Monday, December 31, 2012

जवानी पर,चढ़ गयी है सर्दियाँ

 जवानी पर चढ़ गयी है सर्दियां

रात की ठिठुरन से बचने, भूल सब शिकवे ,गिले
शाम ,डर  कर,उलटे पैरों,दोपहर  से जा  मिले
ओढ़ ले कोहरे की चादर ,धूप ,तज अपनी अकड़
छटपटाये चमकने को ,सूर्य पीला जाये     पड़ 
हवायें जब कंपकंपाये ,निकलना मुश्किल करे
चूमने को चाय प्याला ,बारहां जब दिल करे
जेब से ना हाथ निकले ,दिखाये कन्जूसियाँ
पास में बैठे रहे बस ,लगे मन  भाने  पिया
लिपट तन से जब रजाई ,दिखाये हमदर्दियाँ
तो समझ लो ,जवानी पर,चढ़ गयी है सर्दियाँ
घोटू

Tuesday, December 25, 2012

कृष्ण हूँ मै

                कृष्ण हूँ मै
बालपन में गोद जिसकी खूब खेला
छोड़ कर उस माँ यशोदा को अकेला
नन्द बाबा ,जिन्होंने गोदी खिलाया
और गोपी गोप ,जिनका प्यार पाया
फोड़ कर हांडी,किसी का दधि  लूटा
बना माखन चोर मै ,प्यारा  अनूठा 
स्नान करती गोपियों के वस्त्र चोरे
राधिका संग ,प्रीत करके ,नैन जोड़े
रास करके,गोपियों से दिल लगाके
गया मथुरा ,मै सभी  का ,दिल दुखाके
मल्ल युद्ध में,हनन करके ,कंस का मै
बना था ,नेता बड़ा ,यदुवंश  का मै
और इतना मुझे मथुरा ने लुभाया
लौट कर गोकुल ,कभी ना लौट पाया
बन सभी से ,गयी इतनी दूरियां थी
क्या हुआ ,ये कौनसी मजबूरियां थी
रहा उन संग,अनुचित  व्यवहार मेरा
 अचानक क्यों,खो गया था प्यार मेरा  
जो भी है ,ये कसक मन में आज भी है,
सुलझ ना पाया ,कभी वो प्रश्न हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
और मथुरा भी नहीं ज्यादा टिका मै
जरासंध से हार भागा द्वारका  मै
रुकमणी  का हरण करके कभी लाया
सत्यभामा से कभी नेहा लगाया
कभी मै लड़ कर किसी से युद्ध जीता
उसकी बेटी ,बनी मेरी परिणीता
आठ पट रानी बनी और कई रानी
हर एक शादी की निराली थी कहानी
महाभारत का हुआ संग्राम था जब
साथ मैंने पांडवों का दिया था तब
युद्ध कौशल में बड़ा ही महारथी था
पार्थ रथ का बना केवल ,सारथी  था
देख रण में,सामने ,सारे परिचित
युद्ध पथ से ,हुआ अर्जुन,जरा विचलित
उसे गीता ज्ञान की देकर नसीहत
युद्ध करने के लिए फिर किया उद्यत
और रणनीति बता कर पांडवों को
महाभारत में हराया कौरवों को
अंत,अंतर्कलह से ,लेकिन रुका  ना,
था कभी उत्कर्ष पर यदुवंश हूँ मै
कृष्ण हूँ मै 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


कुछ तो ख्याल किया होता

    कुछ तो ख्याल किया होता

जिनने जीवन भर प्यार किया ,
                उन्हें कुछ तो प्यार दिया  होता
मेरा ना मेरी बुजुर्गियत ,
                का कुछ तो ख्याल  किया होता
छोटे थे थाम  मेरी उंगली ,  
                   तुम पग पग चलना सीखे थे,
मै डगमग डगमग गिरता था,
                   तब मुझको  थाम लिया होता
जब तुम पर मुश्किल आई तो ,
                     मैंने आगे बढ़ ,मदद करी,
जब मुझ पर मुश्किल आई तो,
                       मेरा भी साथ दिया होता
मैंने तुमसे कुछ ना माँगा ,
                        ना मांगू ,ये ही कोशिश है,
अहसानों के बदले मुझ पर,
                        कुछ तो अहसान किया होता


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आप आये

       आप  आये

सर्द मौसम,आप आये
अकेलापन ,आप आये
दुखी था बमन,आप आये
बड़ी तडफन ,आप आये
खिल उठा मन,आप आये
हुई सिहरन,आप आये
मिट गया तम,आप आये 
रौशनी बन ,आप आये
खनका आँगन,आप आये
बंधे बंधन,आप आये
बहका ये तन,आप आये
महका जीवन आप आये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये मन बृन्दावन हो जाता

    ये मन बृन्दावन  हो जाता

तेरी गंगा, मेरी यमुना ,
                              मिल जाते,संगम हो जाता
 तन का ,मन का ,जनम जनम का,
                                  प्यार भरा बंधन हो जाता 
जगमग दीप प्यार के जलते ,
                                    ज्योतिर्मय  जीवन हो जाता
रिमझिम रिमझिम प्यार बरसता ,
                                     हर मौसन सावन हो जाता
प्यार नीर में घिस घिस ये तन,
                                     महक भरा चन्दन  हो जाता
इतने पुष्प प्यार के खिलते ,
                                      जग नंदनकानन  हो जाता
श्वास श्वास के मधुर स्वरों से,
                                      बंसी का वादन  हो जाता
रचता रास ,कालिंदी तीरे ,
                                    ये मन वृन्दावन  हो जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

ये प्यारा इन्कार तुम्हारा

       ये प्यारा  इन्कार तुम्हारा

पहले तो ये सजना धजना ,
                      मुझे लुभाना और रिझाना
 बाँहों में लूं ,छोडो छोडो ,
                        कह कर मुझसे  लिपटे  जाना
ये प्यारा  इन्कार  तुम्हारा ,
                     रूठ  रूठ कर के मन   जाना
वो प्यारी सी मान मनोवल ,
                      आकर  पास ,छिटक फिर जाना
इन्ही अदाओं का जादू तो,
                      मन की तड़फ ,आग भड़काता
अगर ना नुकर तुम ना करती ,
                       कैसे मज़ा  प्यार का  आता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Sunday, December 23, 2012

बलात्कार

           बलात्कार
एक बलात्कार ,ka
पांच छह उद्दंड दरिंदों ने ,
एक बस में,
एक निरीह कन्या के साथ किया
और जब इसके विरोध में,
देश की जनता और युवाओ ने ,
इण्डिया गेट पर शांति पूर्ण प्रदर्शन किया ,
तो दूसरा बलात्कार ,
दिल्ली पुलिस के सेकड़ों जवानो ने ,
हजारों प्रदर्शनकारियों के साथ किया ,
जब आंसू गेस से आंसू निकाले ,
लाठियों से पीटा,
और सर्दी में पानी की बौछारों से गीला किया
कौनसा बलात्कार ज्यादा वीभत्स था? 
क्या एक अबला लड़की के साथ ,
हुए अन्याय के विरुद्ध ,
न्याय मांगना ,एक आम आदमी का ,
अधिकार नहीं है या जुर्म है ?
ये कैसा प्रजातंत्र है?
ये कैसी व्यवस्था है?
हम शर्मशार है कि ऐसी घटनाओं पर ,
एक तरफ तो नेता लोग ,
मौखिक सहानुभूति दिखलाते है ,
और दूसरी और ,प्रदर्शनकारियों को,
लाठी से पिटवाते है
      घोटू 

Saturday, December 22, 2012

जीवन पथ

               जीवन पथ 

जीवन की इतनी  परिभाषा
कभी धूप है,कभी कुहासा
      आते मौसम यहाँ सभी है
      पतझड़ कभी ,बसंत कभी है
      कभी शीत से होती सिहरन
       लू से गरम ,कभी तपता तन
देता पावस कभी दिलासा
जीवन की इतनी परिभाषा
             जीवन में संघर्ष बहुत है
             पीड़ा भी है,हर्ष बहुत है
             सुख दुःख दोनों का ही संगम
              होता है जीवन का व्यापन
कभी खिलखिला ,कभी रुआंसा
जीवन की इतनी परिभाषा 
             फूल खिलेंगे ,कुम्हलाएँगे
              भले बुरे सब दिन आयेंगे
              पथ है दुर्गम,कितनी मुश्किल
             चलते रहो ,मिलेंगी  मंजिल
बुझने मत दो ,मन की आशा
जीवन की इतनी परिभाषा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
      

Friday, December 21, 2012

जूताचोर

              जूताचोर
यूरोप के चर्चों में देखा ,सब जूते पहने जाते है
तुर्की की मस्जिद में जूते ,संग थैली में ले जाते है
हम तो मंदिर के बाहर ही,है जूते खोल दिया करते
एसा लगता उन देशों में ,हैं जूते चोर बहुत बसते
              घोटू 

आत्मज्ञान

            आत्मज्ञान
फोन से अपना ही नंबर ,मिला कर देखो कभी
टोन       तुमको  सुनाई देगी सदा इंगेज   की 
दूसरों बात करने में तो सब ही  मस्त है
खुद से बातें करने की पर सभी लाईन व्यस्त है 
         घोटू

कर्म और धर्म

            कर्म और धर्म
लक्ष्मी पूजन कभी भी ,ना किया बिल गेट्स ने,
फिर भी वो संसार का सबसे धनी  इंसान है
सरस्वती पूजन किया ना,कभी आइन्स्टीन ने,
मगर उसके ज्ञान से ,उपकृत हुआ विज्ञान है 
 देख कर इनकी सफलता ,यही लगता मर्म है
धर्म अपनी जगह पर है,सबसे बढ़  कर कर्म है 
          घोटू 
 

Wednesday, December 19, 2012

परिधान-पर दो ध्यान

          परिधान-पर दो ध्यान

आदमी का पहनावा ,आदमी के जीवन में,
                       काफी महत्त्व रखता है
कसी जींस या सूट पहन कर,आदमी जवान ,
                     और फुर्तीला दिखता  है  
ढीले ढाले से वस्त्र पहनने से ,ढीलापन और,
                   सुस्ती सी छा जाती है
जैसे नाईट सूट पहनने पर सोने को मन करता
                  और नींद सी आजाती है
,सजधज कर रहने वाले,न सिर्फ जवान दिखते  है,
                    ज्यादा दिन टिकते है
अच्छी तरह पेक किये गए सामान,कैसे भी हों,
                    पर मंहगे   बिकते है 
इसीलिये,लम्बा सुखी जीवन जीना है तो श्रीमान,
                  अपने परिधान पर दो ध्यान
सजेधजे रहोगे तभी खींच पाओगे सबका ध्यान ,
                   और पाओगे सन्मान
              घोटू

चाँद और अमावास

                  चाँद और अमावास
भोलाभाला ,शांत,शीतल,     और बन्दा नेक मै
करते सब बदनाम मुझको ,कि बड़ा दिलफेंक मै
पर बड़ा ही शर्मीला हूँ,और घबराता  बहुत,
बादलों में जाता हूँ छुप, हसीनो को देख मै
चमचमाती तारिकाओं से घिरा मै रात भर ,
सभी मेरा साथ चाहें,और बन्दा  एक  मै
अमावस को थके हारे ,चंद्रमा ने ये कहा ,
महीने भर में ,एक दिन का,चाहता हूँ ,ब्रेक मै

          घोटू 

Tuesday, December 18, 2012

माचिस की तिली

           माचिस की तिली
पेड़ की लकड़ी से बनती,कई माचिस  की तिली ,
सर पे जब लगता है रोगन,मुंह में बसती  आग है 
जरा सा ही रगड़ने पर ,जलती है तिलमिला कर,
और कितने दरख्तों को ,पल में करती खाक   है
                       घोटू

सम्बन्ध

      सम्बन्ध
हमारे संबंध क्या हैं ?पारदर्शी  कांच है
खरोंचे उस पार की भी,नज़र आती साफ़ है
जरा सा झटका लगे तो,टूट कर जाते बिखर ,
सावधानी से बरतना ,ही अकल की बात है
          घोटू

अजब बात

    अजब बात

देख सकते आप जिसको ,आपके जो साथ है
प्यार उसको  कर न पाते,पर अजब ये बात है
नहीं देखा कभी जिसको ,उस प्रभू के नाम का,
जाप करते रोज है और पूजते दिन रात है
           घोटू

आगर की माटी

        आगर की माटी 

मालव प्रदेश की भरी मांग ,
                           इसमें  सिन्दूरी लाली है
है सदा  सुहागन यह धरती ,
                            मस्तानी है,मतवाली है
जोड़ा है लाल,सुहागन सा,
                           महकाता  इसका  कण कण है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
                            आगर  की माटी  चन्दन है 
है ताल तले भैरव बाबा ,
                            जिसकी रक्षा करने तत्पर
और तुलजा मात भवानी का,
                             है वरद हस्त जिसके सर पर
बन बैजनाथ ,कर रहे वास                    ,
                             उस महादेव का  वंदन है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
                              आगर की माटी चन्दन है 
है मुझे गर्व ,इस धरती  पर,
                               इस माटी  पर,इस आगर पर 
 मै इस माटी  का बेटा हूँ,
                                करता  प्रणाम इस को  सादर
इसमें है कितना वात्सल्य ,
                                कितनी  ममता अपनापन है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
                                आगर  की माटी  चन्दन है

मदन मोहन  बाहेती'घोटू'
             

Sunday, December 16, 2012

ढलती उमर का प्रणय निवेदन


 ढलती उमर  का प्रणय निवेदन

मै जो भी हूँ ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा मत देना
माना तन थोडा जर्जर है ,लेकिन मन में जोश भरा है
इन धुंधली आँखों में देखो,कितना सुख संतोष  भरा है
माना काले केश घनेरे,छिछले और सफ़ेद हो रहे,
लेकिन मेरे मन का तरुवर,अब तक ताज़ा ,हराभरा है
तेरे उलझे बाल जाल में,मेरे नयना उलझ गए है,
इसीलिये शृंगार समय तुम,उलझी लट सुलझा मत लेना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना
चन्दन जितना बूढा होता ,उतना ज्यादा महकाता है
और पुराने चांवल पकते ,दाना दाना खिल जाता है
जितना होता शहद पुराना ,उतने उसके गुण बढ़ते है,
'एंटीक 'है चीज पुरानी,उसका  दाम सदा  ज्यादा है
साथ उमर के,अनुभव पाकर ,अब जाकर परिपक्व हुआ हूँ,
अगर शिथिलता आई तन में,उस पर ध्यान जरा मत देना 
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा  मत देना
साथ उमर  के ,तुममे भी तो,है कितना बदलाव आ गया
जोश,जवानी और उमंग में ,अब कितना उतराव  आ गया
लेकिन मेरी नज़रों में तुम,वही षोडसी  सी रूपवती  हो,
तुम्हे देख कर मेरी बूढी,नस नस में उत्साह   आ गया
बासी रोटी ,बासी कढ़ी   के,साथ,स्वाद ,ज्यादा लगती है ,
सच्चा प्यार उमर ना देखे,तुम इतना बिसरा मत देना
मै  जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

चुम्बक

       चुम्बक
तुझे देख पागल हो जाता
तेरी ओर खिंचा मै  आता
तुझसे मिलता लपक लपक मै
तुझसे जाता चिपक चिपक  मै
नहीं अगाथा मै  तुमको तक
पर मै समझ न पाया अबतक
मै लोहा हूँ और तुम चुम्बक
या तुम लोहा और मै  चुम्बक
      घोटू

Saturday, December 15, 2012

कटु सत्य

         कटु सत्य

वैज्ञानिक बताते है
कि औसतन हम अपने जीवन के ,
पांच साल खाने  में बिताते है
और  अपने  वजन का ,
सात हज़ार गुना खाना खाते है
जब ये बात मैंने एक नेताजी को बतलाई
तो बोले,सच कह रहे हो मेरे भाई
एक बार जब हमें ,आप चुनाव जितलाये  थे 
पूरे पांच साल ,हमने खाने में  बिताये  थे 
आपसे क्या छुपायें,कितना ,क्या कमाया था ,
अपनी औकात से ,सात हज़ार गुना खाया था
        घोटू 
   
      सपनो को क्या चाटेंगे

तुम भी मुफलिस ,हम भी मुफलिस,आपस में क्या बाटेंगे
बची खुची जो भी मिल जाए ,     बस वो       खुरचन  चाटेंगे
एक कम्बल है ,वो भी छोटा,और सोने वाले  दो  हैं,
यूं ही सिकुड़ कर,सिमटे ,लिपटे,  सारा  जीवन  काटेंगे
लाले पड़े हुये खाने के,  जो भी दे  ऊपरवाला ,
पीस,पका  कर ,सब खा  लेंगे ,क्या बीनें,क्या छाटेंगे
झोंपड़ पट्टी और बंगलों के बीच खाई एक ,गहरी है,
झूंठे आश्वासन ,वादों से       ,कैसे इसको    पाटेंगे
क्या धोवेगी और निचोडेगी ,ये किस्मत नंगी है,
यूं ही फांकामस्ती में  क्या  ,बची जिन्दगी काटेंगे
किसके आगे अपना दुखड़ा रोने को तुम बैठे हो ,
ना ये तुम्हे सांत्वना देंगे,ना ही सुख दुःख बाटेंगे
  पेट नहीं भरता बातों से ,तुम जानो,हम भी जाने,
मीठे सपने,मत पुरसो  तुम,सपनो को क्या चाटेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, December 13, 2012

जम्बू फल प्रियं

       जम्बू फल प्रियं 
( गजाननं भूतगणादी  सेवकं ,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणं ....)
 लम्बोदर है श्री  विनायक
आगे भरे थाल में  मोदक
मोदकप्रिय ,स्थूल देह है
शायद  इनको मधुमेह है
इसीलिए प्रिय फल है जामुन
जो करता है मधुमेह कम
मधुमेह उपचार कहाता
जामुन उनके  मन को भाता
      घोटू 

वकील या श्री कृष्ण

         वकील या श्री कृष्ण 

झगडा जोरू ,जमीन और ज़र का
ये  किस्सा तो है  हर घर का
भाई भाई के परिवार
जब हो आपस में लड़ने को तैयार
और किसी के मन में ये ख्याल आ जाय
भाई और रिश्तेदारों से क्यों लड़ा जाय
ऐसे में जो लडाई करने को उकसाता है 
वो या तो वकील होता है,
या श्री कृष्ण कहलाता है
        घोटू

पक्षपात

      पक्षपात
जब होता है समुद्र मंथन
तो दानव और देवता गण
करते है बराबर की मेहनत
पर जब निकलता है अमृत
तो विष्णु भगवान,मोहिनी रूप धर
सिर्फ देवताओं को अमृत बाँट कर
स्पष्ट ,करते पक्षपात है
बरसों से चली आ रही ये बात है 
जो सत्ता में है,राज्य करते  है
अपने अपनों का घर भरते है
अपनों को ही ठेका और प्रमोशन
टू जी ,या कोल ब्लोक का आबंटन
देकर परंपरा निभा रहे है
तो लोग क्यों हल्ला मचा रहे है ?
          घोटू

मधुर मिलन की पहली रात

  मधुर मिलन की पहली रात

मेंहदी से तेरे हाथ रचे ,और प्यार रचा मेरे मन में
मुझको पागल सा कर डाला ,तेरी शर्मीली चितवन में
तेरे कंगन की खन खन सुन ,
                         है खनक उठी  मेरी नस नस
तेरी मादक,मदभरी महक,
                         है खींच रही मुझको बरबस 
नाज़ुक से हाथों को सहला ,
                         मन बहला नहीं,बदन दहला
हूँ विकल ,करू किस तरह पहल,
                         यह मिलन हमारा है पहला 
मन हुआ ,बावला सा अधीर,है ऐसी अगन लगी तन में
मेंहदी से तेरे हाथ रचे, और प्यार रचा मेरे   मन में
मन का मयूर है नाच रहा,
                             हो कर दीवाना  मस्ती में
तुमने निहाल कर दिया मुझे,
                               बस कर इस दिल की बस्ती में
चन्दा सा मुखड़ा दिखला दो,
                                क्यों ढका हुआ  घूंघट पट से
मतवाली ,रूप माधुरी का,
                                रसपान करूं ,अमृत घट से
सब लाज,शर्म को छोड़ छाड़ ,आओ बंध  जाये  बंधन में
मेंहदी से तेरे  हाथ रचे ,और प्यार रचा  मेरे मन   में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
                      

Friday, December 7, 2012

हवायें

                हवायें
हमारी हर सांस में बसती हवायें
सांस ही तो सभी का जीवन चलाये
देह सबकी ,पंचतत्वों से बनी है
तत्व उन में ,एक होती, हवा भी है
कभी शीतल मंद बहती है  सुहाती
कभी लू बन ,गर्मियों में तन जलाती
है बड़ी बलवान ,जब होती खफा है
विनाशक तूफ़ान लाती हर दफा  है
पेट ना भरता हवा से ,सभी जाने
घूमने ,सब मगर जाते,हवा  खाने
चार पैसे ,जब किसी के पास ,जुड़ते
बात करते है हवा में, लोग उड़ते
मगर जब तकदीर अपना रंग दिखाती
हवा ,अच्छे अच्छों की है खिसक जाती
चली फेशन की हवा तो घटे कपडे
लगी पश्चिम की हवा तो लोग बिगड़े
नहीं दिखती ,हर जगह ,मौजूद है पर
चल रहा जीवन सभी का ,हवा के बल
             घोटू 

Thursday, December 6, 2012

सब कुछ गुम हो गया

        पते  की बात
  सब कुछ  गुम  हो गया

रात की नीरवता ,ट्रक और बसों की ,
                   चिन्धाड़ों  में  गुम  हो गयी 
दादी नानी की कहानियां,टी वी के,
                      सीरियलों में गुम  हो गयी 
बच्चों के चंचलता ,स्कूल के ,
                     होमवर्क के बोझ  से गुम  हो गयी
परिवार की हंसीखुशी ,बढती हुई ,
                     मंहगाई के बोझ से  गुम   हो  गयी
आदमी की भावनाएं और प्यार ,
                       भौतिकता के भार तले गुम हो गया
घर के देशी खाने का स्वाद ,
                      पीज़ा और बर्गर के क्रेज़ में गुम हो गया
   अब तो बस,मशीनवत ,जीवन सब जीते है
   भरे हुए दिखते  है ,अन्दर से रीते     है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 
 

Wednesday, December 5, 2012

गिरावट

          गिरावट

मंहगाई गिरती है,लोग खुश होते है
 संसेक्स गिरता है कई लोग रोते है 
पारा  जब गिरता है,हवा सर्द होती है
पाला जब गिरता है ,फसल नष्ट होती है 
सरकार गिरती है तो एसा होता है
कोई तो हँसता है तो कोई रोता है
आंसू जब गिरते है,आँखों से औरत की
शुरुवात होती है ,किसी महाभारत  की
लहराते वो आते  ,पल्लू  गिराते है
बिजली सी गिरती जब वो मुस्कराते है
शालीनता गिरती है,वस्त्र घटा करते है
आदर्श गिरते जब वस्त्र  हटा करते है
लालच और लिप्सा से ,मानव जब घिरता है 
पतन के गड्डे में,अँधा हो गिरता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पेन्सिल मै

  पेन्सिल मै 

प्रवृत्ति उपकार की है,भले सीसा भरा दिल में
                                       पेन्सिल   मै
मै  कनक की छड़ी जैसी हूँ कटीली
किन्तु काया ,काष्ठ सी ,कोमल ,गठीली
छीलते जब मुझे ,चाकू या कटर  से
एक काली नोक आती है निकल  के
जो कि कोरे कागजों पर हर्फ़  लिखती
भावनाएं,पहन जामा, शब्द   दिखती
प्रेम पत्रों में उभरता ,प्यार मेरा
नुकीलापन  ही बना श्रृगार  मेरा
मोतियों से शब्द लिखती,काम आती बहुत,छिल, मै
                                                  पेन्सिल   मै 
शब्द लिखना ,सभी को मैंने सिखाया 
साक्षर कितने निरक्षर  को बनाया
कविता बन,कल्पनाओं को संवारा
ज्ञान का सागर ,किताबों में उतारा
कलाकृतियाँ ,कई ,कागज़ पर बनायी
आपके हित,स्वयं की हस्ती मिटाई
बांटने को ज्ञान, मै , घिसती रही हूँ
छिली,छिलती रही  पर लिखती रही हूँ
कर दिया उत्सर्ग जीवन,नहीं कोई कसक दिल में
                                               पेन्सिल मै

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

भगवान और गूगल अर्थ

    भगवान और गूगल अर्थ

'फेसबुक 'की तरह होता खुदा का दीदार है,
मंदिरों में हमें दिखता  ,देव का दरबार  है
बजा कर मंदिर में घंटी,फोन करते है उसे ,
बात सबके दिल की सुनता ,वो बड़ा दिलदार है
मन्त्र से और श्लोक से हम ,'ट्विट ' करते है उसे ,
आरती 'यू ट्यूब 'से करता सदा स्वीकार है
भले 'गूगल अर्थ'बोलो या कि तुम 'याहू'कहो,
'अर्थ'ये उसने रची है, उसी का संसार  है

घोटू

परछाई

         परछाई
सुबह हुई जब उगा सूरज ,मै  निकला ,मैंने देखा ,
       चली आ रही ,पीछे पीछे ,वो मेरी परछाईं थी
सांझ हुई और सूरज डूबा ,जब छाया अंधियारा तो,
     मैंने पाया ,साथ छोड़ कर ,चली गयी परछाईं थी 
रात पड़े ,जब हुई रौशनी ,सभी दिशा में बल्ब जले,
     मैंने देखा ,एक नहीं,अब चार चार परछाईं थी
मै  तो एक निमित्त मात्र था,सारा खेल रौशनी का,
    जब तक जितनी रही रौशनी ,तब उतनी परछाईं थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, December 3, 2012

मानसिकता

    पते की बात
मानसिकता
तुम्हे नीचे खींचने की ,कोई गर कोशिश करे ,
करो खुद पर गर्व मन में ,बिना कोई से डरे
उनसे तुम ऊपर बहुत है ,बात ये तय मानलो
और उनकी मानसिकता ,गिरी है ये जान लो
घोटू

मुश्किलें

     पते की बात
   मुश्किलें
जब भी हो मुश्किल में तुम या परेशां,अवसाद में
 खड़े तुम हो जाओ जाकर आईने के सामने
आईने में आपको एक नज़र चेहरा आएगा
कैसे मुश्किल से निकलना ,आपको बतलायेगा
घोटू

बटन

    पते की बात

बटन
कदम पहला ठीक हो तो काम सब बन जायेंगे
सही यदि पहला बटन ,तो सब सही लग जायेंगे
घोटू

जिंदगी और मज़ा

पते की बात
जिंदगी और मज़ा

मैंने माँगा खुदा से ऐ खुदा दे सब कुछ मुझे,
जिंदगी का मज़ा पूरा उठा मै  जिससे सकूं
खुदा बोला 'बन्दे मैंने दी है तुझको जिंदगी ,
सभी कुछ का मज़ा ले ले ,जितना मन में आये तू
घोटू

हथियार

     पते की बात
 हथियार
दो हथियार है ,बड़े खतरनाक और धाँसू
एक लड़की की मुस्कराहट,दूसरा उसके आंसू
घोटू

भगवत उचाव

      पते की बात
भगवत उचाव
 तू वही करता है जो तू चाहता
मगर होता वही जो मै  चाहता
तू वही कर ,जो की मै हूँ चाहता
फिर वही होगा जो है तू चाहता
घोटू

डस्ट बिन

       पते की बात          

        डस्ट बिन
नोट दस रूपये का मुझको ,मिला,मैंने ये कहा ,
 इस तरह इतराओ मत ,कागज़ का एक टुकड़ा हो तुम
मुस्कराया नोट बोला ,दोस्त सच कहते  हो तुम ,
मगर अब तक नहीं देखी ,मैंने कोई  'डस्ट  बिन '
घोटू

प्यार और मौत

  पते की बात
प्यार और मौत
प्यार और मौत ,है ऐसे  मेहमान,जो आ जाते ,बुलाये बिन
एक  दिल ले जाता है और  एक दिल की  धड़कन
घोटू

मुश्किलें

      पते की बात
   मुश्किलें
जिंदगी में ,आधी मुश्किल ,आती है इस वास्ते ,
बिना सोचे और समझे ,काम कुछ करते है हम
और बाकी आधी मुश्किल ,आती है इस वास्ते ,
सोचते ही रहते है और कुछ नहीं करते है हम
घोटू

जेब

    पते की बात
   जेब
है अजब ये जिंदगानी ,जब थे हम पैदा हुए ,
पहले ,पहनी ,लंगोटी,उसमे न कोई जेब था
जिंदगी भर जेब भरने की कवायद में लगे,
मरे तो ओढा कफ़न, उसमे न कोई जेब था
घोटू

साहस

    पते की बात
   साहस
मै  बड़ा दुस्साहसी था,चला दुनिया बदलने
जब समझ आई तो अब मै ,लगा खुद को बदलने
घोटू

रिश्ते

 
पते की बात
 रिश्ते
कभी रिश्ते निभाने में,रास्ते हो जाते गुम
कभी रस्ते चलते चलते ,नए रिश्ते जाते बन
घोटू

समय

      पते की बात
    समय
आपकी गलती लतीफा,जब समय अनुकूल हो
लतीफा भी गलती बनता ,जो समय प्रतिकूल हो
घोटू

गलतियां

      पते की बात
  गलतियां 
गलतियाँ कर सुधारो ,मत करो इतनी गलतियाँ
पेंसिल से पहले ही तो ये रबर  घिस जाए ना
घोटू

मील का पत्थर

  पते की बात
मील का पत्थर

जिंदगानी के सफ़र में,कितने ही पत्थर मिले,
बिना उनकी किये परवाह ,आगे हम बढ़ते गए
मील के पत्थर बने वो,रास्ते के चिन्ह है,
बाद में पहचान रस्ते की वो पत्थर  बन गए
घोटू

हम अब भी दीवाने है

         हम  अब भी दीवाने है

बात प्यार की जब भी निकले ,हम तो इतना जाने है
हम पहले भी दीवाने थे ,हम अब भी दीवाने  है
प्यार ,दोस्ती से यारी है ,नफरत है गद्दारी से ,
डूबे रहते है मस्ती मे ,हम तो वो  दीवाने  है
ना तो कोई लाग  लगावट,नहीं बनावट बातों में,
ये सच है ,दुनियादारी से,हम थोड़े अनजाने  है
कल की चिंता में है खोया ,हमने मन का चैन नहीं,
नींद चैन की लेते है हम ,सोते खूँटी  ताने  है
सीधा सादा सा स्वभाव है ,छल प्रपंच का नाम नहीं ,
पंचतंत्र और तोता मैना के बिसरे  अफ़साने है
खाने और पकाने में भी ,काम सभी के आये थे , 
मोच पड़ गयी,भरे हुए पर,बर्तन भले पुराने है 
जिनके प्यारे स्वर उर अंतर ,को छू छू कर जाते है,
राग रागिनी  रस से  रंजित,हम वो पक्के गाने है
दाना दाना खिल खिल कर के ,महकेगा,खुशबू देगा ,
कभी पका कर तो देखो ,चावल बड़े पुराने है
काफी कुछ तो बीत गयी है ,बीत जायेगी बाकी भी ,
हँसते गाते ,मस्ती में ही ,बाकी दिवस बिताने है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, December 1, 2012

माँ का त्याग

      पते की बात
    माँ का त्याग
घर में पांच लोग होते थे,,
          पर जब  चार सेव   आते 
तब माँ ही होती जो  कहती ,
          मुझे सेव फल ना भाते   
घोटू

सिक्के और नोट

      पते की बात
  सिक्के और नोट
सिक्के जो छोटे होते ,आवाज  हमेशा करते है ,
               वैसे ही छोटे लोगों में, बड़ा छिछोरापन  होता
नोट बड़े होते है पर ,खामोश हमेशा  रहते है,
              इसी तरह से बड़े लोग में ,बड़ा ,बड़प्पन है होता
घोटू

भगवान और मंदिर

         पते की बात 
  भगवान और मंदिर
उनने बोला 'हर जगह भगवान है मौजूद तो,
          मंदिरों की क्या जरूरत है ,हमें बतलाईये
हमने बोला 'हर जगह मौजूद कमरे में हवा ,
       फिर क्यों पंखे चलाते हो ,हमको ये समझाईये
घोटू

Friday, November 30, 2012

सम्बन्ध

          पते की बात 
        सम्बन्ध
आपस के सम्बन्ध हैं,जैसे 'कार्डियोग्राम '
ऊँचे नीचे यदि रहें ,तो समझो है  जान
लाइन अगर सपाट है ,तो फिर लो ये मान
हुए सभी सम्बन्ध मृत ,रही न उनमे जान
घोटू

नजरिया

          पते की बात 
    नजरिया
आंधी से बचने की करते ,कोशिशें हैं ,कई ,सारे
खिड़की करता बंद कोई,खींचता कोई दीवारें
'विंडमिल 'लगवा कर कोई ,उससे ऊर्जा पाता  है 
इंसानों की सोच सोच में,अंतर ये दिखलाता  है
घोटू 

रिश्ते-नाते

           पते की बात
    रिश्ते-नाते
 ऐसे होते है कुछ नाते
जैसे किसी घडी के कांटे
एक धुरी से बंध  कर भी वो ,
बड़ी देर तक ,ना मिल पाते
जुड़े  रहते जिंदगी भर
मगर मिलते सिर्फ पलभर
 घोटू

व्यक्तित्व

             पते की बात 
       व्यक्तित्व
एक  व्यक्ति बन के जन्में ,काम कुछ एसा करो
याद तुम को सब रखें,व्यक्तित्व बन,एसा   मरो
घोटू

विध्वंस और निर्माण

            पते की बात
     विध्वंस और निर्माण
बीज उगता तो नहीं,करता वो कुछ आवाज है
मगर गिरता पेड़ ,लगता ,गिरी कोई गाज  है
शोरगुल विध्वंस करता ,शांति है निर्माण में
बस यही तो फर्क है ,विध्वंस और निर्माण में
घोटू

भरोसा

          पते की बात
         भरोसा
डाल टूटे,हिले ,बैठा ,पंछी ना घबराएगा
उसको अपने पंखों पर है भरोसा,उड़ जाएगा
घोटू

तरक्की

               पते की बात
      तरक्की
कोई भी हो उपकरण ,मधुमख्खियों सा ,
       फूलों से ला शहद  दे सकता नहीं
कोई भी हो यंत्र कोरी घांस खाकर ,
       गाय जैसा दूध दे सकता नहीं
भले कितनी ही तरक्की कर रहा ,
         आजकल ये दिनबदिन  विज्ञान है
मगर अब तक किसी मुर्दा जिस्म में ,
         डाल वो पाया न फिर से जान है
घोटू

धीरज

          पते की बात 
     धीरज
बारिश आई और आपने छतरी तानी
आप न भीगे ,रहे बरसता ,कितना पानी
तंग आपदाएं करती ,जीवन में आकर
 धीरज की छतरी रखती है तुम्हे बचाकर
घोटू  

जिव्हा

            पते की बात 
          जिव्हा
नहीं होती कोई हड्डी जीभ में ,
  पर हिल कितने ही दिल तोड़ दिया करती है
वही जीभ जब तलुवे से मिल कहती 'सोरी',
  टूटे  हुए दिलों को जोड़ दिया करती है
घोटू

खुश रखो

         पते की बात 
          खुश रखो 
कम से कम दो आदमी को ,
           करो कोशिश ,खुश रखो तुम
  दूसरा कोई भी हो पर,
           मगर उनमे एक हो   तुम
घोटू

पत्थर

              पते की बात          
                  पत्थर
जिंदगी में फूल थोड़े ही खिलेंगे
लोग अक्सर फेंकते पत्थर मिलेंगे
आप पर है ,किस तरस से काम लाओ
बनाओ दीवार या फिर पुल  बनाओ
घोटू

शतरंज

                  पते की बात            
     शतरंज
अपने पद और ओहदे पर ,कभी इतराओ नहीं,
बिछी है सारी  बिसातें,जिंदगी  शतरंज  है
कौन राजा,कौन प्यादा ,खेल जब होता ख़तम ,
सभी मोहरे ,एक ही डब्बे में होते  बंद है
घोटू 


माँ की महत्ता

             पते की बात   
               माँ की महत्ता 
 भीग कर बारिश में लौटा,एक दिन मै  रात  में 
भाई बोला 'छाता  क्यों ना ,ले गये  साथ में '
बहन बोली'रूकती जब बरसात तुम आते तभी '
पिता बोले 'पड़ोगे बीमार ,सुधरोगे  तभी '
तभी मेरे सर को पोंछा ,माँ ने लाकर तौलिया
गरम प्याला चाय का ,एक बना कर मुझको दिया
'बेटे ,कपडे बदल ले,सर्दी न लग जाए तुझे '
महत्ता माँ की समझ में,आ गयी उस दिन मुझे
घोटू

Thursday, November 29, 2012

अचरज

                पते की बात
                 अचरज
  नहीं खबर है अगले पल की
  पर डूबे , चिंता में,कल   की
  भाग दौड़ कर ,कमा रहे है
   यूं ही जीवन  ,गमा   रहे है
  जब कि पता ना,कल क्या होगा
   इससे बढ़,अचरज   क्या होगा   
               घोटू

Wednesday, November 28, 2012

विश्वास

                 विश्वास
एक गाँव में सूखा था,थी हुई नहीं बरसात
वरुण देव की पूजा करने ,आये मिल सब साथ
एक बालक आया पूजन को ,रख कर छतरी पास
होगा पूजन सफल ,उसी को था मन में  विश्वास
    'घोटू '

Tuesday, November 27, 2012

झपकियाँ

         झपकियाँ

आँख जब खुलती सवेरे
मन ये कहता ,भाई मेरे
एक झपकी और लेले ,एक झपकी और लेले
आँख से लिपटी रहे निंदिया दीवानी
सवेरे की झपकियाँ ,लगती  सुहानी
और उस पर ,यदि कहे पत्नी लिपट कर
यूं ही थोड़ी देर ,लेटे  रहो  डियर
बांधते उन्माद के वो क्षण सुनहरे
मन ये कहता ,भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
नींद का आगोश सबको मोहता है
मगर ये भी बात हम सबको पता है
झपकियों ने खेल कुछ एसा दिखाया
द्रुतगति खरगोश ,कछुवे ने हराया 
नींद में आलस्य के रहते बसेरे
मन ये कहता भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
झपकियाँ ये लुभाती है बहुत मन को
भले ही आराम मिलता ,चंद क्षण  को
बाद में दुःख बहुत देती ,ये सताती
छूटती है ट्रेन ,फ्लाईट  छूट  जाती
लेट दफ्तर पहुँचने  पर साहब घेरे
इसलिए ऐ भाई मेरे ,झपकियाँ तू नहीं ले रे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


Monday, November 26, 2012

शादी

          शादी
जैसे पतझड़ के बाद ,बसंत ऋतू में ,फूलों का महकना
जैसे प्रात की बेला में,पंछियों का कलरव, चहकना
जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप  में,छत पर बैठ मुंगफलियाँ खाना
जैसे गर्मी में ट्रेन के सफ़र के बाद ,ठन्डे पानी से नहाना
जैसे तपती हुई धरती पर ,बारिश की पहली फुहार का पडना
जैसे बगीचे में,पेड़ पर चढ़ कर,पके हुए फलों को चखना
जैसे पूनम के चाँद को,थाली में भरे हुए जल में उतारना
जैसे बौराई अमराई में,कोकिल का पियू पियू पुकारना
जैसे सलवटदारवस्त्रों को प्रेस करवा कर के पहन लेना
जैसे सवेरे उठ कर ,गरम गरम चाय की चुस्कियां  लेना
जैसे दीपावली की अँधेरी रात मे, दीपक जलाना
जैसे चरपरा खाने के बाद मीठे गुलाब जामुन खाना   
जैसे सूखे से चेहरे पर  अबीर और गुलाल का खिलना
जैसे वीणा और तबले की ताल से ताल का मिलना
जैसे जीवन के कोरे कागज़ पर कोई आकर लिख दे प्रणय गीत
जैसे वीराने में बहार बन कर आ जाए ,कोई मनमीत
जैसे जीवन की बगिया में ,फूलों की तरह ,खिलता हो प्यार
जैसे सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार
जैसे जीवन की राह में ,मिल जाए ,खूबसूरत हमसफ़र का साथ
इश्वर द्वारा मानव को दी गयी ,सबसे अच्छी सौगात
         शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तौलिया

                तौलिया
मै जो अगर तौलिया होता
टपक रहा तेरा तन छूकर ,वो अमृत तो पिया होता
लिपट चिपट कंचन काया से ,कितने ही पल जिया होता
जिस सुख को दुनिया तरसे है ,वो आनंद तो लिया  होता
यही सोच मन आनंदित है, मैंने क्या क्या  किया होता
मै जो अगर तौलिया होता
घोटू

मंथरा

            मंथरा

जो लोग अपना भला बुरा नहीं समझते
आँख मूँद कर, दूसरों की सलाह पर है चलते
उन पर मुसीबत आती ही आती है
बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए ,हर केकैयी को ,
कोई ना कोई मंथरा मिल ही जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चन्दन सा बदन

      चन्दन सा बदन

पत्नी जी हो नाराज,तो उन्हें मनाना
जैसे हो लोहे के चने  चबाना
सीधी  सच्ची बात भी उलटी लगती है
एसा लगता है,सब हमारी ही गलती है
एक बार पत्नी जी थी नाराज़,हमें था मनाना
हमने गा दिया ये गाना
'चन्दन सा बदन ,चंचल चितवन ,
 धीरे से तेरा ये मुस्काना'
अधूरा था गाना और पत्नी ने मारा ताना
'अच्छा ,तो अब तुम्हे मेरा बदन ,
लगता है चन्दन की लकड़ी '
हमने सर पीटा ,हो गयी कुछ गड़बड़ी
हमने कहा नहीं ,हमारा मतलब था ,
तुम्हारा बदन चन्दन सा महकाता है
वो बोली'चन्दन तो तब खुशबू देता है ,
जब वो पुराना होकर सूख जाता है
तो क्या तुम्हे हमारा बदन पुराना और,
सूखी लकड़ी सा नज़र आता है?
तो फिर क्यों लिपटे रहते हो मेरे संग
चन्दन पर तो लिपटते है भुजंग
हमने कहा गलती हो गयी रानी
अब करो मेहरबानी
देवीजी ,तुम चन्दन हम पानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


Sunday, November 25, 2012

बेचारी मधुमख्खी

        बेचारी मधुमख्खी

निखारना हो अपना  रूप 
या दिल को करना हो मजबूत
मोटापा घटाना  हो
खांसी से निजात पाना हो
चेहरा हो बहुत सुन्दर ,इसलिए
नहीं हो ,हाई ब्लड प्रेशर ,इसलिए
हम शहद काम में लाते है
पर कृषि वैज्ञानिक बताते है
शहद का बनाना नहीं है सहज 
और एक मधुमख्खी ,अपने जीवनकाल में,
पैदा करती ही कुल आधा चम्मच शहद
मधुमाख्खियाँ,फूलों के ,
करीब दो करोड़ चक्कर लगाती है
तब कहीं ,आधा किलो शहद बन पाती है
मधुमख्खियों के ,पांच आँख होती है
वो,कभी भी नहीं सोती है
मधुमाख्खियों को लाल रंग,
काला  दिखता  है
इसलिए लाल फूलों का ,
शहद नहीं बनता है
फिर भी ,लगी रहती है दिन रात ,
पूरी लगन के साथ 
कभी भी ना थकी
बेचारी मधुमख्खी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


शहद सी पत्नी और 'हनीमून'

 
     शहद सी  पत्नी और 'हनीमून'

मधुर है,मीठी है,प्यारी है
शहद जैसी पत्नी हमारी है
भले ही इस उम्र में ,वो थोड़ी बुढ़िया लगती है
पर मुझे वो ,दिनों दिन और भी बढ़िया लगती है 
  क्योंकि शहद भी जितना पुराना होता जाता है,
उसकी गुणवत्ता बढती है
सोने के पहले ,दूध के साथ शहद खाने से
अच्छी नींद के साथ आते है ,सपने सुहाने से
सोने के पहले ,जब पत्नी होती है मेरे साथ
तो लागू होती है ,मुझ पर भी ये बात
दिल की मजबूती के लिए ,
शहद बड़ा उपयोगी है
मेरी पत्नी मेरे दिल की दवा है ,
क्योंकि ये बंदा ,दिल का रोगी है
शहद सौन्दर्य वर्धक है,
उसको लगाने से चेहरे पर चमक आती है
और जब पत्नी पास हो तो,
मेरे चेहरे पर भी रौनक छाती है
मेरी नज़रें ,मधुमख्खी की तरह ,
इधर उधर खिलते हुए ,
कितने ही पुष्पों का रसपान करती है
और मधु संचित कर ,
पत्नी जी के ह्रदय के छत्ते में भरती है
और मै ,मधु का शौक़ीन ,
रात और दिन
करता रहता हूँ मधु का रसपान
और साथ ही साथ ,पत्नी जी का गुणगान
क्योंकि शहद एक संतुलित आहार है
और मुझे अपनी पत्नी  से बहुत प्यार है
 अब तो आप  भी जान गए होंगे कि ,
लोग अपनी पत्नी  को'हनी 'कह कर क्यों बुलाते है
और शादी के बाद ,'हनीमून 'क्यों मनाते है
क्योंकि पत्नी का चेहरा चाँद सा दिखाता है
और उसमे 'हनी',याने शहद का स्वाद आता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


 



 

Saturday, November 24, 2012

मिलन

            मिलन

मिलन मिलन में अक्सर काफी अंतर होता
जल जल ही रहता है ,टुकड़े  पत्थर  होता 
दूर क्षितिज में मिलते दिखते ,अवनी ,अम्बर
किन्तु मिलन यह होता एक छलावा  केवल
क्योंकि धरा आकाश  ,कभी भी ना मिलते है
चारों तरफ भले ही वो मिलते ,दिखते  है
मिलन नज़र से नज़रों का है प्यार जगाता
लब से लब का मिलन दिलों में आग लगाता
तन से तन का मिलन ,प्रेम की प्रतिक्रिया है
पति ,पत्नी का मिलन  रोज  की दिनचर्या है
छुप छुप मिलन प्रेमियों का होता उन्मादी
दो ह्र्दयों का मिलन पर्व ,कहलाता  शादी
  माटी और बीज का जल से होता  संगम
विकसित होती पौध ,पनपती बड़ा वृक्ष बन
सिर्फ मिलन से ही जगती क्रम चलता है
अन्न ,पुष्प,फल,संतति को जीवन मिलता है
हर सरिता,अंततः ,मिलती है ,सागर से
मीठे जल का मिलन सदा है खारे जल से
मिलन कोई होता है सुखकर ,कोई दुखकर
एक मिलन मृदु होता और दूसरा टक्कर
मधुर मिलन तो होता सदा प्रेम का पोषक
पर टक्कर का मिलन अधिकतर है विध्वंशक
टकराते चकमक पत्थर,निकले चिगारी
मिले हाथ से हाथ ,दोस्ती होती  प्यारी
हवा मिले तरु से तो हिलते ,टहनी ,पत्ते
मिले पुष्प,मधुमख्खी ,भरते मधु से छत्ते
शीत ग्रीष्म के मिलन बीच आता बसंत है
मिलन मौत से,जीवन का बस यही अंत है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

लक्ष्मी जी की कृपा

       लक्ष्मी जी की कृपा

लक्ष्मी जी का आकर्षण ही एसा है कि ,
 सब उसके प्रभाव से  बंध  जाते है
चिघाड़ने  वाले ,बलवान हाथी भी ,
उनको देख ,उमके सेवक बन जाते है 
और लक्ष्मी जी आस पास ,
अपनी सूंड उठा कर ,
पानी की बौछार करते हुए  नज़र आते है
कमलासन पर विराजमान,लक्ष्मी जी की,
कृपा जब आपके साथ होती है
तो दोनों हाथों से ,
पैसों की बरसात होती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कार्तिक के पर्व

       कार्तिक के पर्व

धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन   की
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की 
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट  तरीका
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते  वास   देवगण
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य  बहुत हो जाते संचित
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ  सुनिश्चित
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, November 21, 2012

जो दिखता है-वो बिकता है

   जो दिखता  है-वो बिकता है

जो दिखता  है -वो बिकता है
बिका हुआ रेपिंग पेपर में ,
                          छुप प्रेजेंट कहाता है
पर जब रेपिंग पेपर फटता ,
                          तो फिर से दिखलाता है
बन जाता प्रेजेंट ,पास्ट,
                     ज्यादा दिन तक ना टिकता है 
जो दिखता है -वो फिंकता  है
लाख करोडो रिश्वत खाते ,
                         नेताजी ,कर घोटाले
पोल खुले तो फंसते अफसर ,
                           मारे जाते  बेचारे
छुपे छुपे नेताजी रहते ,
                            दोषी  अफसर दिखता  है
जो दिखता है-वो पिसता है
  गौरी का रंग गोरा लेकिन,
                         खुला खुला जो अंग रहे
धीरे धीरे पड़ता काला ,
                           जब वो तीखी धुप सहे
छुपे अंग रहते गोरे ,
                         और खुल्ला ,काला दिखता  है
जो दिखता है -वो सिकता  है 
                                            
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, November 19, 2012

दक्षिणा के साथ साथ

    दक्षिणा के साथ साथ

अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर  माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको  खाना होगा
पर इतनी सारी  केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

दिवाली मन जाती है

दिवाली मन जाती है

जब भी आती है दिवाली ,हर बार
एक जगह ,एकत्रित हो जाता है,
हम सब भाइयों का पूरा परिवार
मनाने को खुशियों का त्योंहार
साथ साथ मिलकर के ,दिवाली मनाना
हंसी ख़ुशी ,चहल पहल,खाना,खिलाना
लक्ष्मी जी का पूजन,पटाखे चलाना
प्रेम भाव,मस्ती,वो हँसना ,हँसाना
भले ही चार दिन ,पर जब सब मिल जाते है
मेरी माँ के झुर्राए चेहरे पर ,
 फूल खिल जाते है
सब को एक साथ देख कर ,
उनकी धुंधली सी आँखों में ,
खुशियों के दीपक जल जाते है 
प्यार ,ममता और संतोष की,
 ऐसी चमक आती है
कि दीपावली,अपने आप मन जाती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गृह लक्ष्मी

          गृह लक्ष्मी

नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी  है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
 रसगुल्ले सा रसमय यौवन 
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी  ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती 
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला  कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, November 18, 2012

पत्नी-पीड़ित -पति

           पत्नी-पीड़ित -पति 

सारी दुनिया में ले  चिराग ,
यदि निकल ढूँढने जाए आप
              मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
               पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
                  ये बात नहीं है  अनजानी
चेहरे पर चिंतायें होगी ,
             माथे पर शिकन पड़ी होगी
मुरझाया सा मुखड़ा होगा ,
             सूरत कुछ झड़ी झड़ी होगी
सर पर यदि होंगे बाल अगर ,
              तो अस्त व्यस्त ही पाओगे ,
वर्ना अक्सर ही उस गरीब ,
            की   चंदिया  उडी उडी होगी
 रूखी रूखी बातें करता ,
             सूखा सूखा आनन  होगा
निचुड़ा निचुड़ा ,सुकड़ा सुकड़ा ,
              ढीला ढीला सा तन होगा
आँखों में चमक नहीं होगी ,
              कुछ कुछ मुरझायापन  होगा 
यदि बाहर से हँसता भी हो,
              अन्दर से रोता मन होगा
बिचके जो बातचीत में भी,
                कुछ कहने में शरमाता हो
पत्नी की आहट पाते ही ,
                  झट घबरा घबरा जाता हो
चौकन्ना श्वान सरीखा हो,
                    गैया सा सीधा सीधा  हो
पर अपने घर में घुसते ही ,
                     भीगी बिल्ली बन जाता हो
दिखने में भोला भोला हो
जिसके होंठो पर ताला हो
                      बोली हो जिसकी दबी दबी ,
                    और हंसी हँसे जो खिसियानी
                       मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                        पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
उस दुखी जीव को देख अगर ,
                   जो ह्रदय दया से भर जाए         
उसकी हालत पर तरस आये,
                  मन में सहानुभूति  छाये
शायद तुम उससे पूछोगे ,
                 क्यों बना रखी है ये हालत ,
हो सकता है वो घबराये ,
                 उत्तर देने में   कतराये
तुम शायद पूछो क्या ऐसा ,
                  जीवन लगता है जेल नहीं
चेहरे पर चिंताएं क्यों है,
                    क्यों है बालों में तेल  नहीं
सूखी सी एक हंसी हंस कर ,
                     शायद वह यह उत्तर देगा ,
पत्नी पीड़ित ,होकर जीवित ,
                     रह लेना कोई खेल नहीं
मै खोया खोया रहता हूँ,
                       मुझको जीवन से मोह नहीं
सब कुछ सह सकता ,पत्नी से ,
                        सह सकता मगर बिछोह नहीं
शायद मेरी कमजोरी है ,
                            कायरता भी कह सकते हो,
लेकिन अपनी पत्नीजी से ,
                            कर सकता मै  विद्रोह   नहीं   
 कैसे साहस कर सकता हूँ 
उनके बेलन से  डरता हूँ
                         पत्नी सेवा है धर्म मेरा ,
                           पत्नीजी है घर की रानी
                          मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                           पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
ऐसे पत्नी पीड़ित पति की भी,
                     काफी किस्मे होती है 
कितने  ही आफत के मारों ,
                     की गिनती इसमें होती है
कोई के पल्ले बंध जाती,
                      जब बड़े बाप की बेटी है,
तो छोटी छोटी बातों में ,
                      भी तू तू मै  मै  होती है
कोई की पत्नी कमा  रही,
                      तो पति पर रौब चलाती है
कोई सुन्दर आँखों वाली है ,
                       पति को आँख दिखाती  है
कोई का पति दीवाना है ,
                        कोई के पति  जी दुर्बल है ,
पति की कोई भी कमजोरी का ,
                        पत्नी लाभ  उठाती है
कुछ ख़ास किसम के पतियों संग ,
                        एसा भी चक्कर होता है
पति विरही ,तडफे ,पत्नी को ,
                      पर प्यारा पीहर होता है
कोई की पत्नी सुन्दर है,
                    सब लोग घूर कर तकते है 
कुछ शकी किस्म के पतियों को,
                      अक्सर ये भी डर  होता है 
  कोई की पत्नी रोगी है
  कोई की पत्नी ढोंगी  है
                 कोई की पत्नी करती है ,
                  अक्सर अपनी ही मन मानी
                मुश्किल से ही मिल पायेगा ,
                पत्नी पीड़ित पति सा प्राणी
                  ये बात नहीं है अनजानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नुक्सान

            नुक्सान

मेरी शादी नयी नयी थी
मेरी बीबी छुई मुई थी
सीधी सादी भोली भाली
एक गाँव की रहने वाली 
ससुर साहब ने पाली भैंसे
बेचा दूध,कमाए पैसे
अरारोट ,पानी की माया
बचा दूध तो दही बनाया
मख्खन,छाछ ,कड़ी बनवायी
घर पर सब्जी कभी न आयी
तो भोली बीबी को लेकर
मैंने बसा लिया अपना घर
तरह तरह की बात बताता
ताज़ी ताज़ी सब्जी  लाता
एक दिवस ऑफिस से लौटा
आते ही बीबी ने टोका
तुम्हे ठगा सब्जी वाले ने
धोखा  खूब दिया साले ने
 सब्जी तुम लाये थे जो भी
हाँ हाँ क्या थी,पत्ता गोभी
छिलके ही छिलके निकले जी
गूदे का ना पता चले जी
मैंने छिलके फेंक दिये  है 
सारे पैसे व्यर्थ गये  है
सुन कर बहुत हंसी सी आई
पत्नीजी ने कभी न खायी
थी सब्जी पत्ता गोभी की
वह ना उसकी माँ दोषी थी 
कंजूसी से काम हो गया
पर मेरा नुक्सान हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 17, 2012

मात शारदे!

   मात  शारदे!

मात शारदे !
मुझे प्यार दे
वीणावादिनी !
नव बहार  दे
मन वीणा को ,
झंकृत कर दे
हंस वाहिनी ,
एसा वर दे
सत -पथ -अमृत ,
मन में भर दे
बुद्धिदायिनी ,
नव विचार दे
मात  शारदे!
ज्ञानसुधा की,
घूँट पिला दे
सुप्त भाव का ,
जलज खिला दे
गयी चेतना ,
फिर से ला दे
डगमग नैया ,
लगा पार दे
मात शारदे !
भटक रहा मै ,
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे,
तम हर ओ माँ
नव लय दे तू,
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी ,
प्रीत धार  दे
मात शारदे !  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दुनियादारी

       दुनियादारी

दोस्ती के नाम पर ,जाम पीनेवाले भी,
       दोस्ती के दामन में ,दाग लगा देते है
धुवें से डरते है,लेकिन खुदगर्जी में,
       खुद आगे रह कर के आग  लगा देते  है
रोज की बातें है ,जो अक्सर होती है
    खुदगर्जी  झगडे का ,बीज सदा बोती  है
कभी कभी लेकिन कुछ ,एसा भी होता है,
     दुश्मन तो साथ मगर ,दोस्त दगा देते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जग में चार तरह के दानी

                 जग में चार तरह के दानी
प्रथम श्रेणी के दानी वो जो पापकर्म  करते रहते है
पर ऊपरवाले से डर  कर ,दान धर्म  करते रहते  है
बेईमानी की पूँजी का ,थोडा प्रतिशत दान फंड में
गर्मी में लस्सी पिलवाते,कम्बल बँटवा रहे ठण्ड में
जनम जनम के पाप धो रहे ,गंगाजी की एक डुबकी में 
पूजा ,हवन सभी करवाते ,लेकिन खोट भरा है जी  में
लेकिन डर कर ,'धरमराज 'से ,धर्मराज  बनने वाले ये,
छिपे भेड़ियों की खालों में ,इस  कलयुग के सच्चे ज्ञानी
                 जग में चार तरह के  दानी
निज में रखता कलम ,पेन्सिल ,कलमदान यह कहलाता है
कुछ पैसे  गंगा में   डालो ,     गुप्तदान यह      कहलाता है 
और तीसरे ढंग  की दानी,       कहलाती है चूहे दानी
कैद किया करती चूहों को , नाम मगर है फिर भी दानी
शायद दान किया करती है,आजादी का,स्वतंत्रता  का
चौथी दानी,मच्छरदानी ,फहराती है ,विजय पताका
मच्छरदानी ,पर मच्छर को,ना देती है पास फटकने
रक्तदान से हमें बचाती  ,रात  चैन से देती  कटने
चूहेदानी में चूहे पर,मच्छरदानी  बिन मच्छर के ,
फिर भी दानी कहलाती है,यह सचमुच ही है हैरानी
                     जग में चार तरह के दानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुमने अचार बना डाला

         तुमने अचार  बना डाला

वैभव के सपने देखे थे,मैंने जीवन के शैशव में
इच्छाओं का बहुत शोर ,करता था मै किशोर वय में
यौवन के वन में आ जाना,यह तो थी मृगतृष्णा  कोरी
लेकिन अब मै हूँ समझ सका,जीवन भाषा ,थोड़ी थोड़ी
मै बनने वाला था कलाकार,तुमने बेकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
मेरी सारी  आशाओं पर, उस रोज तुषारापात हुआ
जिस दिन से था इस जीवन में,मेरा तुम्हारा साथ हुआ
मैंने सोचा था पढ़ी लिखी ,तुम मेरा काव्य सराहोगी
तुम स्वयं धन्य हो जाओगी,जो मुझ सा कवि  पति पाओगी  
थी मधुर यामिनी की बेला,मै था तुम पर दीवाना सा
तुम्हारी रूप प्रशंसा में,मैंने कुछ गाया गाना सा
मै भाव विभोर हो गया था,सोचा था तुम शरमाओगी
या तो पलके झुक जायेगी ,या बाँहों में आ जाओगी
पर पलकें झुकी न शरमाई,तुम झल्ला बोली ,मत बोर करो
बाहर मेहमान जागते है,अब चुप भी रहो,न शोर करो 
फिर यह सुन कर अभिलाषाओं ने, था बाँध सब्र का फांद दिया
जब तुम बोली हे राम मुझे,किस कवि के पल्ले बाँध दिया
फिर दिया लेक्चर लम्बा सा ,तुमने घर ,जिम्मेदारी का
मुझको अहसास दिलाया था,तुमने मेरी बेकारी का
उस मधुर यामिनी में तुमने,फीका अभिसार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला
फिर मुझे प्यार से सहला कर ,ऐसी कुछ मीठी बात करी
रह गयी छुपी ,दिल ही दिल में,मेरी कविताई ,डरी डरी
मै प्रेम डोर से बंधा हुआ ,जो भी तुम बोली ,सच समझा
फिर वही हुआ जो होना था,मै नमक ,तेल में ,जा उलझा
तुम्हारा कहना मान लिया,हो गया किसी का नौकर ,मै
बेचारी काव्य पौध सूखी ,जो पछताता हूँ ,बोकर ,मै
बाहर  कोई का नौकर पर ,घर में नौकर तुम्हारा था
तुम्हारी रूप अदाओं ने ,एक कलाकार को मारा था
अच्छा होता यदि उसी रात ,जो प्यार मुझे तुम ना देती
मीठी बातों के बदले में ,फटकार मुझे जो तुम देती
तो हिंदी जग में आज नया,एक तुलसीदास नज़र आता
पत्नी ताड़ित यदि बन जाता,पत्नी पीड़ित ना कहलाता
कितने ही काव्य रचे होते,मै कालिदास बना होता
मुरझाती यदि ना काव्य पौध ,तो अब वह वृक्ष घना होता
पर बकरी बन,उस पौधे को,तुमने आहार बना डाला
केरी पक कर ना आम बनी,तुमने अचार   बना डाला 
मै कई बार पछताता हूँ,यदि तुमसे प्यार नहीं होता
मै कुछ का कुछ ही बन जाता,मेरा ये हाल नहीं होता
लेकिन मुझसे भी ज्यादा तो,अब कलाकार हो अच्छी तुम
हर साल प्रकाशित कर देती ,कोई बच्चा या बच्ची तुम
ना जाने क्यों,मेरे मन को ,रह रह यह बात कचोट रही
तुम सौत समझती कविता को,क्यों गला ,कला का घोट रही
मै जब भी कुछ लिखने लगता ,सब काम याद क्यों आते है
अब तुम्ही बताओ उसी समय,बच्चे क्यों शोर मचाते है
मै भली तरह से समझ गया,यह तुम्ही उन्हें हो सिखलाती
क्या लिखूं रात में खाक तुम्हे ,लाइट में नींद नहीं आती
घंटो तक बोर नहीं करती ,सखियों की बातचीत तुमको
तो बतलाओ क्यों चुभते है,मेरे ये मधुर गीत  तुमको
मै अलंकार की बात करूं ,तुम आ जाती हो गहनों पर
मेरे कविता के टोपिक को,तुम ले आती निज बहनों पर
कहती  हो रचना को चरना,कवि को कपिकार बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला 
मै बात काव्य रस की करता,जाने क्यों मुंह बिचकाती हो
जब गन्ने और आम का रस ,दो दो गिलास पी जाती हो
मै जब भी समझाने लगता,कविता का भाव कभी तुमको
आ जाता याद बाज़ार भाव,लगता है मंहगा घी तुमको
जब मेरी काव्य साधना की ,दो बात नहीं सुन सकती हो
उस मुई सिनेमे वाली के,घंटों तक चर्चे करती हो
क्यों गज भर दूर ग़ज़ल से तुम,क्यों है रुबाई से रुसवाई
क्यों डरती हो तुम शेरो से,क्यों नज़म तुम्हे ना जम  पायी 
क्यों है नफरत,क्या इन सबसे ,है पूर्व जन्म का बैर तुम्हे
या मै ही सीधासादा हूँ,ना मिला कोई दो सेर तुम्हे
मत समझो यह सीधा प्राणी ,केवल घर का बासिन्दा है
मै भले गृहस्थी में उलझा,मेरा कवि  अब भी जिन्दा है 
पर तुम जब घर पर रहती हो ,तो कहाँ काव्य लिख सकता हूँ
दो,चार  माह ,मइके रहलो,तो महाकाव्य  लिख सकता हूँ
हे राम फंसा किस झंझट में,मेरे सर भार बना डाला
तुमने मुझको जाने क्या क्या ,मेरी सरकार बना डाला
मै बनने वाला था कलाकार ,तुमने बेकार  बना डाला
केरी ना पक कर आम बनी,तुमने अचार बना डाला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Tuesday, November 13, 2012

संरक्षक (रेफ्रिजेटर)

     संरक्षक (रेफ्रिजेटर)

कई रसीली ,मधुर रूपसी,
मेरे उर में  आती जाती
उनकी  सुरभि,मुझे लुभाती
निश्चित ही स्वादिष्ट बहुत वो होगी,
मेरा मन ललचाता
लेकिन मै कुछ कर ना पाता
क्योंकि मुझे गढ़ने वाले ने ,
मेरे मुख दांत  ना दिये
सिर्फ सूँघना ही नसीब में लिखा इसलिये
मै तो उनके रूप ,स्वाद को कर संरक्षित
उनकी जीवन अवधि बढाता रहता,परहित
यूं ही तरस तरस कर करना जीवन व्यापन
बिना किये रस का आस्वादन ,
कट जाता है ,मेरा जीवन
कई मिठाई,कितने ही फल
कितने ही पकवान,पेय जल
आकर्षित करते रहते है मुझको हर पल 
मेरा मन कितना ही चाहे
मै बेबस ,भरता ही रहता,ठंडी आहें
मन मसोस मै रहता हरदम
तुम चाहो तो इसको कह सकते  हो संयम
बचा खुचा ,घर का सब खाना
है मेरे ही हिस्से आना
मुझे चाहता दिल से गोरस
मै ना अगर मिलूँ,
तो उसका दिल जाता फट
मै संरक्षक ,
जो भी मेरे उर में बसता,
उसका यौवन,संरक्षित रहता है,
एक लम्बी अवधी तक
मै तो हूँ घर घर का वासी ,
सभी गृहणियों का मै प्यारा
मै  रेफ्रिजेटर  तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 10, 2012

रेपिंग पेपर

        रेपिंग पेपर

          मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
        चमक दमक वाला सुन्दर सा,
        मै तो एक आवरण भर हूँ
        मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
छोटी,बड़ी सभी सौगातें
मुझ में लोग छुपा कर लाते
मेरा आकर्षण है बस तब तक
मुझ में गिफ्ट छुपी है जब तक
जब भी मै हाथों में आता
जो भी पाता,वो मुस्काता
सभी देखते रूप चमकता
अन्दर क्या है की उत्सुकता
जैसे कभी सुहाग रात में
पहली पहली मुलाक़ात में
        आकुल पति उठाता  जिसको,
        मै दुल्हन का, घूंघट भर हूँ
         मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
कितनी गिफ्टें,नयी,पुरानी
अगर आपको है निपटानी
मेरे बिना काम ना चलता
मै हूँ उनका ,रूप बदलता
एक गिफ्ट,कितने ही रेपर
बदल,बदल,बदला करते घर
लेकिन गिफ्ट कोई जो पाता
उसे आवरण नहीं सुहाता
अन्दर क्या है,यही चाव है
उत्सुकता ,मानव स्वभाव है
        तिरस्कार है मेरी नियति,
         मै गूदा ना,छिलका भर हूँ
         मै तो रेपिंग का पेपर हूँ
लिपट  गिफ्ट के प्यारे तन से
मै आनंदित होता ,मन से
जन्मदिवस,शादी,दीवाली
रहती मेरी शान निराली
हाथों हाथ ,लिया मै जाता
बड़े गर्व से हूँ इठलाता
देने वाला जब जाता है
मुझ को फाड़ दिया जाता है
मेरी तरफ नहीं देखेंगे 
टुकड़े टुकड़े कर फेंकेगे
           पहुंचूंगा कूड़ेदानी में,
           अल्प उम्र है,मै नश्वर हूँ
            मै तो रेपिंग का पेपर हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 8, 2012

अभी तो मै जवान हूँ?

 


          अभी तो मै जवान हूँ?

इस मकां के लगे हिलने ईंट ,पत्थर

लगा गिरने ,दीवारों से भी पलस्तर
पुताई पर पपड़ियाँ पड़ने लगी है
धूल,मिटटी भी जरा झड़ने   लगी है
कई कोनो में लटकने लगे   जाले
चरमराने लग गये है ,द्वार सारे
बड़ा जर्जर और पुराना पड़ गया जो ,
कभी भी गिर जाय ,वो मकान  हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता ,अभी तो मै जवान हूँ
थी कभी दूकान,सुन्दर और सजीली
ग्राहकों की भीड़ रहती थी रंगीली
सब तरह का माल मिलता था जहाँ पर
खरीदी सब खूब  करते थे  यहाँ पर
लगे जबसे पर नए ये  माल खुलने
लगी  ग्राहक की पसंद भी ,अब बदलने
धीरे धीरे अब जो खाली हो रही है,
बंद  होने जा रही दूकान  हूँ
और मै दिल को तस्सली दे रहा,
यही कहता,अभी तो मै जवान हूँ
जवानी कुछ इस तरह मैंने गुजारी
दूध देती गाय को है घांस  डाली
अगर उसने लात मारी,लात खायी
बंदरों सी गुलाटी जी भर   लगाई
रहूँ करता ,मौज मस्ती,मन यही है
मगर ये तन,साथ अब देता नहीं है
गुलाटी को मचलता है,बेसबर मन,
आदतों से अपनी खुद  हैरान हूँ
और मै मन को तस्सली दे रहा हूँ,
यही कहता,अभी तो मैं  जवान हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, November 7, 2012

जो मेरी तकदीर होगी

        जो मेरी तकदीर होगी

दाल रोटी खा रहे हम,रोज ही इस आस से,

               सजी थाली में हमारी ,एक दिन तो खीर होगी
मर के जन्मा ,कई जन्मों,आस कर फरहाद ये,
                 कोई तो वो जनम होगा,जब कि उसकी हीर होगी
उनके दिल में जायेगी चुभ,प्यार का जज्बा जगा,
                  कभी तो नज़रें हमारी,वो नुकीला तीर होगी
इंतहां चाहत की मेरी,करेगी एसा असर,
                    जिधर भी वो नज़र डालेंगे,मेरी तस्वीर  होगी  
मेरे दिल के चप्पे चप्पे में हुकूमत आपकी,
                     मै,मेरा दिल,बदन मेरा, आपकी जागीर  होगी
रोक ना पायेगा कोई,कितना ही कोशिश करे,
                     मुझ को वो सब,जायेगा मिल,जो मेरी तकदीर होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

हस्त शक्ति-दे भक्ति

    हस्त शक्ति-दे  भक्ति

श्री विष्णु ,जग के पालनहार

एकानन है,मगर भुजाएं चार
   याने सर और हाथ का अनुपात
           एक पर चार
श्री ब्रह्माजी
जिन्होंने ये सृष्टि  रची
चतुरानन है,और भुजाएं भी चार
     याने सर और हाथ का अनुपात
               एक पर एक
और भगवान् शंकर
हर्ता है जो हरिहर
     एकानन है और भुजाये है  दो
     याने सर और हाथ का अनुपात
             एक पर दो
रावण,लंका का स्वामी
बुद्धिमान पर अभिमानी
      उसके थे दस सर और भुजाएं बीस
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर दो
लक्ष्मी और सरस्वती माता
धन और बुद्धि की दाता
दोनों के एक एक आनन और चार भुजाएं
      याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर चार
श्री दुर्गा या काली माँ का स्वरूप
 शक्ति का साक्षात्  रूप
     एक आनन पर अष्ट भुजाधारी
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर आठ
यदि उपरोक्त आंकड़ों पर आप गौर फरमाएंगे
तो सांख्यिकी के नियम अनुसार ,ये पायेंगे
कि प्रति सर सबसे ज्यादा हस्त शक्ति
देवी दुर्गा या काली माँ है रखती
जिसका अनुपात
है एक पर आठ
उसके बाद,विष्णु,लक्ष्मी और सरस्वती माता है
जिनका एक पर चार का अनुपात आता है
और क्योंकि हाथों से ही,
उपकार और आशीर्वाद दिए जाते है
इसीलिये ये ज्यादा हाथों के,
 औसत वाले ,पूजे जाते है
और सबसे कम औसत पर,
एक सर पर एक हाथवाले ब्रह्माजी आते है
इसीलिए वो सबसे कम पूजे जाते है
और उनके मंदिर ,एक दो जगह ही दिखलाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


Monday, November 5, 2012

लेखा जोखा


           लेखा जोखा

पिछले कितने ही वर्षों का,

इस जीवन के संघर्षों का ,
                  आओ करें हम लेखा जोखा
किसने साथ दिया बढ़ने में,
मंजिल तक ऊपर चढ़ने में,
                    और रास्ता  किसने  रोका
किसने प्यार दिखा  कर झूंठा,
दिखला कर अपनापन ,लूटा,
                   और किन किन से खाया धोका
बातें करके  प्यारी प्यारी,
काम निकाल,दिखाई यारी,
                    और पीठ में खंजर  भोंका 
देती गाय ,दूध थी  जब तक,
उसका ख्याल रखा बस तब तक,
                     और बाद में खुल्ला  छोड़ा
उनका किया भरोसा जिन पर,
अपना  सब कुछ ,कर न्योछावर,
                       उनने ही है दिल को तोड़ा
खींची टांग,बढे जब आगे
साथ छोड़,मुश्किल में भागे,
                    बदल गए जब आया मौका
टूट गए जो उन सपनो का ,
बिछड़े जो उन सभी जनों का
                    सभी परायों और अपनों का
नहीं आज का,कल परसों का
विपदाओं का, ऊत्कर्षों  का,
                       आओ करें हम लेखा जोखा
 पिछले कितने ही वर्षों का,
इस जीवन के संघर्षों का,
                         आओ करें  हम लेखा जोखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

    
                   
 

Saturday, November 3, 2012

संकट तो है सब पर आते

 
      संकट तो है सब पर आते
लेकिन जो धीरज धरते है,
      मुश्किल में भी है मुस्काते
      संकट तो है सब पर आते
हिल जाते है,पात,टहनियां,
लेकिन तना,तना रहता है
होती गहरी जड़ें ,उसीका,
बस अस्तित्व बना रहता है
      झंझावत और तूफानों में,
      सुदृढ़ वृक्ष ना हिल पाते है
     संकट तो सब पर आते है
शिवशंकर,भगवान हमारे,
भी तो आये थे संकट में
भस्मासुर को वर दे डाला,
दौड़ा भस्म उन्ही को करने
       रख कर रूप मोहिनी वाला,
        श्री विष्णु है उन्हें बचाते
        संकट तो  है सब पर आते
राम रूप में प्रगटे भगवन ,
कितने संकट आये उन पर
भटके वन वन,उस पर रावण,
उड़ा ले गया,सीता को हर
       संकटमोचन बन कर हनुमन,
       सीता का है पता  लगाते
        संकट तो है सब पर आते     
इसीलिये यदि आये संकट,
नहीं चाहिए हमको डरना
बल्कि धीर धर ,निर्भयता से,
रह कर अडिग,सामना करना
        सच्चे साथी,साथ निभाते,
       रहो अटल,संकट टल जाते
       संकट तो है सब पर आते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 2, 2012

करने पड़ते है समझौते

 
          करने पड़ते है समझौते

जीवन के हर एक मोड़ पर

अपने सब सिद्धांत  छोड़ कर
  चाहे हँसते,   चाहे रोते
करने पड़ते है समझौते
 बेटी  का करना विवाह है
अच्छे वर की अगर चाह है 
पढ़ा लिखा और अच्छे पद पर
है कमाऊ,सुन्दर लड़का  पर
उसके माता पिता तेज है
मांग रहे मोटा  दहेज़ है
नेता आप,समाज सुधारक
आदर्शों को आले में रख
बेटी सुख का ख्याल करेंगे
मुंहमांगा दहेज़ दे देंगे
अच्छा रिश्ता,यूं ना खोते
करना पड़ते है समझौते 
अफसर आप इमानदार है
चलते नियम अनुसार है
मोटा टेंडर कोई खुलेगा
ऊपर से आदेश मिलेगा
ये बोला मंत्री  जी ने है
टेंडर भरा भतीजे ने है
नियमो को करके अनदेखा
देना होगा उसको ठेका
उनका काम पड़ेगा करना
परेशान होवोगे  वरना
नहीं किया तो ट्रांसफर होते
करने पड़ते है समझौते  
लड़का,लड़की हुए सयाने
एक दूसरे को ना जाने
जब उनका विवाह होता है
शादी भी एक समझौता है
तज कर घर को मात पिता के
नए ,पराये घर में आके
रंगना पड़ता नए रंग में
जीना पड़ता नए ढंग में
समझौते करने है सबसे
सास,ससुर से और ननद से
परिवार ,सुखमय तब होते
करने पड़ते है समझौते
इस समझौते के ही मारे
भीष्मपिता  रह गए कुंवारे
मत्स्य भेद कर,जीत स्वयंबर
अर्जुन लाये ,द्रौपदी को घर
समझौते ने करी ये गती
पांच पति में बंटी द्रौपदी
राम और रावण युद्ध हुआ जब
साथ आई वानर  सेना सब
समझौता,सुग्रीव ,राम का
रावण वध में ,बना काम का
युगों युगों से देखा  होते
करना पड़ते है समझौते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


Wednesday, October 31, 2012

ऊपरवाला

        ऊपरवाला

जब भी घटती है कोई घटना,बुरी आ अच्छी

लोग कहते हैं'ऊपरवाले की मर्जी'
कभी कोई अच्छा या बुरा करता है
हम कहते 'ऊपरवाला सब देखता है'
लोग कहते है'जब ऊपरवाला देता है'
'तो वो पूरा छप्पर फाड़ कर देता है'
एक प्रश्न अक्सर मेरे मन में उठता रहता है
'ये ऊपरवाला कौन है और कहाँ रहता है?'
ब्रह्मा ,विष्णु और महेश,जो भगवान कहाते है
जो सृष्टि का निर्माण,पालन और संहार कराते है
विष्णु भगवान का निवास क्षीर सागर है
ब्रह्मा जी का निवास ब्रह्म सरोवर है
और शिवजी का वास है पर्वत कैलाश
ये सब स्थान तो नीचे ही है,हमारे आसपास
तो फिर वो कौन है जो ऊपरवाला कहलाता है
हर अच्छे बुरे का श्री जिसको जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


रास्ता मंजिल का

      रास्ता मंजिल का

तुममे भी जोश था और हम मे भी जोश था,

                        अनजान रास्तों पर ,जब हम सफ़र थे दोनों
ये कर लें,वो भी पालें,सारे मज़े उठा लें,
                         कर लें सभी कुछ हासिल,बस बे सबर थे दोनों
कांटे बिछे है पत्थर,दर दर पे लगे ठोकर,
                             रस्ते की मुश्किलों से,कुछ बे खबर थे दोनों
 खोये थे हम गुमां में,देखा तो इस जहाँ में,
                             कितने भरे समंदर,बस बूँद भर थे दोनों        
एसा जो हमने पाया, धीरज नहीं गमाया,
                            सोये थे अब तलक हम, अच्छा हुआ जो जागे
बेगानी सी दुनिया में,एक दूसरे को थामे,
                              भर कर के जोश दूना,बढ़ने लगे हम आगे
मन में हो लगन तो फिर,कुछ भी नहीं है मुश्किल,
                               थोड़े जुझारू बनके, कर  लोगे  लक्ष्य हासिल
अनुकूल होंगे मौसम,हो साथ सच्चा हमदम,
                                हारो न हौंसला तुम, तुमको  मिलेगी मजिल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वरदान चाहिये

             वरदान  चाहिये

हे भगवान्!

द्रौपदी ने माँगा था वरदान,
उसे एसा पति चाहिये,
जो सत्यनिष्ठ हो,
प्रवीण धनुर्धर हो,
हाथियों सा बलवान हो,
सुन्दरता की प्रतिमूर्ति हो,
और परम वीर हो,
 आप एक पुरुष में ,ये सारे गुण,
समाहित न कर सके,इसलिये
आपने द्रौपदी को ,इन गुणों वाले,
पांच अलग अलग पति दिलवा दिये
हे प्रभो,
मुझे ऐसी पत्नी चाहिये,
जो पढ़ी लिखी विदुषी हो,
धनवान की बेटी हो,
सुन्दरता की मूर्ति हो,
पाकशास्त्र में प्रवीण हो ,
और सहनशील हो,
हे दीनानाथ,
आपको यदि ये सब गुण,
एक कन्या में न मिल पायें एक साथ
तो कुछ वैसा ही करदो जैसा,
आपने द्रौपदी के साथ था किया
मुझे भी दिला सकते हो इन गुणों वाली
पांच  अलग अलग  पत्निया
या फिर हे विधाता !
सुना है कुंती को था एसा मन्त्र आता ,
जिसको पढ़ कर,
वो जिसका करती थी स्मरण
वो प्यार करने ,उसके सामने,
हाज़िर हो जाता था फ़ौरन
मुझे भी वो ही मन्त्र दिलवा दो,
ताकि मेरी जिंदगी ही बदल जाये
मन्त्र पढ़ कर,मै जिसका भी करूं स्मरण,
वो प्यार करने मेरे सामने आ जाये
फिर तो फिल्म जगत की,
 सारी सुंदरियाँ होगी मेरे दायें बायें
हे भगवान!
मुझे दे दो एसा कोई भी वरदान   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, October 30, 2012

संपर्क

       संपर्क

बहुत जरूरी,इस दुनिया में,है सबसे संपर्क बनाना

संपर्कों से आसां होता है हर मुश्किल काम बनाना
फूलों से संपर्क बनाती मधुमख्खी तब मधु मिलता है
भोर सूर्य की किरण छुए तन,फूल कमल का तब खिलता है
तीली जब संपर्क बनाती  माचिस से तो आग लगाती
स्विच से है संपर्क तार का,तब ही बिजली ,आती जाती
प्रीत,प्रेम का प्रथम चरण है,नयनों से संपर्क नयन का
ये संपर्क बड़ा प्यारा है,मेल करा देता तन मन का
नर नारी के सम्पकों से,जग में आता है नवजीवन
खिलते पुष्प,फलित होते तरु,और महकते सारे  उपवन
सूर्य ताप संपर्क करे जब,सागर जल से,बनते बादल
बादल से जल,जल से जीवन,संपर्कों से ,जगती है चल
काम पड़े दफ्तर में कोई,तो संपर्क काम मे  आते
बरसों से लंबित मसला भी,है मिनटों में हल होजाते
तट भूमि ,उपजाऊ बनती,जब संपर्क बनाती नदिया
मोबाईल पर,बातें करना,संपर्कों का ही ,तो है जरिया
पूजा,पाठ, कीर्तन,साधन,प्रभु संपर्क अगर है पाना
बहुत जरूरी,इस दुनिया में,है सबसे ,संपर्क बनाना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, October 25, 2012

पैसा कमाऊं -पर गुरु किसको बनाऊं ?

   पैसा कमाऊं -पर  गुरु किसको बनाऊं ?

इस दुनिया में ,देखा  ऐसा

सारे काम बनाता पैसा
पैसेवाला  पूजा जाता
मेरे मन में भी है आता
मै भी पैसा खूब  कमाऊं
लेकिन किस को गुरु बनाऊँ ?
टाटा,बिरला और अम्बानी
सभी हस्तियाँ,जानी,मानी
सब के सब है खूब  कमाते
पर ये है उद्योग   चलाते
पर यदि है उद्योग  चलाना
पहले पूँजी पड़े  लगाना
मेरे पास नहीं है पैसे
तो उद्योग लगेगा कैसे?
एसा कोई सोचें रस्ता
जो हो अच्छा,सुन्दर,सस्ता
पैसा खूब,नाम भी फ्री  का
धंधा अच्छा,नेतागिरी  का
बन कर भारत  भाग्य विधाता
हर नेता है खूब कमाता
राजा हो या हो कलमाड़ी
सबने करी कमाई गाढ़ी
पर थे कच्चे,नये खेल में
इसीलिये ये गये जेल में
पर कुछ नेता समझदार है
जैसे गडकरी और पंवार है
या कि बहनजी मायावती है
क्वांरी,मगर करोडपति  है
ये सब नेता,मंजे हुए  है
लूट रहे ,पर बचे हुए  है
रख कर पाक साफ़ निज दामन
आता इन्हें कमाई का फन
इन तीनो को गुरु बना लूं
मै इनकी तस्वीर लगा लूं
एकलव्य सा ,शिक्षा  पाऊं
धीरे धीरे खूब  कमाऊं
गुरु दक्षिणा में क्या दूंगा
उन्हें अंगूठा दिखला दूंगा
सीखे कितने ही गुर उनसे
 काम करूंगा  सच्चे मन से
बेनामी कुछ फर्म बनालूँ
रिश्वत का सब पैसा डालूँ
इनका इन्वेस्टमेंट दिखा कर
काला पैसा,श्वेत  बनाकर
बड़ा खिलाड़ी मै बन जाऊं
जगह जगह उद्योग  लगाऊं
या फिर एन. जी .ओ बनवा कर
इनके नाम अलाट करा कर
अच्छी सी सरकारी भूमि
करूं तरक्की,दिन दिन दूनी
रिश्तेदारों के नामो  पर
कोल खदान अलाट करा  कर
कोडी दाम,माल लाखों का
नहीं हाथ से छोडूं मौका
लूट रहे सब,मै भी लूटूं
मै काहे को पीछे छूटूं ?
या फिर जन्म दिवस मनवाऊँ
भेंट  करोड़ों की मै पाऊँ
काले पैसे को उजला कर
अपने नाम ड्राफ्ट  बनवा कर
कई नाम से,छोटे छोटे
करूं जमा मै पैसे  मोटे
या हज़ार के नोटों वाली
माला पहनूं , मै मतवाली
ले शिक्षा,गुरु घंटालों से
बचूं टेक्स के जंजालों से
केग रिपोर्ट में यदि कुछ आया
जनता ने जो शोर मचाया
उनका मुंह  बंद कर दूंगा
जांच कमेटी बैठा  दूंगा
बरसों बाद रिपोर्ट आएगी
भोली जनता ,भूल जायेगी
नेतागिरी है बढ़िया धंधा
कभी नहीं जो पड़ता  मंदा
हींग ,फिटकरी कुछ न लगाना
फिर भी आये रंग सुहाना
नाम और धन ,दोनों पाओ
सत्ता का आनंद  उठाओ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Tuesday, October 23, 2012

मोतीचूर,गुलाब जामुन,और जलेबी-क्यों?

   मोतीचूर,गुलाब जामुन,और जलेबी-क्यों?

मोतीचूर,

बून्दियों का है वो संगठित रूप,
जो सहकारिता का प्रतीक है,जिसमे,
सैकड़ों बूंदिया,हाथ में दे हाथ
बिना अपना व्यक्तित्व खोये,
जुडी रहती है आपस में,
अन्य बून्दियों के साथ
मोती स्वरुप,
बून्दियों का ये संयुक्त रूप,
जिसे बनाने में,
इन मोती सी बून्दियों को चूरा नहीं है जाता
मोतीचूर है क्यों कहलाता?
दुग्ध को जब हम करते है गरम,
तो वो उबलता है,उफनता है
मानव स्वभाव से,दूध का स्वभाव,
कितना मिलता जुलता है
पर यदि धीरज के खोंचे से,
दूध को हिलाते रहो,
तो उफान रुक जाता है
और दुग्ध,धीरज वान होकर,
धीरे धीरे बंध जाता है
दूध,जब इस तरह,अपने स्वभाव से,
करता है उफान या गुस्सा खोया
दूध का यह बंधा रूप,कहलाता है खोया
पर जब इस खोये की,
छोटी छोटी गोलियों को,घी में तल कर,
किया जाता है रस में लीन
तो उन्हें कहते है 'गुलाब  जामुन'
विचारणीय बात ये है,
कि ये रसासिक्त गोलियां,
न तो रखती है गुलाब कि खुशबू,
न जामुन कि रंगत,या स्वाद आता है
तो यह गुलाब जामुन क्यों कहलाता है?
मैदे का घोल,
गर्मी से एक दो दिवस बाद,
लगता है उफनने,और खमीर बना ये पदार्थ,
जिसे जब,एक छिद्र के माध्यम से,
अग्नि तपित घी में डाल कर,
विभिन्न स्वरुप में तल कर,
जब प्यार कि चासनी में डुबोया जाता है
तो उसका यह रसमय व्यक्तित्व,सभी को भाता है
पर जब टेड़े मेडे आकारों की ये  रसासिक्त कृतियाँ,
नहीं होती है जली कहीं भी
क्यों कहलाती है जलेबी?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

Monday, October 22, 2012

सर्दियों का आगाज़

      सर्दियों का आगाज़

आ गया कुछ  ऋतू में बदलाव सा है

सूर्य भी अब देर से उगने लगा  है
है बड़ा कमजोर सा और पस्त भी है
इसलिए ये शीध्र होता   अस्त भी है
फ़ैल जाता है सुबह से ही धुंधलका
हो रहा है धूप का सब तेज  हल्का
रात लम्बी,रह गया है दिन सिकुड़ कर
बोझ वस्त्रों का गया है बढ़ बदन पर
नींद इतनी आँख में घुलने लगी है
आँख थोड़ी देर से खुलने लगी  है
सपन इतने आँख में जुटने लगे है
आजकल हम देर से उठने  लगे है
हो गया कुछ इस तरह का सिलसिला है
रजाई में दुबकना लगता भला  है
चाय,कोफ़ी,या जलेबी गर्म खाना
आजकल लगता सभी को ये सुहाना
भूख भी लगने लगी,ज्यादा,उदर में
जी करे,बिस्तर में घुस कर,रहो घर में
पिय मिलन का चाव मन में जग रहा है
सर्दियां आ गयी,एसा   लग रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, October 21, 2012

गुलाबी ठंडक-गुलाबी मौसम

      गुलाबी ठंडक-गुलाबी मौसम

बदलने मौसम लगा है आजकल,,

                          शामो-सुबह ,ठण्ड थोड़ी बढ़ रही
दे रही है रोज दस्तक सर्दियाँ,
                          लोग कहते ठण्ड गुलाबी  पड़ रही
रूप उनका है गुलाबी फूल सा,
                           पंखुड़ियों से अंग खुशबू से भरे
देख कर मन का भ्रमर चचल हुआ,
                           लगा मंडराने,करे तो क्या करे
हमने उनको जरा छेड़ा प्यार से,
                            रंग गालों का गुलाबी हो गया
नशा महका यूं गुलाबी सांस का,
                           सारा मौसम ही शराबी हो  गया
आँख में डोरे गुलाबी प्रिया के,
                           तो समझलो चाह है अभिसार की
लब गुलाबी जब लरजते,मदमदा ,
                           चौगुनी  होती है लज्जत प्यार की
मन रहे अब हर दिवस त्योंहार है,
                           रास,गरबा,दिवाली  और दशहरा
हो गुलाबी ठण्ड समझो आ गया,
                            प्यार का मौसम सुहाना ,मदभरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Saturday, October 20, 2012

चलित-फलित

         चलित-फलित

स्थिर यह आकाश शून्य है,लेकिन सूर्य चलायमान है

कितनो को दे रहा रोशनी,कितनो में भर रहा  प्राण है
चलना गति है,चलना जीवन,चलने से मंजिल मिलती है
वृक्ष खड़ा ,स्थिर रहता है,किन्तु हवाएं जब चलती है
शाखें हिलती,पत्ते हिलते,वृक्ष अचल,चल हो जाता  है
कभी पुष्प की बारिश करता है,और कभी फल बरसाता है
नदिया का जल,होता चंचल,जब वो चलती,कल कल करती
उदगम से लेकर सागर तक,अपना नीर,बांटती ,चलती
पाती है संपर्क धरा जो,हो जाती,उपजाऊ,सिंचित
स्थिर ,कूप,सरोवर,इनका,सीमा क्षेत्र,बड़ा ही सीमित
सूर्य ताप से ,वाष्पित होकर,हो जाते है,शुष्क सरोवर
लहरे बहा,तरंगित रहता,पूरित जल से,हरदम सागर
चंदा चलित,चांदनी देता,बादल चलित ,नीर बरसाते
धरा चलित ,अपनी धुरी पर,दिन और रात तभी है आते
यह ऋतुओं का चक्र चल रहा,वर्षा,गर्मी या फिर  सरदी
हम मे सब मे,तब तक जीवन,जब तक सांस,हमारी चलती
चलित फलित है,चलना ऊर्जा ,जड़ता लाती है स्थिरता
चलने से ही गति मिलती है,गति से ही है प्रगति,सफलता
चंचल चपल,बाल्यपन होता,होती चंचलता यौवन में
होती बड़ी चंचला  लक्ष्मी, जो सुख सरसाती जीवन में
नारी नयन बड़े चंचल है,सबसे ज्यादा चंचल मन है
स्थिरता,स्थूल बनाती,चलते रहना  ही जीवन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, October 19, 2012

हे भगवान्!ये क्या हो रहा है?

  हे  भगवान्!ये क्या हो रहा है?

हे भगवान्! ये क्या हो रहा है

शासन करने वाले माल लूट रहे है,
और बेचारा आम आदमी रो रहा है
सत्ता से जुड़े लोग,और जो उनके सगे है
सब अपनी अपनी तिजोरियां भरने में लगे है
कोई करोड़ों की रिश्वतें खा रहा है
कोई अपने दामाद को फायदा पहुंचा रहा है
 सत्ता में हो या विपक्ष
सब का है एक ही लक्ष्य
जितना हो सके देश को लूट लें
पता नहीं बाद में ये मौका मिले ,ना मिले
तुम करो मेरे चार काम
मै करूं तुम्हारे चार काम
'ओपोजिशन ' तो दिखने का है
हमारा मुख्य ध्येय तो पैसा कमाने का है
देश की जमीन है,
थोड़ी मै अपने नाम करवालूँ
थोड़ी तुम अपने नाम करवालो
आधी मै खालूं,आधी तुम खालो
मिलजुल कर जमाने में गुजारा करलो
और अपनी अपनी तिजोरियां भरलो
एक मंत्री ,विकलांगों के नाम पर,
झूंठे दस्तावेजों से,लाखों रूपये उठाता है
और कोई जब ये तथ्य सामने लाता है
तो देश का कानून मंत्री,
कानून को ताक पर रख कर,उसे धमकाता है
मेरे विरुद्ध यदि कुछ बताओगे
और मेरे क्षेत्र में आओगे
तो देखते है कैसे वापस जा पाओगे
कानून का मंत्री खुले आम,
 कानून की धज्जियाँ उड़ा देता  है
और इस पर देश का दूसरा मंत्री ,
(जो कोयले की दलाली में खुद काला है)
ये प्रतिक्रिया देता है
केन्द्रीय मंत्री सिर्फ लाखों में करे  घोटाला ,
इस बात पर विश्वास नहीं कर,सकता कोई समझवाला
अरे केन्द्रीय मंत्रियों का स्टेंडर्ड तो है,
करने का करोड़ों का घोटाला
मंहगाई का दंश गरीब झेल रहे है
और राजनेता करोड़ों में खेल रहे है
 अब तो तेरे अवतार लेने का सही टाईम आगया है ,
और तू सो रहा है
हे भगवान!ये क्या हो रहा है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

कमबख्त यार

 कमबख्त  यार

बड़ा कमबख्त यार है मेरा

गुले गुलज़ार प्यार है मेरा
        बहुत वो मुझसे  प्यार करता है
         मस्तियाँ और धमाल करता है
         ख्याल रखता है वो मेरा हरदम,
         जान मुझ पर निसार  करता है
मेरी साँसों की मधुर सरगम है,
मुझपे अनुरक्त यार है मेरा
 बड़ा कमबख्त यार है मेरा
         देखता तिरछी जब निगाहों से
          रिझाता है नयी  अदाओं  से
           कभी खुद आके लिपट जाता है,
          कभी  जाता है छिटक बाहों से
सताता मुझको अपने जलवों से,
वक़्त,बेवक्त  यार है मेरा 
बड़ा कमबख्त  यार है मेरा
             कभी सावन सा वो बरसता है
              कभी बिजली सा वो कड़कता है
             कभी बहता है नदी सा ,कल कल,
             कभी वो बाढ़ सा   उमड़ता  है
कभी मख्खन सा वो मुलायम है,
तो कभी सख्त  यार है मेरा
बड़ा कमबख्त  यार है मेरा       
               जब भी हँसता है,मुस्कराता है
               आग सी दिल में वो  लगाता है
               रोशनी बन के झाड़ फानूस की,
                मेरे   घर को वो  जगमगाता है
मेरे जीवन को जिसने महकाया,
ऐसा जाने बहार है मेरा
बड़ा कमबख्त यार है मेरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम पंछी एक डाल के

    हम पंछी एक डाल के

समझदार चिड़ियायें,
सुबह जल्दी से उठ कर,
बिजली के खम्बों के नीचे,
पा जाती ढेर सारे कीड़े
       जैसे 'सेल' लगने पर,
       समझदार  महिलायें,
       सुबह सुबह जल्दी जा,
      चुन लेती अच्छे कपडे
सुबह सूर्य उगने पर,
बिजली के तारों पर,
पंक्तिबद्ध होकर के,
चहचहाती चिड़ियायें
        काम काज निपटाकर ,
        सर्दी के मौसम में,
        धूप भरे  आँगन में,
        गपियाती   महिलायें
आसमां में कुछ पंछी,
पंखों को फैलाये,
चुहुलबाजियाँ करते,
बस यूं ही उड़ते है
          रिटायर्मेंट होने पर,
          समय काटने को ज्यों,
          कुछ बूढ़े  संग बैठ,
           गप्प  मारा करते है
कुछ पंछी,सुबह सुबह,
नीड़ छोड़ उड़ जाते,
चुगने को दाना और,
शाम ढले आते है
          जैसे हम सुबह सुबह,
          दफ्तर को जाते है,
          नौकरी कर दिन भर,
          शाम को आते है
 पंछी के जीवन सा,
हम सबका है जीवन
सपनो के पंख लगा,
हम उड़ते है हर क्षण

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

पत्नी,प्रियतमा और प्यार

             पत्नी,प्रियतमा और प्यार

पत्नी को प्रियतमा बना कर  प्यार कीजिये

महका कर इस जीवन को  गुलजार कीजिये
                  घर की मुर्गी दाल बराबर  नहीं समझिये
                  बल्कि बराबर दिल के उसे सजा कर रखिये
                  मान तुम्हे परमेश्वर ,जान लुटा वो देगी
                   तुम मानोगे एक बात वो दस   मानेगी
                  इधर  उधर  ना फिर तुम्हारा मन भटकेगा
                  हर पल तुमको जीने का आनंद   मिलेगा
                  बन कर एक दूजे का संबल जीओ  जीवन
                  और कहीं भी नहीं मिलेगा  ये अपनापन
                  सदा रहोगे जवां,बुढ़ापा  भाग जाएगा
                  तुमको सचमुच में ,जीने का स्वाद आएगा
खुशियाँ भरिये,और सुखमय संसार कीजिये
पत्नी को प्रियतमा बनाकर  प्यार  कीजिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                        

Saturday, October 13, 2012

मरने पर ........

मरने पर ........

जीते जी तीर्थ  न करवाये,

                       मरने पर संगम जाओगे
भर पेट खिलाया कभी नहीं,
                      पंडित को श्राद्ध खिलाओगे      
बस एक काम ही एसा है,
                      जो तब भी किया और अब भी किया,
जीते जी बहुत जलाया था,
                      मरने पर भी तो जलाओगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, October 11, 2012

बहू तो आखिर बहू है

 बहू तो आखिर बहू है

क्या हुआ जो नहीं तुमसे,ठीक से वो बात करती

क्या हुआ घर पर न टिकती,करती रहती मटरगश्ती
क्या हुआ जो उसे खाना बनाने से बहुत चिढ  है
क्या हुआ जो छोटी  छोटी बात पे वो जाती भिड़ है
क्या हुआ कर बंद कमरा,देखती रहती है टी.वी.
अपने बेटे की बना कर ,लाये हो तुम उसे बीबी
इसलिए ये उसे हक है,जी में आये,वो करे  वो
तुम्हारी करके बुराई,कान निज पति के भरे वो
पति जो भी कमाता है,उस पे अपना हक जमाये
सास,ननदों की न पूछे,मौज मइके में  उडाये
तुम्हारा  ही पुत्र तुमसे,छीन यदि उसने लिया है
 बढाया है वंश तुम्हारा,तुम्हे  पोता दिया  है
है पराये घर की बेटी,था पराया  खून पर अब
इतने दिन से ,चूस करके,खून तुम्हारा ,मगर सब
तुम्हारे ही लहू जैसा, हो गया उसका लहू  है
बहू तो आखिर बहू  है

मदन मोहन बाहेत'घोटू'

विचारणीय प्रश्न

विचारणीय  प्रश्न

कभी,कहीं,किसी पार्टी में,

या फिर और कहीं,
आप अपने किसी परिचित से मिलते है
और उनके मुख से,
अपने बारे में कमेन्ट सुनते है
"आज आप स्मार्ट लग रहे है या,
 आज आप बड़ी सुन्दर लग रही हो "
तो आप खुश होकर उन्हें धन्यवाद देते  है
पर क्या आपने कभी ये सोचा है
कि उनकी इस तारीफ़ में थोडा लोचा है
उनका ये कहना कि आज,
 आप लग रहे है सुन्दर या स्मार्ट
शायद बतलाता है ये बात
कि ये तारीफ़ है आज भर की
अन्य दिनों,आप उनको,सुन्दर,
या स्मार्ट नहीं लगते कभी
और उनका आज आपकी तारीफ़ करना,
कहीं आपको दुशाले में लपेट कर मारना तो नहीं है
और आप खुश हो या नाराज,
आपको विचारना यही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कभी हम पास होते है,कभी हम फ़ैल होते है

कभी हम पास होते है,कभी हम फ़ैल होते है

हमारी जिंदगानी में,बहुत से खेल होते है

कभी हम पास होते है,कभी हम फ़ैल होते है
हरेक पल में परीक्षा है,हरेक पल में समीक्षा है
मगर धीरज नहीं खोना,बुजुर्गों की ये शिक्षा है
भले भी लोग मिलते है,बुरे भी लोग मिलते है
कहीं पर कांटे चुभते है,कहीं पर फूल खिलते है
कभी तन्हाई का आलम,कभी है भीड़  यारों की
कभी सूखी पड़ी फसलें,कभी मस्ती बहारों की
इस दुनिया के समंदर में,हमारी तैरती किश्ती
कभी ये डगमगाती है,कभी तूफां में जा फसती
कभी है ज्वार या भाटा ,कभी सुन्दर फिजायें है
कभी सूरज की गर्मी hai,कभी शीतल हवायें है
अगर तकदीर अच्छी है,भला हमराह मिलता है
हरेक  मुश्किल में तुम्हारी,जो थामे बांह मिलता है
न कोई आस कोई से,न कोई से अपेक्षा है
न कोई से गिले शिकवे, न कोई की उपेक्षा है
दुआ है दोस्तों की और नहीं हो खोट नीयत में
मिलेगा तारने वाला,तुम्हे हर एक मुसीबत में
लगन हो,कोशिशें होऔर अगर हो हौंसला हासिल
चले जाओ,चले जाओ,बड़ी आसान है मंजिल
किसी से अनबनी होती,किसी से मेल होते है
कभी हम पास होते हैं,कभी हम फ़ैल होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'





कभी सोलह की लगती हो, कभी सत्रह की लगती हो

कभी सोलह की लगती हो, कभी सत्रह की लगती हो

मुझे  जब कनखियों से देखती ,तिरछी नज़र से तुम

बड़ी हलचल मचा  देती हो     मेरे इस जिगर में तुम
दिखा कर दांत सोने का,    कभी जब मुस्कराती हो
तो इस दिल पर अभी भी सेकड़ों ,बिजली गिराती हो
हुआ है आरथेराइटिस, तुम्हे  तकलीफ   घुटने की
मगर है चाल में अब भी ,अदायें वो, ठुमकने  की
वही है शोखियाँ तुम में,वही लज्जत, दीवानापन
नजाकत भी वही,थोडा,भले ही  ढल गया है तन
बदन अब भी मुलायम पर,मलाईदार  लगती हो
महकती हो तो तुम अब भी,गुले गुलजार लगती हो
तुम्हारा संग अब भी रंग ,भर देता है जीवन में
जवानी जोश फिर से लौटता है तन के आँगन में
सवेरे उठ के जब तुम ,कसमसा ,अंगडाई भरती हो
कभी सोलह की लगती हो,कभी सत्रह की लगती हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आंसू

               आंसू
 
नहीं अश्कों पे जाओ तुम,ये आंसू बरगलाते है
ख़ुशी हो या हो गम ,आँखों में आंसू आ ही जाते है
जो पानी आँख से बहता, सदा आंसू नहीं  होता
ये तो चेहरा बताता है,कोई हँसता है या  रोता
कोई जब दूर जाता है ,तो आँखें डबडबाती  है
कोई मुद्दत से मिलता है,तो आँखें भीग जाती है
 कभी जब भावनाओं में,जो विव्हल होता है ये मन
तो अपने आप होते नम,हमारी  आँख के चिलमन
निकल जाते है आंसूं ,आँख में कचरा अगर पड़ता
दवाई सुरमा डालो तो भी पानी आँख से   बहता
रसोई में जो काटो प्याज, आंसू आ ही जाते है
मिर्च झन्नाट खा लो तेज,आंसू डबडबाते   है
बहुत ज्यादा हंसी भी आँख में पानी है ले आती
करुण कोई कहानी सुन के आँखें नीर भर लाती
बहुत गुस्से में बरसा करते आंसूं बन के अंगारे
कभी भी,किस तरह के हों,ये आंसू होते है खारे
मगरमच्छी है कुछ आंसूं,जो होते है दिखाने को
किसी की सहानुभूति या किसी का प्यार पाने को
अपनी जिद्द मनवाते है बच्चे,अस्त्र  है आंसू
त्रिया हाथ पूरी करवाने को तो ब्रह्मास्त्र है आंसू
हसीनो के कपोलों पर ये मोती बन ढलकते है
तो हो कितने ही पत्थर दिल,सभी के दिल पिघलते है
बड़े कमबख्त है आंसू,यूं ही आ जाते है जब तब
बहे गौरी के गालों पर,बिगाड़े चेहरे का मेक अप
ह्रदय की भावनायें,वाष्पीकृत हो जो उठती है
तो हो कंडेंस,आँखों से,वो बन आंसूं ,निकलती है
आदमी आता है रोता,वो जाता ,हर कोई रोता
मगर भंडार आंसूं का,कभी खाली  नहीं  होता
हंसाते है, रुलाते है, मनाते है, सताते   है
ख़ुशी हो या हो गम,आँखों में आंसूं आ ही जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

श्रद्धा और श्राद्ध

             श्रद्धा और श्राद्ध

हम अपने पुरखों को,पुरखों के पुरखों को,

                  साल में पंद्रह दिन ,याद किया करते है
ब्रह्मण को हम प्रतीक,मान कर के,पितरों का,
                 पितृ पक्ष में उनको ,तृप्त  किया  करते है
श्राद्ध कर श्रद्धा से,तर्पण कर पितरों का,
                 मातृ शक्ति का वंदन, नौ  दिन तक करते है
यह उनकी आशीषों का ही तो प्रतिफल है,
                  दसवें दिन रावण  को,मार   दिया करते  है
विदेशी कल्चर की ,दीवानी नव पीढ़ी,
                     मात पिता   के खातिर,करती है इतना बस
एक बरस में केवल,एक कार्ड दे देती ,
                        एक दिवस मातृदिवस,एक दिवस पितृ दिवस   
इक दिन वेलेंटाइन,लाल पुष्प भेंट करो,
                         बाकि दिन जी भर के,मुंह मारो इधर  उधर
पूजती है पति को,भारत की महिलाएं,
                          मानती है परमेश्वर,रखती है व्रत   दिन भर
हमारे संस्कार,बतलाते बार बार,
                          होता है सुखदायी,परम्परा का पालन
बहुत पुण्य देता है,मात पिता का पूजन,
                           श्रद्धा से पूजो तो, पत्थर भी है भगवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

   

Wednesday, October 10, 2012

Re: जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

This poem seems to be for Robert Vadra. Pls find under given facts about him.

Hidden Truths
 
 

 
THIS IS JUST AMAZING ! IT HAPPENS ONLY IN INDIA !

Please read and then forward to as many people as possible...

1. TATAs took 100 years to become billionaire, Ambanis took 50 years(after utilizing all its resources), where as Robert Vadra took less than 10 years to become fastest multi billionaire.


2. All newspapers are scared to discuss the story of Robert Vadra because of severe threat from Sonia Gandhi and Congress govt.


3. After Robert Vadra got married with Priyanka Gandhi, Robert's father committed suicide under mysterious circumstances, his brother found dead in his Delhi residence and his sister found dead in mysterious car accident. These reports were not published in any Indian media.


4. He is having stakes in Malls in premier locations of India, he is having stakes in DLF IPL, and DLF itself. He was involved in CWG corruption - DLF was responsible for development of Commonwealth games, and Kalmadi gave favoritism to DLS because of Robert Vadra's direct interest and business partnership with DLF.


5. Robert Vadra owns many Hilton Hotels including Hilton Gardens New Delhi


6. Robert Vadra's association with Kolkata Knight Ryders has never been reported by Indian media


7.
Hehas 20% ownership in Unitech, Biggest beneficiaryownership of 2G Scam. Because of Robert's involvement in this scam, there are concerns that investigationwould never reach decisive conclusion
8. He owns prime property in India specially commercial hubs, and taxi business but for Air Taxi. He owns few private planes as well.

9.
He has direct link with Italian businessman Quatrochi.
10.The Bureau of Civil Aviation Security has created a record of sorts by according special privilege to Robert Vadra, which entails him to walk in and out of any Indian airports without being subject to any security check. Only the President of India , Vice-President and a handful of other top dignitaries were accorded this rare distinction.
As a concerned citizen, I would like to know from the Government as to what was the special quality in Mr. Vadra that merited this rare honor. The government has no right to go in for such largesse that concerns with the security of the general public just for pleasing the son-in-law of Sonia Gandhi.
WAKE UP FELLOW INDIANS ! FIGHT AGAINST CORRUPTION !!!!!!!

 
 
 
   


 

Regards
Rakesh Sharda
Sent from my I Pad


On 10-Oct-2012, at 19:04, madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

राजाजी के दामाद जी पर किसीने आरोप लगाया

कि  उनने अपने संबंधों का अनुचित लाभ उठाया
और जनता को जब इस बारे में समाचार मिलगया
तो सारा राजदरबार हिल गया
दरबार के नवरतन
करने लगे जी तोड़ जतन
इसके पहले कि विरोधी चिल्लाये
दामादजी को इस कलंक से बचाये
और इस प्रयत्न में,
राजाजी की नज़र में भी चढ़ जायें
बयान पर बयान आने लगे
दामाद जी को बचने लगे
राज दरबार के कई मंत्रियों ने अरबों खाया है
दामादजी ने तो थोडा सा कमाया है
दामादों से कहीं लोग पैसे लेते है
लाखों का माल,कोडियों में दे देते है
इतना तो दामादजी का हक बनता है,
इसमें क्या अपराध है
क्योंकि राजाजी का दामाद,
पूरेदेश का दामाद है

घोटू

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

जमाई जी,आप तो देश के दामाद है

राजाजी के दामाद जी पर किसीने आरोप लगाया

कि  उनने अपने संबंधों का अनुचित लाभ उठाया
और जनता को जब इस बारे में समाचार मिलगया
तो सारा राजदरबार हिल गया
दरबार के नवरतन
करने लगे जी तोड़ जतन
इसके पहले कि विरोधी चिल्लाये
दामादजी को इस कलंक से बचाये
और इस प्रयत्न में,
राजाजी की नज़र में भी चढ़ जायें
बयान पर बयान आने लगे
दामाद जी को बचने लगे
राज दरबार के कई मंत्रियों ने अरबों खाया है
दामादजी ने तो थोडा सा कमाया है
दामादों से कहीं लोग पैसे लेते है
लाखों का माल,कोडियों में दे देते है
इतना तो दामादजी का हक बनता है,
इसमें क्या अपराध है
क्योंकि राजाजी का दामाद,
पूरेदेश का दामाद है

घोटू