झपकी
बोझिल पलकें, आती झपकी
नींद दिखाती, गीदड़ भभकी
आती जाती, फिर रुक जाती
आखें रह रह कर मूंद जाती
नयन शयन करने को आतुर
बदले लगते सांसों के सुर
तन का आलस, करता बेबस
अब कुछ चैन, चाहता मानस
निद्रा आती,लपकी लपकी
बोझिल पलकें आती झपकी
पहले तंद्रा और फिर निंद्रा
फिर खर्राटों का है खतरा
गरदन झुकती ओर संभलती
नींद बावरी ऐसा छलती
निद्रा पूर्व,मिलन का चुम्बन
नयन मूंद, निद्रा का वंदन
अजब स्थिति बनती सबकी
बोझिल पलकें, आती झपकी
मदन मोहन बाहेती घोटू
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