(21 दिन के पूर्वी यूरोप के प्रवास के बाद आज वापस आया हूँ.यूरोप की वादियों पर लिखी एक रचना प्रस्तुत है )
आँख को ठंडक मिलीऔर आगया दिल को सुकूँ ,
मुग्ध हो देखा किया मै, वादियाँ यूरोप की
कहीं बर्फीली चमकती,कहीं हरियाली भरी,
सर उठा सबको बुलाती,पहाड़ियाँ यूरोप की
गौरवर्णी,स्वर्णकेशी,अल्पवस्त्रा ,सुहानी,
हुस्न का जैसे खजाना ,लड़कियां यूरोप की
प्रेमिका से प्यार करने ,नहीं कोना ,ढूंढते ,
प्रीत खुल्ले मे दिखाये ,जोड़ियाँ,यूरोप की
हरित भूतल,श्वेत अंबर ,और सुहाना सा है सफर ,
बड़ी दिलकश,गयी मन बस,फिजायें यूरोप की
शांत सा वातावरण है,कोई कोलाहल नहीं,
बड़ी शीतल,खुशनुमा है ,हवाएँ यूरोप की
है खुला उन्मुक्त जीवन ,कोई आडंबर नहीं,
बड़ी है मन को सुहाती, मस्तियाँ यूरोप की
देखता रहता है दिन भर,अस्त होता देर से,
सूर्य को इतना लुभाती, शोखियाँ यूरोप की
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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