Wednesday, November 9, 2022

हिसाब किताब 

आओ बैठ हिसाब करें हम 
अपने सत्कर्मों,पापों का
अब तक किए गए जीवन में
 अपने सारे उत्पातों का 
 
जो भी किया अभी तक हमने
 सोच समझकर किया होगा 
 अपनी ज्ञान और बुद्धि से 
 उचित निर्णय लिया होगा 
 लेकिन अपनी अल्प बुद्धि से ,
 लिया गया कोई भी निर्णय 
 औरों को भी उचित लगेगा 
 किंचित ही यह होगा संभव 
 सबका अपना दृष्टिकोण है
  सोच सभी की अपनी-अपनी 
  पाप पुण्य की परिभाषाएं,
  लोग बनाते अपनी-अपनी 
  बैठे, सोचे, मनन करें हम ,
  अपने सत्कर्मों, पापों का 
  
  क्या क्या खोया, क्या क्या पाया 
  कितना लाभ हुआ ,क्या हानि 
  कितने दोस्त बनाए हमने 
  और दुश्मनी कितनी ठानी 
  चित्रगुप्त जी आडिट करके 
  पाप पुण्य सारे आकेंगे
  जो जिसके हिस्से आएगा ,
  नर्क स्वर्ग हमको बाटेंगे 
  पूर्व जन्म का फल निपटाते
  यह जीवन तो निपट जाएगा
  अगली योनि के कर्मों का 
  समय कहां फिर मिल पाएगा  
  अगले जन्मों के हित करना
  पाप पुण्य फिर होगा संचित 
   जिसे देख भावी जीवन में ,
   स्वर्ग नर्क होगा आवंटित
  कैसे आलंकन होगा फिर 
  इस जीवन के अभिशापो का 
  आओ बैठ हिसाब करें हम,
   अपने सत्कर्मों, पापों का

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Tuesday, November 8, 2022

झपकी

बोझिल पलकें, आती झपकी
नींद दिखाती, गीदड़ भभकी

आती जाती, फिर रुक जाती 
आखें रह रह कर मूंद जाती
नयन शयन करने को आतुर
बदले लगते सांसों के सुर
तन का आलस, करता बेबस
अब कुछ चैन, चाहता मानस
निद्रा आती,लपकी लपकी 
बोझिल पलकें आती झपकी

पहले तंद्रा और फिर निंद्रा
फिर खर्राटों का है खतरा 
गरदन झुकती ओर संभलती
नींद बावरी ऐसा छलती
निद्रा पूर्व,मिलन का चुम्बन
नयन मूंद, निद्रा का वंदन
अजब स्थिति बनती सबकी
बोझिल पलकें, आती झपकी

मदन मोहन बाहेती घोटू 




Saturday, October 29, 2022

    बदलते हालात

दो महीने की बिमारी ने,
हुलिया मेरा ऐसा बदला
कल तक था मैं मोटा ताजा,
आज हो गया दुबला पतला

एसी पीछे पड़ी बिमारी
कमजोरी से त्रस्त होगए
पहनू लगते झबले जैसे,
ढीले सारे वस्त्र हो गए 
 झूर्री झुर्री बदन हो गया 
 जो था चिकना भरा सुहाना 
 गायब सारी भूख होगई 
 हुआ अरुचिकर ,कुछ भी खाना 
 दिन भर खाओ दवा की गोली 
 जी रहता है मचला मचला 
 कल तक था मैं मोटा ताजा 
 आज होगा दुबला पतला 
 
लेकिन मैंने हार न मानी,
हालातों से रहा जूझता
मन में श्रद्धा और लगन ले, 
ईश्वर को मैं रहा पूजता 
अगर दिये हैं उसने दुख तो 
वो ही फिर सुख बरसाएगा 
मेरी जीवन की शैली को 
फिर से पटरी पर लाएगा 
दृष्टिकोण आशात्मक रखकर 
मैंने अपना मानस बदला 
कल तक था मैं मोटा ताजा 
आज हो गया दुबला पतला 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
     मतलबी यार 
     
  सदा बदलते रहते वो रुख, उल्टे बहते है
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं 

रहते थे हरदम हाजिर जो जान लुटा ने को 
वक्त नहीं उनको मिलता अब शक्ल दिखाने को 
थे तुम्हारे स्वामी भक्त , जब से बदली पाली 
नहीं झिझकते,तुमको देते ,जी भर कर गाली 
और बुराइयां सबके आगे करते रहते हैं 
मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं

 ना तो इनका कोई धरम है ना ईमान बाकी 
 चिंता है निज स्वार्थ सिद्धि की और सुख सुविधा की 
 जहां खाने को मिले जलेबी, रबड़ी के लच्छे उनकी सेवा को आतुर ये भक्त बने सच्चे 
 वहां मिले अपमान भीअगर हंसकर सहते हैं
  मतलब हो तो गदहे को भी चाचा कहते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Friday, October 28, 2022

 अग्नि पूजन 
 
दीपावली ,दशहरा ,होली,
 है ये उत्सव प्रमुख हमारे 
 बड़े चाव उत्साह लगन से 
 इन्हें मनाते हैं हम सारे 
 दीपावली को दीप जलाते 
 हरेक दशहरा, जलता रावण 
 दहन होलिका का होली में 
 हर त्यौहार अग्नि का पूजन
 हवन यज्ञ ,अग्नि का वंदन,
 करो आरती ,जलती बाती 
 फेरे सात लिए अग्नि के 
जन्मों की जोड़ी बन जाती 
पका अन्न,अग्नि से खाते ,
जो देता जीवन भर पोषण 
और अंत में इस काया का 
अग्नि में संपूर्ण समर्पण 
मानव जीवन के पल पल में 
सुख हो, दुख हो,उत्सव ,खुशियां,
 अग्नि संचालित करती है 
 जीवन की सारी गतिविधियां

मदन मोहन बाहेती घोटू

Tuesday, October 25, 2022

  प्रतिबंधित जीवन 
 
मुझको मेरी बीमारी ने ,कैसे दिन दिखलाए
ये मत खाओ,वो मत खाओ ,सौ प्रतिबंध लगाये 
 जितना ज्यादा प्रतिबंध है , उतना मन ललचाए 
कितने महीने बीत गए हैं ,चाट चटपटी खाए गरम-गरम आलू टिक्की की, खुशबू सौंधी प्यारी 
भाजी और पाव खाने को तरसे जीभ हमारी 
फूले हुए गोलगप्पे भर खट्टा मीठा पानी 
ठंडे ठंडे दही के भल्ले, पापड़ी चाट सुहानी
प्यारी भेलपुरी बंबइया,बड़ा पाव की जोड़ी 
भूल न पाए भटूरे छोले, जिह्वा बड़ी निगोड़ी 
चीनी चाऊमीन के लच्छे और मूंग के चीले 
गरम समोसे और कचोरी ,बर्गर बड़े रसीले 
कितने दिन हो गए चखे ना मिष्ठानों को भूले 
गरम जलेबी ,गाजर हलवा ,रसमलाई रसगुल्ले 
कब फिर से यह स्वाद चखेंगे,तरसे जीभ हमारी 
हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू मेरी सब बीमारी 
हटे सभी प्रतिबंध ठीक से खुल कर जी भर खाऊं
सवा किलो बूंदी के लड्डू का प्रसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू
  

Sunday, October 9, 2022

मास्क चढ़ा है  

असली चेहरा नजर न आता 
हर चेहरे पर मास्क के चढ़ा है 
मुंह से राम बोलने वाला ,
छुरी बगल के लिए खड़ा है 

ऊपर जो तारीफ कर रहा 
पीछे से देता है गाली 
कहता है वह सत्यवान है,
 पर करता करतूतें काली 
 खुद को दूध धुला बतला कर ,
महान बताने लिए अड़ा है 
असली चेहरा नजर आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है 
 
तुम्हारा शुभचिंतक बन कर 
 करे तुम्हारी ऐसी तैसी 
 मुश्किल अब पहचान हो गई 
 कौन है बैरी, कौन हितेषी 
 बहुत दोगले इन लोगों से,
 हमको खतरा बहुत बड़ा है
 असली चेहरा नज़र न आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

होते लोग बहुत शातिर कुछ,
पर दिखते हैं सीधे सादे
औरों का नुक्सान न देखे,
स्वार्थ सिर्फ अपना ही साधे
ऐसे मतलब के मारों से,
किसका पाला नहीं पड़ा है
असली चेहरा नज़र न आता ,
हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
 
 

Friday, October 7, 2022

मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

मेरे कितने दोस्त बन गए 
मेरे दुश्मन, इसके कारण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन 

कहने को तो एक मांस का ,
टुकड़ा है यह बिन हड्डी का 
पर जब यह बोला करती है 
बहुत बोलती है यह तीखा 
जब चलती ,कैची सी चलती
 रहता खुद पर नहीं नियंत्रण
 मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 बत्तीस दातों बीच दबी यह,
 रहती है फिर भी स्वतंत्र है 
 मानव की वाणी ,स्वाद का ,
 यही चलाती मूल तंत्र है 
 मधुर गान या कड़वी बातें,
  इस पर नहीं किसी का बंधन
  मेरी जिव्हा मेरी बैरन

बड़ी स्वाद की मारी है यह,
 लगता कभी चाट का चस्का 
 और मधुर मिष्ठान देखकर,
  ललचाया करता मन इसका
  मुंह में पानी भर लाती है,
  टपके लार,देख कर व्यंजन
   मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 यह बेचारी स्वाद की मारी,
 करती है षठरस आस्वादन 
 ठंडी कुल्फी ,गरम जलेबी 
 सभी मोहते हैं इसका मन
एक जगह रह,बंध खूंटे से 
विचरण करती रहती हर क्षण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

 कभी फिसल जाती गलती से ,
 कर देती है गुड़ का गोबर 
 कभी मोह लेती है मन को,
  मीठे मीठे बोल, बोल कर
  देती गाली, कभी बात कर 
  चिकनी चुपड़ी, मलती मक्खन
   मेरी जिव्हा,मेरी बैरन

मदन मोहन बाहेती घोटू
प्रतिबंधित खानपान 

मुझको मेरी बीमारी ने
 कैसे दिन दिखलाए
 ये मत खाओ ,वो मत खाओ ,
 सब प्रतिबंध लगाए
 जितना ज्यादा रिस्ट्रिक्शन है ,
 उतना मन ललचाए 
 कितने महीने बीत गए हैं ,
 चाट चटपटी खाए 
 गरम गरम आलू टिक्की की,
  खुशबू सौंधी प्यारी 
  भाजी और पाव खाने को ,
  तरसे जीभ हमारी 
  फूले हुए गोलगप्पे भर ,
  खट्टा मीठा पानी 
  ठंडे ठंडे दही के भल्ले 
  पापड़ी चाट सुहानी 
  प्यारी भेलपुरी बंबइया 
  बड़ा पाव की जोड़ी 
  भूल न पाए भटूरे छोले 
  जिव्हा बड़ी चटोरी 
  चीनी चाऊमीन के लच्छे ,
  और मूंग के चीले 
  गरम समोसे और कचोरी ,
  बर्गर बड़े रसीले 
  कितने दिन हो गए चखे ना 
  मिष्ठानो को भूले 
  गरम जलेबी, गाजर हलवा,
   रसमलाई, रसगुल्ले 
   कब से फिर वे स्वाद चखेंगे,
   तरसे जीभ हमारी 
   हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू 
   मेरी सभी बीमारी
   हटे सभी प्रतिबंध ठीक से 
   खुल कर ,जी भर खाऊं 
   सवा किलो बूंदी के लड्डू का,
    मैं परसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, October 6, 2022

रावण दहन 

एक कागज का पुतला बनकर,
 खड़ा हुआ था वह बेचारा 
 तुमने उसमें आग लगा दी 
 और कहते हो रावण मारा 
 घूमे बच्चों के संग मेला ,
 खा ली थोड़ी चाट पकौड़ी 
 थोड़ा झूल लिए झूले पर ,
 यूं ही तफरी कर ली थोड़ी 
 घर में कुछ पकवान बनाकर 
 या होटल जा करते भोजन 
 ऐसे ही कितने वर्षों से 
 मना रहे हैं दशहरा हम 
 पर वास्तव में इसीलिए क्या 
 यह त्योहार मनाया जाता 
  पाप हारता ,पुण्य जीतता ,
  विजयादशमी पर्व कहाता
  हो विद्वान कोई कितना भी,
  वेद शास्त्रों का हो ज्ञाता
  पर यदि होती दुष्ट प्रवृत्ति ,
  अहंकार,वो मारा जाता 
रावण पुतला है बुराई का ,
और प्रतीक है अहंकार का 
काम क्रोध और लोभ मोह का 
मद और मत्सर, सब विकार का 
 इनका दहन करोगे तब ही
 होगा सही दहन रावण का 
 सच्चा तभी दशहरा होगा ,
 राम जगाओ ,अपने मन का 
 जब सच्चाई और अच्छाई 
 अंत बुराई का कर देगी 
 तभी विजेता कहलाओगे 
 विजयादशमी तभी बनेगी 
 तब ही तो सच्चे अर्थों में ,
 रावण को जाएगा मारा 
  कागज पुतला दहन कर रहे
  और कहते हो रावण मारा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, October 3, 2022

नेता उचाव

अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
 पर जल्दी बिकने वाला हूं
 टीवी की हर चैनल पर अब,
 मैं जल्दी दिखने वाला हूं
  
अधकचरी विधानसभा का, 
चुना गया मैं एक विधायक 
लड़ा चुनाव स्वतंत्र ,जीतकर 
आज बन गया हूं मैं लायक 
 मिली जुली सरकार बने तो,
 होगी अहम भूमिका मेरी 
 पक्ष-विपक्ष कर रहे दोनों 
 इसी लिए हैं हेरा फेरी 
 मुझे पता ,अपने पाले में 
 चाह रहे हैं दोनो लाना
 मूल्यवान में हुआ अकिंचन,
 दोनों डाल रहे हैं दाना
 तोल मोल चल रहा अभी है 
  मूल्यांकन करना है बाकी 
  नहीं  बिकूंगा जब तक मेरी 
  कीमत सही न जाए आंकी
  मेरा एक वोट कर सकता, 
  है सत्ता में परिवर्तन भी 
  मुझको कई करोड़ चाहिए,
  और मंत्री की पोजीशन भी 
  मैं रिसोर्ट में एश कर रहा ,
   मुझको दिखता सब नाटक है 
   सत्ता के गलियारों में हैं ,
   रोज हो रही उठापटक है 
   मेरा भाव लगाने वाले ,
   कब देते मनचाहा ऑफर
   मेरे इधर उधर होने से ,
   बदल जाएगा सारा मंजर
   धोखा अगर दिया कोई ने,
    तो मैं ना टिकने वाला हूं
    अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
    पर जल्दी बिकने वाला हूं
     टीवी की हर चैनल पर अब
      मैं जल्दी दिखने वाला हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नेता और रिश्वत 

मैंने पूछा एक नेता से 
लोग तुम्हें है भ्रष्ट बताते 
बिन रिश्वत कुछ काम न करते 
सदा तिजोरी अपनी भरते
 नेता बोले बात गलत है
 यह मुझ पर झूठी तोहमत है 
 प्रगति पथ हो देश अग्रसर 
 यही ख्याल बस मन में रख कर 
 करता बड़े-बड़े जब सौदे
  करना पड़ते कुछ समझौते 
  काम देश प्रगति का करता 
  सेवा शुल्क ले लिया करता 
  इतना तो मेरा हक बनता 
  पर रिश्वत कहती है जनता 
  फिर थोड़ा हंस ,बोले नेता
   मैं रिश्वत ना ,प्रतिशत लेता 
   सच कहता हूं ईश्वर साक्षी 
   लिया अगर जो एक रुपया भी 
   जो कुछ लिया, लिया डॉलर में 
   एक रुपया ना आया घर में 
   जो भी मिलता है ठेकों में 
   सभी जमा है स्विस बैंकों में 
   हर सौदे में जो भी पाता 
   उसे चुनाव के लिए बचाता 
   पैसा जनता का, जनता में 
   बंट जाता है वोट जुटाने 
   और तुम कहते यह रिश्वत है 
   सोच तुम्हारी बहुत गलत है

मदन मोहन बाहेती घोटू

 तुम मुझको अच्छे लगते हो 
 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो 
जो बाहर है, वो ही अंदर ,
मन के तुम सच्चे लगते हो 

रखते नहीं बैर कोई से ,
नहीं किसी के प्रति जलन है 
करता मन के भाव प्रदर्शित ,
शीशे जैसा निर्मल मन है 
मुंह में राम बगल में छुरी ,
जैसी बुरी नहीं है आदत 
तुम्हारे व्यवहार वचन में,
 टपका करती सदा शराफत 
 सीधे सादे, भोले भाले ,
 निश्चल से बच्चे लगते हो 
 तुम जो भी हो जैसे भी हो 
 पर मुझको अच्छे लगते हो 
 
ना है कपट ,नहीं है लालच ,
और किसी से द्वेष नहीं है 
सदा मुस्कुराते रहते हो ,
मन में कोई क्लेश नहीं है 
ना ऊधो से कुछ लेना है ,
ना माधव को ,है कुछ देना 
रहते हो संतुष्ट हमेशा 
खाकर अपना चना चबेना 
बहुत सुखी हो, दुनियादारी 
में थोड़े कच्चे लगते हो 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

 उचटी उचटी नींद आती है,
 बिखरे बिखरे सपने आते 
 पहले से आधी खुराक भी ,
 खाना मुश्किल से खा पाते 
 डगमग डगमग चाल हो गई,
 झुर्री झुर्री बदन हो गया 
 ढीले ढीले हुए वस्त्र सब,
  इतना कम है वजन हो गया 
  थोड़ी देर घूम लेने से ,
  सांस फूलने लग जाती है 
  मन करता है सुस्ताने को 
  तन में सुस्ती सी जाती है 
  सूखी रोटी फीकी सब्जी ,
  ये ही अब आहार हमारा 
  जिनके कभी सहारा थे हम
  वह देते हैं हमें सहारा 
  चुस्ती फुर्ती सब गायब है,
 आलस ने है डेरा डाला 
 मन में कुछ उत्साह न बाकी,
  हाल हुआ है बुरा हमारा 
  फिर भी हंसते मुस्कुराते हैं ,
  और समय हम रहे काट हैं 
  बस ये ही थोड़ी मुश्किल है ,
  बाकी सब कुछ ठीक-ठाक है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, September 29, 2022

रावण दहन 

हे प्रभु तू अंतर्यामी है 
बदला मुझ में क्या खामी है 
ताकि समय रहते सुधार दूं,
जितनी अधिक सुधर पानी है 

मानव माटी का पुतला है 
अंतर्मन से बहुत भला है 
काम क्रोध लोभ मोह ने 
अक्सर इसको बहुत छला है 

कई बार लालच में फंसकर 
पाप पुण्य की चिंता ना कर
कुछ विसगतियां आई होगी, 
भटका होगा गलत राह पर 

और कभी निश्चल था जो मन 
पुतला एक गलतियों का बन 
ज्ञानी था पर अहंकार ने, 
उसको बना दिया हो रावण 

प्रभु ऐसी सद्बुद्धि ला दो 
अंधकार को दूर भगा दो 
आज दशहरे का दिन आया 
उस रावण का दहन करा दो

मदन मोहन बाहेती घोटू
तब और अब 

पहले जब कविता लिखता था 
रूप बखान सदा दिखता था 

रूप मनोहर ,गौरी तन का 
चंदा से सुंदर आनन का 
मदमाते उसके यौवन का 
बल खाते कमनीय बदन का 
हिरनी सी चंचल आंखों का 
उसकी भावभंगिमाओं का 
हर पंक्ति में रूप प्रशंसा 
उसको पा लेने की मंशा 
मन में रूप पान अभिलाषा 
रोमांटिक थी मेरी भाषा 
मस्ती में डूबे तन मन थे 
वे दिन थे मेरे योवन के 
रहूं निहारता सुंदरता को, 
ध्यान न और कहीं टिकता था 
पहले जब कविता लिखता था

अब जब मैं कविता लिखता हूं 
कृष काया , बूढ़ा दिखता हूं

बचा जोश ना ,ना उमंग है 
बदला जीवन रंग ढंग है 
तन और मन सब थका थका है 
बीमारी ने घेर रखा है 
अब आया जब निकट अंत है
मेरा मन बन गया संत है 
याद आते प्रभु हर पंक्ति में 
डूबा रहता मन भक्ति में 
बड़ी आस्था सब धर्मों में 
दान पुण्य और सत्कर्मों में 
उम्र बढ़ रही ,बदला चिंतन 
पल-पल ईश्वर का आराधन 
पुण्य कमा लो इसी भाव में ,
हरदम मैं खोया दिखता हूं 
अब जब मैं कविता लिखता हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, September 26, 2022

देवी वंदना 

1
नवरात्रि में पूज लो, माता के नव रूप 
सुंदर प्यारे मनोहर, सब की छवि अनूप 
सब की छवि अनूप, देख कर श्रद्धा जागे मनोकामना पूर्ण करें, मैया बिन मांगे 
आशीर्वाद मांगता , घोटू भक्त तुम्हारा 
बिमारी से मुझे ,दिला दो मां छुटकारा 
2
माता तू ही देख ले, तेरा भक्त बीमार 
दृष्टि कृपा की डालकर ,कर दे तू उपचार
 कर दे तू उपचार, प्यार अपना बरसा दे 
 फिर से नवजीवन की मन में आस जगा दे 
सुमरूं तेरा नाम ,काम पूरण सब कर लूं
और करूं सत्कर्म,पुण्य से झोली भर लूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मातृ वंदना

1
 हे माता यह वंदना , है अब की नवरात्र 
 अपने आशीर्वाद का, मुझे बना ले पात्र 
 मुझे बना ले पात्र ,देवी ममता की मूर्ती 
 मुझे स्वस्थ कर ,भर दे पहले जैसी फुर्ती 
 माता तेरी कृपा दृष्टि का मैं हूं प्यासा 
 करूं तेरा गुणगान ,पूर्ण कर दे अभिलाषा
 2
 माला लेकर हाथ में , जपूं तुझे दिन रात 
 मेरी जीवन डोर है , मईया तेरे हाथ 
 मईया तेरे हाथ, ज्ञान बल धन की दाता 
 सरस्वती दुर्गा लक्ष्मी ,तू भाग्य विधाता 
 तू सबकी मां, मैं भी तो हूं तेरा बेटा 
 कर दे स्वस्थ मुझे ,मैं आस लगाए बैठा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, September 22, 2022

प्रकृति प्रेम 

वैसे तो मैं अब युवा नहीं,
 लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं 
 ईश्वर की कोई सुंदर कृति,
  देखूं,और प्रेम नहीं जागे 
  
  उस परमपिता परमेश्वर ने,
  इतना कुछ निर्माण किया ,
  सौभाग्य मेरा उनके दर्शन,
  यदि मुझे जाए मिल बिन मांगे
  
 इतनी सुंदर प्रभु रचनाएं 
 मैं रहूं देखता मनचाहे 
 बहती नदिया, गाते निर्झर
 हिम अच्छादित उत्तंग शिखर
  तारों से जगमग नीलांबर 
  लहरें उछालते महासागर 
  और उगते सूरज की लाली 
  घनघोर घटाएं मतवाली
   प्रकृति की रम्य छटा सुंदर ,
   कुछ नहीं मनोहर उस आगे 
   वैसे तो मैं अब युवा नहीं,
   लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं,
    ईश्वर की कोई सुंदर कृति ,
    देखूं ,और प्रेम नहीं जागे 
    
सुंदर सुडोल कंचन सा तन 
और उस पर चढ़ा हुआ यौवन
कोमल कपोल, कुंतल काले 
और अधर रसीले मतवाले 
सुंदर सांचे में ढली देह
दिखलाए मुझ पर अगर नेह
एसी सुंदरता की मूरत 
का अगर रूप रसपान करूं,
 मैं उसे निहारु मंत्रमुग्ध 
 और प्यार मेरे मन में जागे
  वैसे तो मैं अब युवा नहीं 
  लेकिन इतना भी वृद्ध नहीं
  ईश्वर की कोई सुंदर कृति, 
  देखूं और प्रेम नहीं जागे

मदन मोहन बाहेती घोटू 
पता ही न लगा 

बचपन की खींची ,
आड़ी तिरछी रेखाएं ,
जाने कब अक्षर बन गई 
और अक्षरों का जमावड़ा ,
जाने कब कविता बन गया ,
पता ही न लगा

बचपन की आंख मिचोली ,
बड़े होते होते
कब आंखों का मिलन 
और प्यार में परिवर्तित हो गई ,
पता ही न लगा 

बालपने की चंचलता,
 कब जवानी की उद्दंडता मे बदल गई
 और पंख लगा कर कब समय
  बुढ़ापे की कगार पर ले आया,
  पता ही न लगा

  रोज-रोज ,
  गृहस्थी की उलझनों में उलझे हुए हम,
  उन्हे सुलझाते सुलझाते,
  अपने लिए कुछ भी नहीं कर पाए,
  और विदा की बेला आ गई,
  पता ही न लगा

देखते ही देखते,
हमारी मानसिकता
और लोगों के व्यवहार में
कितना परिवर्तन आ गया,
पता ही न लगा

मदन मोहन बाहेती घोटू
चांडाल चौकड़ी 

यह सारे उत्दंड तत्व है,
ईर्षा, द्वेष,मोह और माया
इस चंडाल चौकड़ी ने ही,
मिलकर है उत्पात मचाया 
 जग के हर झगड़े की जड़ में 
 हर फसाद में ,हर गड़बड़ में 
 जब भी हमने कारण ढूंढा, 
 छुपा इन्ही तत्वों को पाया 
 
देख फूलता फलता कोई ,
उससे जलना मन ही मन में 
और किसी से द्वेष पालना 
हरदम दुख देता जीवन में

होती प्रगति देख किसी की 
मन लाओ लहर खुशी की 
जिसने भी ये पथ अपनाया  
सच्चा सुख है उसने पाया 
ये सारे उदंड तत्व हैं
ईर्षा, द्वेष मोह और माया

मन जो उलझा अगर मोह में 
तो बिछोह में दुख होता है 
जो फसता माया चक्कर में ,
निज सुखचैन सभी खोता है 

जर,जमीन, जोरू के झगड़े ,
में कितने ही घर है उजड़े
इनमे जो भी कोई उलझा,
होकर दुखी ,बहुत पछताया
ये सारे उदंड तत्व हैं,
ईर्षा, द्वेष, मोह और माया

मदन मोहन बाहेती घोटू

Tuesday, September 20, 2022

आग लगी है 

कोई नहीं चैन से बैठा, 
ऐसी भागम भाग लगी है,
 महंगाई से सभी त्रस्त है,
 हर एक चीज में आग लगी है 
 
घी और तेल, गेंहू और चावल 
दिन दिन महंगे होते जाते 
दाम दूध के और दही के ,
आसमान को छूते जाते 
सब्जी महंगी, फल भी महंगे ,
महंगे कपड़े ,जूते चप्पल 
यातायात हो गया महंगा, 
मंहगे पेट्रोल और डीजल 
कैसे कोई करे गुजारा ,
सभी तरफ बढ़ रही ठगी है 
महंगाई से सभी त्रस्त है, 
हर एक चीज में आग लगी है

पांच रुपए था, कभी समोसा,
अब है बीस रूपए में आता 
महंगा हुआ चाय का प्याला ,
मुंह से गले उतर ना पाता 
दाल और रोटी खाने वाले,
के अब कम हो गए निवाले
अब गरीब और मध्यमवर्गी
कैसे घर का खर्च संभाले 
पेट नहीं भरता भाषण से ,
जबकि पेट में भूख जगी है 
महंगाई से सभी त्रस्त है,
 हर एक चीज में आग लगी है 
 
 आग लगी है जनसंख्या में,
 बढ़ती ही जाती आबादी
 सीमा पर कर रहे उपद्रव,
 कुछ आतंकी और उन्मादी  
 आग लगी है बेकारी की,
  सभी तरफ है मारामारी 
  अर्थव्यवस्था डूब रही है ,
  आवश्यक है जाए संभाली
  मगर देश को कैसे लूटें,
  नेताओं में होड़ लगी है 
  महंगाई से सभी त्रस्त हैं,
  हर एक चीज में आग लगी है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, September 15, 2022

प्रभु कृपा

मैंने बहुत शान शौकत से ,
अभी तलक जीवन दिया है
 मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
 पर तूने भरपूर दिया है 
 
तू तो सबका परमपिता है ,
सब बच्चों का तुझे ख्याल है 
तेरे लिए बराबर सब है 
और सभी से तुझे प्यार है 

तरसे सदा लालची लोभी
माला माल मगर संतोषी 

जिसने जो प्रवर्ती अपनाली,
उसने वह व्यवहार किया है 
मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
पर तूने भरपूर दिया है

आज भोगते हैं हम ,फल है,
 किए कर्म का पूर्व जनम में 
 इसीलिए सौभाग्य ,दरिद्री ,
 का अंतर होता है हम में

 जैसे कर्म किए हैं संचित
  सुखी कोई है कोई वंचित 
  
  सत्कर्मों से झोली भर लो ,
  प्रभु ने मौका तुम्हे दिया है 
  मैंने तुझसे कुछ ना मांगा,
  पर तूने भरपूर दिया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, September 11, 2022

पुनर्वालोकन 

जाने अनजाने मुझसे कुछ 
गलती कहीं हुई ही होगी ,
वरना कृपा सिंधु परमेश्वर 
मुझ को कष्ट न देता इतने 
वह सब खुशियों का दाता है 
परमपिता है भाग्य विधाता
 प्यार लुटाता संतानों पर,
 है उपकार लुटाता कितने
 
 बचपन में हम जब शैतानी
  करते, पिता पिटाई करते 
  दोषी कभी,कभी निर्दोषी 
  आपस में बस यूं ही झगड़ते 
  इन भोले भाले  झगड़ों में 
  लेकिन राग द्वेष ना होता 
  किंतु बाद में इर्षा से जब,
   कोई अपना धीरज होता 
   उससे पाप कर्म हो जाता
    तो वह गलती निंदनीय है 
    हमें भोगना ही पड़ता है 
    उसका फल इस ही जीवन में 
    जाने अनजाने मुझसे कुछ 
    गलती कही हुई ही होगी ,
    वरना कृपासिंधु परमेश्वर 
    मुझको कष्ट देता है इतने 
    
इसीलिए ये ही अच्छा है
 गलती की है , तुरंत सुधारो 
 मन में चुभन ना हो कोई के 
 क्षमा मांग कर , बैर विसारो
 अंतःकरण शुद्ध कर अपना 
 सारा जीवन जियो प्यार से 
 जीवन में शांति मिलती है 
 सब के प्रति अच्छे विचार से 
 गलती से, गलती हो जाए,
 धो दो बहा क्षमा की गंगा,
 वरना पापों की झोली फिर,
 देती कष्ट लगे जब भरने
 जाने अनजाने मुझसे कुछ
  गलती कहीं हुई ही होगी 
  वरना कृपा सिंधु परमेश्वर 
  मुझको कष्ट न देता है इतने 
  
तन के रोग मानसिक चिंता 
उन्हीं पाप कर्मों का फल है 
जो संचित हो करके सारे ,
करते रहते तुम्हें विकल है 
तुम जो चिंता मुक्त रहोगे 
तो दुख पास नहीं फटकेंगे
 तुम जिनके दुख दूर करोगे 
 वे सब तुम्हें दुआएं देंगे 
 शांतिपूर्ण जीवन जीने का,
  यही तरीका सर्वोत्तम है 
  तुम उतने सुख के भागी हो 
  पाप कर्म  कम होते जितने
  जाने अंजाने मुझसे कुछ,
  गलती कहीं हुई ही होगी,
  वर्ना कृपासिंधु परमेश्वर,
  कष्ट न देता मुझको इतने

मदन मोहन बाहेती घोटू 
हार या जीत

 मैंने विगत कई वर्षों से 
 करी दोस्ती संघर्षों से 
 अपने हक के लिए लड़ा मैं 
 और लक्ष्य की और बढ़ा मैं
 कभी लड़खड़ा गिरा, उठा मै
  लेकर दूना जोश ,जुटा मैं 
  लड़ा किसी से, हाथ मिलाया 
  मैंने धीरज नहीं गमाया 
  बढ़ा सदा उम्मीदें लेके
  कभी न अपने घुटने टेके 
  जीत मिली तो ना गर्वाया
  हार मिली तो ना शरमाया 
  नहीं किसी के देखा देखी 
  मैंने कभी बघारी  शेखी
  मन में कभी क्षोभ ना पाला 
  किसी चीज का लोभ न पाला
  बस ऐसे ही जीवन बीता 
  पता नहीं हारा या जीता


मदन मोहन बाहेती घोटू
मूषक चिंतन 

जब मिष्ठान का प्रेमी मूषक ,
चोरी चोरी कुतर कुतर कर खाने की,
अपनी आदत को छोड़ ,
अपने स्वामी के चरणों पर चढ़ाए गए,
 मोदक के थाल की सुरक्षा में तत्पर होकर, अनुशासन में बंध जाता है
 तो गणेश जी के वाहन 
 बनने का हकदार हो जाता है 
 
अपने व्यक्तिगत लाभ
 या लालसा को पूरी करने की उत्कंठा
 जब कर्तव्य परायणता में बदल जाती है 
 तो वह तुम्हें अपनी पीठ पर,
  गणेश जी को बैठाने की योग्यता दिलवाती है 
  
तो ए मेरे देश के नेताओं,
तुम भी मूषक सा बन जाओ 
अपने देश की व्यवस्थाओं को कुतर कुतर कर, खोखला मत करो बल्कि 
लोभ और लालच को त्याग,
अपने देश और देशवासियों की,
सुरक्षा के लिए तत्पर हो जाओ 
और देश के गणराज्य में ,
गणपति का वाहन कहलाने का सम्मान पाओ

अपने व्यक्तित्व में इतना निखार लाओ
  सबके इतने विश्वास पात्र बन जाओ 
 कि लोग अपने मन की बात 
 तुम्हारे कानों में विश्वास से कह कर
 गणपति तक पहुंचा सके 
 
 तुम भी गणेश जी का विश्वास पा लोगे 
 अगर अपने आचरण में 
 मूषक तत्व जगा लोगे 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, September 5, 2022

श्री कृष्ण जी के जीवन से
 सीखो कैसे जीवन जीते 
मस्ती भरा हुआ हो बचपन 
यौवन संघर्षों में बीते 
और बुढ़ापा सागर तीरे ,
पड़े काटना तनहाई में 
जब परिवार के भाई बंधु,
 उलझे आपस की लड़ाई में 
 
बचपन में नन्हे कान्हा सा ,
प्यार यशोदा मां का पाओ
गोप गोपियों के संग खेलो ,
हांडी फोड़ों ,माखन खाओ 
राधा संग प्रेम में डूबो,
 वृंदावन में रास रचाओ
 और बजा मधुर मुरली की ताने,
  ब्रज में प्यार सभी का पाओ

  फिर यौवन में कंस हनन कर ,
  राजनीति के बनों खिलाड़ी 
  जरासंध और शिशुपाल पर 
  पड़ो सुदर्शन लेकर भारी 
  कौरव पांडव के झगड़ों में
  बन मध्यस्थ उन्हें निपटाओ
महाभारत में बनो सारथी,
ना कोई भी शस्त्र उठाओ

और फिर जब इन संघर्षों से
लगे ऊबने तुम्हारा मन
तो फिर शान्ति की तलाश में,
सागर तट पर काटो जीवन  
बसा द्वारका सुंदर नगरी,
राज करो उसके शासक बन
 इतना प्यार लुटाओ सब में 
 पूजे लोग ,मान कर भगवन 
 
शांति पूर्वक कटे बुढ़ापा 
अंत समय तुम रहो अकेले
साथ नहीं हो संगीसाथी,
जिनके लिए कष्ट सब झेले
अपनो के ही तीरों हो,
चोटिल परमधाम को जाओ
नटखट बचपन उलझा यौवन
जीवन अपना यूं ही बिताओ

मदन मोहन बाहेती घोटू

हिप हिप हुर्रे,हिप हिप हुर्रे
 नेता बन उड़ाओ गुलछर्रे 
 
पैसा हो जो अगर पास में 
हो कुछ धंधे की तलाश में 
करना अगर कहीं इन्वेस्ट 
लड़ो चुनाव, यह निवेश बेस्ट 
बनो विधान सभा एमएलए 
और वह भी स्वतंत्र अकेले 
सीख लो थोड़ी भाषणबाजी
कहलाओगे तुम नेताजी
मिली-जुली आए सरकार 
मंत्री पद निश्चित है यार 
बढ़ जाएंगे भाव तुम्हारे 
हो जाएंगे वारे न्यारे 
पांचों उंगली होगी घी में 
खाओ कमाओ आए जो जी में 
उलटफेर का आए मौका 
सत्ता दल को देकर धोखा 
गए पार्टी को जो छोड़
तुम्हें मिलेंगे कई करोड़
और रिसोर्ट में मौज उड़ाओ 
मनचाहा पियो और खाओ 
लगे न हींग, फिटकरी हर्रे 
 खूब उड़ाओ तुम गुलछर्रे 
 हिप हिप हुर्रे हिप हिप हुर्रे

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, September 1, 2022

धन्यवाद

 यह सब किस्मत का फेरा था
  मुझे बीमारी ने घेरा था 
इतना  ज्यादा मैं घबराया,
 आंखों आगे अंधेरा था
  इतनी ज्यादा कमजोरी थी 
  चलना फिरना भी दूभर था 
  बचा नहीं था दम पैरों में,
  और पूरा तन ही जर्जर था 
  तबीयत थी इतनी घबराई 
  लगता था अंतिम घड़ी आई 
  तब डॉक्टर ने देवदूत बन
  किया इलाज दिया नवजीवन
   शुभचिंतक ने सच्चे मन से 
   करी प्रार्थना थी भगवन से 
   दुआ, दवा ने असर दिखाया 
   मैं विपदा से बाहर आया 
   धीरे-धीरे स्वास्थ्य लाभ कर 
   मेरी हालत अब है बेहतर 
   पूर्ण स्वस्थ होने में लेकिन
    अभी लगेंगे कितने ही दिन 
    आप सभी से विनती इतनी
    कृपा बनाए रखना अपनी
    
    धन्यवाद
मदन मोहन बाहेती घोटू 
अंधे की रेवड़ी 

लग जाती है रेवड़ी, जब अंधे के हाथ 
वह अपनों को बांटता, भरकर दोनों हाथ
भरकर दोनों हाथ, मुफ्त का माल लुटाता 
दरिया दिली दिखाकर, वाही वाही पाता 
बदले में कुछ नहीं कृपा इतनी कर देना 
बसअगले चुनाव में वोट मुझी को देना

घोटू 
मन की बात

 तेरे मन की बात और है
  मेरे मन की बात और है
  यूं तो बंधे कई बंधन में 
  रिश्ते नाते ,भाई बहन में 
  मगर सात फेरों का बंधन ,
  इस बंधन, की बात और है
  तेरे मन की बात और है 
  मेरे मन की बात और है
  
 यूं तो छाते, काले बादल ,
 सबके मन को है हर्षाते
 रिमझिम रिमझिम रिमझिम रिमझिम ,
 मोती की बूंदे बरसाते
 पर जिस बारिश हम तुम भीगे ,
 उस सावन की बात और है 
 तेरे मन की बात और है
 मेरे मन की बात और है


 राधा कृष्ण प्रेम गाथाएं,
 बृज की गली गली में फैली 
 मोह रही है ,गोपी के संग ,
 छेड़ाछेड़ी वह अलबेली 
 महारास पर जहां रचा, 
 उस वृंदावन की बात और है 
 तेरे मन की बात और है 
 मेरे मन की बात और है

 रहे भटकते हम जीवन भर 
 आज यहां ,कल वहां बिताया 
 जैसा लेख लिखा नियति ने 
 वैसा खेला कूदा खाया 
 पर जिस आंगन बचपन बीता 
 उस आंगन की बात और है 
 तेरे मन की बात और है
 मेरे मन की बात और है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ओ गिरधारी, छवि तुम्हारी 
मुझको एक बार दिखला दो 
गोप गोपियों पर बरसाया,
 वही प्यार मुझ पर बरसा दो 
 यमुना तट पर ,बंसी वट की,
  बस थोड़ी सी छैया दे दो 
  राधा के संग रास रचाते 
  दर्शन ,कृष्ण कन्हैया दे दो 
  
माटी खाते , मुंह खुलवाते,
तीन लोक की छवि दिखला दो 
चोरी-चोरी ,हंडिया फोड़ी,
बस उसका मक्खन चखवा दो 
कान उमेठ, पेड़ से बांधे ,
मुझे जसोदा मैया दे दो 
राधा के संग रास रचाते ,
दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो 

बृज कानन में, मुरली की धुन,
 मुझको भी पड़ जाए सुनाई 
 धेनु चलाते, बस मिल जाए ,
 कान्हा, दाऊ ,दोनों भाई 
 नन्हे बछड़े संग रंभाती
 मुझको कपिला गैया दे दो 
 राधा के संग रास रचाते ,
 दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो 
 
बरसाने की राधा रानी ,
और गोकुल का कान्हा प्यारा 
ठुमुक ठुमुक, चलता घर भर में
हृदय मोहता, नंददुलारा,
नजर बचाने , यशुमत मैया,
 लेती हुई बलैया दे दो 
 राधा के संग रास रचाते 
 दर्शन कृष्ण कन्हैया दे दो

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, August 28, 2022

जय गणेश गणपति गजानन 
करूं आपका, मैं आराधन 

तुम सुत महादेव के प्यारे 
प्रथम पूज्य तुम देव हमारे 
एक दंत और कर्ण विशाला 
अरुण कुसुम की धारे माला
कर में कमल ,माथ पर चंदन 
भव्य रूप ,गौरी के नंदन 
तुम हो रिद्धि सिद्धि के दाता
हम सबके तुम बुद्धि प्रदाता
लाभ और शुभ, पुत्र तुम्हारे
हरते सबके संकट सारे
सुख सरसाते, कष्ट निकंदन 
 जय गणेश गणपति गजानन 
 
लक्ष्मी साथ तुम्हारा पूजन 
दिवाली पर करें सभी जन 
सरस्वती संग साथ तुम्हारा 
सबको ही लगता है प्यारा 
दो देवी को बुद्धि बल से 
तुमने साध रखा कौशल से 
रखो संतुलन बना विनायक 
महाकाय ,पर वाहन मूषक 
जब हो घर में कुछ आयोजन 
देते तुमको प्रथम निमंत्रण 
मिलता आशीर्वाद तुम्हारा 
काम विध्न बिन होता सारा 
सूज बूझ है बड़ी विलक्षण 
जय गणेश ,गणपति गजानन

मदन मोहन बाहेती घोटू 
गई शान,अभिमान पस्त है ,
फूटी किस्मत अब रोती है 
कभी मूसलाधार बरसता ,
अब तो बस रिमझिम होती है 

बादल आते हैं मंडराते ,
फिर भी सूखा पड़ा हुआ है 
ना बरसेगा ये बादल भी,
अपनी जिद पर अड़ा हुआ है 
बहती कभी हवाएं ठंडी 
लेकिन सौंधी गंध न आती 
अब बगिया में फूल खिलते
 जिन पर थी तितली मंडराती
 इस मौसम में सूखी बगिया ,
 अपनी सब रौनक होती है 
 कभी मूसलाधार बरसता,
 अब तो बस रिमझिम होती है 
 
कभी उमंगों के रंगों में ,
रंगा हुआ था सारा जीवन 
पंख लगा कर हम उड़ते थे ,
मौज मस्तियों का था आलम 
पहले थे पकवान उड़ाते ,
अब खाते हैं सूखी रोटी 
काम न आती, जो जीवन भर 
करी कमाई हमने मोटी
बोझिल मन और बेबस आंखें, 
बरसाती रहती मोती है
कभी मूसलधार बरसता,
अब तो बस रिमझिम होती है

मदन मोहन बाहेती घोटू

Friday, August 26, 2022

चंदन की हो या बबूल की,
 हर लकड़ी के अपने गुण है 
 लेकिन जब वह जल जाती है 
 सिरफ राख ही रह जाती है 
 
मैली बहती गंदी नाली ,
जब मिल जाती है गंगा से 
अपनी सभी गंदगी खो कर ,
वह भी गंगा बन जाती है  

अगर फूल गिरता माटी पर,
 मिट्टी भी खुशबू दे देती ,
 सज्जन संग सत्संग हमेशा 
 मन को शुद्ध किया करता है 
 
अच्छे कर्म किए जीवन के 
आया करते काम हमेशा 
मानव देव पुरुष बन जाता
 घड़ा पुण्य का जब भरता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कटी जवानी लाड़ लढाते,
 कटा बुढ़ापा लड़ते लड़ते 
 गलती कोई ने भी की हो ,
 दोष एक दूजे पर मढ़ते

 रस्ते में कंकर पत्थर थे,
  ठोकर खाई संभल गए हम
  सर्दी धूप और बरसाते,
   झेले कई तरह के मौसम
  लेकिन जब तक रही जवानी ,
  हर मौसम का मजा उठाया 
  मस्ती के कोई पल को भी,
   हमने होने दिया न जाया 
   खाया पिया मौज उड़ाई ,
   घूमे पूरी दुनिया भर में 
   थे जवान हम पंख लगे थे,
   उड़ते फिरते थे अंबर में 
   जोश भरा था और उमंग थी
   पैर नहीं धरती पर पड़ते
   कटी जवानी , लाड़ लढाते,
   कटा बुढ़ापा लड़ते-लड़ते 
     
फिर धीरे-धीरे चुपके से,
 दबे पांव आ गया बुढ़ापा 
 घटने लगी उमंग जोश सब,
 संदेशा लाया विपदा का 
 लाड़ प्यार सब फुर्र हो गया ,
 जब तन था कमजोर हो गया
  तानाकशी एक दूजे पर,
  नित लड़ाई का दौर हो गया 
  किंतु लड़ाई जो भी होती,
   प्यार छुपा रहता था उसमें 
   वक्त काटने का एक जरिया
   यह झगड़ा होता था सच में 
  और जीवन का सफर कट गया 
   अपनी जिद पर अड़ते अड़ते 
   कटी जवानी लाड़ लढाते,
   कटा बुढ़ापा, लड़ते-लड़ते

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Friday, August 19, 2022

जीवन पथ

मैं जब इस दुनिया में आया 
प्रभु ने जीवन मार्ग बताया 
जिस रस्ते पर चले महाजन
उस पथ का तुम करो अनुसरण 
मैंने तुम्हें चुना मुरलीधर
और तुमको आदर्श मानकर
किया वही तुमने जो किया 
तुम जैसा ही जीवन जिया 
जीवन पद्धति को अपनाया
 दूध दही और मक्खन खाया 
 गोपी सर की हंडिया फोड़ी
  घर-घर जा,की माखन चोरी 
  मैंने दूध दही और माखन 
  खाकर किया बदन का पोषण 
  छेड़छाड़ का मजा उठाया
   प्यार गोपियों का भी पाया 
   किया बांसुरी का भी वादन 
   और चुराया राधा का मन 
   अपनी गर्लफ्रेंड के संग में 
   मैं भी रंगा रास के रंग में 
   सच वह दिन से बड़े सुहान
    फिर फिर हम होने लगे सयाने 
    मथुरा छोड़ गए तुम गोकुल 
   कॉलेज गया छोड़ मै स्कूल 
    राजकाज तुम रहे हो उलझ कर
    मैं भी बना बड़ा एक अफसर
    और रिटायर होने पहले 
    तूने त्यागे सभी झमेले 
    सब लड़ाईया छोड़ी छाड़ी
     राजनीति का बना खिलाड़ी 
     महासमर में महाभारत के 
    लिप्त रहा पर सबसे बचके
    तूने ना हाथियार उठाया 
    कूटनीति से काम चलाया 
    गीता का उपदेश सुना कर 
    दूर किया अर्जुन का सब डर
    सागर तीरे बसा द्वारका 
    दिया संदेशा तूने प्यार का 
    और द्वारकाधीश कहाया
     सबके मन को बहुत लुभाया
      देव पुरुष तू महान हो गया 
      हम सब का भगवान हो गया 
      मैंने भी गोवा के तट पर 
      कोठी एक बनाई सुंदर 
      सपने पूर्ण किए सब मन के 
      सारे सुख भोगे जीवन के 
      तुझमें मुझमें बस ये अंतर
      आठ पत्नियों का पति बन कर
      तूने सारी उमर गुजारी
      मै रह कर एक पत्नी धारी
      बड़ी शांति से मैं जिया
      और प्यार का अमृत पिया
      फिर भी प्रभु धन्यवाद तुम्हारा
      जीवन काटा सुन्दर प्यारा
      तेरे चरण चिन्ह पर चल कर
      जीवन जिया बहुत मनोहर

मदन मोहन बाहेती घोटू 
    
    

Thursday, August 18, 2022

तुम काहे को हो घबराती 

तुम मेरे कारण चिंतित हो ,
मुझको तुम्हारी चिंता है ,
फिर से अच्छे दिन आएंगे 
तुम काहे को हो घबराती 
अपने मन को ना समझाती

 हमने  मिल जुल हंसी खुशी से
  सुख-दुख सब जीवन के झेले
  अपनी जोड़ी, जोड़ी प्रभु ने,
   हम तुम जीवन भर के साथी 
   तुम काहे को हो घबराती 
   अपने मन को ना समझाती
   
   संकट कटे ,कम हुई पीड़ा,
    सुख के बादल फिर बरसेंगे 
    हम गाएंगे, मुस्कुराएंगे ,
    फिर खुशियों के फूल खिलेंगे 
    बासंती मौसम आएगा 
    और हवा होगी मुस्काती 
    तुम काहे को हो घबराती
    अपने मन को ना समझाती 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
विचार बिंदु

 हर उदासी के पीछे हंसी,
 और हंसी के पीछे उदासी छिपी रहती है 
 प्यार और निस्वार्थ भाव से चुनी हुई दीवारें मुश्किल से ढहती है 
 अगर कभी कपड़े नहीं पहने होते 
 तो आज नंगे पन का एहसास नहीं होता 
 अगर समझ से रहे होते 
 तो न झगड़ा होता और ना समझौता 
 आज की गई नादानिया,
 कल की परेशानियों की जनक होती है 
 आदमी की बुद्धि फिर जाती है ,
 जब उसमें अहम की सनक होती है

घोटू 
हाल-चाल 

घट गई तोंद,मोटापा कम है 
फिर भैया काहे का गम है 

 तन में जो आई कमजोरी 
 घट जाएगी थोड़ी थोड़ी 
 शनै शनै सुधरेगी सेहत 
 चेहरे पर आएगी रौनक 
 अगर आप परहेज रखेंगे 
 प्राणायाम और योग करेंगे 
 फिर से होगी काया कंचन 
 और प्रफुल्लित होगा तन मन
 
  तुम्हें लगेगा तुममें दम है
  फिर भैया काहे का गम है
  
 भूख बढ़ेगी जमकर खाना 
 होगा जीवन सफर सुहाना 
 और फिर पूरे परिवार संग
 दीप दिवाली, होली के रंग
 हर दिन ही त्योहार मनेंगे 
 और खुशियों के फूल खिलेंगे
  पाओगे नवजीवन प्यारा 
  होगा कायाकल्प तुम्हारा 
  
मस्ती भरा हर एक मौसम है 
तो भैया काहे का गम है

मदन मोहन बाहेती घोटू

Wednesday, August 17, 2022



प्यारऔर डॉक्टर 

प्यार 

मिलने की ललक बढ़ जाती है 
सीने की तड़फ बढ़ जाती है 
जब कोई सुंदर मृगनयनी
दिल चुरा, बढ़ाती बेचैनी 
उस बिन  सब सूना लगता है 
संसार अलूना लगता है 
दिल हो जाता है दीवाना 
जब प्यार हुआ तब यह जाना 

डॉक्टर 

कमजोरी छा जाती तन में 
उत्साह न  रहता जीवन में 
रहने लगता है मन उदास 
चिंताएं रहती आसपास 
तब एक आदमी ,दे भेषज
बंधवाता है मन को ढाढस 
वो डॉक्टर होता देवदूत,
बीमार हुए तब यह जाना

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, August 14, 2022

अनोखी दोस्ती

 कैसे मित्र बने हम बहनी 
 मैं शाखामृग ,तू मृग नयनी
 
 मैं प्राणी, बेडोल शकल का
 हूं थोड़ी कमजोर अकल का 
 लंबी पूंछ , मुंह भी काला 
 मैं हूं चंचल पशु निराला 
 मैं तो पुरखा हूं मानव का 
 मेरा भी अपना गौरव था 
 मुख जो देखे सुबह हमारा 
 उसको मिलता नहीं आहारा 
 तेरा सुंदर चर्म मनोहर 
 तीखे नैन बड़े ही सुंदर 
 तू मित्रों के संग विचरती
 हरी घास तू वन में चरती
 तेरे जीवन का क्या कहना 
 मस्त कुलांचे भरते रहना 
 और मैं उछलूं टहनी टहनी 
मैं शाखामृग, तू मृग नयनी

 नहीं समानता हमें थोड़ी 
 कैसे जमी हमारी जोड़ी 
 हम साथी त्रेतायुग वाले 
 रामायण के पात्र निराले
 मैं मारीच, स्वर्ण का मृग बन 
 चुरा ले गया सीता का मन 
 सीता हरण किया रावण ने 
 राम ढूंढते थे वन वन में 
 मैं हनुमान , रूप वानर का 
 मैंने साथ दिया रघुवर का 
 किया युद्ध ,संजीवनी लाया 
 लक्ष्मण जी के प्राण बचाया 
 और गया फिर रावण मारा 
 रामायण में योग हमारा 
 याद कथा ये सबको रहनी 
 मैं शाखामृग, तू मृगनयनी

 मदन मोहन बाहेती घोटू 

Friday, August 12, 2022

शांति की अपील 

इधर-उधर और दाएं बाएं
 देख रही हो होती घटनाएं
 रूस और यूक्रेन लड़ रहे 
 एक दूजे पर दोष मढ़ रहे 
 चीन युद्ध अभ्यास कर रहा 
 ताइवान की ओर बढ़ रहा 
 पाकिस्तानी आतंकवादी
  घुसते भारत में उन्मादी
  अमेरिका सबको उकसाता 
  दे हथियार,युद्ध भड़काता 
  ऐसा कुछ माहौल बना है 
  परेशान हर एक जना है 
  तुम छोटी बातों को लेकर 
  मुझसे लड़ती रहती दिनभर 
  यह मत देखो, यह मत बोलो 
  मेरे आगे मुंह मत खोलो 
  आंख मूंदकर मेरी मानो
   अमेरिका सा मुझको जानो
   अश्रु गैस से मुझे डराती 
   बैलन का हथियार चलाती 
   बात-बात पर रुठा रूठी
   रोज शिकायत झूठी झूठी 
   विश्वयुद्ध का  है छाया
    तुमने है गृह युद्ध मचाया 
    मैं हथियार डालता डर में
    कायम शांति रहे इस घर में 
    तुम भी कुछ परिवर्तन लाओ
    देवी, शांतिदूत बन जाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, August 8, 2022

पूछ रहे क्या हाल-चाल है 
तुम्ही भी समझ लो कैसे होगे,
 भैया ये तो अस्पताल है 
 
श्वेत पर्दों से घिरा आईसीयू,
 अब लगने लगा कश्मीर है 
 कद्दू की सब्जी के टुकड़े ,
 लगते मटर पनीर हैं 
कभी रायता जो मिल जाता
तो वो लगता खीर है 
 केरल की सेवाभावी नर्सें
  कर रही देखभाल है 
  भैया यह तो अस्पताल है 
  
  बीमारी में सभी डॉक्टर 
  को मिल गई खुली छूट 
  सबका बस एक लक्ष्य है 
  जितना लूट सके तू लूट 
  जब तक के बीमार का 
  पूरा घर ना जाए टूट
  आदमी आता बीमार है 
  लौटता ता कंगाल है 
  भैया यह तो अस्पताल है

घोटू 

Sunday, August 7, 2022

धन्यवाद ज्ञापन 

सब ने प्यार दिया ना होता ,
तो मेरा उपचार न होता
 डगमग था जो फंसा भंवर में ,
 मेरा बेड़ा पार ना होता 
 
  व्याधि विकट ,घड़ियां संकट की
   ने जब मुझको घेर लिया था 
   क्षीण आत्मविश्वास हुआ था ,
   हिम्मत में मुंह फेर लिया था 
   जीवन मृत्यु बीच झूले में 
   ऊपर नीचे झूल रहा था 
   बीते दिन की खट्टी मीठी 
   यादों को मैं भूल रहा था 
   इस स्थिति से मुझे उबारा ,
   मुझे डॉक्टर की भेषज ने
    उस पर दूना हाथ बंटाया,
    प्रेम दुआ जो भेजी सब ने 
    करी प्रार्थना सभी हितेषी की  
    अब दिखला रही असर है 
    मेरा स्वास्थ्य सुधार हो रहा,
    और दिनो दिन अब बेहतर है
     शुभचिंतक बंधु बांधव और 
     मित्रों का सहकार न होता 
     आशीर्वाद बुजुर्गों का और 
     ईश्वर का उपकार न होता 
     सब ने प्यार दिया ना होता 
     तो मेरा उपचार ना होता

    मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, June 13, 2022

अंतर वेदना 

तू भी बिमार , मै भी बिमार  
तन क्षीण हो रहा, लगातार 
है सब पीड़ाएं हैं उम्र जन्य ,
अब कौन करेगा देखभाल 
तू भी बिमार , मैं भी बिमार 

खाते थे छप्पन भोग कभी 
अब गले पड़ गए रोग सभी 
अब खाने को मिलती भेषज,
लूखी रोटी और मूंग दाल 
तू भी बिमार , मैं भी बिमार 
अब कौन करेगा देखभाल 

दुनिया भर घूमा करते थे 
आकाश को चूमा करते थे 
अब सिमटे चारदीवारी में, 
घर ,बिस्तर है या अस्पताल 
तू भी बिमार,मैं भी बिमार
अब कौन करेगा देखभाल
 
बच्चे अपने में व्यस्त सभी 
आ हाल पूछते कभी-कभी 
आपस में एक दूसरे की ,
अब हमको रखनी है संभाल
तू भी बिमार , मै भी बिमार
अब कौन करेगा देखभाल

जीवन का सुख भरपूर लिया 
और शानदार जीवन जिया 
अब ऐसा आया बुढ़ापा है,
 सब बदल गई है चाल ढाल 
 तू भी बिमार, मैं भी बिमार
 अब कौन करेगा देखभाल

  छाये जीवन में सन्नाटे
  धन और माया को क्या चाटे
  उपभोग किया ना जीवन भर ,
  बस केवल रखा था संभाल 
  तू भी बिमार,मैं भी बिमार
अब कौन करेगा देखभाल

 तू एकाकी ,मैं एकाकी
 जीवन के कुछ दिन ही बाकी 
 मालूम नहीं कब और किस दिन,
 आ जाए काल, करने प्रहार
 तू भी बिमार, मैं भी बिमार
 अब कौन करेगा देखभाल
 
जब खुशियां बसती थी मन में
संगीत भरा सा जीवन में 
हो गया बेसुरा यह जीवन 
ना बचा कोई सुर, नहीं ताल
 तू भी बिमार मै भी बिमार
 अब कौन करेगा देखभाल
 
 अब मोह माया को सकल त्याग
 जागृत कर प्रभु प्रति अनुराग
 श्री राम लला ,करें सबका भला ,
 अब जीवन के वो ही आधार 
 तू भी बिमार, मैं भी बिमार
 अब कौन करेगा देखभाल

मदन मोहन बाहेती घोटू

Thursday, June 9, 2022

श्री श्री स्वामी जी माधव प्रपन्नाचार्य द्वारा राम कथा के अवसर पर एक कविता 

माधव से सुनी, राघव की कथा 
जग जननी मां सीता की व्यथा 
स्वामी जी ने श्री वचनों से , 
हमें दिया राम का पता बता 
माधव से सुनी राघव की कथा

श्री राम जनम ,वनवास गमन 
सीता का हरण, बाली का मरण 
सेतु निर्माण समंदर पर ,
और दशाशीश रावण का तरण 
हनुमान का बल, बुद्धिमत्ता 
माधव से सुनी ,राघव की कथा 

पुष्पों से सजाया, मंच द्वार 
श्री पुष्पहास जी ,परिवार
 सब ने सच्चे मन ,तन्मय हो,
  जय राम उचारा बार-बार 
  थी हर प्रसंग में विव्हलता 
  माधव से सुनी, राघव की कथा 
  
  हो मंत्र मुक्त श्रोताओं ने
 पुरुषों ने और महिलाओं ने 
 चाय की तलब भुला करके,
  पूरा रस लिया कथाओं में 
  आलस निद्रा को बता धता
  माधव से सुनी, राघव की कथा
  
 श्री राम रतन धन जब पाया 
 रस कथा में था इतना आया 
कि व्यास पीठ पर ऊपर से 
 लीची ने भी रस टपकाया 
 जीवन में आई निर्मलता 
 माधव से सुनी, राघव की कथा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, May 22, 2022

टूटे सपने

मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में,
रोज-रोज आ जाते थे तुम, अब क्यों रूठ गये सपने बोले ,तब पूरे होने की आशा थी ,
अब आने से क्या होगा, जब तुम ही टूट गये

एक उम्र होती थी जबकि मन यह कहता था,
ये भी कर ले वो भी कर ले सब कुछ हम कर ले आसमान में उड़े ,सितारों के संग खेल करें,
दुनिया भर की सब दौलत से हम झोली भर ले तब हिम्मत भी होती थी, जज्बा भी होता था, और खून में भी उबाल था, गर्मी होती थी 
तब यौवन था, अंग अंग में जोश भरा होता, 
और लक्ष्य को पाने की हठधर्मी होती थी 
पास तुम्हारे आते थे हम यह उम्मीद लिए ,
तुम कोशिश करोगे तो हम  सच हो जाएंगे 
पर अब जब तुम खुद ही एक डूबती नैया हो ,
पास तुम्हारे आएंगे तो हम क्या पाएंगे 
साथ तुम्हारा, तुम्हारे अपनों ने छोड़ दिया,
 वो यौवन के सुनहरे दिन, पीछे छूट गए 
 मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में ,
 रोज-रोज आ जाते थे तुम अब क्यों रूठ गए

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सपने

सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं ,
नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है
नींद उचट जाया करती जब काली रातों में ,
तो बस बीती यादों का दोहराना होता है 
 
कब क्या क्या सोचा था किससे क्या उम्मीदें थी, 
उन में कितनी पूर्ण हो गई ,कितनी टूट गई लेटे-लेटे ,सूनी आंखों से देखा करते ,
कितनी ही घटनाएं हैं जो पीछे छूट गई 
बीते हुए खुशी के लम्हे सुख दे जाते हैं ,
पर कुछ बीती बातों से पछताना होता है 
सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं,
नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है 

ढलती हुई उम्र में सपने देखे भी तो क्या,
पतझड़ में भी कहीं फूल का खिलना होता है जीवन की सरिता की कलकल मौन हो रही है,
क्योंकि शीघ्र सागर से उसको मिलना होता है
हंसते-हंसते जैसे तैसे गुजर जाए ये दिन,
बस मन को ढाढस देकर समझाना होता है 
सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं,
 नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Tuesday, May 17, 2022

सुख की तलाश

क्यों ढूंढ रहे हो इधर उधर सुख तो तुम्हारे अंदर है 

झांको अपने अंतरतर में ,खुशियों का भरा समंदर है
 तुम को जीवन के जीने का, बस दृष्टिकोण बदलना है
 निज सोच सकारात्मक रखना, सुख के रस्ते पर चलना है 
 वो लोग दुखी हो जाते हैं ,सुख की तलाश में भटक भटक 
 जब लोग मोह के नाले में जाती है उनकी नाव अटक 
 लोगों की अच्छाई देखो , उनमें कमियां तुम ढूंढो
 मत 
 यदि जी भर प्यार लुटाओगे ,दूना आयेगा तुम्हे पलट
 बिखरे हैं मानसरोवर में , सुख के मोती , कंकर दुख के
बन करके तुमको राजहंस ,चुगना होगा मोती सुख के
इस जीवन की सुख ही सुख का ,झरना झर रहा निरंतर है 
क्यों ढूंढ रहे हो इधर उधर, सुख तो तुम्हारे अंदर है

घोटू 

Friday, April 29, 2022

तेरा प्यार 

मैंने सारे स्वाद भुलाए, जबसे तेरा प्यार चखा है 
अपने से भी ज्यादा तूने हरदम मेरा ख्याल रखा है

खुद से ज्यादा तुझको रहती हरदम औरों की है चिंता
नेह उमड़ता है नैनों से ,और बरसती रहती ममता 
परेशानियां सब सह लेगी ,मुंह पर कोई शिकन ना लाए 
लेकिन ख्याल रखेगी सबका ,कोई कुछ तकलीफ न पाए 
तेरे मुस्काते चेहरे ने, हृदय हमारा सदा ठगा है 
मैंने सारे स्वाद बुलाए जबसे तेरा प्यार चखा है

 नर्म हृदय तू ,सदा नम्रता तेरे उर में रहती बसती 
सारे काम किया करती है तू खुश होकर हंसती हंसती
 तुझ में अच्छे संस्कार हैं तू गृहणी व्यवहार कुशल है 
 सुख और चैन मेरे जीवन में, तेरे मधुर प्यार का फल है 
सद्भावों से भरी हुई तू, जीवनसंगिनी और सखा है 
मैंने सारे स्वाद बुलाए ,जब से तेरा प्यार चखा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मेरी पत्नी बहुत मधुर है 

मेरी उमर हो गई अस्सी
मैं अब भी हूं मीठी लस्सी 
पिचहत्तर होने आई है 
पत्नी मेरी रसमलाई है 
हम दोनों का साथ अनूठा 
यह भी मीठी ,मैं भी मीठा 
सीधी सादी, सुंदर भोली 
 बहुत मधुर मीठी है बोली 
सब के संग व्यवहार मधुर है 
दिल से करती प्यार मधुर है 
कभी सुहाना गाजर हलवा 
कभी जलेबी जैसा जलवा 
कभी गुलाब जामुनो जैसी 
या कातिल काजू कतली सी 
रबड़ी है ये कलाकंद है 
हर एक रुप में यह पसंद है 
अधरम मधुरम वदनम मधुरम
 नयनम मधुरम चितवन मधुरम
 मनमोहक मुस्कान खान है 
 मिठाई की ये दुकान है 
 यह तो था सौभाग्य हमारा 
 जो पाया है साथ तुम्हारा 
 सहगामिनी पति की सच्ची 
 मेरी तारा सबसे अच्छी 
 जीवन में बहार बन आई 
 जन्मदिवस की तुम्हे बधाई

मदन मोहन बाहेती घोटू 
आज भी 

आज भी कातिल अदायें आपकी हैं ,
आज भी शातिर निगाहें आपकी हैं 
आज भी लावण्यमय सारा बदन है,
आज भी मरमरी बांहे आपकी है 
महकता है आज भी चंदन बदन है ,
आज भी है रूप कुंदन सा दमकता 
अधर अब भी है गुलाबी पखुड़ियों से,
और चेहरा चांद के जैसा चमकता 
बदन गदरा गया है मन को लुभाता,
कली थी तुम फूल बनकर अब खिली हो 
 भाग्यशाली मैं समझता हूं मै स्वयं को 
 बन के जीवनसंगिनी मुझको मिली हो 
 केश अब भी काले ,घुंघराले ,घनेरे 
 और अंग अंग प्यार से जैसे सना हो 
 हो गई होगी पिचत्तर की उमर पर ,
 मुझे अब भी लगती तुम नवयौवना हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, April 21, 2022

गोपाल जी मनोरमा विवाह के 60 साल के अवसर पर 
1
साठ साल पहले मिले मनोरमा गोपाल 
एक दूजे का साथ पा, दोनों हुए निहाल 
दोनों हुए निहाल ,प्रेम की महकी क्यारी 
फूल खिले दो,एकअतुल एक ममता प्यारी 
जीवन बीता सत्कर्मों और परोपकार में 
सब से मिलकर रहे इकट्ठे परिवार में 

2
जब इनकी शादी हुई थे ये दसवीं पास 
विद्या पाने का मगर करते रहे प्रयास 
करते रहे प्रयास ,बने सी ए लड्ढाजी 
मनोरमा ने भी एम ए कर मारी बाजी 
चमकी महिला मंडल की मंत्राणी बनकर 
और गोपाल जी लायन क्लब के बने गवर्नर
3
सरस्वती मां ने दिया विद्या का वरदान 
और लक्ष्मी मां ने दिया प्रेम सहित धनधान्य
प्रेम सहित धन धान्य,लुटाया सबमें जी भर 
सत्कार्यों से ली इन ने अपनी झोली भर 
शीतल शांत स्वभाव ,पुण्य करते मन हरषे
 कृपा ईश्वर की ,दोनों पर हरदम बरसे 
 
4
मन में सेवा भावना और अच्छे संस्कार 
दोनों ने में लुटाया ,सब में अपना प्यार 
सब में अपना प्यार ,हमेशा रहे विजेता 
और समाज के रहे हमेशा बनकर नेता 
घोटू प्रभु से यही प्रार्थना है कर जोड़ी 
रहे स्वस्थ और दीर्घायु हो इनकी जोड़ी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, April 14, 2022

प्रतीक्षा 

प्रतीक्षा तुम करो पर वो समय के साथ ना पहुंचे

जहां पर आ रही खुजली, वहां तक हाथ ना पहुंचे

इधर के कान से सुनकर ,दूसरे से करे बाहर,

फायदा क्या कुछ कहने का ,जो उन तक बात ना पहुंचे

घोटू 
डॉगी 

हमको हर एक बात पर वो टोकने लगे 

हल्की सी भी आहट हुई तो चौकने लगे 

हमने जो उनके डॉगी को कुत्ता क्या कह दिया,

 कुत्ता तो चुप रहा मगर वो भौंकने लगे

घोटू 
बिलैया 

कहते हैं कि ये शेर की मौसी है बिलैया 

कितने ही चूहे खाने की दोषी है बिलैया 

नौ सौ से अधिक चूहों को जब कर लिया  हज़म,

 करने के लिए हज को अब पहुंची है बिलैया

घोटू 

Tuesday, April 12, 2022

फलाहारी नमकीन 

बरत में खाया जो जाए ,वह है नमकीन फलहारी

पड़ोसन से बहलता मन ,जब मैके जाए घरवाली

 पड़ोसन भी अगर ऐसे में ,जो मैके चली जाए,
 
 लगे गीला हुआ आटा,छा रही जब हो  कंगाली

घोटू 
पत्थर की मूरत 

करें तस्वीर क्या उनकी, बड़ी ही प्लेन सादा है

वो दूरी से,निगाहों से ,दिखाते प्यार ज्यादा है 

बड़े मायूस होकर दिल को समझाने को हम बोले,

 किसी पत्थर की मूरत से ,मोहब्बत का इरादा है

घोटू 
बुढ़ापे में 

बुढ़ापे में, भुलक्कड़पन की बीमारी से तुम बच लो 
जरा सा याद मैं रख लूं,जरा सा याद तुम रख लो 
भुलाना है ,भुला दे हम ,पुरानी कड़वी यादों को, 
बुढ़ापे में जवानी का नया सा,स्वाद तुम चख लो

घोटू 
धोबी का गधा

हमेशा ही लदा रहता है डाले पीठ पर बोझा ,
कोई भी ढंग से उसको खिलाता है नहीं चारा

बहुत गुस्सा हो जाता, लोटने धूल में लगता,
 रेंक कर दर्द दिल का वो, बयां करता है तब सारा
 
कोई कहता इधर जाओ ,कोई कहता उधर जाओ,
 बहुत चक्कर लगा करके, हमेशा वो थका हारा

अगर कंफ्यूजड हो मालिक,बड़ी ही मुश्किल होती है
 न घर ना घाट का रहता, गधा धोबी का बेचारा

घोटू
राधा का नाच

न आता नाच राधा को मगर नखरे दिखाएगी कभी तुम्हारे आंगन को बहुत टेढ़ा बताएगी 
कभी बोलेगी नाचेगी,मिलेगा तेल,जब नौ मन,
न नौ मन तेल ही होगा, न राधा नाच पाएगी

घोटू 

Sunday, April 10, 2022


सन्यास आश्रम 

हम सन्यास आश्रम की उम्र में है मगर संसार नहीं छूटता 
लाख कोशिश करते हैं मगर मोह का यह जाल नहीं टूटता 
हमारे बच्चे भी अब होने लग गए हैं सीनियर सिटीजन 
पर बांध कर रखा है हमने मोह माया का बंधन शरीर में दम नहीं है ,हाथ पैर पड़ गए है ढीले 
मगर दिल कहता है, थोड़ी जिंदगी और जी ले 
इच्छाओं का नहीं होता है कोई छोर
हमेशा ये दिल मांगता है मोर
जब तलक लालसाओं का अंत नहीं होता है 
सन्यासआश्रम में होने पर भी कोई संत नहीं होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

कान 

चेहरे के दाएं या बाएं 
अगर आप नजर घुमाएं
तो दो अजीब आकृति के छिद्रयुक्त अंग नज़र आते हैं 
जो कान कहलाते हैं 
यह हमारी श्रवण शक्ति के मुख्य साधन है 
जिससे एक दूसरे की बात सुन पाते हम हैं 
यह कान भी अजीब अंग दिया इंसान में है 
हर जगह मौजूद रहते इस जहान में हैं 
वो आपके मकान में हैं 
उपस्थित दुकान में है 
काम करो तो थकान में है 
खुश रहो तो मुस्कान में हैं 
आदमी के ही नहीं दीवारों के भी कान होते हैं 
कोई कान के कच्चे श्रीमान होते हैं
हमें कानो कान खबर नहीं लगती और लोग हमारे विरुद्ध दूसरों के कान भरते हैं 
कोई कान कतरते है 
कोई कान में तेल डालकर बातों को अनसुना करते हैं 
जब हम सतर्क होते हैं हमारे कान खड़े हो जाते हैं कोई बकवास करके हमारे कान पकाते हैं 
कान सा कॉम्प्लिकेटेड आकार का शरीर का कोई अंग नहीं दिखता है
कहते हैं कान का हर पॉइंट शरीर के किसी अंग को कंट्रोल करता है 
कान का सही उपयोग सुनने के लिए होता है पर औरते जो कभी किसी की नहीं सुनती है 
अपने श्रृंगार के लिए कानों को चुनती हैं 
कभी कानों में बाली डालती है 
कभी झुमका लटकाती है 
कभी हीरे के टॉप्स से कानों को सजाती है 
कोरोना की बीमारी में भी कान बहुत काम आए हर कोई रहता था कान से मास्क लटकाए 
मंद दृष्टि वालो को दूरदृष्टि देने वाला चश्मा जिससे साफ दिखता है 
वह भी कानों के सहारे ही टिकता है 
कुछ बातों की किसी को नही होती
 कानोकान खबर है
 ये शरीर का एकमात्र अंग है 
 जिसके नाम पर बसा कानपुर नगर है 
 बचपन में जब स्कूल में पढ़ते थे 
मास्टर जी बहुत ज्ञान की बातें  हमारे कानों में भरते थे 
पर हमारे कानों पर जूं नहीं रेंग पाती थी 
इस कान से सुनी बातें उस कान से निकल जाती थी 
और इसकी सजा में हमारे काम उमेंठे जाते थे कभी कान पकड़ कर उठक बैठक लगाते थे 
इस पर भी बात नहीं बनती तो कान पकड़कर मुर्गा बना दिए जाते थे 
तरह-तरह की सजाएं पाते थे 
तब तो हम खिसिया कर  पल्लू झाड़ कर खड़े हो जाते थे 
क्योंकि हमारे कई सहपाठी अक्सर ऐसी सजा पाते थे 
पर एक प्रश्न दिमाग में जरूर मचाता था तूफान की सजा देते समय मास्टर जी क्यों मरोड़तें हैं हमेशा कान 
लेकिन इसका उत्तर अब समझ पाए हम है 
कान का मस्तिष्क की ज्ञान तंत्रिका से सीधा कनेक्शन है
कान मरोड़ने से ज्ञान तंत्रिका जागृत हो जाती है ऐसी सजा से अच्छी बुद्धि आती है 
कुछ भी हो अगर कान नहीं होते तो आपस में कम्युनिकेशन नहीं हो पाता 
न सत्संग हो पाता ,ना भजन हो पाता  
इसलिए श्रीमान 
मेरी बात सुनिए खोल कर कान
कान है महान 
गुणों की खान 
आपके चेहरे पर लाते है मुस्कान 
अगर सुन कर कान का बखान
नहीं पके हो आपके कान 
तो आपस में कानाफूंसी न कर 
ऐसी बातें बोलें
जो लोगों के कानो में मिश्री घोले

मदन मोहन बाहेती घोटू
कान 

चेहरे के दाएं या बाएं 
अगर आप नजर घुमाएं
तो दो अजीब आकृति के छिद्रयुक्त अंग नज़र आते हैं 
जो कान कहलाते हैं 
यह हमारी श्रवण शक्ति के मुख्य साधन है 
जिससे एक दूसरे की बात सुन पाते हम हैं 
यह कान भी अजीब अंग दिया इंसान में है 
हर जगह मौजूद रहते इस जहान में हैं 
वो आपके मकान में हैं 
उपस्थित दुकान में है 
काम करो तो थकान में है 
खुश रहो तो मुस्कान में हैं 
आदमी के ही नहीं दीवारों के भी कान होते हैं 
कोई कान के कच्चे श्रीमान होते हैं
हमें कानो कान खबर नहीं लगती और लोग हमारे विरुद्ध दूसरों के कान भरते हैं 
कोई कान कतरते है 
कोई कान में तेल डालकर बातों को अनसुना करते हैं 
जब हम सतर्क होते हैं हमारे कान खड़े हो जाते हैं कोई बकवास करके हमारे कान पकाते हैं 
कान सा कॉम्प्लिकेटेड आकार का शरीर का कोई अंग नहीं दिखता है
कहते हैं कान का हर पॉइंट शरीर के किसी अंग को कंट्रोल करता है 
कान का सही उपयोग सुनने के लिए होता है पर औरते जो कभी किसी की नहीं सुनती है 
अपने श्रृंगार के लिए कानों को चुनती हैं 
कभी कानों में बाली डालती है 
कभी झुमका लटकाती है 
कभी हीरे के टॉप्स से कानों को सजाती है 
कोरोना की बीमारी में भी कान बहुत काम आए हर कोई रहता था कान से मास्क लटकाए 
मंद दृष्टि वालो को दूरदृष्टि देने वाला चश्मा जिससे साफ दिखता है 
वह भी कानों के सहारे ही टिकता है 
कुछ बातों की किसी को नही होती
 कानोकान खबर है
 ये शरीर का एकमात्र अंग है 
 जिसके नाम पर बसा कानपुर नगर है 
 बचपन में जब स्कूल में पढ़ते थे 
मास्टर जी बहुत ज्ञान की बातें हमारे कानों में भरते थे 
पर हमारे कानों पर जूं नहीं रेंग पाती थी 
इस कान से सुनी बातें उस कान से निकल जाती थी 
और इसकी सजा में हमारे काम उमेंठे जाते थे कभी कान पकड़ कर उठक बैठक लगाते थे 
इस पर भी बात नहीं बनती तो कान पकड़कर मुर्गा बना दिए जाते थे 
तरह-तरह की सजाएं पाते थे 
तब तो हम खिसिया कर पल्लू झाड़ कर खड़े हो जाते थे 
क्योंकि हमारे कई सहपाठी अक्सर ऐसी सजा पाते थे 
पर एक प्रश्न दिमाग में जरूर मचाता था तूफान की सजा देते समय मास्टर जी क्यों मरोड़तें हैं हमेशा कान 
लेकिन इसका उत्तर अब समझ पाए हम है 
कान का मस्तिष्क की ज्ञान तंत्रिका से सीधा कनेक्शन है
कान मरोड़ने से ज्ञान तंत्रिका जागृत हो जाती है ऐसी सजा से अच्छी बुद्धि आती है 
कुछ भी हो अगर कान नहीं होते तो आपस में कम्युनिकेशन नहीं हो पाता 
न सत्संग हो पाता ,ना भजन हो पाता  
इसलिए श्रीमान 
मेरी बात सुनिए खोल कर कान
कान है महान 
गुणों की खान 
आपके चेहरे पर लाते है मुस्कान 
आपस में कानाफूंसी न कर 
ऐसी बातें बोलें
जो लोगों के कानो में मिश्री घोले

मदन मोहन बाहेती घोटू
कशमकश 

मेरा दिल और दिमाग 
कभी नहीं चले एक साथ 
बचपन से ले अब तक 
दोनों चलते रहे अलग-अलग 
दिल ने कुछ कहा,
 दिमाग नहीं माना  
दिमाग में कुछ विचार आए 
दिल नहीं माना 
दोनों कि हमेशा लड़ाई चलती ही रही 
और फिर एक दिन मेरी शादी हो गई 
अब मन और मस्तिष्क की कशमकश बंद है क्योंकि मुझे अब वही करना पड़ता है,
 जो मेरी पत्नी जी को पसंद है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, April 7, 2022

सन्यास आश्रम 

हम सन्यास आश्रम की उम्र में है मगर संसार नहीं छूटता 
लाख कोशिश करते हैं मगर मोह का यह जाल नहीं टूटता 
हमारे बच्चे भी अब होने लग गए हैं सीनियर सिटीजन 
पर बांध कर रखा है हमने मोह माया का बंधन शरीर में दम नहीं है ,हाथ पैर पड़ गए है ढीले 
मगर दिल कहता है, थोड़ी जिंदगी और जी ले 
जब तलक लालसाओं का अंत नहीं होता है 
सन्यासआश्रम में होने पर भी कोई संत नहीं होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ऑरेंज काउंटी के चुनाव में लड़ने वाले प्रत्याशियों से एक नम्र निवेदन 
1
 इसे ऑरेंज कहते हम मगर ताजा यह ऐपल है 
हमारी जिंदगी की यहां बसती खुशी पल-पल है 
तुम्हारी यह जवानी है ,हमारा यह बुढ़ापा है ,
 हमारे प्यारे बच्चों का सुनहरा यही तो कल है
 2
 हमारी जिंदगानी है ,हमारा प्यार है ओ सी 
 जवानी से बुढ़ापे तक का ये संसार है ओ सी 
 तुम्हें इसकी व्यवस्थायें, सभी हम सौंप तो देंगे 
करो वादा हमेशा ही ,रहे गुलजार ये ओ सी
 3
आपसी मन के भेदों को मिटाकर काम तुम करना 
भला सोसाइटी का ,इसका ऊंचा नाम तुम करना 
मोहब्बत ही मिलेगी ,जो मोहब्बत से रहोगे तुम, 
जरा से फायदे खातिर ,इसे बदनाम मत करना
 करो वादा अगर जीते ,नहीं तुम रंग बदलोगे मुस्कुरा कर के मिलने का नहीं तुम ढंग बदलोगे 
हमारा हाथ हरदम ही तुम्हारे साथ है लेकिन ,
 रहोगे साथ तुम मिलकर ,नहीं तुम संग बदलोगे

 मदन मोहन बाहेती घोटू 

Wednesday, April 6, 2022

ढलता तन,चंचल मन

तन बूढ़ा हो गया आ गई ,अंग अंग में ढील है लेकिन मन का कोना कोना ,चंचल है गतिशील है

 हाथ पांव कृषकाय हुए पर मन अभी जोशीला है 
तन में फुर्ती नहीं रही पर अंतर मन फुर्तीला है 
 अब भी ख्याल जवानी वाले मस्तक में मंडराते हैं 
हालांकि थोड़ी सी मेहनत, करते तो थक जाते हैं 
चार कदम ना चलता तन ,मन चले सैकड़ों मील है 
लेकिन मन का कोना कोना ,चंचल है गतिशील है
 
तन तो अब ना युवा रहा पर मन यौवन से भरा हुआ 
तन बूढ़ा हो गया मगर मन,ना बूढ़ा है जरा हुआ 
इसका कारण मैं गांव में पला बढ़ा और रहता हूं 
नहीं संकुचित शहरों सा उन्मुक्त पवन सा बहता हूं 
हैआध्यात्म बसा नसनस में और संस्कार सुशीलहै 
 लेकिन मन का कोना कोना चंचल है गतिशील है

शुद्ध हवा में सांसे लेता और शीतल जल पीता हूं 
दूर बहुत दुनियादारी से, सादा जीवन जीता हूं
तन पर तो बस नहीं मगर मन पर तो है बस चल जाता 
जैसा हो परिवेश उस तरह ही है मानस ढल जाता 
बहुत नियंत्रित मेरा जीवन ,जरा न उसमें ढील है 
लेकिन मन का कोना कोना चंचल है गतिशील है

मदन मोहन बाहेती घोटू
बढ़ती महंगाई 

प्रवासी भारतवासी ,
जब विदेश से लौटकर 
वापस अपने घर आते हैं 
बढ़ी हुई महंगाई को
 अपने साथ ले आते हैं 
 
 जैसे मेरे देश का वड़ापाव 
 छोड़कर अपना गांव 
 जब गया विदेश ,
 तो लौटा नया रूप धर 
 वह बन गया था वड़ापाव से बर्गर 
 उसका नया हीरो वाला रूप,
  लोगों को सुहाया 
  दाम दस गुना हो गए ,
  फिर भी लोगों ने बड़े चाव से खाया 
  
  मेरे गांव के नाई चाचा की तेल मालिश ,
  जब विदेश गई 
  तो स्पा बन गई 
  नए रंग में सन गई
  बहुत महंगी हो गई 
  पर फैशन बन गई 
  
  दादी के हाथों के मैदे की सिवैयां
   आज भी बहुत याद आती हैं 
   जब से विदेश से लौटी है ,
   चाऊमीन कहलाती है 
    बड़ी मंहगी आती है
   
   और जब आलू का पराठा पहुंच गया विदेश
    देखकर उन्मुक्त परिवेश 
    दो परतों के बीच उसका दम घुटने लगा 
    और वह बाहर की और भगा 
    रोटी के ऊपर चढ़कर उसे आया मजा 
    और वह बन गया पिज़्ज़ा 
    विदेशी रंगत देख कर,
    लोगों में दीवानगी चढ़ गई 
    बस कीमत कई गुना बढ़ गई 
    
    कनखियों से ताक झांक कर के ,
    नैनो को लड़ाने वाला प्यार 
    विदेश में डेटिंग करके हो गया बेकरार 
    खुली छूट मिल गई कर लो पूरा दीदार 
    मगर खर्च होगया कई हजार
    
    विदेश जाकर बदले परिवेश में,
     गांव की चीजों पर आधुनिकता चढ़ा दी 
     पर मेरे देश की महंगाई बढ़ा दी

     मदन मोहन बाहेती घोटू 

Tuesday, April 5, 2022

बुढ़ापा होता है कैसा

बुढ़ापा होता है कैसा 
बुढ़ापा होता है ऐसा 

अभी जोशे जवानी है 
चमक चेहरे पर पानी है 
मटकती चाल बलखाती
जुल्फ काली है लहराती 
उमर जब बढ़ती जाएगी 
लुनाई घटती जाएगी 
कोई जब आंटी बोलेगा 
तुम्हारा खून खोलेगा 
भुगतनी पड़ती जिल्लत है 
उमर की यह हकीकत है 
सफेदी सर पे आती है,
 उमर देती है संदेशा 
 बुढ़ापा होता है ऐसा 
 बुढ़ापा होता है कैसा 
 
तुम्हारी अपनी संताने 
जो चलती उंगली को थामें 
बड़ी होने लगेगी जब 
ध्यान तुम पर न देगी तब 
तुम्हारी कुछ न मानेगी 
सिर्फ अपनी ही तानेगी 
कहेगी तुम हो सठियाये
रिटायर होने को आए 
रमाओ राम में निज मन 
छोड़ दो काम का बंधन 
नियंत्रण उनका धंधे पर ,
और उनके हाथ है पैसा 
बुढ़ापा होता है ऐसा 
बुढ़ापा होता है कैसा 

बदन थोड़ा सा कुम्हलाता
चिड़चिड़ापन है आ जाता 
बहुत कम खाते पीते हैं 
दवाई खा कर जीते हैं 
मिठाई खा नहीं सकते 
बहुत परहेज है रखते 
गुजारे वक्त ना कटता 
बड़ी आ जाती नीरसता 
नहीं लगता कहीं भी मन 
खटकता है निकम्मापन
न घर के घाट के रहते ,
हाल कुछ होता है ऐसा
 बुढ़ापा होता है कैसा 
 बुढ़ापा होता है ऐसा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Wednesday, March 30, 2022

जवानी मांगता हूं मैं
1
गई जो बीत,फिर से वह,कहानी मांगता हूं मैं कबाड़ी हूं ,सदा चीजें, पुरानी मांगता हूं मैं 
मेरी फरमाइशें देखो ,ये मेरा शौक तो देखो 
बुढ़ापे में ,गई फिर से ,जवानी मांगता हूं मैं 
2
मुझे दे दो जवानी बस, उसे मैं धार दे दूंगा 
पुरानी चीज को चमका, नई चमकार दे दूंगा हसीनों का जरा सी देर का जो साथ मिल जाए कयामत जाऊंगा मैं ,ढेर सारा प्यार दे दूंगा
3
सुना है कि पुराने चावलों में स्वाद ज्यादा है 
पुरानी चीज होती एंटीक है दाम ज्यादा है 
नई नौदिन पुरानी सौ दिनों तक टिकती है लेकिन 
मेरा नौ दिन सही, फिरसे जवानी का इरादा है
4
भले थोड़ी सही,फिर से जवानी मुझको मिल जाए 
येमुरझाया चमन मेराभले कुछ दिन ही खिल जाए
हसीनों से करूं फिर से मोहब्बत ,आरजू दिल की कि इन बुझते चिरागों में ,रोशनी फिर से मुस्काए
5
नया कुछ स्वाद मैं ले लूं ,नया उन्माद मैं झेलूं तमन्ना है चमन की हर कली के साथ मैं खेलूं 
खुदा इतनी सी हसरत है ,तू लौटा दे पुराने दिन, भले कुछ दिन सही, लेकिन जवानी के मजे ले लूं
6
जवानी फिर से जीने को मेरा दिल तो है आमादा
भले हिम्मत नहीं बाकी, न तन में जोश है ज्यादा लगा चस्का पुराना है ,नहीं छूटेगी यह आदत , हो कितना बूढ़ा भी बंदर, गुलाटी मारता ज्यादा

मदन मोहन बाहेती घोटू