गरदन ने अदब सीख लिया
ऐसा ईश्वर ने गढ़ा रूप उनका सुन्दर सा ,
हर एक कटाव और उठान में तूफ़ान भरा ,
मिल गयी देखने को झलक उनकी हलकी सी ,
हमको तक़दीर ने कुछ ऐसी इनायत दे दी
एक बच्चे सा गया मचल मचल मन पागल
खिलौना देख कर सुन्दर सा ,बड़ा ललचाया ,
आ गया जिद पे कि पा जाऊं ,बनालू अपना
उसको हासिल करूँ ,कैसे भी ये हसरत दे दी
बिना झलकाये पलक ,देर तलक तकता रहा ,
नहीं हट पाई निगाह दूर उनके चेहरे से ,
हे खुदा तूने ये कैसा बनाया इन्सां को ,
आशिक़ी करने की इस दिल को क्यों आदत दे दी
हुस्न का उनके हम दीदार करें ,करते रहे ,
लाख रह रह के रही आँख यूं ही रिरियाती ,
शुक्र है वो तो ये गरदन ने अदब सीख लिया ,
जरा सी झुक गयी ,उसको ये शराफत दे दी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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