ऐसा जीना भी क्या जीना
लंबा जीने की तमन्ना में खुद पर न कोई प्रतिबंध रखो
मत खाते रहो दवाई बस, मिष्ठान ,जलेबी नहीं चखो ऐसा जीना भी क्या जीना तुम तरस तरस काटो जीवन सूखी रोटी,फीकी सब्जी,ना दूध मलाई, ना मक्खन जीवन जितना भी जियो तुम, खुश रहो सदा और मौज करो
तुम घूमो ,फिरो, पियो खाओ ,मनचाही मस्ती रोज करो इच्छाओं पर कंट्रोल करो, हमको यह बात पसंद नहीं घुट घुट कर के लंबा जीवन, जीने में कुछ आनंद नहीं
फीका फीका जीवन जियो और अंत समय में पछताओ ऐसा जीना भी क्या जीना, जीने का मजा ना ले पाओ
जब दिवस मौत का तय है तो तुम मन चाहे वैसा जी लो जो भी अब शेष बचा जीवन खेलो कूदो और मस्ती लो मरते दम तक अपने मन की बाकी न रहे कोई हसरत
मरने के बाद मिले कुछ भी,दोखज हो या कि जाओ जन्नत
इसलिए स्वर्ग के सारे सुख जीते जी पा लो धरती पर मन में ना कोई मलाल रहे जीवन ना जी पाये जी भर
जीवन भर की अर्जित पूंजी को खर्च करो तुम खुद खुद पर
आनंद उठाओ पल पल का जब तक चलते सांसों के स्वर
तुम मौज करो मस्ती काटो, रह सदा प्रफुल्लित मुस्काओ
ऐसा जीवन भी क्या जीना जीने का मजा ना ले पाओ
मदन मोहन बाहेती घोटू
No comments:
Post a Comment