
गरम प्याला चाय का ,एक बना कर मुझको दिया
'बेटे ,कपडे बदल ले,सर्दी न लग जाए तुझे '
महत्ता माँ की समझ में,आ गयी उस दिन मुझे
घोटू
माँ की महत्ता
भीग कर बारिश में लौटा,एक दिन मै रात में
भाई बोला 'छाता क्यों ना ,ले गये साथ में '
बहन बोली'रूकती जब बरसात तुम आते तभी '
पिता बोले 'पड़ोगे बीमार ,सुधरोगे तभी '
तभी मेरे सर को पोंछा ,माँ ने लाकर तौलिया
गरम प्याला चाय का ,एक बना कर मुझको दिया
'बेटे ,कपडे बदल ले,सर्दी न लग जाए तुझे '
महत्ता माँ की समझ में,आ गयी उस दिन मुझे
घोटू
Thursday, November 29, 2012
अचरज
पते की बात
अचरज
नहीं खबर है अगले पल की
पर डूबे , चिंता में,कल की
भाग दौड़ कर ,कमा रहे है
यूं ही जीवन ,गमा रहे है
जब कि पता ना,कल क्या होगा
इससे बढ़,अचरज क्या होगा
घोटू
अचरज
नहीं खबर है अगले पल की
पर डूबे , चिंता में,कल की
भाग दौड़ कर ,कमा रहे है
यूं ही जीवन ,गमा रहे है
जब कि पता ना,कल क्या होगा
इससे बढ़,अचरज क्या होगा
घोटू
Wednesday, November 28, 2012
विश्वास
विश्वास
एक गाँव में सूखा था,थी हुई नहीं बरसात
वरुण देव की पूजा करने ,आये मिल सब साथ
एक बालक आया पूजन को ,रख कर छतरी पास
होगा पूजन सफल ,उसी को था मन में विश्वास
'घोटू '
एक गाँव में सूखा था,थी हुई नहीं बरसात
वरुण देव की पूजा करने ,आये मिल सब साथ
एक बालक आया पूजन को ,रख कर छतरी पास
होगा पूजन सफल ,उसी को था मन में विश्वास
'घोटू '
Tuesday, November 27, 2012
झपकियाँ
झपकियाँ
आँख जब खुलती सवेरे
मन ये कहता ,भाई मेरे
एक झपकी और लेले ,एक झपकी और लेले
आँख से लिपटी रहे निंदिया दीवानी
सवेरे की झपकियाँ ,लगती सुहानी
और उस पर ,यदि कहे पत्नी लिपट कर
यूं ही थोड़ी देर ,लेटे रहो डियर
बांधते उन्माद के वो क्षण सुनहरे
मन ये कहता ,भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
नींद का आगोश सबको मोहता है
मगर ये भी बात हम सबको पता है
झपकियों ने खेल कुछ एसा दिखाया
द्रुतगति खरगोश ,कछुवे ने हराया
नींद में आलस्य के रहते बसेरे
मन ये कहता भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
झपकियाँ ये लुभाती है बहुत मन को
भले ही आराम मिलता ,चंद क्षण को
बाद में दुःख बहुत देती ,ये सताती
छूटती है ट्रेन ,फ्लाईट छूट जाती
लेट दफ्तर पहुँचने पर साहब घेरे
इसलिए ऐ भाई मेरे ,झपकियाँ तू नहीं ले रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आँख जब खुलती सवेरे
मन ये कहता ,भाई मेरे
एक झपकी और लेले ,एक झपकी और लेले
आँख से लिपटी रहे निंदिया दीवानी
सवेरे की झपकियाँ ,लगती सुहानी
और उस पर ,यदि कहे पत्नी लिपट कर
यूं ही थोड़ी देर ,लेटे रहो डियर
बांधते उन्माद के वो क्षण सुनहरे
मन ये कहता ,भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
नींद का आगोश सबको मोहता है
मगर ये भी बात हम सबको पता है
झपकियों ने खेल कुछ एसा दिखाया
द्रुतगति खरगोश ,कछुवे ने हराया
नींद में आलस्य के रहते बसेरे
मन ये कहता भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
झपकियाँ ये लुभाती है बहुत मन को
भले ही आराम मिलता ,चंद क्षण को
बाद में दुःख बहुत देती ,ये सताती
छूटती है ट्रेन ,फ्लाईट छूट जाती
लेट दफ्तर पहुँचने पर साहब घेरे
इसलिए ऐ भाई मेरे ,झपकियाँ तू नहीं ले रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Monday, November 26, 2012
शादी
शादी
जैसे पतझड़ के बाद ,बसंत ऋतू में ,फूलों का महकना
जैसे प्रात की बेला में,पंछियों का कलरव, चहकना
जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप में,छत पर बैठ मुंगफलियाँ खाना
जैसे गर्मी में ट्रेन के सफ़र के बाद ,ठन्डे पानी से नहाना
जैसे तपती हुई धरती पर ,बारिश की पहली फुहार का पडना
जैसे बगीचे में,पेड़ पर चढ़ कर,पके हुए फलों को चखना
जैसे पूनम के चाँद को,थाली में भरे हुए जल में उतारना
जैसे बौराई अमराई में,कोकिल का पियू पियू पुकारना
जैसे सलवटदारवस्त्रों को प्रेस करवा कर के पहन लेना
जैसे सवेरे उठ कर ,गरम गरम चाय की चुस्कियां लेना
जैसे दीपावली की अँधेरी रात मे, दीपक जलाना
जैसे चरपरा खाने के बाद मीठे गुलाब जामुन खाना
जैसे सूखे से चेहरे पर अबीर और गुलाल का खिलना
जैसे वीणा और तबले की ताल से ताल का मिलना
जैसे जीवन के कोरे कागज़ पर कोई आकर लिख दे प्रणय गीत
जैसे वीराने में बहार बन कर आ जाए ,कोई मनमीत
जैसे जीवन की बगिया में ,फूलों की तरह ,खिलता हो प्यार
जैसे सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार
जैसे जीवन की राह में ,मिल जाए ,खूबसूरत हमसफ़र का साथ
इश्वर द्वारा मानव को दी गयी ,सबसे अच्छी सौगात
शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जैसे पतझड़ के बाद ,बसंत ऋतू में ,फूलों का महकना
जैसे प्रात की बेला में,पंछियों का कलरव, चहकना
जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप में,छत पर बैठ मुंगफलियाँ खाना
जैसे गर्मी में ट्रेन के सफ़र के बाद ,ठन्डे पानी से नहाना
जैसे तपती हुई धरती पर ,बारिश की पहली फुहार का पडना
जैसे बगीचे में,पेड़ पर चढ़ कर,पके हुए फलों को चखना
जैसे पूनम के चाँद को,थाली में भरे हुए जल में उतारना
जैसे बौराई अमराई में,कोकिल का पियू पियू पुकारना
जैसे सलवटदारवस्त्रों को प्रेस करवा कर के पहन लेना
जैसे सवेरे उठ कर ,गरम गरम चाय की चुस्कियां लेना
जैसे दीपावली की अँधेरी रात मे, दीपक जलाना
जैसे चरपरा खाने के बाद मीठे गुलाब जामुन खाना
जैसे सूखे से चेहरे पर अबीर और गुलाल का खिलना
जैसे वीणा और तबले की ताल से ताल का मिलना
जैसे जीवन के कोरे कागज़ पर कोई आकर लिख दे प्रणय गीत
जैसे वीराने में बहार बन कर आ जाए ,कोई मनमीत
जैसे जीवन की बगिया में ,फूलों की तरह ,खिलता हो प्यार
जैसे सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार
जैसे जीवन की राह में ,मिल जाए ,खूबसूरत हमसफ़र का साथ
इश्वर द्वारा मानव को दी गयी ,सबसे अच्छी सौगात
शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तौलिया
तौलिया
मै जो अगर तौलिया होता
टपक रहा तेरा तन छूकर ,वो अमृत तो पिया होता
लिपट चिपट कंचन काया से ,कितने ही पल जिया होता
जिस सुख को दुनिया तरसे है ,वो आनंद तो लिया होता
यही सोच मन आनंदित है, मैंने क्या क्या किया होता
मै जो अगर तौलिया होता
घोटू
मै जो अगर तौलिया होता
टपक रहा तेरा तन छूकर ,वो अमृत तो पिया होता
लिपट चिपट कंचन काया से ,कितने ही पल जिया होता
जिस सुख को दुनिया तरसे है ,वो आनंद तो लिया होता
यही सोच मन आनंदित है, मैंने क्या क्या किया होता
मै जो अगर तौलिया होता
घोटू
मंथरा
मंथरा
जो लोग अपना भला बुरा नहीं समझते
आँख मूँद कर, दूसरों की सलाह पर है चलते
उन पर मुसीबत आती ही आती है
बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए ,हर केकैयी को ,
कोई ना कोई मंथरा मिल ही जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जो लोग अपना भला बुरा नहीं समझते
आँख मूँद कर, दूसरों की सलाह पर है चलते
उन पर मुसीबत आती ही आती है
बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए ,हर केकैयी को ,
कोई ना कोई मंथरा मिल ही जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चन्दन सा बदन
चन्दन सा बदन
पत्नी जी हो नाराज,तो उन्हें मनाना
जैसे हो लोहे के चने चबाना
सीधी सच्ची बात भी उलटी लगती है
एसा लगता है,सब हमारी ही गलती है
एक बार पत्नी जी थी नाराज़,हमें था मनाना
हमने गा दिया ये गाना
'चन्दन सा बदन ,चंचल चितवन ,
धीरे से तेरा ये मुस्काना'
अधूरा था गाना और पत्नी ने मारा ताना
'अच्छा ,तो अब तुम्हे मेरा बदन ,
लगता है चन्दन की लकड़ी '
हमने सर पीटा ,हो गयी कुछ गड़बड़ी
हमने कहा नहीं ,हमारा मतलब था ,
तुम्हारा बदन चन्दन सा महकाता है
वो बोली'चन्दन तो तब खुशबू देता है ,
जब वो पुराना होकर सूख जाता है
तो क्या तुम्हे हमारा बदन पुराना और,
सूखी लकड़ी सा नज़र आता है?
तो फिर क्यों लिपटे रहते हो मेरे संग
चन्दन पर तो लिपटते है भुजंग
हमने कहा गलती हो गयी रानी
अब करो मेहरबानी
देवीजी ,तुम चन्दन हम पानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पत्नी जी हो नाराज,तो उन्हें मनाना
जैसे हो लोहे के चने चबाना
सीधी सच्ची बात भी उलटी लगती है
एसा लगता है,सब हमारी ही गलती है
एक बार पत्नी जी थी नाराज़,हमें था मनाना
हमने गा दिया ये गाना
'चन्दन सा बदन ,चंचल चितवन ,
धीरे से तेरा ये मुस्काना'
अधूरा था गाना और पत्नी ने मारा ताना
'अच्छा ,तो अब तुम्हे मेरा बदन ,
लगता है चन्दन की लकड़ी '
हमने सर पीटा ,हो गयी कुछ गड़बड़ी
हमने कहा नहीं ,हमारा मतलब था ,
तुम्हारा बदन चन्दन सा महकाता है
वो बोली'चन्दन तो तब खुशबू देता है ,
जब वो पुराना होकर सूख जाता है
तो क्या तुम्हे हमारा बदन पुराना और,
सूखी लकड़ी सा नज़र आता है?
तो फिर क्यों लिपटे रहते हो मेरे संग
चन्दन पर तो लिपटते है भुजंग
हमने कहा गलती हो गयी रानी
अब करो मेहरबानी
देवीजी ,तुम चन्दन हम पानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Sunday, November 25, 2012
बेचारी मधुमख्खी
बेचारी मधुमख्खी
निखारना हो अपना रूप
या दिल को करना हो मजबूत
मोटापा घटाना हो
खांसी से निजात पाना हो
चेहरा हो बहुत सुन्दर ,इसलिए
नहीं हो ,हाई ब्लड प्रेशर ,इसलिए
हम शहद काम में लाते है
पर कृषि वैज्ञानिक बताते है
शहद का बनाना नहीं है सहज
और एक मधुमख्खी ,अपने जीवनकाल में,
पैदा करती ही कुल आधा चम्मच शहद
मधुमाख्खियाँ,फूलों के ,
करीब दो करोड़ चक्कर लगाती है
तब कहीं ,आधा किलो शहद बन पाती है
मधुमख्खियों के ,पांच आँख होती है
वो,कभी भी नहीं सोती है
मधुमाख्खियों को लाल रंग,
काला दिखता है
इसलिए लाल फूलों का ,
शहद नहीं बनता है
फिर भी ,लगी रहती है दिन रात ,
पूरी लगन के साथ
कभी भी ना थकी
बेचारी मधुमख्खी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
निखारना हो अपना रूप
या दिल को करना हो मजबूत
मोटापा घटाना हो
खांसी से निजात पाना हो
चेहरा हो बहुत सुन्दर ,इसलिए
नहीं हो ,हाई ब्लड प्रेशर ,इसलिए
हम शहद काम में लाते है
पर कृषि वैज्ञानिक बताते है
शहद का बनाना नहीं है सहज
और एक मधुमख्खी ,अपने जीवनकाल में,
पैदा करती ही कुल आधा चम्मच शहद
मधुमाख्खियाँ,फूलों के ,
करीब दो करोड़ चक्कर लगाती है
तब कहीं ,आधा किलो शहद बन पाती है
मधुमख्खियों के ,पांच आँख होती है
वो,कभी भी नहीं सोती है
मधुमाख्खियों को लाल रंग,
काला दिखता है
इसलिए लाल फूलों का ,
शहद नहीं बनता है
फिर भी ,लगी रहती है दिन रात ,
पूरी लगन के साथ
कभी भी ना थकी
बेचारी मधुमख्खी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शहद सी पत्नी और 'हनीमून'
शहद सी पत्नी और 'हनीमून'
मधुर है,मीठी है,प्यारी है
शहद जैसी पत्नी हमारी है
भले ही इस उम्र में ,वो थोड़ी बुढ़िया लगती है
पर मुझे वो ,दिनों दिन और भी बढ़िया लगती है
क्योंकि शहद भी जितना पुराना होता जाता है,
उसकी गुणवत्ता बढती है
सोने के पहले ,दूध के साथ शहद खाने से
अच्छी नींद के साथ आते है ,सपने सुहाने से
सोने के पहले ,जब पत्नी होती है मेरे साथ
तो लागू होती है ,मुझ पर भी ये बात
दिल की मजबूती के लिए ,
शहद बड़ा उपयोगी है
मेरी पत्नी मेरे दिल की दवा है ,
क्योंकि ये बंदा ,दिल का रोगी है
शहद सौन्दर्य वर्धक है,
उसको लगाने से चेहरे पर चमक आती है
और जब पत्नी पास हो तो,
मेरे चेहरे पर भी रौनक छाती है
मेरी नज़रें ,मधुमख्खी की तरह ,
इधर उधर खिलते हुए ,
कितने ही पुष्पों का रसपान करती है
और मधु संचित कर ,
पत्नी जी के ह्रदय के छत्ते में भरती है
और मै ,मधु का शौक़ीन ,
रात और दिन
करता रहता हूँ मधु का रसपान
और साथ ही साथ ,पत्नी जी का गुणगान
क्योंकि शहद एक संतुलित आहार है
और मुझे अपनी पत्नी से बहुत प्यार है
अब तो आप भी जान गए होंगे कि ,
लोग अपनी पत्नी को'हनी 'कह कर क्यों बुलाते है
और शादी के बाद ,'हनीमून 'क्यों मनाते है
क्योंकि पत्नी का चेहरा चाँद सा दिखाता है
और उसमे 'हनी',याने शहद का स्वाद आता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Saturday, November 24, 2012
मिलन
मिलन
मिलन मिलन में अक्सर काफी अंतर होता
जल जल ही रहता है ,टुकड़े पत्थर होता
दूर क्षितिज में मिलते दिखते ,अवनी ,अम्बर
किन्तु मिलन यह होता एक छलावा केवल
क्योंकि धरा आकाश ,कभी भी ना मिलते है
चारों तरफ भले ही वो मिलते ,दिखते है
मिलन नज़र से नज़रों का है प्यार जगाता
लब से लब का मिलन दिलों में आग लगाता
तन से तन का मिलन ,प्रेम की प्रतिक्रिया है
पति ,पत्नी का मिलन रोज की दिनचर्या है
छुप छुप मिलन प्रेमियों का होता उन्मादी
दो ह्र्दयों का मिलन पर्व ,कहलाता शादी
माटी और बीज का जल से होता संगम
विकसित होती पौध ,पनपती बड़ा वृक्ष बन
सिर्फ मिलन से ही जगती क्रम चलता है
अन्न ,पुष्प,फल,संतति को जीवन मिलता है
हर सरिता,अंततः ,मिलती है ,सागर से
मीठे जल का मिलन सदा है खारे जल से
मिलन कोई होता है सुखकर ,कोई दुखकर
एक मिलन मृदु होता और दूसरा टक्कर
मधुर मिलन तो होता सदा प्रेम का पोषक
पर टक्कर का मिलन अधिकतर है विध्वंशक
टकराते चकमक पत्थर,निकले चिगारी
मिले हाथ से हाथ ,दोस्ती होती प्यारी
हवा मिले तरु से तो हिलते ,टहनी ,पत्ते
मिले पुष्प,मधुमख्खी ,भरते मधु से छत्ते
शीत ग्रीष्म के मिलन बीच आता बसंत है
मिलन मौत से,जीवन का बस यही अंत है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मिलन मिलन में अक्सर काफी अंतर होता
जल जल ही रहता है ,टुकड़े पत्थर होता
दूर क्षितिज में मिलते दिखते ,अवनी ,अम्बर
किन्तु मिलन यह होता एक छलावा केवल
क्योंकि धरा आकाश ,कभी भी ना मिलते है
चारों तरफ भले ही वो मिलते ,दिखते है
मिलन नज़र से नज़रों का है प्यार जगाता
लब से लब का मिलन दिलों में आग लगाता
तन से तन का मिलन ,प्रेम की प्रतिक्रिया है
पति ,पत्नी का मिलन रोज की दिनचर्या है
छुप छुप मिलन प्रेमियों का होता उन्मादी
दो ह्र्दयों का मिलन पर्व ,कहलाता शादी
माटी और बीज का जल से होता संगम
विकसित होती पौध ,पनपती बड़ा वृक्ष बन
सिर्फ मिलन से ही जगती क्रम चलता है
अन्न ,पुष्प,फल,संतति को जीवन मिलता है
हर सरिता,अंततः ,मिलती है ,सागर से
मीठे जल का मिलन सदा है खारे जल से
मिलन कोई होता है सुखकर ,कोई दुखकर
एक मिलन मृदु होता और दूसरा टक्कर
मधुर मिलन तो होता सदा प्रेम का पोषक
पर टक्कर का मिलन अधिकतर है विध्वंशक
टकराते चकमक पत्थर,निकले चिगारी
मिले हाथ से हाथ ,दोस्ती होती प्यारी
हवा मिले तरु से तो हिलते ,टहनी ,पत्ते
मिले पुष्प,मधुमख्खी ,भरते मधु से छत्ते
शीत ग्रीष्म के मिलन बीच आता बसंत है
मिलन मौत से,जीवन का बस यही अंत है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
लक्ष्मी जी की कृपा
लक्ष्मी जी की कृपा
लक्ष्मी जी का आकर्षण ही एसा है कि ,
सब उसके प्रभाव से बंध जाते है
चिघाड़ने वाले ,बलवान हाथी भी ,
उनको देख ,उमके सेवक बन जाते है
और लक्ष्मी जी आस पास ,
अपनी सूंड उठा कर ,
पानी की बौछार करते हुए नज़र आते है
कमलासन पर विराजमान,लक्ष्मी जी की,
कृपा जब आपके साथ होती है
तो दोनों हाथों से ,
पैसों की बरसात होती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
लक्ष्मी जी का आकर्षण ही एसा है कि ,
सब उसके प्रभाव से बंध जाते है
चिघाड़ने वाले ,बलवान हाथी भी ,
उनको देख ,उमके सेवक बन जाते है
और लक्ष्मी जी आस पास ,
अपनी सूंड उठा कर ,
पानी की बौछार करते हुए नज़र आते है
कमलासन पर विराजमान,लक्ष्मी जी की,
कृपा जब आपके साथ होती है
तो दोनों हाथों से ,
पैसों की बरसात होती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कार्तिक के पर्व
कार्तिक के पर्व
धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन की
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट तरीका
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते वास देवगण
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य बहुत हो जाते संचित
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ सुनिश्चित
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन की
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट तरीका
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते वास देवगण
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य बहुत हो जाते संचित
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ सुनिश्चित
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Wednesday, November 21, 2012
जो दिखता है-वो बिकता है
जो दिखता है-वो बिकता है
जो दिखता है -वो बिकता है
बिका हुआ रेपिंग पेपर में ,
छुप प्रेजेंट कहाता है
पर जब रेपिंग पेपर फटता ,
तो फिर से दिखलाता है
बन जाता प्रेजेंट ,पास्ट,
ज्यादा दिन तक ना टिकता है
जो दिखता है -वो फिंकता है
लाख करोडो रिश्वत खाते ,
नेताजी ,कर घोटाले
पोल खुले तो फंसते अफसर ,
मारे जाते बेचारे
छुपे छुपे नेताजी रहते ,
दोषी अफसर दिखता है
जो दिखता है-वो पिसता है
गौरी का रंग गोरा लेकिन,
खुला खुला जो अंग रहे
धीरे धीरे पड़ता काला ,
जब वो तीखी धुप सहे
छुपे अंग रहते गोरे ,
और खुल्ला ,काला दिखता है
जो दिखता है -वो सिकता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जो दिखता है -वो बिकता है
बिका हुआ रेपिंग पेपर में ,
छुप प्रेजेंट कहाता है
पर जब रेपिंग पेपर फटता ,
तो फिर से दिखलाता है
बन जाता प्रेजेंट ,पास्ट,
ज्यादा दिन तक ना टिकता है
जो दिखता है -वो फिंकता है
लाख करोडो रिश्वत खाते ,
नेताजी ,कर घोटाले
पोल खुले तो फंसते अफसर ,
मारे जाते बेचारे
छुपे छुपे नेताजी रहते ,
दोषी अफसर दिखता है
जो दिखता है-वो पिसता है
गौरी का रंग गोरा लेकिन,
खुला खुला जो अंग रहे
धीरे धीरे पड़ता काला ,
जब वो तीखी धुप सहे
छुपे अंग रहते गोरे ,
और खुल्ला ,काला दिखता है
जो दिखता है -वो सिकता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Monday, November 19, 2012
दक्षिणा के साथ साथ
दक्षिणा के साथ साथ
अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको खाना होगा
पर इतनी सारी केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको खाना होगा
पर इतनी सारी केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
दिवाली मन जाती है
दिवाली मन जाती है
जब भी आती है दिवाली ,हर बार
एक जगह ,एकत्रित हो जाता है,
हम सब भाइयों का पूरा परिवार
मनाने को खुशियों का त्योंहार
साथ साथ मिलकर के ,दिवाली मनाना
हंसी ख़ुशी ,चहल पहल,खाना,खिलाना
लक्ष्मी जी का पूजन,पटाखे चलाना
प्रेम भाव,मस्ती,वो हँसना ,हँसाना
भले ही चार दिन ,पर जब सब मिल जाते है
मेरी माँ के झुर्राए चेहरे पर ,
फूल खिल जाते है
सब को एक साथ देख कर ,
उनकी धुंधली सी आँखों में ,
खुशियों के दीपक जल जाते है
प्यार ,ममता और संतोष की,
ऐसी चमक आती है
कि दीपावली,अपने आप मन जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब भी आती है दिवाली ,हर बार
एक जगह ,एकत्रित हो जाता है,
हम सब भाइयों का पूरा परिवार
मनाने को खुशियों का त्योंहार
साथ साथ मिलकर के ,दिवाली मनाना
हंसी ख़ुशी ,चहल पहल,खाना,खिलाना
लक्ष्मी जी का पूजन,पटाखे चलाना
प्रेम भाव,मस्ती,वो हँसना ,हँसाना
भले ही चार दिन ,पर जब सब मिल जाते है
मेरी माँ के झुर्राए चेहरे पर ,
फूल खिल जाते है
सब को एक साथ देख कर ,
उनकी धुंधली सी आँखों में ,
खुशियों के दीपक जल जाते है
प्यार ,ममता और संतोष की,
ऐसी चमक आती है
कि दीपावली,अपने आप मन जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गृह लक्ष्मी
गृह लक्ष्मी
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Sunday, November 18, 2012
पत्नी-पीड़ित -पति
पत्नी-पीड़ित -पति
सारी दुनिया में ले चिराग ,
यदि निकल ढूँढने जाए आप
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ये बात नहीं है अनजानी
चेहरे पर चिंतायें होगी ,
माथे पर शिकन पड़ी होगी
मुरझाया सा मुखड़ा होगा ,
सूरत कुछ झड़ी झड़ी होगी
सर पर यदि होंगे बाल अगर ,
तो अस्त व्यस्त ही पाओगे ,
वर्ना अक्सर ही उस गरीब ,
की चंदिया उडी उडी होगी
रूखी रूखी बातें करता ,
सूखा सूखा आनन होगा
निचुड़ा निचुड़ा ,सुकड़ा सुकड़ा ,
ढीला ढीला सा तन होगा
आँखों में चमक नहीं होगी ,
कुछ कुछ मुरझायापन होगा
यदि बाहर से हँसता भी हो,
अन्दर से रोता मन होगा
बिचके जो बातचीत में भी,
कुछ कहने में शरमाता हो
पत्नी की आहट पाते ही ,
झट घबरा घबरा जाता हो
चौकन्ना श्वान सरीखा हो,
गैया सा सीधा सीधा हो
पर अपने घर में घुसते ही ,
भीगी बिल्ली बन जाता हो
दिखने में भोला भोला हो
जिसके होंठो पर ताला हो
बोली हो जिसकी दबी दबी ,
और हंसी हँसे जो खिसियानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
उस दुखी जीव को देख अगर ,
जो ह्रदय दया से भर जाए
उसकी हालत पर तरस आये,
मन में सहानुभूति छाये
शायद तुम उससे पूछोगे ,
क्यों बना रखी है ये हालत ,
हो सकता है वो घबराये ,
उत्तर देने में कतराये
तुम शायद पूछो क्या ऐसा ,
जीवन लगता है जेल नहीं
चेहरे पर चिंताएं क्यों है,
क्यों है बालों में तेल नहीं
सूखी सी एक हंसी हंस कर ,
शायद वह यह उत्तर देगा ,
पत्नी पीड़ित ,होकर जीवित ,
रह लेना कोई खेल नहीं
मै खोया खोया रहता हूँ,
मुझको जीवन से मोह नहीं
सब कुछ सह सकता ,पत्नी से ,
सह सकता मगर बिछोह नहीं
शायद मेरी कमजोरी है ,
कायरता भी कह सकते हो,
लेकिन अपनी पत्नीजी से ,
कर सकता मै विद्रोह नहीं
कैसे साहस कर सकता हूँ
उनके बेलन से डरता हूँ
पत्नी सेवा है धर्म मेरा ,
पत्नीजी है घर की रानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ऐसे पत्नी पीड़ित पति की भी,
काफी किस्मे होती है
कितने ही आफत के मारों ,
की गिनती इसमें होती है
कोई के पल्ले बंध जाती,
जब बड़े बाप की बेटी है,
तो छोटी छोटी बातों में ,
भी तू तू मै मै होती है
कोई की पत्नी कमा रही,
तो पति पर रौब चलाती है
कोई सुन्दर आँखों वाली है ,
पति को आँख दिखाती है
कोई का पति दीवाना है ,
कोई के पति जी दुर्बल है ,
पति की कोई भी कमजोरी का ,
पत्नी लाभ उठाती है
कुछ ख़ास किसम के पतियों संग ,
एसा भी चक्कर होता है
पति विरही ,तडफे ,पत्नी को ,
पर प्यारा पीहर होता है
कोई की पत्नी सुन्दर है,
सब लोग घूर कर तकते है
कुछ शकी किस्म के पतियों को,
अक्सर ये भी डर होता है
कोई की पत्नी रोगी है
कोई की पत्नी ढोंगी है
कोई की पत्नी करती है ,
अक्सर अपनी ही मन मानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ये बात नहीं है अनजानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सारी दुनिया में ले चिराग ,
यदि निकल ढूँढने जाए आप
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ये बात नहीं है अनजानी
चेहरे पर चिंतायें होगी ,
माथे पर शिकन पड़ी होगी
मुरझाया सा मुखड़ा होगा ,
सूरत कुछ झड़ी झड़ी होगी
सर पर यदि होंगे बाल अगर ,
तो अस्त व्यस्त ही पाओगे ,
वर्ना अक्सर ही उस गरीब ,
की चंदिया उडी उडी होगी
रूखी रूखी बातें करता ,
सूखा सूखा आनन होगा
निचुड़ा निचुड़ा ,सुकड़ा सुकड़ा ,
ढीला ढीला सा तन होगा
आँखों में चमक नहीं होगी ,
कुछ कुछ मुरझायापन होगा
यदि बाहर से हँसता भी हो,
अन्दर से रोता मन होगा
बिचके जो बातचीत में भी,
कुछ कहने में शरमाता हो
पत्नी की आहट पाते ही ,
झट घबरा घबरा जाता हो
चौकन्ना श्वान सरीखा हो,
गैया सा सीधा सीधा हो
पर अपने घर में घुसते ही ,
भीगी बिल्ली बन जाता हो
दिखने में भोला भोला हो
जिसके होंठो पर ताला हो
बोली हो जिसकी दबी दबी ,
और हंसी हँसे जो खिसियानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
उस दुखी जीव को देख अगर ,
जो ह्रदय दया से भर जाए
उसकी हालत पर तरस आये,
मन में सहानुभूति छाये
शायद तुम उससे पूछोगे ,
क्यों बना रखी है ये हालत ,
हो सकता है वो घबराये ,
उत्तर देने में कतराये
तुम शायद पूछो क्या ऐसा ,
जीवन लगता है जेल नहीं
चेहरे पर चिंताएं क्यों है,
क्यों है बालों में तेल नहीं
सूखी सी एक हंसी हंस कर ,
शायद वह यह उत्तर देगा ,
पत्नी पीड़ित ,होकर जीवित ,
रह लेना कोई खेल नहीं
मै खोया खोया रहता हूँ,
मुझको जीवन से मोह नहीं
सब कुछ सह सकता ,पत्नी से ,
सह सकता मगर बिछोह नहीं
शायद मेरी कमजोरी है ,
कायरता भी कह सकते हो,
लेकिन अपनी पत्नीजी से ,
कर सकता मै विद्रोह नहीं
कैसे साहस कर सकता हूँ
उनके बेलन से डरता हूँ
पत्नी सेवा है धर्म मेरा ,
पत्नीजी है घर की रानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ऐसे पत्नी पीड़ित पति की भी,
काफी किस्मे होती है
कितने ही आफत के मारों ,
की गिनती इसमें होती है
कोई के पल्ले बंध जाती,
जब बड़े बाप की बेटी है,
तो छोटी छोटी बातों में ,
भी तू तू मै मै होती है
कोई की पत्नी कमा रही,
तो पति पर रौब चलाती है
कोई सुन्दर आँखों वाली है ,
पति को आँख दिखाती है
कोई का पति दीवाना है ,
कोई के पति जी दुर्बल है ,
पति की कोई भी कमजोरी का ,
पत्नी लाभ उठाती है
कुछ ख़ास किसम के पतियों संग ,
एसा भी चक्कर होता है
पति विरही ,तडफे ,पत्नी को ,
पर प्यारा पीहर होता है
कोई की पत्नी सुन्दर है,
सब लोग घूर कर तकते है
कुछ शकी किस्म के पतियों को,
अक्सर ये भी डर होता है
कोई की पत्नी रोगी है
कोई की पत्नी ढोंगी है
कोई की पत्नी करती है ,
अक्सर अपनी ही मन मानी
मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ये बात नहीं है अनजानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नुक्सान
नुक्सान
मेरी शादी नयी नयी थी
मेरी बीबी छुई मुई थी
सीधी सादी भोली भाली
एक गाँव की रहने वाली
ससुर साहब ने पाली भैंसे
बेचा दूध,कमाए पैसे
अरारोट ,पानी की माया
बचा दूध तो दही बनाया
मख्खन,छाछ ,कड़ी बनवायी
घर पर सब्जी कभी न आयी
तो भोली बीबी को लेकर
मैंने बसा लिया अपना घर
तरह तरह की बात बताता
ताज़ी ताज़ी सब्जी लाता
एक दिवस ऑफिस से लौटा
आते ही बीबी ने टोका
तुम्हे ठगा सब्जी वाले ने
धोखा खूब दिया साले ने
सब्जी तुम लाये थे जो भी
हाँ हाँ क्या थी,पत्ता गोभी
छिलके ही छिलके निकले जी
गूदे का ना पता चले जी
मैंने छिलके फेंक दिये है
सारे पैसे व्यर्थ गये है
सुन कर बहुत हंसी सी आई
पत्नीजी ने कभी न खायी
थी सब्जी पत्ता गोभी की
वह ना उसकी माँ दोषी थी
कंजूसी से काम हो गया
पर मेरा नुक्सान हो गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेरी शादी नयी नयी थी
मेरी बीबी छुई मुई थी
सीधी सादी भोली भाली
एक गाँव की रहने वाली
ससुर साहब ने पाली भैंसे
बेचा दूध,कमाए पैसे
अरारोट ,पानी की माया
बचा दूध तो दही बनाया
मख्खन,छाछ ,कड़ी बनवायी
घर पर सब्जी कभी न आयी
तो भोली बीबी को लेकर
मैंने बसा लिया अपना घर
तरह तरह की बात बताता
ताज़ी ताज़ी सब्जी लाता
एक दिवस ऑफिस से लौटा
आते ही बीबी ने टोका
तुम्हे ठगा सब्जी वाले ने
धोखा खूब दिया साले ने
सब्जी तुम लाये थे जो भी
हाँ हाँ क्या थी,पत्ता गोभी
छिलके ही छिलके निकले जी
गूदे का ना पता चले जी
मैंने छिलके फेंक दिये है
सारे पैसे व्यर्थ गये है
सुन कर बहुत हंसी सी आई
पत्नीजी ने कभी न खायी
थी सब्जी पत्ता गोभी की
वह ना उसकी माँ दोषी थी
कंजूसी से काम हो गया
पर मेरा नुक्सान हो गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, November 17, 2012
मात शारदे!
मात शारदे!
मात शारदे !
मुझे प्यार दे
वीणावादिनी !
नव बहार दे
मन वीणा को ,
झंकृत कर दे
हंस वाहिनी ,
एसा वर दे
सत -पथ -अमृत ,
मन में भर दे
बुद्धिदायिनी ,
नव विचार दे
मात शारदे!
ज्ञानसुधा की,
घूँट पिला दे
सुप्त भाव का ,
जलज खिला दे
गयी चेतना ,
फिर से ला दे
डगमग नैया ,
लगा पार दे
मात शारदे !
भटक रहा मै ,
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे,
तम हर ओ माँ
नव लय दे तू,
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी ,
प्रीत धार दे
मात शारदे !
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मात शारदे !
मुझे प्यार दे
वीणावादिनी !
नव बहार दे
मन वीणा को ,
झंकृत कर दे
हंस वाहिनी ,
एसा वर दे
सत -पथ -अमृत ,
मन में भर दे
बुद्धिदायिनी ,
नव विचार दे
मात शारदे!
ज्ञानसुधा की,
घूँट पिला दे
सुप्त भाव का ,
जलज खिला दे
गयी चेतना ,
फिर से ला दे
डगमग नैया ,
लगा पार दे
मात शारदे !
भटक रहा मै ,
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे,
तम हर ओ माँ
नव लय दे तू,
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी ,
प्रीत धार दे
मात शारदे !
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दुनियादारी
दुनियादारी
दोस्ती के नाम पर ,जाम पीनेवाले भी,
दोस्ती के दामन में ,दाग लगा देते है
धुवें से डरते है,लेकिन खुदगर्जी में,
खुद आगे रह कर के आग लगा देते है
रोज की बातें है ,जो अक्सर होती है
खुदगर्जी झगडे का ,बीज सदा बोती है
कभी कभी लेकिन कुछ ,एसा भी होता है,
दुश्मन तो साथ मगर ,दोस्त दगा देते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दोस्ती के नाम पर ,जाम पीनेवाले भी,
दोस्ती के दामन में ,दाग लगा देते है
धुवें से डरते है,लेकिन खुदगर्जी में,
खुद आगे रह कर के आग लगा देते है
रोज की बातें है ,जो अक्सर होती है
खुदगर्जी झगडे का ,बीज सदा बोती है
कभी कभी लेकिन कुछ ,एसा भी होता है,
दुश्मन तो साथ मगर ,दोस्त दगा देते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जग में चार तरह के दानी
जग में चार तरह के दानी
प्रथम श्रेणी के दानी वो जो पापकर्म करते रहते है
पर ऊपरवाले से डर कर ,दान धर्म करते रहते है
बेईमानी की पूँजी का ,थोडा प्रतिशत दान फंड में
गर्मी में लस्सी पिलवाते,कम्बल बँटवा रहे ठण्ड में
जनम जनम के पाप धो रहे ,गंगाजी की एक डुबकी में
पूजा ,हवन सभी करवाते ,लेकिन खोट भरा है जी में
लेकिन डर कर ,'धरमराज 'से ,धर्मराज बनने वाले ये,
छिपे भेड़ियों की खालों में ,इस कलयुग के सच्चे ज्ञानी
जग में चार तरह के दानी
निज में रखता कलम ,पेन्सिल ,कलमदान यह कहलाता है
कुछ पैसे गंगा में डालो , गुप्तदान यह कहलाता है
और तीसरे ढंग की दानी, कहलाती है चूहे दानी
कैद किया करती चूहों को , नाम मगर है फिर भी दानी
शायद दान किया करती है,आजादी का,स्वतंत्रता का
चौथी दानी,मच्छरदानी ,फहराती है ,विजय पताका
मच्छरदानी ,पर मच्छर को,ना देती है पास फटकने
रक्तदान से हमें बचाती ,रात चैन से देती कटने
चूहेदानी में चूहे पर,मच्छरदानी बिन मच्छर के ,
फिर भी दानी कहलाती है,यह सचमुच ही है हैरानी
जग में चार तरह के दानी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
प्रथम श्रेणी के दानी वो जो पापकर्म करते रहते है
पर ऊपरवाले से डर कर ,दान धर्म करते रहते है
बेईमानी की पूँजी का ,थोडा प्रतिशत दान फंड में
गर्मी में लस्सी पिलवाते,कम्बल बँटवा रहे ठण्ड में
जनम जनम के पाप धो रहे ,गंगाजी की एक डुबकी में
पूजा ,हवन सभी करवाते ,लेकिन खोट भरा है जी में
लेकिन डर कर ,'धरमराज 'से ,धर्मराज बनने वाले ये,
छिपे भेड़ियों की खालों में ,इस कलयुग के सच्चे ज्ञानी
जग में चार तरह के दानी
निज में रखता कलम ,पेन्सिल ,कलमदान यह कहलाता है
कुछ पैसे गंगा में डालो , गुप्तदान यह कहलाता है
और तीसरे ढंग की दानी, कहलाती है चूहे दानी
कैद किया करती चूहों को , नाम मगर है फिर भी दानी
शायद दान किया करती है,आजादी का,स्वतंत्रता का
चौथी दानी,मच्छरदानी ,फहराती है ,विजय पताका
मच्छरदानी ,पर मच्छर को,ना देती है पास फटकने
रक्तदान से हमें बचाती ,रात चैन से देती कटने
चूहेदानी में चूहे पर,मच्छरदानी बिन मच्छर के ,
फिर भी दानी कहलाती है,यह सचमुच ही है हैरानी
जग में चार तरह के दानी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
तुमने अचार बना डाला
तुमने अचार बना डाला
वैभव के सपने देखे थे,मैंने जीवन के शैशव में
इच्छाओं का बहुत शोर ,करता था मै किशोर वय में
यौवन के वन में आ जाना,यह तो थी मृगतृष्णा कोरी
लेकिन अब मै हूँ समझ सका,जीवन भाषा ,थोड़ी थोड़ी
मै बनने वाला था कलाकार,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मेरी सारी आशाओं पर, उस रोज तुषारापात हुआ
जिस दिन से था इस जीवन में,मेरा तुम्हारा साथ हुआ
मैंने सोचा था पढ़ी लिखी ,तुम मेरा काव्य सराहोगी
तुम स्वयं धन्य हो जाओगी,जो मुझ सा कवि पति पाओगी
थी मधुर यामिनी की बेला,मै था तुम पर दीवाना सा
तुम्हारी रूप प्रशंसा में,मैंने कुछ गाया गाना सा
मै भाव विभोर हो गया था,सोचा था तुम शरमाओगी
या तो पलके झुक जायेगी ,या बाँहों में आ जाओगी
पर पलकें झुकी न शरमाई,तुम झल्ला बोली ,मत बोर करो
बाहर मेहमान जागते है,अब चुप भी रहो,न शोर करो
फिर यह सुन कर अभिलाषाओं ने, था बाँध सब्र का फांद दिया
जब तुम बोली हे राम मुझे,किस कवि के पल्ले बाँध दिया
फिर दिया लेक्चर लम्बा सा ,तुमने घर ,जिम्मेदारी का
मुझको अहसास दिलाया था,तुमने मेरी बेकारी का
उस मधुर यामिनी में तुमने,फीका अभिसार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
फिर मुझे प्यार से सहला कर ,ऐसी कुछ मीठी बात करी
रह गयी छुपी ,दिल ही दिल में,मेरी कविताई ,डरी डरी
मै प्रेम डोर से बंधा हुआ ,जो भी तुम बोली ,सच समझा
फिर वही हुआ जो होना था,मै नमक ,तेल में ,जा उलझा
तुम्हारा कहना मान लिया,हो गया किसी का नौकर ,मै
बेचारी काव्य पौध सूखी ,जो पछताता हूँ ,बोकर ,मै
बाहर कोई का नौकर पर ,घर में नौकर तुम्हारा था
तुम्हारी रूप अदाओं ने ,एक कलाकार को मारा था
अच्छा होता यदि उसी रात ,जो प्यार मुझे तुम ना देती
मीठी बातों के बदले में ,फटकार मुझे जो तुम देती
तो हिंदी जग में आज नया,एक तुलसीदास नज़र आता
पत्नी ताड़ित यदि बन जाता,पत्नी पीड़ित ना कहलाता
कितने ही काव्य रचे होते,मै कालिदास बना होता
मुरझाती यदि ना काव्य पौध ,तो अब वह वृक्ष घना होता
पर बकरी बन,उस पौधे को,तुमने आहार बना डाला
केरी पक कर ना आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै कई बार पछताता हूँ,यदि तुमसे प्यार नहीं होता
मै कुछ का कुछ ही बन जाता,मेरा ये हाल नहीं होता
लेकिन मुझसे भी ज्यादा तो,अब कलाकार हो अच्छी तुम
हर साल प्रकाशित कर देती ,कोई बच्चा या बच्ची तुम
ना जाने क्यों,मेरे मन को ,रह रह यह बात कचोट रही
तुम सौत समझती कविता को,क्यों गला ,कला का घोट रही
मै जब भी कुछ लिखने लगता ,सब काम याद क्यों आते है
अब तुम्ही बताओ उसी समय,बच्चे क्यों शोर मचाते है
मै भली तरह से समझ गया,यह तुम्ही उन्हें हो सिखलाती
क्या लिखूं रात में खाक तुम्हे ,लाइट में नींद नहीं आती
घंटो तक बोर नहीं करती ,सखियों की बातचीत तुमको
तो बतलाओ क्यों चुभते है,मेरे ये मधुर गीत तुमको
मै अलंकार की बात करूं ,तुम आ जाती हो गहनों पर
मेरे कविता के टोपिक को,तुम ले आती निज बहनों पर
कहती हो रचना को चरना,कवि को कपिकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै बात काव्य रस की करता,जाने क्यों मुंह बिचकाती हो
जब गन्ने और आम का रस ,दो दो गिलास पी जाती हो
मै जब भी समझाने लगता,कविता का भाव कभी तुमको
आ जाता याद बाज़ार भाव,लगता है मंहगा घी तुमको
जब मेरी काव्य साधना की ,दो बात नहीं सुन सकती हो
उस मुई सिनेमे वाली के,घंटों तक चर्चे करती हो
क्यों गज भर दूर ग़ज़ल से तुम,क्यों है रुबाई से रुसवाई
क्यों डरती हो तुम शेरो से,क्यों नज़म तुम्हे ना जम पायी
क्यों है नफरत,क्या इन सबसे ,है पूर्व जन्म का बैर तुम्हे
या मै ही सीधासादा हूँ,ना मिला कोई दो सेर तुम्हे
मत समझो यह सीधा प्राणी ,केवल घर का बासिन्दा है
मै भले गृहस्थी में उलझा,मेरा कवि अब भी जिन्दा है
पर तुम जब घर पर रहती हो ,तो कहाँ काव्य लिख सकता हूँ
दो,चार माह ,मइके रहलो,तो महाकाव्य लिख सकता हूँ
हे राम फंसा किस झंझट में,मेरे सर भार बना डाला
तुमने मुझको जाने क्या क्या ,मेरी सरकार बना डाला
मै बनने वाला था कलाकार ,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
वैभव के सपने देखे थे,मैंने जीवन के शैशव में
इच्छाओं का बहुत शोर ,करता था मै किशोर वय में
यौवन के वन में आ जाना,यह तो थी मृगतृष्णा कोरी
लेकिन अब मै हूँ समझ सका,जीवन भाषा ,थोड़ी थोड़ी
मै बनने वाला था कलाकार,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मेरी सारी आशाओं पर, उस रोज तुषारापात हुआ
जिस दिन से था इस जीवन में,मेरा तुम्हारा साथ हुआ
मैंने सोचा था पढ़ी लिखी ,तुम मेरा काव्य सराहोगी
तुम स्वयं धन्य हो जाओगी,जो मुझ सा कवि पति पाओगी
थी मधुर यामिनी की बेला,मै था तुम पर दीवाना सा
तुम्हारी रूप प्रशंसा में,मैंने कुछ गाया गाना सा
मै भाव विभोर हो गया था,सोचा था तुम शरमाओगी
या तो पलके झुक जायेगी ,या बाँहों में आ जाओगी
पर पलकें झुकी न शरमाई,तुम झल्ला बोली ,मत बोर करो
बाहर मेहमान जागते है,अब चुप भी रहो,न शोर करो
फिर यह सुन कर अभिलाषाओं ने, था बाँध सब्र का फांद दिया
जब तुम बोली हे राम मुझे,किस कवि के पल्ले बाँध दिया
फिर दिया लेक्चर लम्बा सा ,तुमने घर ,जिम्मेदारी का
मुझको अहसास दिलाया था,तुमने मेरी बेकारी का
उस मधुर यामिनी में तुमने,फीका अभिसार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
फिर मुझे प्यार से सहला कर ,ऐसी कुछ मीठी बात करी
रह गयी छुपी ,दिल ही दिल में,मेरी कविताई ,डरी डरी
मै प्रेम डोर से बंधा हुआ ,जो भी तुम बोली ,सच समझा
फिर वही हुआ जो होना था,मै नमक ,तेल में ,जा उलझा
तुम्हारा कहना मान लिया,हो गया किसी का नौकर ,मै
बेचारी काव्य पौध सूखी ,जो पछताता हूँ ,बोकर ,मै
बाहर कोई का नौकर पर ,घर में नौकर तुम्हारा था
तुम्हारी रूप अदाओं ने ,एक कलाकार को मारा था
अच्छा होता यदि उसी रात ,जो प्यार मुझे तुम ना देती
मीठी बातों के बदले में ,फटकार मुझे जो तुम देती
तो हिंदी जग में आज नया,एक तुलसीदास नज़र आता
पत्नी ताड़ित यदि बन जाता,पत्नी पीड़ित ना कहलाता
कितने ही काव्य रचे होते,मै कालिदास बना होता
मुरझाती यदि ना काव्य पौध ,तो अब वह वृक्ष घना होता
पर बकरी बन,उस पौधे को,तुमने आहार बना डाला
केरी पक कर ना आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै कई बार पछताता हूँ,यदि तुमसे प्यार नहीं होता
मै कुछ का कुछ ही बन जाता,मेरा ये हाल नहीं होता
लेकिन मुझसे भी ज्यादा तो,अब कलाकार हो अच्छी तुम
हर साल प्रकाशित कर देती ,कोई बच्चा या बच्ची तुम
ना जाने क्यों,मेरे मन को ,रह रह यह बात कचोट रही
तुम सौत समझती कविता को,क्यों गला ,कला का घोट रही
मै जब भी कुछ लिखने लगता ,सब काम याद क्यों आते है
अब तुम्ही बताओ उसी समय,बच्चे क्यों शोर मचाते है
मै भली तरह से समझ गया,यह तुम्ही उन्हें हो सिखलाती
क्या लिखूं रात में खाक तुम्हे ,लाइट में नींद नहीं आती
घंटो तक बोर नहीं करती ,सखियों की बातचीत तुमको
तो बतलाओ क्यों चुभते है,मेरे ये मधुर गीत तुमको
मै अलंकार की बात करूं ,तुम आ जाती हो गहनों पर
मेरे कविता के टोपिक को,तुम ले आती निज बहनों पर
कहती हो रचना को चरना,कवि को कपिकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मै बात काव्य रस की करता,जाने क्यों मुंह बिचकाती हो
जब गन्ने और आम का रस ,दो दो गिलास पी जाती हो
मै जब भी समझाने लगता,कविता का भाव कभी तुमको
आ जाता याद बाज़ार भाव,लगता है मंहगा घी तुमको
जब मेरी काव्य साधना की ,दो बात नहीं सुन सकती हो
उस मुई सिनेमे वाली के,घंटों तक चर्चे करती हो
क्यों गज भर दूर ग़ज़ल से तुम,क्यों है रुबाई से रुसवाई
क्यों डरती हो तुम शेरो से,क्यों नज़म तुम्हे ना जम पायी
क्यों है नफरत,क्या इन सबसे ,है पूर्व जन्म का बैर तुम्हे
या मै ही सीधासादा हूँ,ना मिला कोई दो सेर तुम्हे
मत समझो यह सीधा प्राणी ,केवल घर का बासिन्दा है
मै भले गृहस्थी में उलझा,मेरा कवि अब भी जिन्दा है
पर तुम जब घर पर रहती हो ,तो कहाँ काव्य लिख सकता हूँ
दो,चार माह ,मइके रहलो,तो महाकाव्य लिख सकता हूँ
हे राम फंसा किस झंझट में,मेरे सर भार बना डाला
तुमने मुझको जाने क्या क्या ,मेरी सरकार बना डाला
मै बनने वाला था कलाकार ,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Tuesday, November 13, 2012
संरक्षक (रेफ्रिजेटर)
संरक्षक (रेफ्रिजेटर)
कई रसीली ,मधुर रूपसी,
मेरे उर में आती जाती
उनकी सुरभि,मुझे लुभाती
निश्चित ही स्वादिष्ट बहुत वो होगी,
मेरा मन ललचाता
लेकिन मै कुछ कर ना पाता
क्योंकि मुझे गढ़ने वाले ने ,
मेरे मुख दांत ना दिये
सिर्फ सूँघना ही नसीब में लिखा इसलिये
मै तो उनके रूप ,स्वाद को कर संरक्षित
उनकी जीवन अवधि बढाता रहता,परहित
यूं ही तरस तरस कर करना जीवन व्यापन
बिना किये रस का आस्वादन ,
कट जाता है ,मेरा जीवन
कई मिठाई,कितने ही फल
कितने ही पकवान,पेय जल
आकर्षित करते रहते है मुझको हर पल
मेरा मन कितना ही चाहे
मै बेबस ,भरता ही रहता,ठंडी आहें
मन मसोस मै रहता हरदम
तुम चाहो तो इसको कह सकते हो संयम
बचा खुचा ,घर का सब खाना
है मेरे ही हिस्से आना
मुझे चाहता दिल से गोरस
मै ना अगर मिलूँ,
तो उसका दिल जाता फट
मै संरक्षक ,
जो भी मेरे उर में बसता,
उसका यौवन,संरक्षित रहता है,
एक लम्बी अवधी तक
मै तो हूँ घर घर का वासी ,
सभी गृहणियों का मै प्यारा
मै रेफ्रिजेटर तुम्हारा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कई रसीली ,मधुर रूपसी,
मेरे उर में आती जाती
उनकी सुरभि,मुझे लुभाती
निश्चित ही स्वादिष्ट बहुत वो होगी,
मेरा मन ललचाता
लेकिन मै कुछ कर ना पाता
क्योंकि मुझे गढ़ने वाले ने ,
मेरे मुख दांत ना दिये
सिर्फ सूँघना ही नसीब में लिखा इसलिये
मै तो उनके रूप ,स्वाद को कर संरक्षित
उनकी जीवन अवधि बढाता रहता,परहित
यूं ही तरस तरस कर करना जीवन व्यापन
बिना किये रस का आस्वादन ,
कट जाता है ,मेरा जीवन
कई मिठाई,कितने ही फल
कितने ही पकवान,पेय जल
आकर्षित करते रहते है मुझको हर पल
मेरा मन कितना ही चाहे
मै बेबस ,भरता ही रहता,ठंडी आहें
मन मसोस मै रहता हरदम
तुम चाहो तो इसको कह सकते हो संयम
बचा खुचा ,घर का सब खाना
है मेरे ही हिस्से आना
मुझे चाहता दिल से गोरस
मै ना अगर मिलूँ,
तो उसका दिल जाता फट
मै संरक्षक ,
जो भी मेरे उर में बसता,
उसका यौवन,संरक्षित रहता है,
एक लम्बी अवधी तक
मै तो हूँ घर घर का वासी ,
सभी गृहणियों का मै प्यारा
मै रेफ्रिजेटर तुम्हारा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, November 10, 2012
रेपिंग पेपर
रेपिंग पेपर
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
चमक दमक वाला सुन्दर सा,
मै तो एक आवरण भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
छोटी,बड़ी सभी सौगातें
मुझ में लोग छुपा कर लाते
मेरा आकर्षण है बस तब तक
मुझ में गिफ्ट छुपी है जब तक
जब भी मै हाथों में आता
जो भी पाता,वो मुस्काता
सभी देखते रूप चमकता
अन्दर क्या है की उत्सुकता
जैसे कभी सुहाग रात में
पहली पहली मुलाक़ात में
आकुल पति उठाता जिसको,
मै दुल्हन का, घूंघट भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
कितनी गिफ्टें,नयी,पुरानी
अगर आपको है निपटानी
मेरे बिना काम ना चलता
मै हूँ उनका ,रूप बदलता
एक गिफ्ट,कितने ही रेपर
बदल,बदल,बदला करते घर
लेकिन गिफ्ट कोई जो पाता
उसे आवरण नहीं सुहाता
अन्दर क्या है,यही चाव है
उत्सुकता ,मानव स्वभाव है
तिरस्कार है मेरी नियति,
मै गूदा ना,छिलका भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
लिपट गिफ्ट के प्यारे तन से
मै आनंदित होता ,मन से
जन्मदिवस,शादी,दीवाली
रहती मेरी शान निराली
हाथों हाथ ,लिया मै जाता
बड़े गर्व से हूँ इठलाता
देने वाला जब जाता है
मुझ को फाड़ दिया जाता है
मेरी तरफ नहीं देखेंगे
टुकड़े टुकड़े कर फेंकेगे
पहुंचूंगा कूड़ेदानी में,
अल्प उम्र है,मै नश्वर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
चमक दमक वाला सुन्दर सा,
मै तो एक आवरण भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
छोटी,बड़ी सभी सौगातें
मुझ में लोग छुपा कर लाते
मेरा आकर्षण है बस तब तक
मुझ में गिफ्ट छुपी है जब तक
जब भी मै हाथों में आता
जो भी पाता,वो मुस्काता
सभी देखते रूप चमकता
अन्दर क्या है की उत्सुकता
जैसे कभी सुहाग रात में
पहली पहली मुलाक़ात में
आकुल पति उठाता जिसको,
मै दुल्हन का, घूंघट भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
कितनी गिफ्टें,नयी,पुरानी
अगर आपको है निपटानी
मेरे बिना काम ना चलता
मै हूँ उनका ,रूप बदलता
एक गिफ्ट,कितने ही रेपर
बदल,बदल,बदला करते घर
लेकिन गिफ्ट कोई जो पाता
उसे आवरण नहीं सुहाता
अन्दर क्या है,यही चाव है
उत्सुकता ,मानव स्वभाव है
तिरस्कार है मेरी नियति,
मै गूदा ना,छिलका भर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
लिपट गिफ्ट के प्यारे तन से
मै आनंदित होता ,मन से
जन्मदिवस,शादी,दीवाली
रहती मेरी शान निराली
हाथों हाथ ,लिया मै जाता
बड़े गर्व से हूँ इठलाता
देने वाला जब जाता है
मुझ को फाड़ दिया जाता है
मेरी तरफ नहीं देखेंगे
टुकड़े टुकड़े कर फेंकेगे
पहुंचूंगा कूड़ेदानी में,
अल्प उम्र है,मै नश्वर हूँ
मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, November 8, 2012
अभी तो मै जवान हूँ?
अभी तो मै जवान हूँ?
इस मकां के लगे हिलने ईंट ,पत्थर
लगा गिरने ,दीवारों से भी पलस्तर
पुताई पर पपड़ियाँ पड़ने लगी है
धूल,मिटटी भी जरा झड़ने लगी है
कई कोनो में लटकने लगे जाले
चरमराने लग गये है ,द्वार सारे
बड़ा जर्जर और पुराना पड़ गया जो ,
कभी भी गिर जाय ,वो मकान हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता ,अभी तो मै जवान हूँ
थी कभी दूकान,सुन्दर और सजीली
ग्राहकों की भीड़ रहती थी रंगीली
सब तरह का माल मिलता था जहाँ पर
खरीदी सब खूब करते थे यहाँ पर
लगे जबसे पर नए ये माल खुलने
लगी ग्राहक की पसंद भी ,अब बदलने
धीरे धीरे अब जो खाली हो रही है,
बंद होने जा रही दूकान हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता,अभी तो मै जवान हूँ
जवानी कुछ इस तरह मैंने गुजारी
दूध देती गाय को है घांस डाली
अगर उसने लात मारी,लात खायी
बंदरों सी गुलाटी जी भर लगाई
रहूँ करता ,मौज मस्ती,मन यही है
मगर ये तन,साथ अब देता नहीं है
गुलाटी को मचलता है,बेसबर मन,
आदतों से अपनी खुद हैरान हूँ
और मै मन को तस्सली दे रहा हूँ,
यही कहता,अभी तो मैं जवान हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Wednesday, November 7, 2012
जो मेरी तकदीर होगी
जो मेरी तकदीर होगी
दाल रोटी खा रहे हम,रोज ही इस आस से,
सजी थाली में हमारी ,एक दिन तो खीर होगी
मर के जन्मा ,कई जन्मों,आस कर फरहाद ये,
कोई तो वो जनम होगा,जब कि उसकी हीर होगी
उनके दिल में जायेगी चुभ,प्यार का जज्बा जगा,
कभी तो नज़रें हमारी,वो नुकीला तीर होगी
इंतहां चाहत की मेरी,करेगी एसा असर,
जिधर भी वो नज़र डालेंगे,मेरी तस्वीर होगी
मेरे दिल के चप्पे चप्पे में हुकूमत आपकी,
मै,मेरा दिल,बदन मेरा, आपकी जागीर होगी
रोक ना पायेगा कोई,कितना ही कोशिश करे,
मुझ को वो सब,जायेगा मिल,जो मेरी तकदीर होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दाल रोटी खा रहे हम,रोज ही इस आस से,
सजी थाली में हमारी ,एक दिन तो खीर होगी
मर के जन्मा ,कई जन्मों,आस कर फरहाद ये,
कोई तो वो जनम होगा,जब कि उसकी हीर होगी
उनके दिल में जायेगी चुभ,प्यार का जज्बा जगा,
कभी तो नज़रें हमारी,वो नुकीला तीर होगी
इंतहां चाहत की मेरी,करेगी एसा असर,
जिधर भी वो नज़र डालेंगे,मेरी तस्वीर होगी
मेरे दिल के चप्पे चप्पे में हुकूमत आपकी,
मै,मेरा दिल,बदन मेरा, आपकी जागीर होगी
रोक ना पायेगा कोई,कितना ही कोशिश करे,
मुझ को वो सब,जायेगा मिल,जो मेरी तकदीर होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हस्त शक्ति-दे भक्ति
हस्त शक्ति-दे भक्ति
श्री विष्णु ,जग के पालनहार
एकानन है,मगर भुजाएं चार
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर चार
श्री ब्रह्माजी
जिन्होंने ये सृष्टि रची
चतुरानन है,और भुजाएं भी चार
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर एक
और भगवान् शंकर
हर्ता है जो हरिहर
एकानन है और भुजाये है दो
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर दो
रावण,लंका का स्वामी
बुद्धिमान पर अभिमानी
उसके थे दस सर और भुजाएं बीस
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर दो
लक्ष्मी और सरस्वती माता
धन और बुद्धि की दाता
दोनों के एक एक आनन और चार भुजाएं
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर चार
श्री दुर्गा या काली माँ का स्वरूप
शक्ति का साक्षात् रूप
एक आनन पर अष्ट भुजाधारी
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर आठ
यदि उपरोक्त आंकड़ों पर आप गौर फरमाएंगे
तो सांख्यिकी के नियम अनुसार ,ये पायेंगे
कि प्रति सर सबसे ज्यादा हस्त शक्ति
देवी दुर्गा या काली माँ है रखती
जिसका अनुपात
है एक पर आठ
उसके बाद,विष्णु,लक्ष्मी और सरस्वती माता है
जिनका एक पर चार का अनुपात आता है
और क्योंकि हाथों से ही,
उपकार और आशीर्वाद दिए जाते है
इसीलिये ये ज्यादा हाथों के,
औसत वाले ,पूजे जाते है
और सबसे कम औसत पर,
एक सर पर एक हाथवाले ब्रह्माजी आते है
इसीलिए वो सबसे कम पूजे जाते है
और उनके मंदिर ,एक दो जगह ही दिखलाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
श्री विष्णु ,जग के पालनहार
एकानन है,मगर भुजाएं चार
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर चार
श्री ब्रह्माजी
जिन्होंने ये सृष्टि रची
चतुरानन है,और भुजाएं भी चार
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर एक
और भगवान् शंकर
हर्ता है जो हरिहर
एकानन है और भुजाये है दो
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर दो
रावण,लंका का स्वामी
बुद्धिमान पर अभिमानी
उसके थे दस सर और भुजाएं बीस
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर दो
लक्ष्मी और सरस्वती माता
धन और बुद्धि की दाता
दोनों के एक एक आनन और चार भुजाएं
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर चार
श्री दुर्गा या काली माँ का स्वरूप
शक्ति का साक्षात् रूप
एक आनन पर अष्ट भुजाधारी
याने सर और हाथ का अनुपात
एक पर आठ
यदि उपरोक्त आंकड़ों पर आप गौर फरमाएंगे
तो सांख्यिकी के नियम अनुसार ,ये पायेंगे
कि प्रति सर सबसे ज्यादा हस्त शक्ति
देवी दुर्गा या काली माँ है रखती
जिसका अनुपात
है एक पर आठ
उसके बाद,विष्णु,लक्ष्मी और सरस्वती माता है
जिनका एक पर चार का अनुपात आता है
और क्योंकि हाथों से ही,
उपकार और आशीर्वाद दिए जाते है
इसीलिये ये ज्यादा हाथों के,
औसत वाले ,पूजे जाते है
और सबसे कम औसत पर,
एक सर पर एक हाथवाले ब्रह्माजी आते है
इसीलिए वो सबसे कम पूजे जाते है
और उनके मंदिर ,एक दो जगह ही दिखलाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Monday, November 5, 2012
लेखा जोखा
लेखा जोखा
पिछले कितने ही वर्षों का,
इस जीवन के संघर्षों का ,
आओ करें हम लेखा जोखा
किसने साथ दिया बढ़ने में,
मंजिल तक ऊपर चढ़ने में,
और रास्ता किसने रोका
किसने प्यार दिखा कर झूंठा,
दिखला कर अपनापन ,लूटा,
और किन किन से खाया धोका
बातें करके प्यारी प्यारी,
काम निकाल,दिखाई यारी,
और पीठ में खंजर भोंका
देती गाय ,दूध थी जब तक,
उसका ख्याल रखा बस तब तक,
और बाद में खुल्ला छोड़ा
उनका किया भरोसा जिन पर,
अपना सब कुछ ,कर न्योछावर,
उनने ही है दिल को तोड़ा
खींची टांग,बढे जब आगे
साथ छोड़,मुश्किल में भागे,
बदल गए जब आया मौका
टूट गए जो उन सपनो का ,
बिछड़े जो उन सभी जनों का
सभी परायों और अपनों का
नहीं आज का,कल परसों का
विपदाओं का, ऊत्कर्षों का,
आओ करें हम लेखा जोखा
पिछले कितने ही वर्षों का,
इस जीवन के संघर्षों का,
आओ करें हम लेखा जोखा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, November 3, 2012
संकट तो है सब पर आते
संकट तो है सब पर आते
लेकिन जो धीरज धरते है,
मुश्किल में भी है मुस्काते
संकट तो है सब पर आते
हिल जाते है,पात,टहनियां,
लेकिन तना,तना रहता है
होती गहरी जड़ें ,उसीका,
बस अस्तित्व बना रहता है
झंझावत और तूफानों में,
सुदृढ़ वृक्ष ना हिल पाते है
संकट तो सब पर आते है
शिवशंकर,भगवान हमारे,
भी तो आये थे संकट में
भस्मासुर को वर दे डाला,
दौड़ा भस्म उन्ही को करने
रख कर रूप मोहिनी वाला,
श्री विष्णु है उन्हें बचाते
संकट तो है सब पर आते
राम रूप में प्रगटे भगवन ,
कितने संकट आये उन पर
भटके वन वन,उस पर रावण,
उड़ा ले गया,सीता को हर
संकटमोचन बन कर हनुमन,
सीता का है पता लगाते
संकट तो है सब पर आते
इसीलिये यदि आये संकट,
नहीं चाहिए हमको डरना
बल्कि धीर धर ,निर्भयता से,
रह कर अडिग,सामना करना
सच्चे साथी,साथ निभाते,
रहो अटल,संकट टल जाते
संकट तो है सब पर आते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Friday, November 2, 2012
करने पड़ते है समझौते
करने पड़ते है समझौते
जीवन के हर एक मोड़ पर
अपने सब सिद्धांत छोड़ कर
चाहे हँसते, चाहे रोते
करने पड़ते है समझौते
बेटी का करना विवाह है
अच्छे वर की अगर चाह है
पढ़ा लिखा और अच्छे पद पर
है कमाऊ,सुन्दर लड़का पर
उसके माता पिता तेज है
मांग रहे मोटा दहेज़ है
नेता आप,समाज सुधारक
आदर्शों को आले में रख
बेटी सुख का ख्याल करेंगे
मुंहमांगा दहेज़ दे देंगे
अच्छा रिश्ता,यूं ना खोते
करना पड़ते है समझौते
अफसर आप इमानदार है
चलते नियम अनुसार है
मोटा टेंडर कोई खुलेगा
ऊपर से आदेश मिलेगा
ये बोला मंत्री जी ने है
टेंडर भरा भतीजे ने है
नियमो को करके अनदेखा
देना होगा उसको ठेका
उनका काम पड़ेगा करना
परेशान होवोगे वरना
नहीं किया तो ट्रांसफर होते
करने पड़ते है समझौते
लड़का,लड़की हुए सयाने
एक दूसरे को ना जाने
जब उनका विवाह होता है
शादी भी एक समझौता है
तज कर घर को मात पिता के
नए ,पराये घर में आके
रंगना पड़ता नए रंग में
जीना पड़ता नए ढंग में
समझौते करने है सबसे
सास,ससुर से और ननद से
परिवार ,सुखमय तब होते
करने पड़ते है समझौते
इस समझौते के ही मारे
भीष्मपिता रह गए कुंवारे
मत्स्य भेद कर,जीत स्वयंबर
अर्जुन लाये ,द्रौपदी को घर
समझौते ने करी ये गती
पांच पति में बंटी द्रौपदी
राम और रावण युद्ध हुआ जब
साथ आई वानर सेना सब
समझौता,सुग्रीव ,राम का
रावण वध में ,बना काम का
युगों युगों से देखा होते
करना पड़ते है समझौते
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'