Friday, April 18, 2025

मैंने तुझको देख लिया है 


मैंने पंखुड़ी में गुलाब की , हंसती बिजली ना देखी थी 

बारह मास रहे जो छाई,ऐसी बदली ना देखी थी

ना देखे थे क्षीर सरोवर,उन में मछली ना देखी थी 

सारी चीजें नजर आ गई ,मैंने तुझको देख लिया है 


तीर छोड़ कर तने रहे वो तीर कमान नहीं देखे थे

पियो उमर भर पर ना खाली हो वो जाम नहीं देखे थे 

गालों की लाली में सिमटे , वो तूफान नहीं देखे थे 

सारी चीजें नजर आ गई मैंने तुझको देख लिया है 


ढूंढा घट घट, घट पर पनघट, घट पनघट पर ना देखे थे 

कदली के स्तंभों ऊपर ,लगे आम्र फल ना देखे थे 

सरिता की लहरों में मैंने,भरे समंदर ना देखे थे 

सारी चीजें नजर आ गई ,मैंने तुझको देख लिया है


मदन मोहन बाहेती घोटू

Wednesday, April 16, 2025

मुक्तक 

1
अचानक एक दिन यूं ही तमाशा कर दिया मैंने 

 खुलासा करने वालों का खुलासा कर दिया मैंने

 वो तड़फे, तिलमिलाए पर,नहीं कुछ कर सके मेरा ,
बहुत बनते थे बस नंगा जरा सा कर दिया मैंने
2
बड़े तुम बोल,ना बोलो अपनी तारीफ मत हांको 

कभी भी दूसरों को अपने से छोटा नहीं आंकों

तुम्हारी क्या हकीकत है की दुनिया जानती है सब, 
फटा का गरेंबां हो जब, फटे दूजे में मत झांको 

मदन मोहन बाहेती घोटू

Monday, April 14, 2025

बदलाव 

मैंने देखा साथ वक्त के 
कैसे लोग बदल जाते हैं 
बीज वृक्ष बन जाता उसमें,
 फूल और फिर फल आते हैं 

दूध फटा बन जाता छेना 
जमता दूध ,दही कहलाता 
सूख खजूर ,छुहारा बनता,
रूप रंग सब बदला जाता 

और अंगूर सूख जब जाते,
 हम उनको किशमिश कहते हैं 
नाले निज अस्तित्व मिटाते,
तो फिर नदिया बन बहते हैं 

चावल पक कर भात कहाते 
गेहूं पिसते ,बनता आटा 
गर्म तवे पर बनती रोटी ,
घी लगता बन जाए परांठा 

पक जाने पर हरी मिर्च भी,
रंग बदल कर,लाल सुहाती 
और सूखे अदरक की गांठे ,
बदला नाम, सोंठ कहलाती 

उंगली पकड़ चले जो बच्चे,
तुमको उंगली दिखलाते हैं 
मैंने देखा साथ वक्त के,
 कैसे लोग बदल जाते हैं 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Sunday, April 13, 2025

अपनो से 

तुम मुझसे मिलने ना आते,
तो मुझे बुरा नहीं लगता है ,
पर कभी-कभी जब आ जाते,
तो यह मन खुश हो जाता है 

मैं यही सोच कुछ ना कहता,
तुम बहुत व्यस्त रहते होंगे ,
क्या मुझसे मिलने कभी-कभी,
 मन तुम्हारा अकुलाता है 

कोशिश करोगे यदि मन से 
तो समय निकल ही जाएगा,
मिलने जुलने से प्रेम भाव 
आपस वाला बढ़ जाता है 

है दूरी भले घरों में पर ,
तुम दिल में दूरी मत रखना ,
यह कभी टूट ना पायेगा,
 मेरा तुम्हारा नाता है 

इतनी तो अपेक्षा है तुमसे,
तुम कभी उपेक्षा मत करना 
वरना तुम्हारी यह करनी ,
हर दम मुझको तड़पाएगी 

मैं हूं उसे मोड़ पर जीवन के,
क्या पता छोड़ दूं कब सबको ,
तुम कभी-कभी मिल लिया करो,
 तो उम्र मेरी बढ़ जाएगी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
घर का खाना

वही अन्न है, वो ही आटा ,
वही दाल और मिर्च मसाला 
फिर भी हर घर के खाने का,
 होता है कुछ स्वाद निराला 

हर घर की रोटी रोटी का ,
अपना स्वाद जुदा होता है 
घर की रोटी के आटे में,
 मां का प्यार गुंथा होता है 

कोई मुलायम फुल्का हो या
गरम चपाती , टिक्कड़ मोटी 
अलग-अलग पर सबको भाती ,
है अपने ही घर की रोटी

कुछ सिकती है अंगारों पर,
 कोई तवे पर फूला करती 
कोई तंदूरी होती है ,
स्वाद निराला अपना रखती

जला उंगलियां जिसे सेकती 
है मां वो रोटी है अमृत 
ममता के मक्खन से चुपड़ी ,
तुम्हें तृप्त करती है झटपट 

होटल से महंगीसे महंगी 
सब्जी तृप्त नहीं कर सकती 
पकवानों की भीड़ लगी पर 
पेट तुम्हारा ना भर सकती 

सब फीका फीका लगता है,
 घर वाले खाने के आगे 
तृप्त आत्मा हो जाती है 
अपने घर की रोटी खा के 

पांच सितारे होटल वालो 
के गरिष्ठ होते सब व्यंजन 
पर सुपाच्य और हल्का होता 
अपने घर का भोजन हरदम 

जिसके एक-एक ग़ासे में,
 स्वाद भरा हो अपनेपन का 
सबके ही मन को भाता है 
क्या कहना घर के भोजन का

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, April 10, 2025

शादी 

 बंधे प्रेम के बंधन में हम,
हो गई दिल की हेरा फेरी 
मैंने तुमसे शादी कर ली ,
मेरी *मैं* अब हो गई तेरी 
साथ रहेंगे अब हम दोनों ,
बन करके *हम* जब तक दम है ,
चांदी से उजले दिन होंगे ,
और सोने सी रात सुनहरी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मुक्तक 


जो दे एहसास माता का, उसे हम सास कहते हैं 


पराई आस,पर खुद का ,जो हो विश्वास कहते हैं


बिना मतलब जरूरत के, बिना रोके बिना टोके,


लोग बकबक जो करते हैं ,उसे बकवास कहते हैं


मदन मोहन बाहेती घोटू

हृदय की बात 

हृदय हमारा कब अपना है 
यह औरों के लिए बना है 

इसको खुद पर मोह नहीं है,
 सदा दूसरों संग खुश रहता 
कभी ना एक जगह पर टिकता 
धक धक धक-धक करता रहता 

कल कल बहता नदियों जैसा,
 लहरों सा होता है प्यारा
मात-पिता के दिल में बसता,
 बन उनकी आंखों का तारा 

कभी धड़कता पत्नी के हित 
कभी धड़कता बच्चों के हित 
यह वह गुल्लक है शरीर का, 
प्यार जहां होता है संचित 

कोई हृदय मोम होता है 
झट से पिघल पिघल है जाता
 तो कोई पाषाण हृदय है ,
निर्दय कभी पसीज पाता 

हृदय हृदय से जब मिल जाते 
एक गृहस्थी बन जाती है 
होते इसके टुकड़े-टुकड़े 
जब आपस में ठन जाती है 

युवा हृदय आंखों से तकता,
रूप देखता लुट जाता है 
नींद ,चैन, सब खो जाते हैं ,
जब भी किसी पर यह आता है 

कभी प्रफुल्लित हो जाता है
 कभी द्रवित यह हो जाता है 
रोता कभी बिरह के आंसू ,
कभी प्यार में खो जाता है 

इसके एक-एक स्पंदन 
में बसता है प्यार किसी का 
इसकी एक-एक धड़कन में 
समा रहा संसार किसी का 

अगर किसी से मिल जाता है 
जीवन स्वर्ग बना देता है 
चलते-चलते अगर रुक गया 
तुमको स्वर्ग दिखा देता है 

इसके अंदर प्यार घना है 
हृदय तुम्हारा कब अपना है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, April 7, 2025

 दो मुक्तक 
1
यह जीवन कर्ज तेरा था, दिया तूने लिया मैंने

 दिए निर्देश जो जैसे ,उस तरह ही जिया मैंने

मैं मरते वक्त तक बाकी कोई उधार ना रखता ,

दिया था तूने जो जीवन, तुझे वापस किया मैंने 
2
हम अपने ढंग से जी लें,बुढ़ापा इसलिए उनने

अकेला छोड़कर हमको ,बसाया घर अलग उनने 

 हमारी धन और दौलत का,ध्यान पर रखते हैं बच्चे ,
कर लिया फोन करते हैं, हमारी खैरियत सुनने

मदन मोहन बाहेती घोटू