विषय भोगों से सना तन
मन सनातन
मांस मज्जा से बना तन ,
मन सनातन
ज्ञान गीता भागवत का सुना करते
और सपने स्वर्ग के हम बुना करते
मंदिरों में चढ़ाया करते चढ़ावा
कर्मकांडों को बहुत देते बढ़ावा
तीर्थाटन ,धर्मस्थल ,देवदर्शन
मगर माया मोह में उलझा रहे मन
सोच है लेकिन पुरातन
मन सनातन
कामनाये ,काम की, हर दम मचलती
लालसाएं कभी भी है नहीं घटती
और जब कमजोरियों का बोध आता
कभी हँसते ,या स्वयं पर क्रोध आता
इस तरह संसार के बंध गए बंधन
समस्यायें आ रही है नित्य नूतन
तोड़ बंधन ,करें चिंतन
मन सनातन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
No comments:
Post a Comment