दो मुक्तक
1
यह जीवन कर्ज तेरा था, दिया तूने लिया मैंने
दिए निर्देश जो जैसे ,उस तरह ही जिया मैंने
मैं मरते वक्त तक बाकी कोई उधार ना रखता ,
दिया था तूने जो जीवन, तुझे वापस किया मैंने
2
हम अपने ढंग से जी लें,बुढ़ापा इसलिए उनने
अकेला छोड़कर हमको ,बसाया घर अलग उनने
हमारी धन और दौलत का,ध्यान पर रखते हैं बच्चे ,
कर लिया फोन करते हैं, हमारी खैरियत सुनने
मदन मोहन बाहेती घोटू